रानी पद्मिनी – पद्मावती का इतिहास Chittor Rani Padmavati History in Hindi

रानी पद्मावती (पद्मिनी) का इतिहास Chittor Ki Rani Padmavati History in Hindi

रानी पद्मिनी या पद्मावती इतिहास की एक महान रानी के रूप में जनि जाती हैं। चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का उल्लेख सन 1540 में ‘मलिक मोहम्मद ज्यासी द्वारा लिखे गए महाकाव्य में पाया गया है। यह कविता रानी पद्मिनी या मद्मावती के घटनाओं के लगभग 240 साल बाद लिखा गया था।

चित्तौड़ की रानी पद्मावती (पद्मिनी) का इतिहास Chittor Rani Padmavati History Hindi

साहस एवं सुंदरता की प्रतिमूर्ति रानी पद्मावती भारतीय इतिहास की सबसे प्रसिद्ध महारानियों में से एक थीं। उनका जीवन भारत के अतीत को गौरविंत करता है। 

लगभग 13वीं से 14वीं सदी के बीच महारानी पद्मावती का उल्लेख मिलता है। सर्वप्रथम एक सूफी कवि मलिक मोहम्मद जायसी ने रानी पद्मावती के ऊपर “पद्मावत” नामक एक महाकाव्य की रचना की थी।

हालांकि अवधी भाषा में रचित 1540 ईस्वी के दौरान यह महाकाव्य रानी पद्मावती के विषय में बताता है, लेकिन कई इतिहासकार इसके अस्तित्व को जड़ से खारिज करते हैं और उसे एक कल्पना मानते हैं। रानी पद्मावती की सुंदरता के कारण लोभित हुआ अलाउद्दीन खिलजी के समय काल की घटना बड़ी ही दिलचस्प है। 

रानी पद्मावती की शौर्य गाथा के विषय में हर कोई जानता है, जिन्होंने अपने पति राजा रतन सिंह के युद्ध में पराजय के पश्चात क्रूर प्रवृत्ति वाले अलाउद्दीन खिलजी के हाथ लगने से बेहतर अपने प्राण त्याग देना उचित समझा था। ऐसी निश्चल, सभी कलाओं से परिपूर्ण एवं साहसी रानी को हमेशा याद रखा जाएगा।

रानी पद्मावती कौन थी? Who was Rani Padmavati?

सिंघल प्रांत जो आज का श्रीलंका है, वहां के महाराजा गंधर्वसेन व उनकी रानी चंपावती की पुत्री राजकुमारी पद्मावती थी। कहा जाता है कि राजकुमारी पद्मावती के सुंदरता और बुद्धिमता के कारण हर तरफ उनकी चर्चा होती थी। शास्त्रों के अलावा वे शस्त्रों का भी ज्ञान रखती थी, जो उनकी सुंदरता को चार चांद लगा देता था।

रानी पद्मावती का जन्म व प्रारंभिक जीवन Birth and Early Life of Rani Padmavati in Hindi

सिंघल प्रदेश की राजकुमारी पद्मावती का बचपन बड़े ही सुख सुविधाओं में गुजरा। उनकी सुंदरता की चर्चा दूर-दूर तक की जाती थी, जिसके कारण पद्मावती के पिता गंधर्वसेन अपनी पुत्री के लिए बहुत सुरक्षात्मक रवैया अपनाते थे। 

राजकुमारी पद्मावती को हर किसी से बातचीत करने की अनुमति नहीं दी गई थी, जिसके कारण उनके पिता ने ‘हीरामणि’ नामक एक बोलने वाला तोता पद्मावती को भेंट में दिया था। जो पद्मावती के सुंदरता का बखान किया करता था।

ऐसी कथा है कि उस तोते से रानी पद्मावती को घनिष्ठ लगाव हो गया था, जिसके कारण उनके पिता ने तोते को मारने का आदेश दे दिया। लेकिन वह उड़ गया और एक शिकारी की जाल में जा फंसा। 

इसके बाद तोते को उस शिकारी ने एक ब्राह्मण को बेच दिया, तत्पश्चात ब्राह्मण ने चित्तौड़ के राजा रतन सिंह को वह तोता भेंट में दे दिया। कहते हैं रतन सिंह को रानी पद्मावती के विषय में उस तोते के जरिए ही पता चला था। जिसके बाद वे पद्मावती को देखने के लिए उतावले हो गए थे।

रानी पद्मावती की कहानी Story of Rani Padmavati in Hindi

राजा रावल रतन सिंह के साथ विवाह

एक तोते के मुख से राजकुमारी पद्मावती के विषय में इतने बखान सुनकर रतन सिंह जी ने पद्मावती से भेंट करने का निश्चय किया। 

जिसके पश्चात वे अपने सैनिकों के साथ समुद्र पार करके सिंघल प्रदेश की तरफ निकल गए। यहीं से चित्तौड़ के महाराजा रावल रतन सिंह की मुलाकात पद्मावती से हुई, जिसके पश्चात दोनों का विवाह हो गया।

अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्मावती

रावल रतन सिंह के बाहुबल के सामने कोई भी शत्रु अधिक दिन नहीं टिक सकता था, जिससे उनके साम्राज्य चित्तौड़ पर कोई भी आंख उठाकर बुरी नजर से देखने का दुस्साहस भी नहीं करता था। किंतु उनके ही एक करीबी ने जब उनके साथ विश्वासघात किया तो इससे उन्हें ठेस पहुंचा।

चित्तौड़गढ़ के राजा के दरबार में एक से एक महावीर योद्धा और निपुण लोग उपस्थित रहते थे। वही राघव चेतन नामक एक संगीतकार राजा रतन सिंह का बहुत खास था, जो पूरे साम्राज्य भर में अपने कला के लिए मशहूर भी था। 

लेकिन बात तो बिगड़ गई जब रतन सिंह को यह पता चला की राघव चेतन जादू टोना करता है। वह दूसरों को पराजित करने और अपनी क्षमता को प्रकट करने के लिए यह करता था। 

एक दिन जब राघव चेतन तंत्र विद्या का अभ्यास कर रहा था, उसी समय उसे रंगे हाथ पकड़ लिया गया और राजा के सामने पेश किया गया। इससे राजा ने उसे दोषी ठहरा कर पूरे साम्राज्य में मुंह काला करके गधे पर बैठा कर घुमाने की सजा सुना दी। 

इससे राघव चेतन के आत्मसम्मान को गहरा धक्का लगा। तत्पश्चात वह राज्य छोड़कर राजा के विनाश करने का संकल्प लेकर दिल्ली चला गया। उस समय दिल्ली का बादशाह अलाउद्दीन खिलजी था। अब राज्य से निष्कासित किया हुआ, अपमान के घूंट पीते हुए राघव चेतन योजना बनाकर अलाउद्दीन खिलजी के पास पहुंच जाता है। 

वह बादशाह को छोटे-मोटे राज्यों पर हमला करके धन लूटने के अतिरिक्त दुनिया की सबसे खूबसूरत वस्तु पर विजय पाने की पहेलियां बुझाते हुए रानी पद्मावती के विषय में बताता है। जब अलाउद्दीन को पद्मावती के अचंभित कर देने वाले सौंदर्यता के विषय में पता चलता है, तो वह पद्मावती से मिलने और उन्हें जीतने का मन बना लेता है।

लाउद्दीन खिलजी का चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण

राघव चेतन के मुख से रानी पद्मावती की सुंदरता का बखान सुनकर अलाउद्दीन खिलजी स्वयं को रानी पर मोहित होने से रोक न सका और अपने सैनिकों को लेकर चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई करने के लिए निकल गया। 

अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ के सुरक्षा को हल्के में ले लिया था, लेकिन जब उसने वास्तविकता देखी तो सुरक्षा को भेद पाना असंभव था। इसीलिए उसने अपने सैनिकों को लेकर बाहर ही रुकने का निश्चय किया। अपने राज्य के बाहर इतने बड़ी संख्या में सैनिकों को देखकर राजा रतन सिंह ने खिलजी से उसकी मंशा पूछी। 

तब इसके उत्तर में अलाउद्दीन खिलजी ने यह बताया कि वह रानी पद्मावती के सुंदरता का बखान सुनकर यहां आए हैं और वे उन्हें अपनी बहन की तरह मानते हैं। अलाउद्दीन खिलजी ने यह कहा कि यदि एक बार पद्मावती के साक्षात दर्शन हो जाए तो वह वापस चला जाएगा।

अपनी रानी को किसी दूसरे के सामने यूं प्रस्तुत करना राजपूताना का अपमान था, लेकिन क्योंकि खिलजी ने पद्मावती को अपनी बहन बताया, इसीलिए रतन सिंह जी ने अपने राज्य में आए अतिथि की तरह अलाउद्दीन खिलजी को महल में बुलाया और उसकी खातिरदारी की। 

अब राजा रतन सिंह ने खिलजी के सामने यह शर्त रखी कि वह केवल रानी पद्मावती के प्रतिबिंब को जलकुंड में देख सकता है। जिसके पश्चात वह वापस चला जाएगा। 

खिलजी ने यह शर्त स्वीकार कर ली और जब उसने रानी पद्मावती का प्रतिबिंब देखा तो वह सुन्न पड़ गया। रानी के सुंदरता को देखकर अलाउद्दीन खिलजी को पसीने छूटने लगे और वह किसी भी हालत पर रानी पद्मावती पर विजय पाना चाहता था। 

जब खिलजी ने अपना काम पूरा कर लिया, तब एक अतिथि की तरह राजा रतन सिंह ने उसे विदाई देते हुए महल के बाहर स्वयं छोड़ने गए। लेकिन कपटी खिलजी ने उन्हें बंधी बना लिया और अपने छावनी में कैद कर लिया।

खिलजी ने राजा को छोड़ने के लिए यह शर्त रखी की रानी पद्मावती को उसे सौंप दिया जाए। इस घोर संकट से निकलने के लिए रानी पद्मावती और चौहान राजपूत सेनापति बादल व गोरा ने रणनीति बनाई और खिलजी को एक संदेश भेजा।  

उस संदेश में लिखा था कि सुबह होते ही पद्मावती को उसे सौंप दिया जाएगा और राजा को कैद से मुक्त कर दिया जाना चाहिए। यह संदेश सुनकर खिलजी तो अपना आपा खो बैठा और जीत का जश्न मनाने लगा।

अगले ही सुबह रानी पद्मावती के डोली के साथ ही कई पालकियों द्वारा किले से बाहर खिलजी के छावनी के तरफ प्रस्थान किया गया। लेकिन उन पालकीयों में रानी और उनकी सहेलियों के बदले सैनिक बैठे थे। 

खिलजी ने यह पूछा की रानी के साथ इतनी सारी डोलियां क्यों आई है, तो उसे बताया गया कि यह दासिया हमेशा उनके साथ ही रहती हैं। खिलजी पद्मावती के प्रेम में इस तरह पागल हो गया था, कि बिना कोई जांच पड़ताल किए ही राजी हो गया।

जब खिलजी और उसके सैनिक जश्न के जाम में डूबे थे, तभी पालकीयों में से अचानक से हजारों सैनिकों ने उनपर हमला कर दिया। इसी बीच गोरा और बादल ने अपने राजा रतन सिंह को सुरक्षित महल तक पहुंचा दिया। 

अलाउद्दीन खिलजी अब आग बबूला हो गया था और उसने इस छल का बदला लेने की ठान ली। और महल के बाहर ही डेरा लगाकर अड़ गया। कई दिनों तक कोई भी महल से बाहर नहीं आया और इसके अलावा चारों तरफ सुरक्षा को और भी मजबूत कर दिया गया था। 

लेकिन जब महल में खाद्य पदार्थों के अलावा जरूरी वस्तुओं का अकाल पड़ गया, तो ना चाहते हुए भी राजा रतन सिंह को महल से बाहर आकर अलाउद्दीन खिलजी से युद्ध करने का निर्णय लेना पड़ा। 

इस तरह रतन सिंह और उनके हजारों सैनिकों ने अलाउद्दीन खिलजी के विशाल सेना का युद्ध में सामना किया और अंत में राजा वीरगति को प्राप्त हो गए। अलाउद्दीन खिलजी अब महल में प्रवेश करके किसी भी तरह रानी पद्मावती को अपने साथ ले जाने के लिए पूरी तरह से तैयार बैठा था।

रानी पद्मावती का जौहर कुंड व स्थल (मृत्यु)

पहले के समय में कोई भी राजपूतानी जिनके पति युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते थे, वह दुश्मनों के काली नजर से बचने के लिए अपने आत्मसम्मान को बचाते हुए जौहर व्रत करती थी। 

राजा के पराजय की खबर सुनने के पश्चात एक क्षत्राणी होने के नाते रानी पद्मावती ने भी जौहर करने का निश्चय किया। वे लगभग हज़ारों राजपूतानीयों के साथ जौहर कुंड में समा गई। 

जब तक खिलजी रानी पद्मावती के परछाई तक भी पहुंचता, वह जल कर पूरी राख हो चुकी थीं। इस तरह अलाउद्दीन खिलजी को रानी के बचे हुए राख के अलावा कुछ भी हाथ नहीं लगा और वह दुखी मन से वापस दिल्ली लौट जाता है।

रानी पद्मावती का महल Rani Padmavati Palace

राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक रानी पद्मिनी का महल बहुत प्रसिद्ध है। चित्तौड़गढ़ में स्थित यह महल रानी पद्मावती के इतिहास को बयां करता है। 

यहां “पद्मिनी” नामक एक तालाब स्थित है, जो महल के बीचो बीच निर्मित है। कहते हैं कि इसी तालाब में अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मावती का प्रतिबंध देखा था।

रानी पद्मावती फिल्म (2018) Rani Padmavati Hindi Movie

वर्ष 2018 में आई पद्मावती फिल्म ने काफी लोकप्रियता बटोरी थी। मशहूर फिल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली ने इस फिल्म का निर्देशन किया था।

दीपिका पादुकोण (पद्मवती), शाहिद कपूर( राणा रतन सिंह) और रणवीर सिंह (सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी) ने फिल्म में मुख्य किरदार अदा किया है। हालांकि यह फिल्म कई विवादों में भी गिरी रही, जिसके कारण फिल्म का शीर्षक ‘पद्मावती’ से बदलकर ‘पद्मावत’ रख दिया गया।

रानी पद्मावती पर कविता Poem on Rani Padmavati in Hindi

भगवा है पद्मिनी की जौहर की ज्वाला, मिटाती अमावस्य लुटाती उजाला, नया एक इतिहास क्या रच न डाला, चिता एक जलने हजारों खड़ी थी, पुरुष तो मिटे नारियां सब हवन की नलल के पदो पर जलने को खड़ी थी, मगर जौहरों में घिरे कोहरों में धुंए के घनों में बलि के क्षणों में धधकता रहा यह पूज्य भगवा हमारा। 

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