इस लेख में आप ‘होमी जहांगीर भाभा का जीवन परिचय (Biography of Homi Jehangir Bhabha in Hindi) हिन्दी में पढ़ेंगे। जिसमें आप भाभा जी का जन्म व प्रारंभिक जीवन, शिक्षा, करिअर, आविष्कार व योगदान, पुरस्कार, निजी जीवन और मृत्यु के विषय में जानकारी ले सकते हैं।
होमी जहांगीर भाभा का जीवन परिचय Biography of Homi Jehangir Bhabha in Hindi
भारत यदि आधुनिक युग में शाक्तिशाली परमाणु युक्त देशों की कतार में खड़ा है, तो यह हमारे देश के वैज्ञानिकों के मेहनत के कारण संभव हो पाया है।
देश में प्रौद्योगिकी तथा विज्ञान के क्षेत्र में क्रांति लाने वाले एक महान साइंटिस्ट होमी जहांगीर भाभा (Homi J Bhabha) को भी आधुनिक भारत के निर्माण का श्रेय जाता है।
होमी जहांगीर भाभा को भारत में न्यूक्लियर प्रोग्राम का पिता कहा जाता है। नोबल पुरस्कार विजेता सी.वी. रमन अपने समकालीन वैज्ञानिक डॉक्टर होमी से इतने प्रभावित थे, कि वे उन्हें आधुनिक भारत का ‘लियोनार्डो द विंची’ कहकर बुलाते थे। वे एक महान वैज्ञानिक, गणितज्ञ और इंजीनियर के साथ साथ कला प्रेमी भी थे।
मुंबई के एक अमीर पारसी परिवार में जन्मे डॉक्टर भाभा ने सारी शानो शौकत के पहले अपनी मातृभूमि को आगे रखा और देश का विजय पताका दुनिया में लहराया।
भारत को स्वावलंबी बनाने में डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा (Homi J Bhabha) का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे इतने कुशल भारतीय वैज्ञानिक थे, जिनसे अमेरिका और यूरोपीय देश भी खौफ खाते थे। आज भी कई विद्वानों का मानना है, कि होमी जहांगीर भाभा के स्विजरलैंड में विमान हादसे के पीछे अमेरिका का हाथ था।
होमी जहांगीर भाभा का जन्म व प्रारंभिक जीवन (Birth and Early Life)
30 अक्टूबर 1909 में मुंबई के एक अमीर पारसी परिवार में होमी जहांगीर भाभा (Homi J Bhabha) का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम जहांगीर होर्मसजी भाभा और मां का नाम मेहरबाई भाभा था। उनके भाई का नाम जमशेद जहांगीर भाभा था।
पेशे से डॉक्टर होमी भाभा के पिता एक प्रसिद्ध वकील थे और मां एक सामान्य ग्रहणी थीं। बचपन से ही भाभा की परवरिश पश्चिमी रहन सहन के बीच संपन्न हुई। क्योंकि उनके पिता एक नामी वकील थे, इसीलिए उनके घर पर बड़े-बड़े नेता मंत्रियों का जमावड़ा लगा रहता था।
यहां तक की वे अपने पिता के साथ महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू जैसे बड़े शख्सियतों से भी बचपन से ही मिलते आए थे।
होमी जहांगीर भाभा शिक्षा (Education of Homi J Bhabha in Hindi)
एक अमीर और सभ्य परिवार में जन्मे होमी भाभा बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि वाले बच्चे थे। उनके पिता ने घर पर ही गणित, विज्ञान और अन्य पुस्तकों से भरी एक लाइब्रेरी भाभा के लिए बनवाई थी।
पुस्तकालय व्यवस्था के कारण कम उम्र में ही बालक भाभा को किताबें पढ़ने में रुचि बढ़ती गई। कैथ्रैडल स्कूल में भाभा की प्रारंभिक शिक्षा संपन्न हुई। जिसके पश्चात वे जॉन कैनन आगे की पढ़ाई करने के लिए चले गए।।
डाक्टर होमी जहांगीर भाभा (Homi J Bhabha) के पिता बचपन से ही उन्हें एक कुशल इंजीनियर बनते देखना चाहते थे। लेकिन भाभा को गणित और भौतिकी में गहरी दिलचस्पी थी।
रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस तथा एलफिंस्टन कॉलेज मुंबई से बीएससी की परीक्षा अच्छे नंबर से पास किया। तत्पश्चात वे अपने पिता के कहने पर इंग्लैंड के प्रसिद्ध कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वर्ष 1927 में गए। 1930 तक उन्होंने स्नातक की डिग्री प्राप्त किया।
परमाणु भौतिकी में साल 1933 में उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। “द एबॉर्शन ऑफ कॉस्मिक रेडिएशन” उनके पेपर का शीर्षक था, जिसे उन्होंने डॉक्टरेट थीसिस के लिए उपयोग किया था।
इससे उन्हें न्यूटन छात्रवृत्ति कुल तीन वर्षों तक प्रदान की गई। परिवार के अनुसार मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के दौरान वे हमेशा अपने मनपसंद विषय भौतिक विज्ञान से जुड़े रहे और जुनूनी स्तर पर उसका अध्ययन करते रहे। एक मेधावी छात्र होने के कारण अपने शानदार प्रदर्शन से उन्होंने कई छात्रवृत्तियां जीती।
होमी जहांगीर भाभा का करिअर (Career of Homi Jehangir Bhabha in Hindi)
कैंब्रिज में पढ़ने और काम करने के दौरान आइज़क न्यूटन फैलोशिप प्राप्त करने के पश्चात कोपनहेगन में उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता नील्स बोहर के साथ कई समय तक कार्य किया।
इलेक्ट्रॉन-पॉज़िट्रॉन स्कैटरिंग पर 1935 में डॉ भाभा द्वारा प्रकाशित किए गए एक लेख की वैज्ञानिक के प्रतिष्ठित समुदाय ने खूब तारीफ की। तत्पश्चात घटना के नाम में परिवर्तन कर भाभा स्कैटरिंग रखा गया।
वर्ष 1939 में डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा पुनः भारत लौट गए, उस समय पूरी दुनिया में द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ा हुआ था। अब तक डॉक्टर भाभा बेहद प्रसिद्ध चेहरा बन गए थे।
भारतीय विज्ञान संस्थान में डॉक्टर भाभा भौतिकी विज्ञान में एक रीडर पद पर नियुक्त हुए, जिसके अध्यक्ष उस समय में विश्व विख्यात वैज्ञानिक तथा नोबेल पुरस्कार विजेता सी.वी. रमन जी थे। डॉ भाभा को साल 1941 में रॉयल सोसाइटी का सदस्य चुना गया।
अगले कुछ सालों में 1944 के अंदर ही वे अपने विभाग के प्रोफेसर बन गए। होमी जहांगीर भाभा (Homi J Bhabha) के कार्यों से इंडियन स्कूल ऑफ साइंस के अध्यक्ष प्रोफेसर सी.वी. रमन बड़े प्रभावित थे।
मुंबई में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना डॉक्टर भाभा ने जेआरडी टाटा की सहायता से करी, इसके पश्चात 1945 में वे इसके निदेशक बन गए।
संयुक्त राज्य संघ की तरफ से जिनेवा में आयोजित “शांतिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग” कार्यक्रम में 1955 में वे इस पहले सम्मेलन के सभापति चुने गए।
डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा के इस सफलता से पूरे पश्चिमी देश बौखला गए थे। वे यह स्वीकार ही नहीं कर पा रहे थे, कि एक अल्पविकसित देश से कोई वैज्ञानिक उठ कर हमारे ही विचारों का खंडन कर रहा है।
हालांकि पश्चिमी देशों ने भारत सहित कई अल्पविकसित देशों के परमाणु शक्ति कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए जोरदार विरोध किया, लेकिन डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा ने शांति पूर्वक अपना पक्ष रख कर औद्योगिक विकास के लिए परमाणु शक्ति आवश्यक होने की बात को स्वीकार करवा लिया।
होमी जहांगीर भाभा के आविष्कार व योगदान (Inventions and Contributions)
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना करने के पश्चात डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा (Homi J Bhabha) ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात करके उन्हें परमाणु कार्यक्रम को जल्द से जल्द शुरू करने पर सहमत कर लिया।
1948 में उन्होंने परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना करने में मुख्य भूमिका निभाई, इसके पश्चात वे इस आयोग के पहले अध्यक्ष के रूप में नियुक्त हुए।
IAEA में वर्ष 1955 में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए जिनेवा में आयोजित परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग सम्मेलन में पहुंचे थे। डॉक्टर होमी भाभा ने भारत के परमाणु कार्यक्रम को सफल बनाने के पीछे मजबूत रणनीति तैयार करने में भी अहम भूमिका निभाई थी।
परमाणु रिएक्टरों के निर्माण में डॉक्टर भाभा ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था, जिसकी सहायता से भारत को आत्मनिर्भर बनने में दिशा मिली।
भारतीय न्यूक्लियर एनर्जी प्रोग्राम को स्थगित करने के लिए अमेरिका और बाकी पश्चिमी देशों ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था।
1964 में डॉक्टर होमी भाभा के नेतृत्व में त्रिस्तरीय न्यूक्लियर पावर प्रोग्राम को मात्र कुछ करोड़ों की फंडिंग के साथ तैयार किया गया था। चाइना के परमाणु परीक्षण के पश्चात सन 1964 में डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा ने परमाणु बम बनाने का दवा किया।
ऑल इंडिया रेडियो के जरीए 18 महीने के अंदर परमाणु बम बनाने के डॉक्टर भाभा के इस चेतावनी से अमेरिका बुरी तरह घबरा गया था।
इसके अलावा वह अमेरिकी विदेश मंत्रालय के कई अधिकारियों से मिले, जिसमें भारत के शक्ति प्रदर्शन के विषय में यह भी कहा कि हमारा देश हर वर्ष सौ से भी अधिक परमाणु बम बनाने की क्षमता रखता है।
इसके अलावा डॉक्टर भाभा ने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की तरफ से इलेक्ट्रॉनिक्स ग्रुप को भी बढ़ावा दिया, जिसके पश्चात यह संस्था डिजिटल कंप्यूटर के निर्माण में भी आगे आ सकी।
होमी जहांगीर भाभा के पुरस्कार (Homi J Bhabha Awards in Hindi)
- कैंब्रिज विश्वविद्यालय की तरफ से वर्ष 1942 में “ऐडम्स पुरस्कार” से डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा को सम्मानित किया गया।
- वर्ष 1954 में भारत सरकार द्वारा उन्हें “पद्मभूषण” प्रदान किया गया।
- लंदन के रॉयल सोसाइटी की तरफ से “रॉयल सोसायटी फैलोशिप” डॉक्टर भाभा को दिया गया।
- कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी द्वारा “डॉक्टर ऑफ साइंस” की पदवी से उन्हें सम्मानित किया गया।
होमी जहांगीर भाभा का निजी जीवन (Family & Personal Life)
व्यवहार से होमी जहांगीर भाभा (Homi J Bhabha) बड़े ही सुलझे प्रकृति के व्यक्ति थे। उन्हें शिक्षा के साथ साहित्य और कला से भी बड़ा लगाव था। उन्होंने कभी विवाह नहीं किया।
डॉ भाभा को अनोखी और सुंदर पेंटिंग्स को खरीदने का बहुत शौक था, इसीलिए उनका कमरा भी ऐसी ही चित्र कारिता से भरा रहता था। होमी जहांगीर भाभा के न्यूक्लियर पावर में योगदान हेतु पूरा भारत ही कायल रहा है।
उन्हें उनके अद्वितीय जीवन कार्यों के लिए लगभग 5 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित भी किया गया था। लेकिन भौतिकी की दुनिया से जुड़े सबसे महत्वपूर्ण पुरुस्कार को डॉक्टर भाभा को प्रदान नहीं किया गया।
उनकी महानता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, कि वह पुरस्कार और सम्मान जीतने के नहीं बल्कि भारत को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाने की तरफ ज्यादा आक्रामक रहते थे।
वे बेहद सादगी पसंद व्यक्ति थे, जिन्हें जीवन में सारी शानो शौकत की सुविधाएं मिल जाने के बाद भी उन्होंने इसे त्याग कर मातृभूमि के लिए योगदान दिया है।
होमी जहांगीर भाभा की मृत्यु (How Homi J Bhabha Died in Hindi?)
वे एयर इंडिया के विमान में सवार होकर मुंबई से न्यूयॉर्क की तरफ 24 जनवरी 1966 के दिन जरूरी कार्य के सिलसिले से रवाना हुए थे।
किंतु अमेरिका पहुंचने से पहले ही स्विजरलैंड के पास आए आल्पस पर्वत श्रेणी से विमान क्रैश होने से दुर्घटना हो गई। होमी जहांगीर भाभा (Homi J Bhabha) भी इसी विमान में थे। हादसे में 117 लोगों समेत डॉक्टर भाभा का निधन हो गया।
कई खुफिया एजेंसियों ने यह दावा किया है कि भाभा के मौत के पीछे अमेरिका ने बहुत बड़ी साजिश रची थी। स्वर्गीय होमी जहांगीर भाभा आज जीवित होते हैं, तो हमारा देश कई सालों आगे विकसित हो चुका होता।
इतने महान वैज्ञानिक के ऐसे अकस्मात मृत्यु से पूरा देश सन्न था और उस क्षति की पूर्ति आज तक नहीं हुई है।