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Home » Biography » ध्यानचंद का जीवन परिचय Dhyan Chand Biography in Hindi: हॉकी का जादूगर

ध्यानचंद का जीवन परिचय Dhyan Chand Biography in Hindi: हॉकी का जादूगर

Last Modified: January 3, 2023 by बिजय कुमार 2 Comments

ध्यानचंद का जीवन परिचय Dhyan Chand Biography in Hindi - हॉकी का जादूगर

इस लेख में आप मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय (Biography of Major Dhyan Chand in Hindi) हिन्दी में पढ़ेंगे। इस लेख में मेजर ध्यानचंद की मोटीवेशन कहानियां बताई गई है।

जन्म व प्रारम्भिक जीवन, शिक्षा, ध्यानचंद का हॉकी करिअर, उन्हें मिलने वाले सभी पुरस्कार और ध्यानचंद के आंतिम समय के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है।

Table of Content

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  • ध्यानचंद का जीवन परिचय Dhyan Chand Biography in Hindi- हॉकी का जादूगर
  • ध्यानचंद का जन्म व प्रारम्भिक जीवन Birth and early life of Dhyanchand in Hindi
  • ध्यानचंद की शिक्षा Dhyanchand’s education in Hindi
  • ध्यानचंद का हॉकी करिअर Hockey career of Dhyan Chand in Hindi
  • ध्यानचंद के पुरस्कार व सम्मान Awards and Honors of Dhyan Chand in Hindi
  • हिटलर व ब्रैडमैन और ध्यानचंद की कहानी The story of Hitler and Bradman and Dhyanchand in Hindi
  • ध्यानचंद की मृत्यु Dhyanchand’s Death in Hindi

ध्यानचंद का जीवन परिचय Dhyan Chand Biography in Hindi- हॉकी का जादूगर

हॉकी खेल के भगवान कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद को भला कौन नहीं जानता है। हॉकी के दुनिया में इतिहास रचने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी ध्यानचंद लाखों लोगों के दिलों में राज करते हैं।

वे अपने खेल में इतने माहिर थे, कि उनकी तरह दूसरा कोई खिलाड़ी आज तक नहीं हुआ। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों की बात की जाए तो उस सूची में मेजर ध्यानचंद जी का नाम सबसे ऊपर लिया जाता है।

मेजर ध्यानचंद सभी खिलाड़ियों के लिए चाहे वह किसी भी खेल से संबंधित हो, उनके आइडल होते हैं। ध्यानचंद ने अपना नाम इतिहास में ऐसे स्वर्ण अक्षरों से अंकित करवाया है, कि जब भी कभी हॉकी पर चर्चा की जाएगी तो उनका नाम जरूर लिया जाएगा।

ध्यानचंद का जन्म व प्रारम्भिक जीवन Birth and early life of Dhyanchand in Hindi

मेजर ध्यानचंद का जन्म ब्रिटिश इंडिया में 29 अगस्त 1905 उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। इलाहाबाद का वर्तमान नाम प्रयागराज है।

एक राजपूताने परिवार में ध्यानचंद का जन्म हुआ था। मेजर ध्यानचंद का वास्तविक नाम ध्यान सिंह था। सामान्य बच्चों की तरह ही ध्यानचंद का जीवन भी बहुत ही साधारण और सरलता से बीता था।

पिता समेश्वर दत्त सिंह आर्मी में एक आम सूबेदार के पद पर कार्यरत थे। ध्यान सिंह की माता का नाम शारदा सिंह था। ध्यानचंद के दो भाई मूल सिंह और रूप सिंह थे। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान पिता समेश्वर दत्त सिंह  अपने परिवार का गुजारा अच्छी तरह से कर लेते थे। ध्यानचंद का परिवार आर्थिक रूप से स्थिर था।

गॉड ऑफ हॉकी कहलाने वाले मेजर ध्यानचंद को बचपन में हॉकी खेलने में कोई भी दिलचस्पी नहीं थी। आपको बता दें, कि उन्होंने कभी भी हॉकी खेलने के विषय में सोचा भी नहीं था।

इससे यह बात पता लगती है कि कोई भी व्यक्ति जन्मजात से सफल नहीं होता बल्कि उसे मेहनत करके नाम कमाना पड़ता है।

ध्यानचंद की शिक्षा Dhyanchand’s education in Hindi

क्योंकि ध्यानचंद के पिता एक सूबेदार की नौकरी करते थे, जिसके कारण उन्हें अपना कार्य स्थल समय-समय पर बदलना पड़ता था। हर बार किसी नए जगह उनका तबादला होता ही रहता था।

बचपन में ध्यानचंद को पढ़ाई में इतना ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी। उनके पिता भविष्य में अच्छे पद पर नौकरी पाने के लिए ध्यानचंद को पढ़ने लिखने के लिए प्रेरित करते रहते थे।

किंतु ध्यानचंद तो बचपन से ही जिद्दी थे, उन्होंने जो ठान लिया वही करते थे। मैट्रिक्स कक्षा उत्तरण करने से पहले ही ध्यानचंद ने पढ़ाई लिखाई छोड़ दी। बाद में सारा परिवार उत्तर प्रदेश के झांसी शहर में रहने लगा।

पढ़ाई लिखाई छोड़ने के बाद 1922 ईस्वी में ध्यानचंद दिल्ली में प्रथम ब्राह्मण रेजिमेंट में 16 वर्ष की आयु में एक साधारण सिपाही के पद पर भर्ती किए गए। जब वे सेना के इस साधारण पद पर नियुक्त हुए तब तक उन्हें हॉकी के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं था।

ध्यानचंद का हॉकी करिअर Hockey career of Dhyan Chand in Hindi

सौभाग्य से ध्यानचंद को सूबेदार मेजर तिवारी का साथ मिला। मेजर तिवारी न केवल हॉकी के प्रति रुचि रखते थे, बल्कि एक अच्छे हॉकी खिलाड़ी भी थे।

मेजर तिवारी से मुलाकात के बाद ध्यानचंद अब धीरे-धीरे इस मजेदार हॉकी के खेल में दिलचस्पी दिखाने लगे। इस तरह ध्यानचंद ने हॉकी को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया और लगातार संघर्षों से नई उपलब्धियां प्राप्त करते गए।

देखते और सीखते हुए ध्यानचंद अब दुनिया के बेहतरीन हॉकी खिलाड़ी कब बन गए पता ही नहीं लगा। जब ध्यानचंद इंडियन हॉकी टीम के कैप्टन थे, तो उन्हें सूबेदार का पद मिल गया।

जैसे जैसे वो हॉकी में सफलता की ऊंचाइयों को छूते गए वैसे ही उन्हें सूबेदार, लेफ्टिनेंट और कैप्टन का पद बेहद आसानी से प्राप्त हो गया। बाद में ध्यानचंद की काबिलियत को देखते हुए उन्हें मेजर पद पर नियुक्त कर दिया गया।

ध्यानचंद के विषय में ऐसा कहा जाता है, कि जब वे मैदान में उतरते थे तो विरोधी दल के खिलाड़ियों की हार्टबीट तेज हो जाती थी। मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर यूं ही नहीं कहा जाता है। उन्होंने हॉकी के दुनिया में ऐसे असंभव दांवपेच खेले हैं, जिन्हें आम खिलाड़ी एक जादू की तरह देखते हैं।

उन्होंने अपने हॉकी स्टिक से सैकड़ों गोल एकदम सटीक निशाने पर दागा है। ध्यानचंद की कलाकारी के जितने किस्से सुनाया जाए उतना कम है। ऐसा लगता था जैसे हॉकी का खेल मेजर ध्यानचंद को विरासत में मिली हो। अपनी बेहतरीन निशाने के कारण प्रतिद्वंदी भी उन्हें खेलते देख हक्का-बक्का रह जाते थे।

कई बार तो ध्यानचंद ऐसे असाधारण गोल करते थे, जिससे वहां बैठे सभी खिलाड़ियों और लोगों को शंका होने लगती थी, कि कहीं उन्होंने चीटिंग तो नहीं किया। कई बार जब मेजर ध्यानचंद दूसरे देशों में खेलने जाते थे, तो उनके हॉकी स्टिक को तुड़वाया भी गया था। 

लोगों को यह आशंका होने लगती थी कि इतनी अच्छी पारी भला कोई कैसे खेल सकता है। मेजर ध्यानचंद की स्टिक में मैग्नेट का इस्तेमाल करने की भी शंका की जा चुकी थी।

जब मेजर ध्यानचंद अपने हॉकी स्टिक को लेकर मैदान में उतरते थे तो गेंद जैसे उनके हॉकी स्टिक से चिपक जाती थी। इतना भाग दौड़ करने के बाद भी स्टिक से जब गेंद चिपकी रहती थी तो उसे देखकर लोगों को न जाने कितने आशंका होती थी, कि उसमें शायद गोंद का उपयोग किया गया हो।

मेजर ध्यानचंद ने भारत को तीन स्वर्ण पदक दिलाया है। ओलंपिक खेलों में भी उन्होंने भारत का तिरंगा पूरी दुनिया में लहराया था। जब एम्सटर्डम ओलंपिक में 1928 में भारतीय टीम ने पहली बार हॉकी के खेल में हिस्सा लिया था, तो वहां भी मेजर ध्यानचंद ने 11 मैच खेले थे और सफलता दिलाई थी।

ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, डेनमार्क, स्विजरलैंड, हॉलैंड, लॉस एंजलिस, बर्लिन और जापान न जाने कितने बड़े देशों में मेजर ध्यानचंद ने भारत का झंडा खड़ा था। भारतीय होने के नाते उन्होंने गुलामी के समय में भी हिंदुस्तानियों को एक नई पहचान और दिशा दिया था।

ध्यानचंद के पुरस्कार व सम्मान Awards and Honors of Dhyan Chand in Hindi

अपने जीवन काल में मेजर ध्यानचंद ने जितने भी खेलों में सफलता प्राप्त की थी, उन्होंने इन सब का श्रेय अपने मातृभूमि भारत को दिया है। कई बार तो ऐसा मान लिया जाता था, कि यदि मेजर ध्यानचंद मैदान में खेलने के लिए उतरते हैं तो उनके टीम की जीत पक्की हो जाती थी।

जब ध्यानचंद ने ओलंपिक खेलों में भारत को कई पुरस्कारों से सुसज्जित किया था, तो वह पल सभी भारतवासियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण था। भारतीय पुरुष हॉकी टीम के कप्तान रह चुके ध्यानचंद ने प्रत्येक तीन में से दो मैच की जीत अपने नाम किया है। वे ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय हॉकी खिलाड़ी थे।

1956 में मेजर ध्यानचंद को भारत के एक सबसे बड़े सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। यदि देखा जाए तो खेल के दुनिया में दिए जाने वाले सभी भारतीय पुरस्कारों का नाम किसी दिग्गज खिलाड़ी के नाम पर ही रखा जाना चाहिए।

लेकिन कुछ समय पहले तक खेल के सबसे बड़े पुरस्कार को एक महान राजनीतिज्ञ राजीव गांधी खेल पुरस्कार के नाम पर रखा गया था।

लेकिन हाल ही में भारतीय जनता पार्टी की सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खेल के सबसे बड़े पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड के नाम पर कर दिया है। इसके अलावा मेजर ध्यानचंद को खेल के जगत का शताब्दी पुरुष भी कहा गया है।

द्रोणाचार्य और राष्ट्रीय अर्जुन पुरस्कार से भी मेजर ध्यानचंद को सम्मानित किया जा चुका है। यह दुख की बात है, कि अब तक हॉकी के एक अद्वितीय खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद को भारत का सबसे बड़ा पुरस्कार भारत रत्न नहीं दिया गया है। 

मेजर ध्यानचंद के मरणोपरांत उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की बात चल रही है। वर्तमान भारत सरकार ने ध्यानचंद के परिवार को यह आश्वासन दिया है, कि उन्हें जल्द ही भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा।

हिटलर व ब्रैडमैन और ध्यानचंद की कहानी The story of Hitler and Bradman and Dhyanchand in Hindi

क्रिकेट की दुनिया में इतिहास रचने वाले डॉन ब्रैडमैन को एक बेहतरीन क्रिकेटर माना जाता है। आपको बता दें कि ब्रैडमैन का जन्म ध्यानचंद के जन्म से ठीक 2 दिन पहले हुआ था।

हालांकि डॉन ब्रैडमैन और मेजर ध्यानचंद की मुलाकात सिर्फ एक बार हुई थी, लेकिन ध्यानचंद जैसे करिश्माई हॉकी खिलाड़ी से मिलने के बाद ब्रैडमैन उनके दीवाने हो गए थे। जब भारतीय टीम न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में 1935 में दौरे पर गई थी, तभी ब्रैडमैन और ध्यानचंद की मुलाकात हुई थी।

ध्यानचंद से मिलने के बाद ब्रैडमैन यह प्रश्न करने से स्वयं को रोक नहीं पाए कि ध्यानचंद गोल करते हैं, कि क्रिकेट में रन बनाते हैं? भला इतनी तेज रफ्तार और सटीकता से कोई इतना बेहतरीन किस प्रकार खेल सकता है।

यह बात तो सच है, कि जो कोई भी ध्यान चंद को खेलते हुए देखता था, वह मंत्रमुग्ध हो जाता था। पूरी दुनिया ध्यानचंद के खेलने के तरीके की दीवानी हो गई थी। यही कारण है कि डॉन ब्रैडमैन भी मेजर ध्यानचंद के कायल हो गए थे।

हिटलर और मेजर ध्यानचंद की कहानी बड़ी मशहूर है। हिटलर जर्मनी का एक क्रूर तानाशाह था। वह भी एक भारतीय हॉकी खिलाड़ी की तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाया, जब मेजर ध्यानचंद ने हिटलर के सामने उसके ही देश जर्मनी को हॉकी के खेल में हराया था।

जब बर्लिन ओलंपिक में हॉकी का अंतिम मैच चल रहा था, तो भारत ने जर्मनी को 8-1 से हरा दिया था। लगभग तीस हजार से ज्यादा लोगों के बीच बैठा हिटलर ध्यानचंद के इस अद्भुत प्रदर्शनी से आश्चर्यचकित था।

देखते ही देखते वह ध्यानचंद से मिलने के लिए मैदान में उतर गया और उसे जर्मनी की तरफ से खेलने का प्रस्ताव रखा। हिटलर ने ध्यानचंद को लालच देते हुए यह कहा था, कि तुम्हारा देश तो गरीब है और अगर तुम हमारे देश की तरफ से खेलते हो तो मैं तुम्हें बहुत अमीर बना दूंगा बल्कि और भी मशहूर कर दूंगा।

हिटलर जैसे सनकी तानाशाह के सामने जब किसी की बोलती भी नहीं निकलती थी, तब मेजर ध्यानचंद ने बड़ी विनम्रता से हिटलर का यह प्रस्ताव अस्वीकृत कर दिया। ध्यानचंद ने हिटलर को विनम्रता से यह उत्तर दिया, कि भारतीय खिलाड़ी खरीदने और बेचने के चीज नहीं होते हैं।

मैं अपने देश के लिए खेलता था और पूरे जीवन अपने देश के लिए ही खेलूंगा। ऐसा कह कर मेजर ध्यानचंद ने न केवल करोड़ों भारतवासियों का दिल जीत लिया था, बल्कि हिटलर को भी प्रभावित किया था।

ध्यानचंद की मृत्यु Dhyanchand’s Death in Hindi

भारत को इतना सम्मान दिलाने के बाद ध्यानचंद ने हॉकी से संयास ले लिया था। कुछ समय से ध्यानचंद की तबीयत ठीक नहीं रहती थी। वे कैंसर की बीमारी से पीड़ित थे।

कई बार उनका स्वास्थ्य इतना खराब हो जाता था, कि उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ता था। अपने आखिरी वक्त में वे कैंसर से बुरी तरह से जूझ रहे थे और दिल्ली एम्स में भर्ती थे।

आखिर वह दुखद दिन आया जब 76 वर्ष की उम्र में 3 दिसंबर 1989 में मेजर ध्यान चंद्र ने नई दिल्ली में अपने प्राण त्याग दिए। अपने चहिते ध्यानचंद के ऐसे स्वर्गवास होने के कारण सभी भारतीय बहुत दुखी थे। मेजर ध्यानचंद के जन्मतिथि पर पूरे भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है।

Filed Under: Biography Tagged With: ध्यानचंद का जीवन परिचय, हॉकी का जादूगर

About बिजय कुमार

नमस्कार रीडर्स, मैं बिजय कुमार, 1Hindi का फाउंडर हूँ। मैं एक प्रोफेशनल Blogger हूँ। मैं अपने इस Hindi Website पर Motivational, Self Development और Online Technology, Health से जुड़े अपने Knowledge को Share करता हूँ।

Reader Interactions

Comments

  1. Satish Chandra says

    August 28, 2019 at 10:12 pm

    Please mention the actual date of birth (29/August /1905) of our
    hockey lagendry Mr. Mejor Dhayan chand Sir.
    Thank you

    Reply
  2. Anu says

    January 10, 2022 at 7:16 pm

    It helped my a lot in my project work
    Thanks bro
    Keep going
    And bring many intresting stories
    like this one

    Once agai thanks

    Reply

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