• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
1hindi.com new logo 350 90

1Hindi

Indias No. 1 Hindi Educational & Lifestyle Blog

  • Educational
    • Essay
    • Speech
    • Personality Development
    • Festivals
    • Tech
  • Biography
  • Business
  • Health
    • स्वस्थ भोजन
  • Quotes
  • Stories
  • About Me
Home » Stories » Hindi Inspirational Stories » श्रीकृष्ण की पूर्ण कथा – जन्म से मृत्यु तक Lord Krishna Complete Story in Hindi

श्रीकृष्ण की पूर्ण कथा – जन्म से मृत्यु तक Lord Krishna Complete Story in Hindi

Last Modified: December 17, 2021 by बिजय कुमार 7 Comments

श्रीकृष्ण की पूर्ण कथा , जन्म से मृत्यु तक Lord Krishna Complete Story in Hindi

आज इस लेख में हमने भगवान श्री कृष्ण की पूर्ण कहानी, जन्म से मृत्यु तक संक्षिप्त में (Lord Krishna Complete Story in Hindi from Birth to Death) प्रकाशित किया है। श्री कृष्ण की कथा प्रेम, त्याग, और अपार ज्ञान का स्रोत है।

श्री कृष्ण हिंदू धर्म के ईश्वर एवं भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकाधीश, कन्हैया आदि नामों से लोग इनको जानते हैं। इन्होंने द्वापर युग में श्री कृष्ण का अवतार लिया था। श्री कृष्ण का जन्म बहुत ही कठिन एवं भयानक परिस्थितियों में हुआ था।

अब आईये शुरू करते हैं – भगवान श्रीकृष्ण की पूर्ण कहानी लघु रूप में – Lord Krishna Complete Brief Story in Hindi – उनके जन्म से बैकुंठ जाने की कहानी। –

Table of Content

Toggle
  • कंस कौन था?
  • देवकी और वासुदेव को बंदी बनाया
  • भगवान श्री कृष्ण का जन्म
  • कृष्ण पहुंचे वृन्दावन
  •  कंस ने श्रीकृष्ण का वध करने के लिए मायावी असुरों को भेजा
  • श्री कृष्ण रास लीला
  • कृष्ण-बलराम की उज्जैन में शिक्षा
  • सुदामा से मित्रता व द्वारिकाधीश का पद
  • श्री कृष्ण और रुक्मिणी का विवाह
  • महाभारत में कृष्ण बने सारथी तथा श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान
  • दुर्वासा ऋषि का श्राप
  • श्रीकृष्ण की मृत्यु

कंस कौन था?

एक बार मथुरा का राजा कंस जो देवकी का भाई था। वह अपनी बहन देवकी को ससुराल छोड़ने जा रहा था तभी रास्ते में अचानक एक आकाशवाणी हुई थी। उस आकाशवाणी में बताया गया कि तुम्हारी बहन अर्थात देवकी जिसको तुम खुशी-खुशी उसको ससुराल लेकर जा रहा है उसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां पुत्र तेरा वध करेगा। कंस डर गया तभी उसने वासुदेव (देवकी के पति) जान से मार देने के लिए कहा। 

[amazon bestseller=”lord krishna story book” items=”2″]

देवकी और वासुदेव को बंदी बनाया

तब देवकी ने कंस से विनती की और कहा कि मैं स्वयं लाकर अपने बच्चे को तुम्हारे हवाले करूँगी, आपके बहनोई बेकसूर है उनको मारने से क्या लाभ मिलेगा। कंस ने देवकी की बात मान ली तथा वासुदेव और देवकी को मथुरा के कारागार में डाल दिया। 

कारागार में ही कुछ समय बाद देवकी और वासुदेव को एक बच्चे की प्राप्ति हुई। जैसे ही इस बात की सूचना कंस को पता चली वो कारागार में आकर उस बच्चे को मार डाला। इसी प्रकार कंस ने देवकी और वासुदेव के एक एक करके सात पुत्रों मार दिया। जब आठवें बच्चे की बारी आई तो कारागार में पहरा दुगना कर दिया गया। कारागार में बहुत से सैनिक तैनात कर दिए गए।

भगवान श्री कृष्ण का जन्म

यशोदा और नंद ने देवकी और वासुदेव की समस्याओं को देख और उनके आठवें पुत्र की रक्षा करने का उपाय सोचा। जिस समय देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र ने जन्म लिया उसी समय यशोदा और नंद के यहाँ एक पुत्री ने जन्म लिया। जो की सिर्फ एक मायावी चाल थी।

आठवें पुत्र के जन्म के बाद जिस कोठरी में देवकी और वासुदेव कैद थे अचानक उसमें प्रकाश हुआ। हाथ मे गदा, शंख धारण किये हुए चतुर्भुज रूप में भगवान विष्णु दिखाई दिए। देवकी और वासुदेव उनके चरणों मे गिर पड़े। तभी भगवान ने कहा- “मैं बच्चे का रूप पुनः ले लेता हूं। 

तुम मुझे लेकर अपने मित्र नंद के पास जाकर रख दो और उनके यहाँ जन्मी पुत्री को लाकर कंस के हवाले कर दो। मुझे ज्ञात है इस समय यहाँ का वातारण ठीक नही है फिर भी तुम चिंता न करो। तुम्हारे जाते समय कारागार के सारे पहरेदार सो जाएंगे। कारागार का फाटक स्वयं खुल जायेगा। जल से उफनाती हुई यमुना रास्ता देगी। भारी वर्षा से नाग तुम्हारी और बच्चे की रक्षा करेगा।”

कृष्ण पहुंचे वृन्दावन

वासुदेव जी शिशु श्री कृष्ण को सूप में रखकर निकल पड़े। उफनाती यमुना को पार करते हुए वे वृन्दावन में नंद के घर जा पहुँचे। बच्चे को सुलाकर वे उनकी पुत्री को लेकर वापस आ गए। वापस पहुँचने के बाद फाटक स्वतः बन्द हो गया।

जैसे ही कंस को ये खबर मिली कि देवकी ने बच्चे को जन्म दिया है, वो तुरंत कारागार में आ गया। कंस ने जैसे ही उसको छीन कर पटक कर मारने की कोशिश की वो बच्ची तुरंत हवा के उड़ गयी और बोली – हे दुष्ट प्राणी मुझे मारने से तुझको क्या मिलेगा, तेरा वध करने वाला वृन्दावन जा पहुँचा है। इतना बोलकर वो गायब हो गयी।

 कंस ने श्रीकृष्ण का वध करने के लिए मायावी असुरों को भेजा

कंस बहुत भयभीत हुआ क्योंकि उसका काल जन्म लेकर उसके चंगुल से बच गया था। अब कंस श्री कृष्ण को मारने के लिए परेशान रहने लगा। तब उसने पूतना नामक रासाक्षी को श्री कृष्ण को मारने के लिए भेजा। 

पूतना ने एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया और श्री कृष्ण को अपने जहरीले स्तन से दूध पिलाने के लिए वृन्दावन गयी। श्री कृष्ण ने दूध पीते समय पूतना के स्तन को काट लिया। काटते ही पूतना अपने असली रूप में आ गयी और उसकी मृत्यु हो गयी। जब इस बात की सूचना कंस को मिली तो वो उदास एवं चिंतित हो गया।

कुछ समय बाद ही उसने एक दूसरे राक्षस को श्री कृष्ण को मारने के लिए भेजा। वो राक्षस बगुले का रूप लेकर श्री कृष्ण को मारने के लिए झपटा तुरंत श्री कृष्ण ने उसको पकड़ कर फेंक दिया। जिसके बाद वह राक्षस सीधे नरक में जा गिरा। तभी से उस राक्षस का नाम वकासुर पड़ गया।

उसके बाद कंस ने कालिया नाग को भेजा। तब श्री कृष्ण ने उससे लड़ाई की और बाद में वो नाग के सर पर बाँसुरी बजाते हुए नृत्य करने लगे थे। तत्पश्चात वहाँ से कालिया नाग चला गया। इसी प्रकार श्री कृष्ण ने कंस के अनेकों राक्षसों का वध किया। जब कंस को लगा कि अब राक्षसों से ये नही हो पायेगा। तब कंस खुद ही श्री कृष्ण को मारने के लिये निकल पड़ा। दोनों में युद्ध हुआ और श्री कृष्ण ने कंस का वध कर दिया।

श्री कृष्ण रास लीला

श्री कृष्ण गोकुल में गोपियों के साथ रास लीला रचाते हुए और अपनी बांसुरी बजाते थे। सभी गोकुलवासी, पशु – पक्षी आदि उनकी बाँसुरी की धुन सुनकर बड़े ही खुश होते थे और उनको ये आवाज बहुत प्रिय लगती थी। गोकुल में राधा से श्री कृष्ण प्रेम करते थे।

कृष्ण-बलराम की उज्जैन में शिक्षा

श्री कृष्ण का अज्ञातवास समाप्त हो रहा था तथा अब राज्य का भी भय हो रहा था। इसीलिए श्री कृष्ण और बलराम को शिक्षा दीक्षा के लिए उज्जैन भेज दिया गया। उज्जैन में दोनों भाइयों ने संदीपनी ऋषी के आश्रम में शिक्षा और दीक्षा प्राप्त करना आरंभ कर दिया। 

सुदामा से मित्रता व द्वारिकाधीश का पद

उसी आश्रम में श्री कृष्ण की मित्रता सुदामा से हुई। वे घनिष्ठ मित्र थे। उनकी मित्रता के चर्चे काफी दूर दूर तक थे। शिक्षा – दीक्षा के साथ साथ अस्त्र शस्त्र का ज्ञान प्राप्त करके वे वापस आ गए तथा द्वारिकापुरी के राजा बन गए।

श्री कृष्ण और रुक्मिणी का विवाह

मध्यप्रदेश के धार जिले में अमझेरा नामक एक कस्बा है। वहाँ उस समय राजा भीष्मक का राज्य था। उसके पांच पुत्र तथा एक बेहद ही सुंदर पुत्री थी। उसका नाम रुक्मिणी था। वो अपने आप को श्री कृष्ण को समर्पित कर चुकी थी। 

जब उसको उसकी सखियों द्वारा यह पता चला कि उसका विवाह तय कर दिया गया है। तब रुक्मिणी ने एक वृद्ध ब्राह्मण के हाथों श्री कृष्ण को संदेश भेजवा दिया। जैसे ही यह संदेश श्री कृष्ण को प्राप्त हुआ वे वहाँ से तुरंत निकल पड़े। श्री कृष्ण ने आकर रुक्मिणी का अपहरण कर लिया और द्वारिकापुरी ले लाये।

श्री कृष्ण का पीछा करते हुए शिशुपाल भी आ गया जिसका विवाह रुक्मिणी से तय हुआ था। द्वारिकापुरी में दोनों भाइयों श्री कृष्ण और बलराम की सेना तथा शिशुपाल की सेना के साथ भयंकर युद्ध हुआ। जिसमें शिशुपाल की सेना नष्ट हो गयी। श्री कृष्ण और रुक्मिणी का विवाह बहुत ही धूमधाम तथा विधि-विधान पूर्वक किया गया। श्री कृष्ण की सभी पटरानियों में रुक्मिणी का दर्जा सबसे ऊपर था।

महाभारत में कृष्ण बने सारथी तथा श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान

श्री कृष्ण महाभारत के युद्ध में धनुर्धर अर्जुन के रथ के सारथी भी बने थे। श्री कृष्ण ने युद्ध के दौरान अर्जुन को बहुत से उपदेश दिए थे जो की अर्जुन को युद्ध लड़ने के लिए बहुत ही सहायक सिद्ध हुए थे। ये उपदेश गीता के उपदेश थे जो श्री कृष्ण के द्वारा बताये गए थे।

यह उपदेश श्रीमद भगवत गीता के नाम से आज भी विख्यात है। भगवान श्रीकृष्ण ने इस युद्ध मे बिना हथियार उठाये ही इस युद्ध के परिणाम को सुनिश्चित कर दिया था। महाभारत के इस युद्ध मे अधर्म पर धर्म ने विजय प्राप्त करके पांडवो ने अधर्मी दुर्योधन सहित पूरे कौरव वंश का विनाश कर दिया था। 

दुर्योधन की माता गांधारी अपने पुत्रों की मृत्यु एवं कौरव वंश के विनाश का कारण भगवान श्रीकृष्ण को मानती थी। इसीलिए इस युद्ध की समाप्ति के बाद जब भगवान श्रीकृष्ण गांधारी को सांत्वना देने के लिए गए थे तभी अपने पुत्रों के शोक में व्याकुल गांधारी ने क्रोधित होकर श्रीकृष्ण को यह श्राप दे दिया कि जिस तरह मेरे कौरव वंश का विनाश आपस मे युद्ध करके हुआ है, उसी तरह तुम्हारे भी यदुवंश का विनाश हो जाएगा। इसके बाद श्रीकृष्ण द्वारिका नगरी चले आये। 

दुर्वासा ऋषि का श्राप

महाभारत के युद्ध के लगभग 35 वर्षो के बाद भी द्वारिका बहुत ही शांत और खुशहाल थी। धीरे धीरे श्रीकृष्ण के पुत्र बहुत ही शक्तिशाली होते गए और इस तरह पूरा यदुवंश बहुत ही शक्तिशाली बन गया था। ऐसा कहा जाता है कि एक बार श्रीकृष्ण के पुत्र सांब ने चंचलता के वशीभूत होकर दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया था।

जिसके बाद दुर्वासा ऋषि ने क्रोध में आकर सांब को यदुवंश के विनाश का श्राप दे दिया था। शक्तिशाली होने के साथ ही अब द्वारिका में पाप एवं अपराध बहुत ही अधिक बढ़ गया था। अपनी खुशहाल द्वारिका में ऐसे माहौल को देखकर श्रीकृष्ण बहुत ही दुखी थे। 

उन्होंने अपनी प्रजा से प्रभास नदी के तट पर जाकर अपने पापों से मुक्ति का सुझाव दिया जिसके बाद सभी लोग प्रभास नदी के किनारे पर गए लेकिन दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण वहाँ पर सभी लोग मदिरा के नशे में डूब गए और एक दूसरे से बहस करने लगे। उनके इस बहस ने गृहयुद्ध का रूप ले लिया जिसने पूरे यदुवंश का नाश कर दिया।

श्रीकृष्ण की मृत्यु

भागवत पुराण के अनुसार ऐसा माना जाता है कि श्रीकृष्ण अपने वंश की विनाश लीला को देख कर बहुत व्यथित थे। अपनी इसी व्यथा के कारण ही वे वन में रहने लगे थे। एक दिन जब वे वन में एक पीपल के पेड़ के नीचे योग निंद्रा में विश्राम कर रहे थे तभी जरा नामक एक शिकारी ने इनके पैर को हिरण समझ कर  उस पर विषयुक्त बाण से प्रहार कर दिया था। 

जरा द्वारा चलाया गया यह बाण श्रीकृष्ण के पैर के तलुवे को भेद दिया था। विषयुक्त बाण के इसी भेदन को बहाना बनाकर श्रीकृष्ण ने अपने देह रूप को त्याग दिया और नारायण रूप में बैकुण्ठ धाम में विराजमान हो गए। देह रूप को त्यागने के साथ ही श्रीकृष्ण के द्वारा बसाई हुई द्वारिका नगरी भी समुद्र में समा गई थी।

Filed Under: Hindi Inspirational Stories Tagged With: कृष्ण प्रेमी मीरा बाई, गुरूवायूर श्री कृष्ण मंदिर, राधा कृष्ण की कहानी, श्री कृष्ण की कहानियां, श्री कृष्णा जन्माष्टमी की कहानी, श्री कृष्णा जन्माष्टमी पर निबंध

About बिजय कुमार

नमस्कार रीडर्स, मैं बिजय कुमार, 1Hindi का फाउंडर हूँ। मैं एक प्रोफेशनल Blogger हूँ। मैं अपने इस Hindi Website पर Motivational, Self Development और Online Technology, Health से जुड़े अपने Knowledge को Share करता हूँ।

Reader Interactions

Comments

  1. Anonymous says

    April 6, 2021 at 10:28 am

    very nice story. i like it. well done.

    Reply
  2. Anonymous says

    August 31, 2021 at 12:19 pm

    jai shri krishna

    Reply
  3. Anonymous says

    December 7, 2021 at 7:07 am

    Jai Shri Radhe Krishna

    Reply
  4. N......M.......p says

    December 29, 2021 at 2:00 pm

    Very nice jai shri krishn

    Reply
  5. sunaina says

    May 15, 2022 at 8:10 am

    bhut asha lgaaa shree krishan k Janam sai laikr unki maretiu tk khani ko.
    jai shree krishna

    Reply
  6. Alka sharma says

    May 8, 2023 at 10:40 pm

    Superb fantastic.
    Acha lga yeh story read karke

    Reply
  7. Anonymous says

    May 13, 2023 at 1:30 am

    The story is fabulous
    I love the story so much

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Primary Sidebar

सर्च करें

Recent Posts

  • Starlink in India: क्या है, फ़ीचर, फ़ायदे, नुक़सान, कब तक
  • A+ स्टूडेंट बनने के टिप्स: सफलता के लिए सही मानसिकता
  • देशभक्ति पर स्लोगन (नारा) Best Patriotic Slogans in Hindi
  • सुरक्षा या सेफ्टी स्लोगन (नारा) Best Safety Slogans in Hindi
  • पर्यावरण संरक्षण पर स्लोगन (नारा) Slogans on Save Environment in Hindi

Footer

Copyright Protected

इस वेबसाईट के सभी पोस्ट तथा पृष्ट Copyrighted.com तथा DMCA के द्वारा कॉपीराइट प्रोटेक्टेड हैं। वेबसाईट के चित्र तथा कंटेन्ट को कॉपी करना और उपयोग करना एक गंभीर अपराध है।

Disclaimer and Note

इस वेबसाइट पर स्वास्थ्य से जुड़े कई टिप्स वाले लेख हैं। इन जानकारियों का उद्देश्य किसी चिकित्सा, निदान या उपचार के लिए विकल्प नहीं है। इस वेबसाइट के माध्यम से उपलब्ध टेक्स्ट, ग्राफिक्स, छवियों और सूचनाएँ केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से प्रदान की जाती हैं। किसी भी स्वास्थ्य संबंधी समस्या के लिए कृपया योग्य चिकित्सक या विशेषज्ञ से परामर्श करें।

Important Links

  • Contact us
  • Privacy policy
  • Terms and conditions

Copyright © 2015–2025 1Hindi.com