राम मनोहर लोहिया की जीवनी Biography Of Ram Manohar Lohiya in Hindi
इस लेख में राम मनोहर लोहिया की जीवनी प्रस्तुत की है ! Biography Of Ram Manohar Lohiya in Hindi, इसमें आप उनके शिक्षा, कैरियर और देश के प्रति उनके योगदान को जान सकते हैं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉ. राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के अकबरपुर नमक स्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम हीरालाल था और माता का नाम चंदा देवी था। राम मनोहर के पिता एक अध्यापक थे और देश भक्त भी थे।
ये गाँधी जी के अनुयायी थे। जिसका राम मनोहर पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। जब राम मनोहर ढाई साल के उस समय इनकी माता का देहांत हो गया। राम मनोहर जी को उनकी दादी और सरयूदेई ने पाला। टंडन पाठशाला में चौथी तक की पढाई पूरी करने के बाद ये अपनी आगे की पढाई पूरी करने के लिए विश्वेश्वरनाथ हाई स्कूल में दाखिला ले लिया।
राम मनोहर लोहिया जी बचपन से ही पढाई में तेज थे और सभी अध्यापको के प्रिय छात्र। हाईस्कूल के बाद इन्होने अपनी इंटर की पढाई काशी हिन्दू विश्वविधायल के किया। इंटर की पढाई पूरी करने के के बाद सन 1930 में अपनी स्नातक की पढाई करने जर्मनी के बर्लिन विश्वविद्यालय चले आये। लोहिया जी ने वहां पर 3 महीने तक जर्मन भाषा भी सीखी।
बर्लिन में लीग ऑफ़ नेशन्स की बैठक में राम मनोहर लोहिया जी ने 23 मार्च को लाहोर में भगत सिंह के फांसी दिए जाने का विरोध प्रकट किया। इसके बाद उन्होंने वहीँ से अपनी पीएचडी भी वही से की।
कैरियर
अपनी पीएचडी पूरी करने के बाद सन 1933 राम मनोहर लोहिया जी वापस हिंदुस्तान लौट आये। वापस आते समय इनका सामान जब्त कर लिया गया। सामान जब्त होने के बाद लोहिया जी समुद्री जहाज से उतर कर हिन्दू अख़बार के दफ्तर में जाकर कुछ आर्टिकल्स लिखे जिसका उनको 25 रूपये मिले। जिससे वो कोलकाता आये।
कलकत्ता से बनारस जाकर नौकरी के लिए मालवीय जी से मिले लेकिन दो हफ्तों बाद लोहिया जी ने नौकरी करने से मना कर दिया। उस वक़्त लोहिया जी के पिता के दोस्त सेठ जमुनालाल बजाज ने लोहिया जी को गाँधी जी से मिलवाया और उनसे कहा ये लड़का राजनीति में आना चाहता है।
कुछ दिन जमुनालाल बजाज के साथ रहने के बाद राम मनोहर जी के लिए शादी का प्रस्ताव आने लगा लेकिन ये शादी करना नही चाहते थे इसीलिए ये बनारस छोड़कर फिर से कलकत्ता चले आये। 17 मई 1934 को पटना ने आचार्य नरेन्द्र देव की उपस्थिति में देश के समाजवादी अंजुमन–ए-इस्लामिया हम में इक्कठा हुए और वहा पर “समाजवादी पार्टी” की स्थापना हुई।
वहां लोहिया जी ने समाज आन्दोलन की रुपरेखा को प्रस्तुत किया और पार्टी की उद्देश्यों में स्वराज लक्ष्य जोड़ने की कोशिश की लेकिन उसे अस्वीकार कर दिया गया। उसी साल कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना हुई जिसमे लोहिया जी को राष्ट्रीय कार्यकरणी का सदस्य चुना गया और कांग्रेस सोशलिस्ट साप्ताहिक मुख्यपत्र के संपादक भी बनाये गये।
जेल का सफ़र
24 मई 1939 को लोहिया जी को पहली बार गिरफ्तार किया गया क्योकि लोहिया जी ने महायुद्ध के समय युद्धभर्ती का विरोध, देशी रियासतों में आन्दोलन, ब्रिटिश मॉल जहाजो से उतरने और और लादने वालो मजदूरो का संगठन बनाकर विरोधी प्रचार किया जिसके कारण इनको कांग्रेस कमेटी में युद्ध विरोधी भाषण के लिया गिरफ्तार कर लिया गया।
तीन महीने बाद अगस्त के महीने में इनको फिर से छोड़ दिया गया। दूसरी बार लोहिया जी को 7 जून 1940 को गिरफ्तार किया क्योकि इन्होने 11 मई को इन्होने सुल्तानपुर में भाषण दिया था। फिर लोहिया जी को कानून सुरक्षा की धारा 38 के तहत 2 साल की सजा सुनाई गई और उनको बरेली जेल में भेज दिया गया। लेकिन गाँधी जी और उनके साथयों द्वारा विरोध के कारण 4 दिसंबर 1941 को उनको अचानक से रिहा कर दिया गया।
भारत छोड़ो आन्दोलन में लोहिया जी की भागेदारी –
9 अगस्त 1942 में गाँधी जी और उनके कुछ साथियों और कुछ कांग्रेस नेताओ को ग्रिफ्तार कर लिये जाने पर लोहिया जी भारत छोड़ो आन्दोलन का पूरे देश में प्रचार किया। जिससे इस आन्दोलन में बहुत से लोग इस आन्दोलन में जुड़ गए।
20 मई 1944 को लोहिया जी एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया गया और लाहौर के उसी कालकोठरी में रखा गया जिसमे भगत सिंह के रखा गया था। वहां इनको 15 -15 दिनों तक सोने नही दिया जाता था और न पेन दिया जाता था और न ही ब्रश।
कुछ महीनो बाद इनको लाहौर से आगरा के जेल में भेज दिया गया। इसी बीच इनके पिता हीरालाल जी की मौत हो गई लेकिन लोहिया जी पेरोल पर छूटने से मना कर दिया। 11 जुलाई 1946 में इनको रिहा कर दिया। लेकिन लोहिया जी फिर से गोवा मुक्त आन्दोलन में गिरफ्तार कर लिया गया। कई बार गिरफ्तार होने के बाद अंत में 1947 में देश को आजादी मिली।
अंग्रेजी हटाओ आन्दोलन
डॉ. राम मनोहर लोहिया जी भारत में अंगेजी के खिलाफ थे क्योकि वो जानते थे की विधायकी, कार्यपालिका और न्यायपालिका में अंग्रेजी के प्रयोग से आम जनता की प्रजातंत्र में भागेदारी के रास्ते में रोड़ा था। लोहिया जी मतलब यह नही थी कि अंग्रेजी हटाओ और हिंदी लाओ। उनके कहने का अर्थ था कि अंग्रजी हटाओ और मातृभाषा लाओ।
डॉ. राम मनोहर जी द्वारा लिखी गई पुस्तक
डॉ. राम मनोहर जी अपने अनेक विषयों के विचार को पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया। जिनमे से कुछ प्रमुख किताबे थी-
- इतिहास चक्र
- अंग्रेजी हटाओ
- धर्म पर एक दृष्टी
- भारतीय शिल्प
- समदृष्टि
- समाजवादी चिंतन
- हिन्दू बनाम हिन्दू
देहांत
भारत के महान स्वंतंत्र संग्राम के सेनानी, प्रखर चिन्तक और समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया जी का 30 सितम्बर 1967 में नई दिल्ली के विलिंडन अस्पताल में भारती करवाया गया था और 12 अक्तूबर को इनका देहांत हो गया। 57 वर्ष की आयु में डॉ. राम मनोहर लोहिया जी भारत और भारतवासियों को छोड़कर स्वर्ग सिधार गए।