साइमन कमीशन (पूरी जानकारी) Simon Commission in Hindi

इस लेख में आप साइमन कमीशन के बारे में हिंदी में (Simon Commission In Hindi) पढेंगे, जिसमें साइमन कमीशन क्या था?, कब आया, इतिहास तथा उद्देश्य को सरल रूप में दिया गया है। 

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साइमन कमीशन क्या था? What Was The Simon Commission In Hindi

भारत कई वर्षों तक ब्रिटेन का गुलाम रहा है। भारत में ब्रिटेन के शासन के दौरान ऐसे कई नियम कानून बनाए गए, जिनका पूरे भारतवर्ष में विरोध किया गया था।

ब्रिटिश सरकार भारतीयों पर अत्याचार करके अन्याय पूर्ण नियम बनाती थी। साइमन कमीशन ब्रिटिश शासन के दौरान लाया गया ऐसा ही एक चर्चित कानून था, जिसके कारण पूरे भारतवर्ष में बड़े स्तर पर आंदोलन किए गए थे।

सन 1919 में मांटेग्यू चेम्सपफोर्ड अधिनियम पारित किया गया था। इस अधिनियम के पारित होने के 10 वर्ष बाद भारत में सरकार के विकास की दिशा में किए गए कार्यों की समीक्षा करने के लिए एक समिति का निर्माण किया जाना था।

साइमन कमीशन नाम की यह समिति का कार्य अधिनियम के पारित होने पर देश में हुए विकास की समीक्षा करना था।

साइमन कमीशन का गठन समय से पहले 8 नवंबर 1927 को ही कर दिया गया। इस समिति का मार्गदर्शन सर जॉन साइमन कर रहे थे, इसीलिए उनके नाम पर ही इस समिति का गठन किया गया।

समिति के विरोध में पूरे भारत में बड़े स्तर पर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन किए गए। ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीयों की अत्यंत दयनीय दशा थी। प्रदर्शनकारियों की आवाज दबाने के लिए अंग्रेजों द्वारा हर संभव प्रयास किया गया। 

साइमन कमीशन भारत कब आया था? When Did the Simon Commission Come to India in Hindi?

साइमन कमीशन भारत में 2 वर्ष बाद आने वाला था, लेकिन उस समय इंग्लैंड में आम चुनाव होने वाले थे। ब्रिटेन की तत्कालीन सत्ता दल पार्टी ने चुनाव जीतने के लिए 2 वर्ष पूर्व ही इस आयोग का गठन कर दिया तथा स्वयं ही सारा श्रेय ले लिया।

लॉर्ड बरकन हेड कंजरवेटिव पार्टी के तत्कालीन सेक्रेटरी ऑफ स्टेट थे। ब्रिटिश काल में भारतीयों को बेहद तुच्छ और अनपढ़ समझा जाता था।

भारतीयों की औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग करने पर ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें दबा दिया जाता  था।  उनका मानना था, कि भारतीय इतने सक्षम नहीं होते हैं कि वे किसी देश की शासन व्यवस्था को ढंग से संभाल पाए।

हालांकि इसके बाद भारतीय नेताओं द्वारा सरकार की भारी आलोचना की गई। 3 फरवरी 1928 को मुंबई के बंदरगाह पर साइमन कमीशन को उतारा गया। उस दिन पूरे देश में हड़ताल किया गया तथा सड़कों पर लोगों की भारी भीड़ ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध आंदोलन में उतर गई।

साइमन कमीशन में कुल 7 सदस्य थे, जिनमें सभी अंग्रेज थे। इनमें सर जॉन साइमन इस समिति का मुख्य रूप से मार्गदर्शन कर रहे थे।

साइमन कमीशन भारत क्यों भेंजा गया था? Why Was the Simon Commission Sent to India in Hindi?

साइमन कमीशन भारत में भेजने के पीछे ब्रिटिश सरकार का यह मानना था, कि भारतीयों की मांग के अनुसार शासन में अति शीघ्र सुधार करने के उद्देश्य से समय से पूर्व ही इस आयोग की नियुक्ति की गई।

परंतु वास्तविकता तो कुछ और ही थी, जिसे ब्रिटिश हुकूमत ने कभी भी जाहिर नहीं किया। गुलामी के दौरान ब्रिटेन कभी भी भारत में शांतिपूर्ण माहौल नहीं देखना चाहता था।

उसी दौरान भारत में लोगों के बीच सांप्रदायिक दंगे अपने चरम पर थे। जिसके कारण भारत की एकता पूरी तरह से नष्ट हो चुकी थी।

ब्रिटेन की रूढ़िवादी सरकार उस समय भारत में इस आयोग को भेज कर भारतीयों के सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन के दंगों को एक बुरे विचार के रूप में प्रस्तुत करना चाहती थी।

साइमन कमीशन के जरिए ब्रिटिश हुकूमत लोगों में और भी मतभेद की गहरी खाई खोदकर भारत पर हमेशा के लिए पूर्ण रूप से सत्ता प्राप्त करना चाहती थी। इस आयोग के विरोध का मुद्दा यह था, कि इसमें सभी सदस्य अंग्रेज थे। 

भारतीयों का कहना था कि उनकी समस्याओं को उचित रूप से केवल एक भारतीय समझ सकता है, इसीलिए इस समिति में कम से कम एक भारतीय होना चाहिए। लेकिन लोगों के हितों को नजरअंदाज करते हुए साइमन कमीशन को भारत में लाया गया। 

भारतीयों के पास विरोध करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा था। इसीलिए 1927 में मद्रास में कांग्रेस के वार्षिक सत्र में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए दृढ़ संकल्प किया गया था तथा यह निश्चय किया गया कि किसी भी हालत इस आयोग को स्वीकार नहीं किया जायेगा।

साइमन कमीशन के उद्देश्य Objectives of Simon Commission in Hindi

इस आयोग का मुख्य उद्देश्य भारत में एक संघ की स्थापना करना था, जिसमें ब्रिटिश भारतीय शासन तथा देशी रियासतें शामिल हो और जिनका चालन ब्रिटिश सरकार के पक्ष में  रहे।

केंद्र की उत्तरदाई शासन व्यवस्था को व्यवस्थित करने के लिए भी इस आयोग का गठन किया गया था।

साइमन कमीशन का उद्देश्य प्रांतीय गवर्नर और वायसराय को कुछ विशेष प्रकार की शक्तियां प्रदान करना था, जिससे शासन व्यवस्था अच्छी तरह से चलाया जा सके।

भारत एक बड़ा क्षेत्रफल वाला देश था, जिसे चलाने के लिए एक लचीले संविधान की आवश्यकता की पूर्ति करने के लिए इस आयोग को केंद्र बनाया गया।

अंग्रेजी हुकूमत के दौरान देश के बड़े-बड़े पदों पर कुछ भारतीय भी थे, जिनका इलाज करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने एक ऐसे समिति का गठन किया जिसमें केवल अंग्रेज सदस्य ही रहें।

यह कहना गलत नहीं होगा कि भारतीयों को बड़े- बड़े अधिकारी वाले पदों से बर्खास्त करना इस समिति का उद्देश्य था। 

साइमन कमीशन की सिफारिशें Recommendations of Simon Commission in Hindi

  • देश के शासन को प्रभावि रूप से चलाने के लिए एक संघीय तथा लचीले संविधान का निर्माण किया जाना चाहिए।
  • भारत से बर्मा को अलग किया जाना चाहिए तथा उड़ीसा एवं सिंध को एक अलग प्रांत का दर्जा दिया जाना चाहिए।
  • उच्च न्यायालय का नियंत्रण भारत सरकार के पास होना चाहिए।
  • देश के प्रांतीय विधान मंडलों के सदस्यों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।
  • 1919 के ‘भारत सरकार अधिनियम’ के अंतर्गत लागू की गई द्वैध शासन व्यवस्था (Diarchy system) को समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
  • प्रत्येक 10 वर्ष में संविधान आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था को  खत्म कर दिया जाना चाहिए।
  • अल्पसंख्यक जातियों के हितों में गवर्नर व गवर्नर जनरल द्वारा विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

साइमन कमीशन में कमियां Drawbacks in Simon Commission in Hindi

भारतीयों के हितों की समीक्षा करने के लिए गठित की गई साइमन कमीशन आयोग में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था।

इस आयोग की रिपोर्ट में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों की औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग की उपेक्षा की गई थी।

इसने भारतीयों के केंद्र में उत्तरदाई शासन के गठन करने के प्रस्ताव को पूर्ण रूप से बर्खास्त कर दिया था।

साइमन कमीशन की रिपोर्ट में मुख्य रूप से भारतीय राजनीति के सभी कठिनाइयों और समस्याओं पर ही प्रकाश डाला गया था।

साइमन कमीशन का भारत में प्रभाव Impact of Simon Commission in India in Hindi

इस आयोग के गठन के बाद भारतवासियों पर बेहद विपरीत प्रभाव पड़ा था। इस आयोग में सभी सदस्य अंग्रेज थे, जो कि भारतवासियों के लिए एक बड़ा अपमान था।

भारत में मुस्लिम लीग, कॉन्ग्रेस और हिंदू महासभा ने एक साथ मिलकर इस आयोग का बड़े स्तर पर विरोध किया था।

हालांकि मोहम्मद शफी के नेतृत्व में मुस्लिम लीग के एक वर्ग ने साइमन कमीशन का पूर्ण रूप से स्वागत किया था।

जब 1928 में यह कमीशन मुंबई के बंदरगाह पर उतरी तो इसी दिन लोगों द्वारा पूरे देश में हड़ताल करके इसका बहिष्कार किया गया था। देश में हर जगह पर काले झंडे दिखाकर “साइमन गो बैक” के नारे लगाए गए थे। 

इस दिन आम जनता और पुलिस के बीच हिंसक संघर्ष हुआ था। लाहौर में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में इस आयोग का विरोध करने के लिए एक बड़े जुलूस का आयोजन किया गया था।

इसे हिंसक आंदोलन में पुलिस द्वारा भारी लाठीचार्ज किया गया था, जिसमें कई लोग घायल हो गए थे। जवाहरलाल नेहरू तथा अन्य बड़े नेताओं को भी आंदोलनों में बहुत चोटें आई थी।

साइमन का विरोध करने वाले लोगों को अंग्रेजी हुकूमत द्वारा बेरहमी से पीटा गया। 17 नवंबर 1928 के दिन अंग्रेजी अफसर स्कॉट के आदेशानुसार सांडर्स ने   क्रूरता से लोगों पर लाठीचार्ज किया गया था, जिसमें लाला लाजपत राय की छाती पर बेरहमी से लाठियां बरसाई गई थी।

लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय बुरी तरह से खून से लथपथ हो गए थे और मरने से पहले उन्होंने कहा था कि- ‘आज मेरे ऊपर बरसी प्रत्येक लाठी की चोट कल अंग्रेजों के ताबूत की कील बनेगी।’ इसके बाद लाला लाजपत राय का दुखत देहांत हो गया।

देश के वीर पुत्र लाला लाजपत राय का निधन भारतीयों के लिए एक बड़ा झटका था। इस घटना के कारण लोगों का क्रोध सातवें आसमान पर चढ़ गया।

पूरे देश में हिंसा का भयानक माहौल छा गया था। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुख देव, राजगुरु, बटुकेश्वर दत्त आदि क्रांतिकारियों ने लाला लाजपत राय की  निर्मम हत्या का बदला लेने के लिए स्कॉट को मारने  की योजना बनाई।

17 दिसंबर 1928 को जब सांडर्स दफ्तर से बाहर निकला तो राजगुरु ने उसे स्कॉर्ट समझकर गोलियों से भून दिया तथा भगत सिंह ने भी उसके सिर पर कई गोलियां चलाई इसी दौरान वह मारा गया।

इसी बीच क्रांतिकारियों द्वारा देश में कई आंदोलन चलाए गए जिसमें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के असेंबली में बम फेंकने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

असेंबली में बम फेंकने के आरोप में कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया तथा कईयों को फांसी पर चढ़ा दिया गया। इस घटना के बाद अंग्रेजी सरकार भारतीयों के उग्र आंदोलन को देखकर बुरी तरह से डर गई थी।

साइमन कमीशन की रिपोर्ट  पूरी तरह से निरर्थक साबित हो रही थी लेकिन इसके कारण भारत के विभिन्न संप्रदायों के दल एकजुट होकर ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सामने आए थे।

निष्कर्ष Conclusion

इस लेख में आपने साइमन कमीशन हिंदी में (Simon Commission In Hindi) पढ़ा। आशा है यह लेख आपको पसंद आया हो, तो इसे शेयर करो।

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