प्रणब मुखर्जी की जीवनी Pranab Mukherjee Biography in Hindi (13वें भारतीय राष्ट्रपति)

प्रणब कुमार मुखर्जी (1935-2020) भारतीय राजनीति के एक ऐसे युगपुरुष थे जिन्होंने छह दशकों से अधिक समय तक राष्ट्र की सेवा की । वे भारत के तेरहवें राष्ट्रपति थे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक कद्दावर नेता के रूप में उन्होंने पार्टी और सरकार में कई महत्वपूर्ण और निर्णायक पदों पर अपनी सेवाएं दीं ।

अपनी असाधारण विद्वता, राजनीतिक मामलों की गहरी समझ, कुशल नेतृत्व क्षमता और सर्वसम्मति बनाने की अद्भुत क्षमता के लिए जाने जाने वाले प्रणब मुखर्जी को राजनीतिक हलकों में सम्मानपूर्वक ‘प्रणब दा’ के नाम से पुकारा जाता था ।

उन्हें वर्ष 2019 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से अलंकृत किया गया, जो उनके राष्ट्र के प्रति अद्वितीय योगदान का प्रतीक है । उनका राजनीतिक करियर वर्ष 1969 में शुरू हुआ और उन्होंने क्लर्क के पद से उठकर राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद तक का गौरवपूर्ण सफर तय किया, जो उनकी अटूट राजनीतिक दूरदर्शिता और हर परिस्थिति में खुद को ढाल लेने की विलक्षण क्षमता का जीवंत प्रमाण है ।

कांग्रेस पार्टी के लिए एक कुशल संकटमोचक के रूप में उनकी भूमिका सदैव महत्वपूर्ण रही, और उन्होंने विभिन्न प्रधानमंत्रियों के कुशल मार्गदर्शन में कई चुनौतीपूर्ण मंत्रालयों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया ।  

जन्म और प्रारंभिक जीवन

प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर 1935 को पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के किरनाहर शहर के निकट स्थित मिराती गाँव में एक प्रतिष्ठित बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था । बचपन में उन्हें प्यार से पोल्टू के नाम से जाना जाता था ।

उनके पिता, कामदा किंकर मुखर्जी, एक अत्यंत सम्मानित स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रभावशाली नेता थे । उन्होंने वर्ष 1920 से कांग्रेस पार्टी में सक्रिय रूप से भाग लिया और वर्ष 1952 से 1964 तक पश्चिम बंगाल विधान परिषद के सदस्य के रूप में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वे बीरभूम जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद पर भी आसीन रहे ।

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए उनके पिता को कई बार ब्रिटिश शासन के दौरान जेल की कठोर यातनाएं सहनी पड़ीं, जिसके कारण परिवार को आर्थिक रूप से कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । उनकी माता का नाम राजलक्ष्मी मुखर्जी था ।

एक ऐसे परिवार में जन्म लेने के कारण जिसके माता-पिता दोनों ही स्वतंत्रता सेनानी थे, प्रणब मुखर्जी को बचपन से ही सार्वजनिक सेवा और राजनीति के प्रति स्वाभाविक रुझान प्राप्त हुआ । अपने पिता के राष्ट्र के लिए किए गए निस्वार्थ बलिदानों को प्रत्यक्ष रूप से देखकर उनके जीवन मूल्यों और भारत के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को गहरा आकार मिला होगा ।

सत्ता के उच्च गलियारों में रहने के बावजूद, मुखर्जी ने कभी भी अपनी जड़ों को नहीं भुलाया और राष्ट्रपति बनने के बाद भी वे नियमित रूप से दुर्गा पूजा के अवसर पर अपने पैतृक गांव जाया करते थे ।  

शिक्षा

प्रणब मुखर्जी की प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव के ही एक स्थानीय विद्यालय में हुई । इसके पश्चात, उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए बीरभूम जिले के प्रतिष्ठित सूरी विद्यासागर कॉलेज में दाखिला लिया । उस समय यह कॉलेज प्रतिष्ठित कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध था ।

उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान और इतिहास जैसे महत्वपूर्ण विषयों में स्नातकोत्तर (एमए) की उपाधि सफलतापूर्वक प्राप्त की । अपनी शैक्षणिक यात्रा को आगे बढ़ाते हुए, उन्होंने इसी प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से कानून (एलएलबी) की डिग्री भी हासिल की ।

बचपन से ही पढ़ाई में असाधारण रूप से तेज और एक तीव्र स्मरण शक्ति के धनी प्रणब मुखर्जी ने अपने जीवन में मानद डी.लिट की उपाधि भी प्राप्त की, जो उनकी विद्वता का सम्मान है । अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात, उन्होंने कुछ समय के लिए कलकत्ता में डिप्टी अकाउंटेंट जनरल (पोस्ट एंड टेलीग्राफ) के कार्यालय में एक अपर डिवीजन क्लर्क के रूप में कार्य किया ।

वर्ष 1963 में उन्होंने पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में स्थित विद्यानगर कॉलेज में राजनीति विज्ञान के एक सहायक प्राध्यापक के रूप में भी कुछ समय तक अध्यापन कार्य किया । इसके अतिरिक्त, उन्होंने ‘देशेर डाक’ नामक एक प्रतिष्ठित बांग्ला प्रकाशन संस्थान में पत्रकार की महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई, जिससे उनकी लेखनी और विचारों को व्यापक पहचान मिली ।  

कैरियर

प्रणब मुखर्जी ने वर्ष 1969 में बांग्ला कांग्रेस के एक समर्पित उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा के सदस्य बनकर अपने लम्बे और शानदार राजनीतिक जीवन की औपचारिक शुरुआत की । बाद में, बांग्ला कांग्रेस का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में विलय हो गया, जिससे मुखर्जी का राजनीतिक सफर और भी मजबूत हो गया ।

उनकी प्रारंभिक राजनीतिक गतिविधियों में मिदनापुर उपचुनाव में एक अनुभवी नेता वी.के. कृष्ण मेनन के लिए सक्रिय रूप से प्रचार करना शामिल था, जहाँ भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उनके असाधारण चुनावी कौशल और संगठन क्षमता से काफी प्रभावित हुईं ।

इंदिरा गांधी ने उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए उन्हें तुरंत कांग्रेस पार्टी में शामिल होने का प्रस्ताव दिया और उन्हें राज्यसभा में भेजा । उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में पांच बार राज्यसभा के सदस्य के रूप में सफलतापूर्वक कार्य किया (1969, 1975, 1981, 1993, 1999) ।

इसके अतिरिक्त, वर्ष 2004 और 2009 में वे पश्चिम बंगाल के जंगीपुर निर्वाचन क्षेत्र से दो बार लोकसभा के लिए भी चुने गए, जो उनकी जमीनी स्तर पर मजबूत पकड़ को दर्शाता है । उन्होंने राज्यसभा में सदन के नेता के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई (जनवरी 1980 – दिसंबर 1984) और लोकसभा में भी सदन के नेता रहे (जून 2012 तक) ।

वर्ष 1996 से 2004 तक वे राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी के मुख्य सचेतक के रूप में पार्टी की नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करवाने में सक्रिय रहे और वर्ष 1978 से 1980 तक राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी के उप नेता के पद को भी उन्होंने सुशोभित किया ।

अपने सुदीर्घ और गौरवमय राजनीतिक जीवन में प्रणब मुखर्जी ने केंद्र सरकार के कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार कुशलतापूर्वक संभाला । वर्ष 1973 में वे औद्योगिक विकास विभाग के केंद्रीय उप मंत्री बने और अपनी कार्य क्षमता का परिचय दिया ।

उन्होंने औद्योगिक विकास, जहाजरानी और परिवहन, वित्त राज्य मंत्री, राजस्व और बैंकिंग जैसे विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री पद पर रहते हुए अपनी विशेषज्ञता का प्रदर्शन किया । वर्ष 1980 से 1982 तक उन्होंने इस्पात और खान मंत्रालय तथा वाणिज्य मंत्रालय के केंद्रीय मंत्री के रूप में भी देश की सेवा की ।

उन्होंने दो महत्वपूर्ण अवसरों पर वित्त मंत्री के रूप में देश की अर्थव्यवस्था को दिशा दी: पहला कार्यकाल जनवरी 1982 से दिसंबर 1984 तक रहा और दूसरा कार्यकाल जनवरी 2009 से जून 2012 तक चला । वर्ष 1982 में, मात्र 47 वर्ष की आयु में, वे भारत के सबसे युवा वित्त मंत्री बने, जो उनकी असाधारण प्रतिभा और नेतृत्व क्षमता का प्रमाण है ।

उन्होंने अपने कार्यकाल में कुल सात महत्वपूर्ण बजट पेश किए और वर्ष 1984 में प्रतिष्ठित यूरोमनी पत्रिका द्वारा उन्हें विश्व के सर्वश्रेष्ठ वित्त मंत्रियों में से एक के रूप में सम्मानित किया गया । वर्ष 2009 में उन्होंने विवादास्पद फ्रिंज बेनिफिट टैक्स और कमोडिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स को समाप्त करने सहित कई महत्वपूर्ण कर सुधारों की घोषणा की, जिसका अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा ।

वर्ष 1982 में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर के ऋण के लिए सफलतापूर्वक बातचीत की, जो उनकी आर्थिक कूटनीति का उत्कृष्ट उदाहरण है । उन्होंने जनवरी 1993 से फरवरी 1995 तक वाणिज्य मंत्री के रूप में भी देश के व्यापार और वाणिज्य नीतियों को नई दिशा दी ।

फरवरी 1995 से मई 1996 तक और फिर अक्टूबर 2006 से मई 2009 तक उन्होंने विदेश मंत्री के महत्वपूर्ण पद को संभाला और भारत की विदेश नीति को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया । मई 2004 से अक्टूबर 2006 तक वे देश के रक्षा मंत्री रहे और उन्होंने भारत की सुरक्षा और सैन्य तैयारियों को सुदृढ़ करने में अहम भूमिका निभाई ।

उन्होंने जून 1991 से मई 1996 तक प्रभावशाली योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया और देश के विकास की योजनाओं को आकार देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।

प्रणब मुखर्जी ने पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में भी दो बार सफलतापूर्वक कार्य किया (1985 और अगस्त 2000 – जून 2010) । उन्हें विभिन्न महत्वपूर्ण लोकसभा चुनावों (1984, 1991, 1996, 1998, 1999) में कांग्रेस पार्टी के लिए गठित अभियान समितियों का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, जो उनकी संगठनात्मक क्षमता और पार्टी में उनके महत्व को दर्शाता है ।

उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) की केंद्रीय चुनाव समन्वय समिति के अध्यक्ष के रूप में भी लम्बे समय तक (28 जून 1999 – 2012) अपनी सेवाएं दीं । वे कांग्रेस कार्य समिति के एक सम्मानित सदस्य और अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष के रूप में भी पार्टी के महत्वपूर्ण निर्णयों में भागीदार रहे ।

उन्होंने राष्ट्रमंडल वित्त मंत्रियों के सम्मेलनों, विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की वार्षिक महत्वपूर्ण बैठकों और एशियाई विकास बैंक की वार्षिक बैठकों में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया, जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व मजबूत हुआ ।

वे आईएमएफ और विश्व बैंक से जुड़े प्रभावशाली समूह-24 के अध्यक्ष भी रहे (1984, 2011-12) । वर्ष 2012 में, जब वे भारत के राष्ट्रपति बने, तो केंद्र सरकार के एक अनुभवी मंत्री के तौर पर वे कुल 39 मंत्री समूहों में से 24 का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, जो उनकी व्यापक विशेषज्ञता और स्वीकार्यता को दर्शाता है । वर्ष 2004 से 2012 के दौरान उन्होंने कुल 95 मंत्री समूहों की अध्यक्षता की, जो उनकी असाधारण कार्य क्षमता और नेतृत्व कौशल का प्रमाण है ।  

राष्ट्रपति के रूप में कार्य:

जुलाई 2012 में प्रणब मुखर्जी ने भारतीय जनता पार्टी के समर्थन वाले उम्मीदवार पी.ए. संगमा को सीधे मुकाबले में हराकर भारत के 13वें राष्ट्रपति के रूप में एक ऐतिहासिक जीत दर्ज की । वे भारत के राष्ट्रपति बनने वाले पहले बंगाली थे, जो पश्चिम बंगाल के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण था ।

राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने सदैव एक गैर-पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया और सत्तारूढ़ दल के साथ-साथ विपक्षी दलों से भी समान रूप से सम्मान और प्रशंसा अर्जित की । उन्होंने औपचारिक संबोधनों में ‘महामहिम’ कहे जाने पर अपनी असहमति व्यक्त की, क्योंकि वे आम लोगों के साथ अधिक व्यक्तिगत और सहज संबंध बनाए रखने में विश्वास रखते थे ।

उनके राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान ही देश में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) जैसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार को सफलतापूर्वक लागू किया गया, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक ऐतिहासिक कदम साबित हुआ । उन्होंने कानून व्यवस्था के प्रति अपनी दृढ़ता का परिचय देते हुए कई जटिल दया याचिकाओं पर सख्त रुख अपनाया और कुल 30 याचिकाओं को खारिज कर दिया ।

उन्होंने राष्ट्रपति भवन के दरवाजों को आम जनता के लिए खोल दिया और वहां एक भव्य संग्रहालय का निर्माण करवाया, ताकि लोग भारत के राष्ट्रपति के इतिहास और भूमिका से परिचित हो सकें । उन्होंने नेहरू और इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल की जमकर प्रशंसा की ।  

इंदिरा गांधी की दुखद हत्या के बाद जब राजीव गांधी ने अपना मंत्रिमंडल गठित किया, तो उसमें प्रणब मुखर्जी को शामिल नहीं किया गया था, जिसके कारण उन्हें कुछ समय के लिए राजनीतिक हाशिये पर रहना पड़ा ।

वर्ष 1986 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी से अलग होकर अपनी एक नई राजनीतिक पार्टी, राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया । हालांकि, दो साल बाद, वर्ष 1989 में राजीव गांधी के साथ राजनीतिक सुलह हो जाने के बाद वे फिर से कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और सक्रिय राजनीति में लौट आए ।

अन्य उपलब्धियां:

प्रणब मुखर्जी ने एक कुशल प्रशासक और संगठनकर्ता के रूप में भी अपनी पहचान बनाई। उन्होंने वर्ष 1985 और फिर अगस्त 2000 से जून 2010 तक पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद का दायित्व संभाला । उन्हें वर्ष 1984, 1991, 1996, 1998 और 1999 के महत्वपूर्ण लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की चुनावी रणनीति और प्रचार समितियों के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था ।

उन्होंने 28 जून 1999 से 2012 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की केंद्रीय चुनाव समन्वय समिति के अध्यक्ष के रूप में भी सफलतापूर्वक कार्य किया । वे लम्बे समय तक कांग्रेस कार्य समिति के सम्मानित सदस्य और अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष भी रहे ।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी उन्होंने भारत का प्रभावी प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने राष्ट्रमंडल वित्त मंत्रियों के सम्मेलनों में कई बार भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया । इसके अतिरिक्त, उन्होंने विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की वार्षिक बैठकों और एशियाई विकास बैंक की वार्षिक बैठकों में भी भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया ।

वे वर्ष 1984 और फिर 2011-12 में आईएमएफ और विश्व बैंक से जुड़े प्रभावशाली समूह-24 के अध्यक्ष भी रहे । मई और नवंबर 1995 के बीच उन्होंने सार्क मंत्रिपरिषद् सम्मेलन की अध्यक्षता भी की ।

प्रणब मुखर्जी को पढ़ने, बागवानी करने और संगीत सुनने जैसे शौक थे । उनकी इतिहास में गहरी रुचि थी और उन्हें किताबें पढ़ना बहुत पसंद था, ऐसा कहा जाता है कि वे कभी-कभी एक साथ तीन-तीन किताबें पढ़ते थे । उन्हें सुबह टहलना बेहद पसंद था और वे अपने विशाल 90 मीटर के लॉन के लगभग 40 चक्कर लगाते थे, जो लगभग 3.5 किलोमीटर की दूरी होती थी ।

वे एक कर्मठ व्यक्ति थे और औसतन एक दिन में लगभग 18 घंटे काम करते थे, और वे चीन के प्रभावशाली नेता देंग जियाओपिंग से काफी प्रेरित थे । उन्होंने अपने जीवन में शायद ही कभी छुट्टियां मनाईं । उन्हें क्रिकेट की तुलना में फुटबॉल अधिक पसंद था और उन्होंने अपने पिता के सम्मान में मुर्शिदाबाद में कामदा किंकर गोल्ड कप टूर्नामेंट शुरू किया था ।

उनका विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध था और वे नियमित रूप से उन्हें लीची और आम जैसे मौसमी फल भेजते थे । वे माँ दुर्गा के एक निष्ठावान भक्त थे और दुर्गा पूजा के दौरान पूरे तीन दिन का कठोर उपवास रखते थे ।

उन्होंने लगभग 40 वर्षों तक नियमित रूप से एक डायरी लिखी, जिसमें उन्होंने अपने अनुभवों और विचारों को दर्ज किया, लेकिन उन्होंने इसे अपनी मृत्यु के बाद ही प्रकाशित करने की शर्त रखी थी । उन्हें हिंदी भाषा अच्छी तरह से न जानने का हमेशा अफसोस रहा और उनका मानना था कि यह उनके प्रधानमंत्री न बन पाने का एक महत्वपूर्ण कारण था ।

उनके पास विदेशी राष्ट्राध्यक्षों और मंत्रियों द्वारा उपहार में दिए गए लगभग 500 पाइपों का एक अनूठा संग्रह था । उनका अंक 13 से एक विशेष और दिलचस्प जुड़ाव था: वे भारत के 13वें राष्ट्रपति बने, दिल्ली में उनके आधिकारिक बंगले का नंबर भी 13 था और उनकी शादी की सालगिरह भी 13 तारीख को ही होती थी ।  

अवार्ड:

प्रणब मुखर्जी को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। वर्ष 2019 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया । वे यह प्रतिष्ठित पुरस्कार पाने वाले भारत के पांचवें राष्ट्रपति थे । उसी वर्ष, यह सम्मान नानाजी देशमुख और भूपेन हजारिका को भी (मरणोपरांत) प्रदान किया गया था ।

इससे पहले, वर्ष 2008 में उन्हें भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था । वर्ष 1997 में उन्हें उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया, जो संसद में उनके प्रभावी योगदान को दर्शाता है । वर्ष 2011 में उन्हें प्रतिष्ठित वॉल्वरहैम्प्टन विश्वविद्यालय द्वारा मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई ।

वर्ष 2016 में उन्हें आइवरी कोस्ट के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, ‘ग्रैंड क्रॉस ऑफ नेशनल ऑर्डर ऑफ द आइवरी कोस्ट’ से सम्मानित किया गया । वर्ष 2013 में बांग्लादेश के राष्ट्रपति द्वारा उन्हें ढाका विश्वविद्यालय से कानून की मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई । वर्ष 1984 में प्रतिष्ठित यूरोमनी पत्रिका ने उन्हें विश्व का सर्वश्रेष्ठ वित्त मंत्री नामित किया था, जो उनकी आर्थिक नीतियों की सफलता का प्रमाण है ।

मृत्यु या देहांत:

प्रणब मुखर्जी का निधन 31 अगस्त 2020 को 84 वर्ष की आयु में दिल्ली के एक अस्पताल में हुआ । उन्हें 10 अगस्त 2020 को गंभीर हालत में दिल्ली के आर्मी रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में भर्ती कराया गया था । उसी दिन उनके मस्तिष्क में जमे हुए खून के थक्के (ब्लड क्लॉट) को हटाने के लिए एक जटिल सर्जरी की गई थी ।

सर्जरी के बाद उन्हें फेफड़ों में गंभीर संक्रमण हो गया । अस्पताल में भर्ती होने से पहले उनकी कोविड-19 की जांच भी कराई गई थी, जिसकी रिपोर्ट दुर्भाग्य से सकारात्मक आई थी । फेफड़ों में संक्रमण के कारण उन्हें सेप्टिक शॉक आ गया, जिससे उनकी स्थिति और भी नाजुक हो गई ।

मृत्यु से पहले वे कोमा में चले गए थे और उन्हें जीवन रक्षक प्रणाली (वेंटिलेटर सपोर्ट) पर रखा गया था । उनके पुत्र अभिजीत मुखर्जी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर के माध्यम से उनके निधन की दुखद जानकारी सार्वजनिक की । उनके सम्मान में भारत सरकार ने पूरे देश में सात दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया ।

उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया, जिसमें देश के शीर्ष नेताओं और गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया । भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनका जाना भारतीय राजनीति में एक युग का अंत है ।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से प्रणब मुखर्जी के बहुमूल्य मार्गदर्शन और समर्थन की सराहना की । विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं और बॉलीवुड की प्रमुख हस्तियों ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया । उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपने पिता के लिए एक उपयुक्त स्मारक बनाने में सरकार के पूर्ण समर्थन के लिए प्रधान मंत्री मोदी को हार्दिक धन्यवाद दिया ।  

प्रणब मुखर्जी पांच दशकों से अधिक समय तक भारतीय राजनीति में एक अद्वितीय और महान व्यक्तित्व बने रहे । एक समर्पित सांसद, एक कुशल मंत्री और एक गरिमामय राष्ट्रपति के रूप में उनके अमूल्य योगदान ने देश के इतिहास पर एक अविस्मरणीय छाप छोड़ी है ।

उन्हें अपने गहन ज्ञान, असाधारण तीव्र बुद्धि और जटिल मुद्दों पर आम सहमति बनाने के अपने विशिष्ट दृष्टिकोण के लिए हमेशा याद किया जाएगा । अपने लम्बे और शानदार करियर में उन्होंने कई प्रधानमंत्रियों के साथ मिलकर काम किया और भारत की महत्वपूर्ण नीतियों को आकार देने में एक निर्णायक भूमिका निभाई ।

एक साधारण क्लर्क से भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद, राष्ट्रपति तक का उनका प्रेरणादायक सफर लाखों लोगों के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण है । भारत रत्न से उन्हें सम्मानित करना वास्तव में देश के लिए उनके अपार और निस्वार्थ योगदान की एक सच्ची और उचित पहचान थी ।

उनका निधन भारतीय राजनीति के उस पुराने पीढ़ी के अनुभवी नेताओं के साथ एक महत्वपूर्ण कड़ी का टूटना है जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद के युग में भारत को प्रगति और विकास के पथ पर अग्रसर करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आम सहमति बनाने पर उनका हमेशा जोर देना समकालीन राजनीति के लिए एक अत्यंत मूल्यवान सबक है। उनकी प्रेरणादायक जीवन कहानी महत्वाकांक्षी राजनेताओं और लोक सेवकों के लिए हमेशा एक प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी।

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