आयुर्वेद का इतिहास History of Ayurveda in Hindi
क्या आप आयुर्वेद का इतिहास जानना चाहते हैं? क्या आप Ayurveda के शुरुवात के रहस्य को जानते हैं? क्या आप History of Ayurveda Hindi में पढ़ना चाहते हैं? अगर हाँ ?
तो इस पुरे पोस्ट को पढ़ें और जानें कैसे भारत में आयुर्वेद का खजाना लोगों तक पंहुचा और किसने इसकी शुरुवात की?
आयुर्वेद क्या है और इसका इतिहास? What is the History Ayurveda Hindi?
आयुर्वेद/Ayurveda एक दवाई या Medicine का System है जिसकी शुरुवातकई वर्षों पहले भारत में हुई थी। Ayurveda Medicines का पूरा रहस्य भारत के इतिहास से जुडा हुआ है। आज के दिन में विश्व भर के ज्यादातर आधुनिक और वैकल्पिक चिकित्सा, आयुर्वेद से लिया गया है।
प्राचीन आयुर्वेद चिकित्सा की शुरुवात देवी-देवताओं के ग्रंथों से हुआ था और बाद में यह मानव चिकित्सा तक पहुंचा। सुश्रुत संहिता (Sushruta Samhita) में यह साफ़-साफ लिखा गया है कि धनवंतरी, ने किस प्रकार से वाराणसी के एक पौराणिक राजा के रूप में अवतार लिया और उसके बाद कुछ बुद्धिमान चिकित्सकों और खुद आचार्य सुश्रुत को भी दवाइयों के विषय में ज्ञान दिया।
आयुर्वेद के उपचार में ज्यादातर हर्बल चीजों का उपयोग होता है। ग्रंथों के अनुसार कुछ खनिज और धातु पदार्थ का भी उपयोग औषधि बनाने में किया जाता था। यहाँ तक की प्राचीन आयुर्वेद ग्रांटों से सर्जरी के कुछ तरीके भी सीखे गए हैं जैसे नासिकासंधान (Rhinoplasty), पेरिनिअल लिथोटोमी (Perineal Lithotomy), घावों की सिलाई (Wounds Suturing), आदि।
वैसे तो आयुर्वेद के चिकित्सा को वैज्ञानिक तौर पे माना गया है पर इसे वैज्ञानिक तौर पर पालन ना किया जाने वाला चिकित्सा प्रणाली कहा जाता है। पर ऐसे भी बहित सारे शोधकर्ता हैं जो आयुर्वेदिक चिकित्सा को विज्ञानं से जुड़ा (Proto-Science) मानते हैं।
वैज्ञानिकों का यह भी कहना है आयुर्वेद के ज्ञान का उपयोग सिन्धु सभ्यता में भी पाया गया है और साथ ही बौद्ध धर्म और जैन धर्म में भी इसके कुछ अवधारणाओं और प्रथाओं (Concepts and Practices) को देखा गया है।
आयुर्वेद के दोष Dosha of Ayurveda
आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य के शारीर में तीन जैविक-तत्व(Bioelements) होते हैं जिन्हें दोष(Dosha) या त्रिदोष(Tri Dosha) कहा गया है। शारीर के भीतर इन तीन तत्वों का उतार-चढ़ाव लगा रहता है।
आयुर्वेद के पाठ में सही तरीके से लिखा हुआ है कि शारीर का स्वास्थ्य इन तिन दोषों पर निर्भर करता है ,जो हैं –
वात Vata (वायु तत्व)
यह सूखा, सर्दी, प्रकाश, और चलने के गुणों की विशेषता है। शरीर में सभी चालन वात की वजह से है। दर्द होना भी वात की विशेषता है। वात के कारण पेट फूलना, गठिया, आर्थराइटिस जैसे बीमारियाँ, आदि होती हैं। 5 प्रकार के वात दोष –
- प्राण वात
- समान वात
- उदान वात
- अपान वात
- व्यान वात
पित्त Pitta (अग्नि तत्व )
यह पेट/आमाशय में बाइल(Bile) के निकलने के गुणों की विशेषता है और इसमें देखा जाता है किस प्रकार Bile लीवर, स्प्लीन, ह्रदय, आँखों में और त्वचा में सही मायने में पहुँचता है। इसमें उर्जा की शक्ति को देखा जाता है जिसमें खाद्य का पाचन और मेटाबोलिज्म सम्मिलित है। 5 प्रकार के पित्त दोष –
- साधक पित्त
- भ्राजक पित्त
- रंजक पित्त
- लोचक पित्त
- पाचक पित्त
कफ Kapha (पानी तत्व)
यह सर्दी, कोमलता, कठोरता, सुस्ती, स्नेहन, और पोषक तत्वों के वाहक की विशेषता है। 5 प्रकार के कफ दोष –
- क्लेदन कफ
- अवलम्बन कफ
- श्लेष्मन कफ
- रसन कफ
- स्नेहन कफ
आयुर्वेद के आठ अंग Eight Components of Ayurveda – Chikitsayam Astangayam
इन आयुर्वेद चिकित्सा के आठ अंग को महान संस्कृत “महाभारत Mahabharat” में पढ़ा गया है और इनका नाम संस्कृत में चिकित्सयम अष्टन्गायम Chikitsayam Astangayam के नाम से पाया गया है। आयुर्वेद के आठ अंग हैं –
- काया चिकित्सा Kāyacikitsā: साधारण दवाई, या शारीर के लिए औषधि
- काउमारा भर्त्य Kaumāra-bhrtya: बच्चों / शिशु चिकित्सा
- सल्यतंत्र Śalyatantra: सर्जरी चिकित्सा
- सलाक्यतंत्र Śālākyatantra: कान, आँख, नाक, मुहँ के लिए चिकित्सा (ENT)
- भूतविद्या Bhūtavidyā: भुत-प्रेत से जुडी चिकित्सा, दिमाग से जुड़ा चिकित्सा
- अगदतंत्र Agadatantra: विष ज्ञान
- रसायनतंत्र Rasāyanatantra: विटामिन और ज़रूरी पोषण तत्व से जुड़ा चिकित्सा
- वाजीकरणतत्र Vājīkaranatantra: कामोत्तेजक, वीर्य और यौन सुख से जुड़ा चिकित्सा
आयुर्वेद के पंचकर्म Panchakarma of Ayurveda
Panch पंच का अर्थ है ‘पांच’ और Karma कर्म का अर्थ है ‘चकित्सा’। ये वो कर्मा हैं जिनकी मदद से आयुर्वेद में शारीर से विषैले तत्वों को बाहर निकाला जाता है।
- Vamana (Emesis) – मुख के माध्यम से उलटी करवाना
- Virechana (Purgation) – अस्थमा, सोरायसिस, डायबिटीज से जुड़े क्लिनिकल परीक्षण
- Niroohavasti (Decoction enema) –
- Nasya (Instillation of medicine through nostrils) – दवाई को नाक के माध्यम से शारीर में पहुँचाना
- Anuvasanavasti (Oil enema)
आयुर्वेद किसने लिखा था? Who was the Writer of Ayurveda?
आयुर्वेद कोई ऐसा लेख नहीं है जो किसी एक ने लिखा था । यह एक ऐसा प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणाली है जो सदियों से कई महापुरुष लिखते चले आ रहे हैं।
वैसे तो आज तक आयुर्वेद पर कई लेख लिखे गए हैं पर जो सबसे प्रमुख पौराणिक हैं – चरक संहिता, सुश्रुता संहिता, और अष्टांग अह्रिदय Charaka Samhita, Sushruta Samhita and Ashtanga Hridaya
वैसे तो आयुर्वेद का शुरुवात अथर्व वेद से हुआ जो चार वेदों में से एक है जिसमें तरह-तरह के प्राचीन दवाइयों के विषय में जानकारी दी गयी है। यह बात अष्टांग अह्रिदयम Ashtanga Hridayam के प्रथम अध्याय में अयुर्वेदावातारना Ayurveda Vata Rna वग्भाता ने लिखा था जिसका मतलब है आयुर्वेद की उत्त्पति के विषय में बताया गया है। उसमें यह भी बताया गया है कि ब्रह्मा ने ही आयुर्वेद का ज्ञान प्रजापति को दिया।
आयुर्वेद का सही रूप में विकास संहिता दौर में शुरू हुआ जब चरक संहिता लिखा गया। यह आत्रेय और पुनर्वसु ने अपनी कक्षा में बात करते समय का प्रतिलिपि है। यह कहा जाता है चरक संहिता को 6 वे सदी ईसापूर्व में लिखा गया था जिसमे माना जाता है 300-600 ईसापूर्व के मध्य इसमें सर्जरी के विषय में भी लिखा गया था।
Bahut hi achhi information diya apne ayurveda ke bare me. Thanks for sharing
Fine
Nice Article. Ayurveda ki history batane ke liye dhanyawaad
Thanks sir…to say ayurvedic history …nice topic
nice topic