गुरु नानक देव जी की जीवनी Guru Nanak Dev Ji Biography Hindi
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नाम – नानक (Nanak)
प्रसिद्ध नाम – श्री गुरु नानक देव जी (Shri Guru Nanak Dev Ji)
जन्म -Guru nanak birth place 15अप्रैल,1469 में गाँव तलवंडी, शेइखुपुरा डिस्ट्रिक्ट(जो आज के दिन ननकाना साहिब, पंजाब ,पाकिस्तान में है) गुरुनानक दिवस (Celebrated as Guru Nanak Jayanti )
मृत्यु – 22सितम्बर, 1539 करतारपुर, मुग़ल साम्राज्य, पाकिस्तान
महान कार्य – विश्व भर में सांप्रदायिक एकता, शांति, सदभाव के ज्ञान को बढ़ावा दिया और सिख समुदाय की नीव रखा।
गुरु नानक देव जी की जीवनी Guru Nanak Dev Ji Biography Hindi
गुरु नानक देव जी का प्रारंभिक जीवन (Gurus of sikh) Early Life of Guru Nanak Dev Ji Hindi
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15अप्रैल,1469 में गाँव तलवंडी, शेइखुपुरा डिस्ट्रिक्ट में हुआ जो की लाहौर पाकिस्तान से 65KM पश्चिम में स्तिथ है। उनके पिता बाबा कालूचंद्र बेदी और माता त्रिपता नें उनका नाम नानक रखा। उनके पिता गाँव में स्थानीय राजस्व प्रशासन के अधिकारी थे।
अपने बाल्य काल में श्री गुरु नानक जी नें कई प्रादेशिक भाषाएँ सिखा जैसे फारसी और अरबी। उनका विवाह वर्ष 1487 में हुआ और उनके दो पुत्र भी हुए एक वर्ष 1491 में और दूसरा 1496 में हुआ।
वर्ष 1485 में अपने भैया और भाभी के कहने पर उन्होंने दौलत खान लोधी के स्टोर में अधिकारी के रूप में निकुक्ति ली जो की सुल्तानपुर में मुसलमानों का शासक था। वही पर उनकी मुलाकात एक मुस्लिम कवी के साथ हुई जिसका नाम था मिरासी।
वर्ष 1496 में उन्होंने अपना पहला भविष्यवाणी किया – जिसमें उन्होंने कहा कि “कोई भी हिन्दू नहीं और ना ही कोई मुस्लमान है” और कहा कि यह एक महत्वपूर्ण घोषणा है जो ना सिर्फ आदमी के भाईचारा और परमेश्वर के पितृत्व की घोषणा है, बल्कि यह भी स्पष्ट है की मनुष्य की प्राथमिक रूचि किसी भी प्रकार के अध्यात्मिक सिधांत में नहीं है, वह तो मनुष्य और उसके किस्मत में हैं। इसका मतलब है अपने पड़ोसी से अपने जितना प्यार करो।
गुरु नानक देव जी के मिशन की कहानी Mission Story of Guru Nanak Dev Ji Hindi
गुरु नानक जी नें अपने मिशन की शुरुवात मरदाना के साथ मिल के किया। अपने इस सन्देश के साथ साथ उन्होंने कमज़ोर लोगों के मदद के लिए ज़ोरदार प्रचार किया। इसके साथ उन्होंने जाती भेद, मूर्ति पूजा और छद्म धार्मिक विश्वासों के खिलाफ प्रचार किया।
उन्होंने अपने सिद्धांतो और नियमों के प्रचार के लिए अपने घर तक को छोड़ दिया और एक सन्यासी के रूप में रहने लगे। उन्होंने हिन्दू और मुस्लमान दोनों धर्मों के विचारों को सम्मिलित करके एक नए धर्म की स्थापना की जो बाद में सिख धर्म के नाम से जाना गया।
भारत में अपने ज्ञान के प्रसार के लिए कई हिन्दू और मुश्लिम धर्म की जगहों का भ्रमण किया।
एक बार वे गंगा तट पर खड़े थे और उन्होंने देखा की कुछ व्यक्ति पानी के अन्दर खड़े हो कर सूर्य की ओर पूर्व दिशा में देखकर पानी डाल रहें हैं उनके स्वर्ग में पूर्वजों के शांति के लिए। गुरु नानक जी भी पानी और वे भी अपने दोनों हाथों से पानी डालने लगे पर अपने राज्य पूर्व में पंजाब की ओर खड़े हो कर। जब यह देख लोगों नें उनकी गलती के बारे में बताया और पुछा ऐसा क्यों कर रहे थे तो उन्होंने उत्तर दिया – अगर गंगा माता का पानी स्वर्ग में आपके पूर्वजों तक पहुँच सकता है तो पंजाब में मेरे खेतों तक क्यों नहीं पहुँच सकता क्योंकि पंजाब तो स्वर्ग से पास है।
पुरे भारत में अपने ज्ञान को बाँटने के पश्चात उन्होंने मक्का मदीना की भी यात्रा की और वहां भी लोग उनके विचारों और बातों से अत्यंत प्रभावित हुए।
जब गुरु नानक जी 12 वर्ष के थे उनके पिता ने उन्हें 20 रूपए दिए और अपना एक व्यापर शुरू करने के लिए कहा ताकि वे व्यापर के विषय में कुछ जान सकें। पर गुरु नानक जी नें उस 20 रूपये से गरीब और संत व्यक्तियों के लिए खाना खिलने में खर्च कर दिया। जब उनके पिता नें उनसे पुछा – तुम्हारे व्यापर का क्या हुआ? तो उन्होंने उत्तर दिया – मैंने उन पैसों का सच्चा व्यापर किया।
जिस जगह पर गुरु नानक जी नें उन गरीब और संत व्यक्तियों को भोजन खिलाया था वहां सच्चा सौदा नाम का गुरुद्वारा बनाया गया है।
आखिर में अपनी 25 वर्ष की यात्रा के बाद श्री गुरु नानक देव जी करतारपुर, पंजाब के एक गाँव में किसान के रूप में रहने लगे और बाद में उनकी मृत्यु भी वही हुई। भाई गुरुदास जिनका जन्म गुरु नानक के मृत्यु के 12 वर्ष बाद हुआ बचपन से ही सिख मिशन से जुड़ गए।
उन्हें सिख गुरुओं का प्रमुख चुना गया। उन्होंने सिख समुदाय जगह-जगह पर बनाया और अपने बैठक के लिए सभा बनाया जिन्हें धरमशाला के नाम से जाना जाता है। आज के दिन में धरमशालाओं में सिख समुदाय गरीब लोगों के लिए खाना देता है।
श्री गुरु नानक जी से जुड़े कुछ प्रमुख गुरुद्वारा साहिब
1. गुरुद्वारा कंध साहिब- बटाला (गुरुदासपुर) – गुरु नानक का यहाँ पत्नी सुलक्षणा से 18 वर्ष की आयु में संवत् 1544 की 24वीं जेठ को विवाह हुआ था। यहाँ गुरु नानक की विवाह वर्षगाँठ पर प्रतिवर्ष उत्सव का आयोजन होता है।
2. गुरुद्वारा हाट साहिब- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) गुरुनानक ने बहनोई जैराम के माध्यम से सुल्तानपुर के नवाब के यहाँ शाही भंडार के देखरेख की नौकरी प्रारंभ की। वे यहाँ पर मोदी बना दिए गए। नवाब युवा नानक से काफी प्रभावित थे। यहीं से नानक को ‘तेरा’ शब्द के माध्यम से अपनी मंजिल का आभास हुआ था।
3. गुरुद्वारा गुरु का बाग- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) यह गुरु नानक देव जी का घर था, जहाँ उनके दो बेटों बाबा श्रीचंद और बाबा लक्ष्मीदास का जन्म हुआ था।
4. गुरुद्वारा कोठी साहिब- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) नवाब दौलतखान लोधी ने हिसाब-किताब में ग़ड़बड़ी की आशंका में नानकदेवजी को जेल भिजवा दिया। लेकिन जब नवाब को अपनी गलती का पता चला तो उन्होंने नानकदेवजी को छोड़ कर माफी ही नहीं माँगी, बल्कि प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी रखा, लेकिन गुरु नानक ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
5.गुरुद्वारा बेर साहिब- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) जब एक बार गुरु नानक अपने सखा मर्दाना के साथ वैन नदी के किनारे बैठे थे तो अचानक उन्होंने नदी में डुबकी लगा दी और तीन दिनों तक लापता हो गए, जहाँ पर कि उन्होंने ईश्वर से साक्षात्कार किया। सभी लोग उन्हें डूबा हुआ समझ रहे थे, लेकिन वे वापस लौटे तो उन्होंने कहा- एक ओंकार सतिनाम। गुरु नानक ने वहाँ एक बेर का बीज बोया, जो आज बहुत बड़ा वृक्ष बन चुका है।
6. गुरुद्वारा अचल साहिब- गुरुदासपुर अपनी यात्राओं के दौरान नानक देव जी यहाँ रुके और नाथपंथी योगियों के प्रमुख योगी भांगर नाथ के साथ उनका धार्मिक वाद-विवाद यहाँ पर हुआ। योगी सभी प्रकार से परास्त होने पर जादुई प्रदर्शन करने लगे। नानकदेवजी ने उन्हें ईश्वर तक प्रेम के माध्यम से ही पहुँचा जा सकता है, ऐसा बताया।
7. गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक- गुरुदासपुर जीवनभर धार्मिक यात्राओं के माध्यम से बहुत से लोगों को सिख धर्म का अनुयायी बनाने के बाद नानकदेवजी रावी नदी के तट पर स्थित अपने फार्म पर अपना डेरा जमाया और 70 वर्ष की साधना के पश्चात सन् 1539 ई. में परम ज्योति में विलीन हुए।
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श्री गुरु नानक देव जी की जीवनी का अच्छा वर्णन किया।
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jai ho wahe guru satnam
wahe guru wahe guru wahe guru, satnam wahe guru
Waheguru waheguru waheguru satnam shri waheguru me proud of i am singh
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Jay. Guru dev
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Jai Guru Dev
Waheguru je ka khalsa waheguru je ki fateh
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Ram Krishna Hari,
Satnam Shri Waheguru
He was the Guru of all Gurus. I respect him as a Saint, Guru and Teacher.
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