कृष्ण प्रेमी मीरा बाई का जीवन परिचय Meera Bai Biography in Hindi
मीरा बाई का जीवन परिचय Meera Bai Biography in Hindi – मीरा बाई की कहानी
मीरा बाई को भक्ति काल की सबसे बड़ी कृष्ण प्रेम दीवानी और संत माना जाता है। मीरा बाई की रचनाएँ और कृष्ण के प्रति उनका समर्पण आज भी लोगों के मुख पर है।
मीरा बाई का जीवन परिचय Meera Bai Biography in Hindi / मीरा बाई की कहानी
प्रारंभिक जीवन Early Life
महान कृष्ण भक्त और कवयित्री मीरा बाई जी का जन्म 1498 के आसपास राजस्थान के चौकड़ी नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम रत्न सिंह था। इनका जन्म राठौर राजपूत परिवार में हुआ था। बचपन से ही मीरा कृष्ण की भक्ति में डूबी हुई थी।
जब ये थोड़ी बड़ी हुईं तो इनका विवाह उदयपुर के महाराणा कुंवर भोजराज के साथ करा दिया गया। भोजराज, मेवाड़ के महाराणा सांगा के बेटे थे। विवाह के कुछ दिन बाद ही भोजराज का स्वर्गवास हो गया।
भोजराज की मृत्यु के कुछ साल बाद मीरा बाई के पिता और ससुर की बाबर की इस्लामिक सेना के साथ युद्ध करते – करते मृत्यु हो गयी। ससुर की मृत्यु के बाद विक्रम सिंह मेवाड़ के शासक बने। पति की मृत्यु होने पर लोगों ने उन्हें सती होने को कहा लेकिन वे नहीं मानी। उनके ससुराल वाले उन्हें बहुत परेशान करने लगे। वे मीरा को घर से निकालने के प्रयत्न करते थे। उनका जीवन अस्त-व्यस्त होने लगा।
उन्हें संसार से मोह माया नहीं रही और वे कृष्ण जी की भक्ति में लीन हो गयीं। वे साधु – संतों की संगती में रहने लगी। वे कृष्ण जी के भजन गाकर नाचने में मग्न रहती थीं। इस तरह से वे अपना जीवन व्यतीत करने लगी। लेकिन यह बात राज परिवार को अच्छी न लगी। इस कारण से मीरा बाई के देवर ने उन्हें कई बार विष देकर मारने की कोशिश की। एक बार फूलों की टोकरी भेजी जिसमें सांप था।
किन्तु कृष्ण जी की कृपा से उन पर किसी तरह का कोई प्रभाव न पड़ा। ऐसा कहा जाता है कि वह सांप फूलों की माला बन गया था। एक बार विक्रम सिंह ने उन्हें पानी में डूब के मर जाने को कहा, लेकिन वे पानी में तैरती रहीं, डूब नहीं पायीं।
लेकिन घरवालों के इस तरह के व्यवहार के कारण वे द्वारका या वृन्दावन चली गयीं। वहां पर लोग इन्हे सम्मान देते थे। वहीँ पर इनकी मृत्यु लगभग 1546 के आसपास हुई। वैसे इनकी मृत्यु से जुड़ा कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि वे कृष्ण जी की मूर्ति में समां गयीं थी।
[amazon bestseller=”meera bai” items=”2″]
मीरा बाई की रचनायें
मीरा बाई जी को भक्ति काल की कवयित्री माना जाता है। कृष्ण भगवान की भक्ति में लीन होकर इन्होने अपनी कविताओं की रचना की है। वे कृष्ण भगवान की भक्ति में इतना डूब चुकी थी कि गोपियों की तरह कृष्ण भगवान को अपना पति मान बैठीं थीं । इनकी रचनाओं में सरलता, सहजता और आत्मसमर्पण का भाव दिखाई देता है। इनके द्वारा रचित पदों में विविधता देखने को मिलती है।
इन्होने कहीं-कहीं राजस्थानी भाषा का प्रयोग किया है तो कहीं शुद्ध ब्रज भाषा का प्रयोग। कहीं – कहीं गुजरती पूर्वी हिंदी का प्रयोग किया है जिस बजह से इन्हे गुजरती कवयित्री भी कहा जाता है। मीरा बाई जी ने कविताओं के रूप में पदों की रचना की है।
उन्होंने चार ग्रंथों की रचना की है, जो निम्नलिखित है-
- नरसी जी का मायरा
- राग सोरठा के पद
- गीत गोविन्द टीका
- राग गोविन्द
मीरा बाई जी की अधिकतर रचनायें भगवान कृष्ण जी को समर्पित थीं। इसके आलावा इनके गीतों का संग्रह उनके ग्रन्थ ‘मीरा बाई की पदावली’ में मिलता है।
कुछ अन्य चुनिंदा रचनायें हैं जो निम्नलिखित हैं –
नहिं भावै थांरो देसड़लो जी रंगरूड़ो / मीराबाई | मीरा दासी जनम जनम की / मीराबाई |
हरि तुम हरो जन की भीर / मीराबाई | आली रे! / मीराबाई |
नैना निपट बंकट छबि अटके / मीराबाई | प्रभु गिरधर नागर / मीराबाई |
मोती मूँगे उतार बनमाला पोई / मीराबाई | राख अपनी सरण / मीराबाई |
बादल देख डरी / मीराबाई | आज्यो म्हारे देस / मीराबाई |
पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो / मीराबाई | कीजो प्रीत खरी / मीराबाई |
पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे / मीराबाई | मीरा के प्रभु गिरधर नागर / मीराबाई |
मैं अरज करूँ / मीराबाई | अब तो निभायाँ सरेगी, बांह गहेकी लाज / मीराबाई |
प्रभु, कबरे मिलोगे / मीराबाई | स्वामी सब संसार के हो सांचे श्रीभगवान / मीराबाई |
नहिं भावै थांरो देसड़लो जी रंगरूड़ो / मीराबाई | राम मिलण रो घणो उमावो, नित उठ जोऊं बाटड़ियाँ / मीराबाई |
हरि तुम हरो जन की भीर / मीराबाई | गली तो चारों बंद हुई, मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय / मीराबाई |
नैना निपट बंकट छबि अटके / मीराबाई | नातो नामको जी म्हांसूं तनक न तोड्यो जाय / मीराबाई |
मोती मूँगे उतार बनमाला पोई / मीराबाई | माई म्हारी हरिजी न बूझी बात / मीराबाई |
बादल देख डरी / मीराबाई | दरस बिनु दूखण लागे नैन / मीराबाई |
पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो / मीराबाई | पियाजी म्हारे नैणां आगे रहज्यो जी / मीराबाई |
पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे / मीराबाई | म्हारा ओलगिया घर आया जी / मीराबाई |
मैं अरज करूँ / मीराबाई | हमारो प्रणाम बांकेबिहारी को / मीराबाई |
प्रभु, कबरे मिलोगे / मीराबाई | म्हांरे घर होता जाज्यो राज / मीराबाई |
आओ सहेल्हां रली करां है पर घर गवण निवारि / मीराबाई | सखी मेरा कानुंडो कलिजेकी कोर है / मीराबाई |
जागो म्हांरा जगपतिरायक हंस बोलो क्यूं नहीं / मीराबाई | सांवरो रंग मिनोरे / मीराबाई |
हरी मेरे जीवन प्रान अधार / मीराबाई | जल भरन कैशी जाऊंरे / मीराबाई |
राधाजी को लागे बिंद्रावनमें नीको / मीराबाई | रंगेलो राणो कई करसो मारो राज्य / मीराबाई |
मेरी लाज तुम रख भैया / मीराबाई | बारी होके जाने बंदना / मीराबाई |
मन मोहन दिलका प्यारा / मीराबाई | लेता लेता श्रीरामजीनुं नाम / मीराबाई |
सखी मेरी नींद नसानी हो / मीराबाई | तेरो कोई न रोकण हार / मीराबाई |
कोई कहियौ रे प्रभु आवनकी / मीराबाई | अब न रहूंगी तोर हठ की / मीराबाई |
वास्तव में मीरा बाई जी की रचनायें भक्ति भाव से ओत – प्रोत हैं। इनका हिंदी साहित्य में विशेष स्थान है।
Featured Image – By Onef9day (clicked at Delhi Haat) [CC BY 3.0 (https://creativecommons.org/licenses/by/3.0)], via Wikimedia Commons