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Home » Quotes » Dohe and Chaupai » रहीम दास के दोहे अर्थ सहित Rahim Das Ke Dohe in Hindi (With Meaning)

रहीम दास के दोहे अर्थ सहित Rahim Das Ke Dohe in Hindi (With Meaning)

Last Modified: January 4, 2023 by बिजय कुमार 22 Comments

रहीम दास के दोहे अर्थ सहित Rahim Das Ke Dohe in Hindi & Meaning

इस लेख में हमने 51+ रहीम दास के दोहे अर्थ सहित Rahim Das Ke Dohe in Hindi (With Meaning) लिखा है। यह पद Class 5, 7, 8, 9, 10, 12 में स्कूल में पढाये जाते हैं परन्तु सभी कक्षा के छात्र मदद ले सकते हैं।

प्राचीन संस्कृति और कला के क्षेत्र में रहीम दास जी का नाम बेहद महत्वपूर्ण है। इसवी सन 1556 में वर्तमान के लाहौर शहर में रहीम दास जी का जन्म हुआ था। इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ाना था।

प्राचीन मध्यकालीन भारत में रहीम दास केवल एक प्रख्यात कवि ही नहीं बल्कि एक कुशल सेनापति, दानवीर, कूटनीतिज्ञ तथा विद्वान भी थे। इनके पिता मुगल बादशाह अकबर के दरबार में मुख्य पद पर कार्यरत थे।

एक मुसलमान होने के बावजूद भी रहीम दास जी ने हिंदुओं से जुड़े हुए पौराणिक ग्रंथों और कथाओं के विषय पर कविताएं लिखी हैं। रामायण, महाभारत, गीता तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों से जुड़े हुए विभिन्न घटनाओं इत्यादि को रहीम ने कला की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण रूप से प्रस्तुत किया है।

रहीम दास जी के बारे में ऐसा कहा जाता है, कि इनके द्वारा लिखी गई सभी रचनाएं लोगों को बेहद स्पष्ट और सकारात्मक संदेश देती हैं, जिन्हें समझना थोड़ा कठिन होता है।

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51+ रहीम के दोहे अर्थ सहित Rahim Das Ke Dohe in Hindi With Meaning

आज के समय में भी रहीम दास के दोहे उतने ही प्रचलित है कितने पहले हुआ करते थे। भारतीय संस्कृति की झलक रहीम दास के दोहे में स्पष्ट दिखाई पड़ती है, जिससे समाज को एक ख़ास संदेश भी मिलता है।

इस लेख में आप रहीम दास के कुछ प्रसिद्ध दोहों को पढ़ेंगे जिसे विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है। निम्नलिखित दोहे रहीम दास की रचनाओं में सबसे प्रसिद्ध दोहों में से एक है। यह सभी दोहे स्कूल और कॉलेज के कक्षा 5, 7, 8, 9, 10, 12 तक की परीक्षाओं में भी पूछे जातें है:

1. सबको सब कोउ करै कै सलाम कै राम
हित रहीम तब जानिये जब अटकै कछु काम।।

अर्थ: सामान्य परिस्थितियों में तो हर कोई राम और सलाम करके अभिवादन करता है लेकिन लोगों की वास्तविकता और अपनेपन की पहचान तब होती है जब वे मुश्किल परिस्थितियों में लोगों की मदद करते हैं।

2. बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥

अर्थ: अर्थात ओछे उद्देश्य से किया गया बड़ा काम भी प्रशंसा योग्य नहीं होता। जिस प्रकार हनुमान जी और श्री कृष्ण दोनों ने ही विशाल पर्वतों को उठाया था किंतु दोनों के उद्देश्य अलग-अलग थे। श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को जब अपनी उंगलियों पर व्रज वासियों की रक्षा करने के लिए उठाया था तो उन्हें गिरिधर कहा जाता है लेकिन संजीवनी बूटी वाले जिस पर्वत को भगवान हनुमानजी ने उठाया था उन्हे गिरिधर नहीं कहा जाता क्योंकि जिस उद्देश्य से हनुमानजी पर्वत को उठा रहे थे उस से पर्वत राज को क्षति पहुंच रही थी।

3. दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के नाहिं।।

अर्थ: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं की दिखने में कौवा और कोयल दोनों एक समान दिखाई देते हैं लेकिन उनकी असली पहचान तब होती है जब वसंत ऋतु मे कोयल अपनी मीठी और सुरीली आवाज़ और कौवा अपना कर्कश आवाज़ निकलता है। इन दोनों पक्षियों की आवाज को सुनकर दोनों में अंतर स्पष्ट हो जाता है।

4. चढिबो मोम तुरंग पर चलिबेा पावक माॅहि।
प्रेम पंथ ऐसो कठिन सब कोउ निबहत नाहिं ।।

अर्थ: रहीम दास कहते हैं कि जिस प्रकार मोम से बने हुए घोड़े पर सवार होकर आग पर नहीं चला जा सकता ठीक उसी प्रकार प्रेम के मार्ग पर चलना अत्यधिक कठिन होता है। सभी से सच्चे प्रेम की उम्मीद करना बेहद कठिन होता है क्योंकि निस्वार्थ प्रेम सभी नहीं निभा पाते।

5. नाते नेह दूरी भली जो रहीम जिय जानि।
निकट निरादर होत है ज्यों गड़ही को पानि।।

अर्थ : अर्थात जब तक संबंधियों से दूरी बनी रहती है तो आदर सत्कार उतना ही अधिक होता है लेकिन जब अत्यधिक नजदीकी होने लगती है तो धीरे-धीरे लोगों के हृदय में प्रेम और सम्मान कम होने लगता है। जिस प्रकार लोग नजदीकी तलाब के मुकाबले सुदूर के तालाब को अधिक पसंद करते हैं और उसे अच्छा मानते हैं।

6. रहिमन रिस को छाडि कै करो गरीबी भेस।
मीठो बोलो नै चलो सबै तुम्हारो देस।।

अर्थ: क्रोध का त्याग कर अपने अंदर सादगी का गुण विकसित करो। मुख पर नम्रता और मीठी वाणी बोल कर प्रतिष्ठित बना जा सकता है।

7. रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँती विपरीत।।

अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं की चरित्र से गिरा हुआ व्यक्ति ना तो मित्रता के काबिल होता है और ना ही दुश्मनी के, क्योंकि जिस प्रकार एक कुत्ता यदि काटे अथवा चाटे दोनों ही हानिकारक होता है।

8. जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं।।
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।।

अर्थ: अर्थात किसी बड़े को छोटा कह देने पर उसके बड़प्पन में कोई कमी नहीं आती, क्योंकि संसार के रचयिता गिरिधर को मुरलीधर कान्हा कह देने पर उनके अपार महिमा में जरा भी कमी नहीं होगी।

9. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।

अर्थ: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं की प्रेम का धागा बड़ा ही नाजुक होता है यदि एक बार प्रेम के रिश्तो में खटास हो जाती है तो यह धागा पुनः जुड़ तो जाता है लेकिन इसमें गांठ पड़ जाती है जिससे आजीवन कभी भी रिश्तो में प्रेम भाव पुनः विकसित नहीं हो पाता है।

10. जे सुलगे ते बुझि गये बुझे तो सुलगे नाहि।
रहिमन दाहे प्रेम के बुझि बुझि के सुलगाहि।।

अर्थ: अग्नि यदि एक बार बूझ जाती है, तो इसे पुनः सुलगा पाना असंभव हो जाता है। लेकिन प्रेम की अग्नि बड़ी विचित्र होती है क्योंकि यदि प्रेम की अग्नि एक बार बूझ भी जाती है तो वह पुनः सुलग सकती है। भक्त ऐसी ही प्रेम की अग्नि में जलते रहते हैं।

11. धनि रहीम गति मीन की जल बिछुरत जिय जाय।
जियत कंज तजि अनत वसि कहा भौरे को भाय।।

अर्थ: अर्थात एक मछली का जल के साथ प्रेम सच्चा होता है क्योंकि पानी से बिछड़कर मछली अपने प्राण त्याग देती है। लेकिन एक भौंरा का प्रेम केवल छल और स्वार्थ होता है, क्योंकि भौंरा एक फूल का रस चखकर दूसरे फूल पर बैठ जाता है। अर्थात जो वास्तव में प्रेम करता है, उसका कोई स्वार्थ नहीं होता है।

12. जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।

अर्थ: रहीम दास जी कहते हैं कि अच्छे चरित्र और स्वभाव वाले लोगों का कुसंगती भी कुछ नहीं बिगाड़ सकती। ठीक उसी प्रकार जैसे एक जहरीला सांप सुगंधित चंदन के वृक्ष से लिपट तो जाता है लेकिन वह चंदन के वृक्ष को विषैला नही बना सकता है।

13. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारी।।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारी।।

अर्थ: अर्थात किसी बड़े वस्तु को देखकर लालच वश छोटी वस्तु को तुच्छ समझकर फेंक नहीं देना चाहिए। क्योंकि जहां एक छोटी सी सुई काम आ सकती है वहां बड़ी सी तलवार भला क्या कर सकती है?

14. समय पाय फल होता हैं, समय पाय झरी जात।
सदा रहे नहीं एक सी, का रहीम पछितात।।

अर्थ: रहीम दास जी कहते हैं कि सही समय आने पर पेड़ों पर फल लगते हैं और समय बीतने पर झड़ भी जाते है। अर्थात सभी कार्य समय के अनुसार ही होते हैं, अतः पछताने से कोई लाभ नहीं होता। तात्पर्य यह है कि जीवन में अच्छे और बुरे दोनो ही पल आते हैं किंतु इसके लिए बैठकर शोक मनाना व्यर्थ है।

15. वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटन वारे को लगे, ज्यो मेहंदी को रंग।।

अर्थ: वे सभी लोग धन्य होते हैं, जिनका शरीर सदैव ही परोपकार के कार्य में लगा रहता है। जिस प्रकार मेहंदी वितरण करने वाले लोगों के शरीर पर भी मेहंदी का रंग लग जाता है। उसी तरह अच्छे कार्य करने वालों का तन सदैव ही सुशोभित रहता है।

16. पावस देखि रहीम मन, कोईल साढ़े मौन।
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन।।

अर्थ: रहीम दास जी कहते हैं कि जिस तरह वर्षा ऋतु में सुरीली आवाज़ वाली कोयल मौन धारण कर लेती है और वही बेसुरे बारिश के मेंढक चारों तरफ अपनी आवाज़ फैलाते हैं। अर्थात जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां आती हैं, जब कोयल के गुणों को कोई नहीं पूछता अर्थात अच्छे गुणों वाले लोगों का आदर नहीं किया जाता, लेकिन मेंढक की तरह वाचाल लोगों की वाहवाई होती है।

17. बिगरी बात बने नहीं, लाख करो कीं कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

अर्थ: मनुष्य को दूसरों के साथ सदैव उचित व्यवहार करना चाहिए क्योंकि यदि एक बार कोई बात बिगड़ जाती है तो लाख प्रयास करने के बाद भी बिगड़ी हुई बात नहीं बनती है ठीक उसी प्रकार जैसे खराब दूध को मथने से उसमें से मक्खन नहीं निकाला जा सकता है।

18. खीर सिर ते काटी के, मलियत लौंन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिये यही सजाय।।

अर्थ: कड़वे वचन बोलने वाले लोगों के लिए रहीम दास जी कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि जिस तरह खीरे के कड़वे पन को दूर करने के लिए उसका ऊपरी भाग काटकर नमक लगा के खाया जाता है ठीक वैसे ही कड़वे वचन बोलने वाले लोगों के लिये ऐसी ही सजा सही है।

19. रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी लैहैं कोय।।

अर्थ: रहीम दास जी कहते हैं की अपने मन की पीड़ा को दूसरों के समक्ष कभी प्रकट नहीं करना चाहिए क्योंकि दूसरों का दुख सुनकर लोग सहानुभूति प्रकट तो कर देते हैं लेकिन बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो वास्तव में दूसरों के दुखों को समझ कर उसका हल निकाल पाते हैं।

20. जे गरिब पर हित करैं, हे रहीम बड।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।

अर्थ: अर्थात जो लोग गरीबों पर उपकार करके उनकी सहायता करते हैं वह लोग हृदय से बहुत बड़े होते हैं जिस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने अपने गरीब ब्राह्मण मित्र सुदामा की सहायता की थी।

21. छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरी का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।।

अर्थ: रहीम दास जी कहते हैं की उम्र में बड़े लोगों को क्षमा का गुण शोभा देता है तथा छोटी उम्र के लोगों को शरारत। यदि कम उम्र वाले कोई बदमाशी करते हैं तो बड़ों को उन्हें क्षमा कर देना चाहिए क्योंकि उनकी बदमाशी भी छोटी होती है, जैसे यदि कोई छोटा सा कीड़ा लात भी मारता है तो उसके ऐसा करने से कोई बहुत बड़ा हानि नहीं पहुंचता।

22. खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान।।

अर्थ: खैरियत, खून, खांसी, खुशी, दुश्मनी, प्रेम तथा मदिरा पूरा संसार यह जानता है, कि इन सभी चीजों का नशा कभी भी अधिक समय तक दबाया नहीं जा सकता है।

23. जो रहीम ओछो बढै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ों जाय।।

अर्थ: रहीम दास कहते हैं कि जब लोगों को सफलता प्राप्त होने लगती है तो वे इतराने लगते हैं, ठीक वैसे ही जिस तरह शतरंज में जब प्यादा फर्जी हो जाता है तो वह टेढ़ी-मेढ़ी चाल चलने लगता है।

24. तरुवर फल नहीँ खात हैं, सरवर पियहि न पान।
कही रहीम पर काज हित, संपति संचही सुजान।।

अर्थ: अर्थात जिस प्रकार वृक्ष अपना फल स्वयं कभी नहीं खाते तथा सरोवर अपना पानी स्वयं नहीं पीता ठीक वैसे ही भले लोग अपनी संपत्ति को दान देने के उद्देश्य से खर्च करते हैं।

25. रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सुन।
पानी गये न ऊबरे, मोटी मानुष चुन।।

अर्थ: इस दोहे में पानी शब्द का उपयोग विभिन्न संदर्भ में किया गया है। रहीम दास कहते हैं कि पानी अर्थात विनम्रता के बिना मनुष्य होने का कोई लाभ नहीं होता। जिस मनुष्य में विनम्रता का गुण होता है वह सर्वश्रेष्ठ होता है। इसके पश्चात पानी चमक और तेज को भी प्रदर्शित करता है। यदि मोती में चमक ना हो तो उसका कोई मूल्य नहीं होता। इसके अलावा पानी शब्द को अनाज में उपयोग होने वाले आटे से संदर्भित किया गया। रहीम दास कहते हैं की जिस प्रकार आटे की नम्रता पानी के बिना नहीं हो सकती, जिस तरह चमक के बिना मोती का कोई मूल्य नहीं होता और जिस प्रकार मनुष्य के गुणों में विनम्रता का गुण नहीं होता तो यह सभी पूर्ण रुप से व्यर्थ होते हैं।

26. जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।।
बारे उजियारो लगे, बढे अँधेरो होय।।

अर्थ: इस दोहे में दीपक के प्रकाश की तुलना एक कुपुत्र के साथ की गई है। अर्थात शुरुआत में जिस प्रकार दीपक अपना प्रकाश चारों तरफ बिखेरता हैं किन्तु जैसे जैसे समय गुज़रता है तो अँधेरा बढ़ने लगता है| वैसे ही कुपुत्र के कारण प्रारंभ में तो खुशियाँ छा जाती है किन्तु बादमे ऊसके कृत्यों से निराशा अथवा अँधेरा होने लगता है|

27. रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेड़।।
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कही देई।।

अर्थ: रहीम दास जी कहते हैं कि जिस प्रकार आंख से निकला हुआ अश्रु मन के दुख को प्रकट कर देता है ठीक उसी प्रकार घर से निकाला गया व्यक्ति बाहर जाकर सभी भेदों को उजागर कर देता है।

28. मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।।
फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय।।

अर्थ: मन, मोती, पुष्प, दूध तथा रस यह सभी जब तक सामान्य रहते हैं तो अच्छे दिखाई देते हैं| किंतु यदि एक बार यह ख़राब हो जाए तो लाख प्रयास करने के बाद भी इन्हें पहले की भांति सामान्य नहीं किया जा सकता है।

29. रहिमन वहाॅ न जाइये जहाॅ कपट को हेत।
हम तन ढारत ढेकुली सींचत अपनो खेत ।।

अर्थ: रहीम दास कहते हैं की प्रेम में किसी भी प्रकार का छल कपट कतई नहीं होना चाहिए। ऐसे लोगों से हमेशा दुरी बनाये रखना चाहिए जिनका हृदय कपट से भरा हुआ हो। एक किसान जो पूरी रात अपने खेत को सींचने के उद्देश्य से ढेंकली चलाता है लेकिन सूर्योदय होते ही जब वह देखता है तो छल के माध्यम से जल को काट कर दूसरे खेतों में ले जाकर सींच लिया जाता है। तात्पर्य यह हैं की संबंधों की अच्छी तरह से परख करने के पश्चात् ही किसी से स्नेह करना चाहिए।

30. रहिमन विपदा हु भली, जो थोरे दिन होय।।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।।

अर्थ: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि अल्पकालीन विपत्ति अच्छी होती है, क्योंकि यह वह धड़ी होती है जब हमें अपनों और पराए के बीच भेद पता चलता है।

31. कहि ‘रहीम’ संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।।
बिपति-कसौटी जे कसे, सोई सांचे मीत।।

अर्थ: सच्ची मित्रता को परिभाषित करते हुए रहीम दास जी कहते हैं की सगे संबंधियों के साथ संपत्ति रूपी नाते रिश्ते बड़ी रीति-रिवाजों के पश्चात बनते हैं। किंतु जो कठिन परिस्थितियों में भी आपकी सहायता करता है और हर पल आप के दुखों के समय में साथ देता है, वही वास्तव में सच्चा मित्र होता है। अर्थात संकट की घड़ी आने पर ही सच्चे मित्र की पहचान होती है।

32. जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।।
रहिमन’ मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति छोह।।

अर्थ: रहीम दास जी कहते हैं की जल के साथ मछली का प्रेम वास्तव में अटूट होता है। क्योंकि जब पानी में जाल बिछाया जाता है तो मछली उस जाल में फस जाती है तथा जब जाल को पानी से अलग कर के ऊपर की ओर खींचा जाता है तो मछली पानी से बिछड़ कर तुरंत ही तड़प तड़प कर मर जाती है।

33. चाह गई चिंता मिटीमनुआ बेपरवाह,
जिनको कुछ नहीं चाहिये वे साहन के साह।।

अर्थ: अर्थात जिन लोगों को किसी भी वस्तु की चाहत नहीं होती और ना ही उन्हें किसी परिणाम की चिंता होती है, वही दुनिया मैं बेफिक्र मंद लोग होते हैं जिन्हें ना किसी की चिंता होती है और ना ही किसी बात का दुख अतः वे पूर्ण रूप से बेपरवाह लोग होते हैं।

34. रूठे सृजन मनाईये, जो रूठे सौ बार।।
रहिमन फिरि फिरि पोईए, टूटे मुक्ता हार।।

अर्थ: रहीम दास जी कहते हैं कि अगर किसी माला की मोतियाँ टूट जाए तो उसे बिखरने नहीं देना चाहिए, अतः उन्हें किसी धागे में पुनः पिरोह लेना चाहिए। ठीक उसी प्रकार यदि कोई अपना करीबी किसी कारण से रूठ जाता है तो उसे मना लेना चाहिये।

35. जैसी परे सो सही रहे, कही रहीम यह देह।।
धरती ही पर परत हैं, सित घाम औ मेह।।

अर्थ: इस दोहे में रहीम दास जी कहते हैं कि जिस प्रकार से धरती तेज धूप, वर्षा और सर्दी को सहजता से सह लेती है ठीक उसी प्रकार मनुष्य के शरीर को भी सुख-दुख को स्वीकार कर लेना चाहिए।

36. थोथे बादर क्वार के, ज्यों ‘रहीम’ घहरात ।।
धनी पुरुष निर्धन भये, करैं पाछिली बात ।।

अर्थ: जिस प्रकार क्वार महीने में आसमान से बादलों के तेज गडगडाहट की आवाज सुनाई देती है लेकिन उनमें से वर्षा नहीं होती, ठीक उसी प्रकार जब कोई अमीर इंसान गरीब बन जाता है अथवा उसके सारे पैसे खत्म हो जाते हैं तो वह केवल अभिमान से भरे हुए बड़े-बड़े बातें करता है, जिनका जरा भी मूल्य नहीं होता है।

37. आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि।।

अर्थ: इस दोहे में रहीम दास कहते है कि जब आवश्यकता पड़ने पर किसी से कोई वस्तु की मांग की जाती है तो उसी क्षण आबरू, आदर और प्रेम की भावना आँखों से गायब हो जाती है।

38. रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नाइके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर।।

अर्थ: अर्थात समय चक्र पर कोई भी काबू नहीं कर सकता इसलिए बुरे दिन आने पर चुपचाप बैठ जाना चाहिए क्योंकि समय बदलते ज्यादा देर नहीं लगता अतः अच्छे दिनों के आने पर बिगड़ी बात भी बन जाती है।

39. धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय ।
उदधि बड़ाई कौन हे, जगत पिआसो जाय।।

अर्थ: रहीम दास जी कहते हैं की विशाल समुद्र से अच्छा तो एक कीचड़ का जल होता है जिससे कम से कम छोटे-मोटे कीड़े मकोड़े अपना प्यास बुझा सकते हैं। लेकिन विशाल समुद्र के पास जल का भंडार होने का भी कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि समुद्र के पानी से ना तो प्यास बुझाई जा सकती है और ना ही उसे किसी अन्य कार्य में लिया जा सकता है।

40. नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत।।

अर्थ: कला के विषय में रहीम दास जी कहते हैं कि जैसे ही मधुर तान मृग के कान में पड़ती है, तो वह मोहित होकर स्वयं को शिकारी के हवाले कर देता है। उसी तरह मनुष्य भी कला के समक्ष मंत्रमुग्ध होकर कलाकार को कुछ ना कुछ भेंट जरूर चढ़ाते हैं। लेकिन जो लोग कला से मोहित होने के बाद भी कलाकार को कुछ भी नहीं देते वह लोग पशु से भी गिरे हुए होते हैं। क्योंकि पशु कम से कम स्वयं को ही भेंट चढ़ा देते हैं लेकिन इस प्रकार के मनुष्य कलाकार को एक फूटी कौड़ी भी नहीं देते। अर्थात हमें सदैव कला तथा कलाकार का आदर करना चाहिए और उससे प्रभावित होने के पश्चात कुछ ना कुछ दान अवश्य देना चाहिए।

41. रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।।
बिनु पानी ज्‍यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय।।

अर्थ: रहीम दास जी कहते हैं कि विपत्ति आने पर सभी ऐसे ही लोगों की सहायता करते हैं जिनके पास धन होता है यानी जो लोग धन संचय करके रखते हैं उनकी खैरियत सभी पूछते हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे बिना जल के कमल के फूल को सूखने से नहीं बचाया जा सकता उसी प्रकार बिना धन संचय के इस संसार में मुश्किल पड़ने पर कोई भी सहाय नहीं होता।

42. माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि।।

अर्थ: रहीम दास कहते हैं कि माली को आता देख सभी कलियां स्वयं में ही वार्तालाप कर रही हैं कि माली ने आज सभी फूलों को बारी बारी से चुन लिया है अतः कल जब हम फूल बनेंगे तो हमारी बारी भी आएगी।

43. रहिमन वे नर मर गये, जे कछु मांगन जाहि।।
उतने पाहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि।।

अर्थ: अर्थात वो लोग जो दूसरों से कुछ मांगने के लिए जाते हैं वे तो मरे हुए होते हैं लेकिन उनसे पहले ऐसे लोग मर जाते हैं जिनके मुख से कुछ निकलता ही नहीं है।

44. एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय।।

अर्थ: अर्थात एक ध्येय पर निशाना साधने से सभी साधे जा सकते हैं, लेकिन सभी पर निशाना साधने के चक्कर में सभी चले जाने की आशंका रहती है| उसी प्रकार जैसे पौधे को सींचने से हर किसी को उसका फल-फुल प्राप्त हो सकता है, इसीलिए उसे अलग-अलग सींचने की कोई आवश्यकता नहीं है। रहीम दास जी का आशय यह है कि यदि किसी लक्ष्य को एक साथ मिलकर साधा जाए तो उसके परिणाम बहुत शीघ्र ही प्राप्त हो सकते हैं लेकिन वही सभी बिखर कर एक ही लक्ष्य को साधे तो असफलता भी हाथ लगने की आशंका रहती है।

45. बिरह विथा कोई कहै समझै कछु न ताहि।।
वाके जोबन रूप की अकथ कथा कछु आहि ।।

अर्थ: अर्थात विरह के दुःख को व्यक्त करने के पश्चात भी कोई उसे भली-भांति नहीं समझ सकता। एक प्रेमी अपनी सुंदरता से परिपूर्ण प्रेमिका के समक्ष अपनी विरह की पीड़ा को व्यक्त करता है, लेकिन प्रेमिका ऐसा व्यवहार करती है जैसे उसे कुछ पता ही ना चल रहा हो।

46. पहनै जो बिछुवा खरी पिय के संग अंगरात।।
रति पति की नौैैैैैैबत मनौ बाजत आधी रात ।।

अर्थ: अपने प्रिय के संग अंगड़ाई लेते समय रतिप्रिया नारी के पैरों की बिछिया इस प्रकार बज रही है जैसे आधी रात कोई मंगल ध्वनि उत्पन्न हो रही हो।

47. दादुर मोर किसान मन लग्यौ रहै धन मांहि।।
पै रहीम चातक रटनि सरवर को कोउ नाहिं।।

अर्थ: रहीम दास जी कहते हैं कि जब वर्षा ऋतु में बादल की गड़गड़ाहट के साथ बारिश होती है, तो दादुर, मोर और किसान का मन केवल मेघवर्षा में ही लगा रहता है, लेकिन बादल के लिए चातक का जो प्रेम है वैसा शुद्ध प्रेम इन तीनों से कहीं अधिक रहता है अर्थात वर्षा ऋतु से चातक का बड़ा ही अनोखा प्रेम रहता है।

48. रीति प्रीति सबसों भली बैर न हित मित गोत।।
रहिमन याही जनम की बहुरि न संगति होत ।।

अर्थ: रहीम दास जी कहते हैं कि हमें सभी जनों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। किसी से दुश्मनी मोल लेना कभी भी फायदे कारक नहीं हो सकता। अर्थात मानव जन्म पाना बड़े सौभाग्य की बात होती है। अतः न जाने मनुष्य के शरीर में अगला जन्म प्राप्त होकर सत्संगति का सौभाग्य प्राप्त होगा अथवा नहीं।

49. अंतर दाव लगी रहै धुआं न प्रगटै सोय।।
कै जिय जाने आपुनेा जा सिर बीती होय ।।

अर्थ: अर्थात प्रेम बड़ी ही विचित्र चीज होती है। प्रेम के वियोग में प्रेमी के ह्रदय में भड़की ज्वाला से आग तो लगी हुई है किन्तु इससे निकलने वाला धुआं दिखाई नहीं दे रहा है। वियोग के दुःख को केवल वही समझ सकता है जिसके उपर ये सभी चीजें बितती हैं।

50. यह न रहीम सराहिए लेन देन की प्रीति।
प्रानन बाजी राखिए हार होय कै जीति ।।

अर्थ: इस दोहे में रहीम दास कहते हैं की प्रेम में किसी भी प्रकार का लेने देने नहीं होना चाहिये क्योकि सच्चे प्रेम को ख़रीदा अथवा बेचा नहीं जा सकता है। अर्थात प्रेम की रणभूमि में प्राणों की बाजी भी लगनी पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिये, अतः प्रेम में हार हो या फिर विजय उसकी चिंता नहीं करनी चाहिये।

51. रहिमन सो न कछु गनै जासों लागो नैन।
सहि के सोच बेसाहियेा गयो हाथ को चैन ।।

अर्थ: रहीम दास कहते हैं की एक बार जो प्रेम के गहरे समुन्द्र में खो जाता है, तो उसे लाख समझाने बुझाने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि एक बार जो किसी के प्रेम में पड़ जाता है, ऐसा लगता है जैसे वह प्रेम के बाज़ार में अपना सब कुछ गवां बैठा हो और अपना सुख बेचकर दुःख तथा वियोग साथ ले आया हो|

52. मानो कागद की गुड़ी चढी सु प्रेम अकास।
सुरत दूर चित खैचई आइ रहै उर पास।।

अर्थ: अर्थात प्रेम की भावना आकाश में उड़ रहे पतंग के जैसे होता है, जो एक धागे की सहायता से आकाश में उड़ता है। जैसे ही प्रेमी उसे खिचता है तो वह प्रेम रूपी पतंग उसके ह्रदय से लग जाता है।

आशा करते हैं रहीम के दोहे (Rahim Ke Dohe in Hindi) से आपको अपने स्कूल, कॉलेज के प्रोजेक्ट, नोट्स के लिए मदद मिली होगी।

Filed Under: Dohe and Chaupai, Quotes Tagged With: Rahim Ke Dohe for Class 7 in Hindi, Rahim Ke Dohe for Class 9 in Hindi, कक्षा 7वीं रहीम के दोहे, कक्षा 9वीं रहीम के दोहे, रहीम दास के दोहे हिंदी अर्थ सहित

About बिजय कुमार

नमस्कार रीडर्स, मैं बिजय कुमार, 1Hindi का फाउंडर हूँ। मैं एक प्रोफेशनल Blogger हूँ। मैं अपने इस Hindi Website पर Motivational, Self Development और Online Technology, Health से जुड़े अपने Knowledge को Share करता हूँ।

Reader Interactions

Comments

  1. HindIndia says

    February 27, 2017 at 3:58 am

    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति … शानदार पोस्ट …. Nice article with awesome depiction!! 🙂 🙂

    Reply
  2. Sparkle says

    November 19, 2017 at 6:07 pm

    Amazing
    IT helped in my hindi Home Work
    thanks alot

    Reply
  3. Satyam says

    February 13, 2018 at 6:09 pm

    Very important this website thanks my work is complete

    Reply
    • Priyaranjan kumar says

      June 22, 2020 at 11:30 am

      Very good website I complete my work

      Reply
  4. आदि says

    November 27, 2018 at 8:57 pm

    Dhanvyad

    Reply
  5. Rahul Singh Tanwar says

    December 31, 2018 at 3:38 pm

    bahut hi achhe dohe yahan pr post kiye hai. thank you

    Reply
  6. Tera baap says

    January 6, 2019 at 2:53 pm

    Very good

    Reply
    • Gautam kumar says

      February 3, 2019 at 12:59 pm

      Nice art i like it

      Reply
  7. Ayushman Gehlot says

    May 5, 2019 at 7:45 pm

    thank you I learn this dohe and I do best in my class

    Reply
  8. Gourav kumar roy says

    July 15, 2019 at 6:36 am

    Bahut hi accha dohe kavi Rahim ji ke dwara likhe gaye hai aur uska post is webside par kiye hai. Very good

    Reply
  9. Hambal says

    September 8, 2019 at 7:41 pm

    Really helped me a lot, got an exam tomorrow.

    Reply
  10. ishika says

    January 5, 2020 at 7:53 pm

    Really helped me a lot

    Reply
  11. Dhruv says

    February 26, 2020 at 8:21 pm

    The best hindi educational website I have seen

    Reply
  12. anshika keshari says

    August 17, 2020 at 11:48 am

    this is very nice i done my homework and i got A++ thank you

    Reply
  13. SAMMY says

    August 30, 2020 at 10:56 am

    Thanks. It helped in my exams.

    Reply
  14. sabhya says

    September 10, 2020 at 8:52 pm

    it got me full marks

    Reply
  15. Khushbu kutemate says

    November 28, 2020 at 1:05 pm

    nice dohe

    Reply
  16. Tanya says

    December 3, 2020 at 10:11 pm

    This is osm isme dohe ke meaning bhot ache se batay hai

    Reply
  17. Shivam chaydhary says

    January 8, 2021 at 8:01 pm

    my full marks nice this history

    Reply
  18. Shivam chaydhary says

    January 8, 2021 at 8:09 pm

    Nice learning

    Reply
  19. Indrajeet kumar says

    February 11, 2021 at 3:19 pm

    Very nice mujhe dohe padna bhut pasand hai

    Reply
  20. Ayushi says

    March 4, 2021 at 2:17 pm

    Very nice dohe

    Reply

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