शहीद भगत सिंह का जीवन परिचय Shaheed Bhagat Singh Biography in Hindi
भगत सिंह को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है। वो कई क्रन्तिकारी संगठनों के साथ मिले और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया था। भगत सिंह जी की मृत्यु 23 वर्ष की आयु में हुई जब उन्हें ब्रिटिश सरकार ने फांसी पर चढ़ा दिया।
भगत सिंह ने देश के लिए अपना जान न्योछावर किया था और भारत की आज़ादी के लड़ाई में अपना बहुत ही अहम योगदान दिया जिसके कारण उन्हें शहीद भगत सिंह के नाम से जाना जाता है।
- जन्म : 17 सितंबर 1907
- जन्म स्थान: बंगा गांव, तहसील – जरनवाला, लायलपुर, पंजाब, पाकिस्तान a
- माता-पिता: पिता – किशन सिंह और माता विद्यावती कौर
- शिक्षा: D.A.V. High School लाहौर, नेशनल कॉलेज, लाहौर
- संघ: नौजवान भारत सभा, हिन्दुस्तन, हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन, कीर्ति किसान पार्टी, क्रांति दल।
- राजनीतिक विचारधारा: समाजवाद, राष्ट्रवाद, अराजकतावाद, साम्यवाद
- धार्मिक विश्वास: बचपन में सिख धर्म और बाद में नास्तिक।
- किताब: Why I Am An Atheist
- मृत्यु : 23 मार्च, 1931 को मार डाला गया
- शहीद स्मारक: राष्ट्रीय शहीद स्मारक, हुस्सैन्वाला, पंजाब
शहीद भगत सिंह का जीवन परिचय Shaheed Bhagat Singh Biography in Hindi
शहीद भगत सिंह का प्रारंभिक जीवन Shaheed Bhagat Singh Childhood and Early Life
भगत सिंह का जन्म 27 सितम्बर 1907 को बंगा, ल्याल्ल्पुर, पंजाब, पाकिस्तान में पिता किशन सिंह और माता विद्यावती कौर के घर में हुआ। उनके जन्म के समय उनके पिता किशन सिंह, चाचा अजित और स्वरण सिंह जेल में थे। उन्हें 1906 में लागु किये हुए औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करने के जुल्म में जेल में डाल दिया गया था।
उनके एक चाचा, सरदार अजित सिंह इस आन्दोलन के समर्थक थे और उन्होंने भारतीय देशभक्त संघ की स्थापना की थी। उनके एक मित्र सैयद हैदर रजा ने उनका अच्छा समर्थन किया और चिनाब नहर कॉलोनी बिल के खिलाफ किसानों को आयोजित किया।
अजित सिंह के खिलाफ 22 मामले दर्ज हो चुके थे जिसके कारण वो ईरान पलायन के लिए मजबूर हो गए। उनके परिवार ग़दर पार्टी के समर्थक थे और इसी कारण से बचपन से ही भगत सिंह के दिल में देश भक्ति की भावना उत्पन्न हो गयी।
भगत सिंह ने अपनी 5वीं तक की पढाई गाँव में की और उसके बाद उनके पिता किशन सिंह ने दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल, लाहौर में उनका दाखिला करवाया। बहुत ही छोटी उम्र में भगत सिंह, महात्मा गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन से जुड़ गए और बहुत ही बहादुरी से उन्होंने ब्रिटिश सेना को ललकारा।
उन्होंने गाँधी जी की मांगों का साथ देते हुए ब्रिटिश सरकार के द्वारा प्रायोजित पुस्तकों को जलाया। उसके बाद भगत सिंह नेशनल कॉलेज, लाहौर में पढाई के लिए चले गए। इस बिच वर्ष 1919 में जलियावाला बाग हत्याकांड और 1921 ननकान साहिब में निहत्थे अकाली प्रदर्शनकारियों की हत्या ने उनके जीवन में एक मजबूत देशभक्ति दृष्टिकोण का आकार दे दिया।
भगत सिंह, गाँधी जी के अहिंसा आंदोलन से अलग हुए Bhagat Singh Seperated from Gandhi Ji’s Non-Violence Movement
भगत सिंह के परिवार के लोग महात्मा गाँधी के विचारो से बहुत प्रेरित थे और स्वराज को अहिंसा के माद्यम से पाने को सही मानते थे। वो साथ ही भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस और उनके असहयोग आन्दोलन का भी समर्थन करते थे। पर जब चौरी-चौरा के हिंसक घटनाओं के बाद गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को वापस ले लिया तब भगत सिंह गाँधी जी से नाराज़ हुए और वो गांधी जी अहिंसा आन्दोलन से अलग हो गए।
जब वे अपनी ग्रेजुएशन की पढाई कर रहे थे तो उनके माता-पिता ने उनका विवाह करवाने का सोचा पर उन्होंने यह कह कर मना कर दिया कि – अगर मेरा विवाह गुलाम भारत में हुआ तो मेरी पत्नी की मौत हो जाएगी। उसके बाद वो कानपूर चले गए।
मार्च 1925 में यूरोपीय राष्ट्रवादी आंदोलनों से प्रेरित हो कर, नौजवान भारत सभा का निर्माण किया गया जिसके सचिव भगत सिंह थे। भगत सिंह हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े अपने साथी क्रांतिकारि चन्द्र शेखर आज़ाद और सुखदेव के साथ।
जब उनके माता पिता ने उन्हें आश्वासन दिया की वो उनको विवाह के लिए मजबूर नहीं करेंगे तो वो वापस अपने घर लौट गए।
भगत सिंह द्वारा राष्ट्रिय आन्दोलन और क्रन्तिकारी गतिविधियाँ Bhagat Singh’s National Movement & Revolutionary Activities
वैसे तो भगत सिंह ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लिखा करते थे और उनके खिलाफ पर्चे छपवा कर बांटा करते थे पर अकाली आन्दोलन के बाद वो ब्रिटिश सर्कार की नज़र में ज्यादा आये और उन्हें पुलिस ने 1926, लाहौर के बम धमाके मामले में जेल में डाल दिया गया। उन्हें 5 महीने के बाद 60000 रुपए के मुचलके पर छोड़ दिया गया।
साइमन कमीशन के खिलाफ मोर्चा Front against the Simon Commission
30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय ने सभी पार्टियों के साथ मिलकर लाहौर रेलवे स्टेशन की और मोर्चा निकाला। यह मोर्चा साइमन कमीशन के विरोध में किया गया था। इस मोर्चे को रोकने के लिए पुलिस ने बहुत ही बुरी तरीके से लाठी चार्ज किया जिसमें लाला लाजपत राय को बहुत ज्यादा चोट लग गयी थी जिसके चलते 17 नवम्बर 1928 को उनकी मृत्यु हो गयी।
लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने जेम्स ए स्कॉट को मारने का योजना बनाया, जो ब्रिटिश सुपरिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस था पर गलती से जे पी सॉन्डर्स, असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस की मृत्यु हो गयी। भगत सिंह लाहौर से भाग निकले ताकि उन्हें कोई पहचान ना सके और उन्होंने अपनी दाढ़ी भी काट ली।
1929 भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा विधान सभा में बम विस्फोट Assembly Bombing by Bhagat Singh & Batukeshwar Dutt
भारत रक्षा अधिनियम के निर्माण के जवाब में, हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने विधान सभा में अध्यादेश पारित होने के समय बम विस्फोट करने की योजना बनायीं। 8 अप्रैल 1929के दिन भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने विधानसभा के बिच में बम विस्फोट कर दिया और इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाने लगे। उनका इरादा किसी को भी मारना नहीं था वो तो बस अध्यादेश को पारित नहीं होने देना चाहते थे।
पर तब भी भगदौड़ में परिषद् के कई लोगों को चोट लग गयी। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त वहां से नहीं भागे और उन्होंने स्वयं को पुलिस के हवाले कर दिया। मुकदमा चलने पर कोर्ट ने उनके इस कार्य को बहुत ही दुर्भावनापूर्ण और गैरकानूनी बताया और भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को उम्र कैद की सजा सुनाई।
लाहौर षड्यंत्र केस Lahore Conspiracy Case
कुछ दिनों बाद पुलिस ने HSRA बम फैक्ट्री में छापा मारा और कई प्रमुख क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया। उनमें से कुछ मुख्य थे सुखदेव, जतिंद्र नाथ दास, और राज गुरु।
भगत सिंह की मृत्यु Death of Bhagat Singh
23 मार्च 1931 को सुबह 7:30 बजे, भगत सिंह को लाहौर जेल में उनके साथी राजगुरु और सुखदेव के साथ फंसी लगा दी गयी। कहा जाता है कि जब उन्हें जेल से निकाल कर फांसी के लिए लाया जा रहा था तो वो ख़ुशी के साथ “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा लगा रहे थे।
मैं अपने भारत माता के इन शेरो को ईश्वर मानता हूँ मेरे सब कुछ है
मैं इनको याद करता हूँ तो रो देता हूं
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