अहोई अष्टमी व्रत कथा, महत्व, पूजा विधि Ahoi Ashtami Vrat Katha in Hindi

अहोई अष्टमी व्रत कथा, महत्व, पूजा विधि Ahoi Ashtami Vrat Katha in Hindi

भारत देश त्योहारों और व्रतों का देश कहा जाता है, देश में अक्सर महिलाएँ अपने परिवार की सुरक्षा के लिए प्राचीन काल से ही व्रत रखते हुए आई है। मैं आज आपके साथ एक ऐसे व्रत के बारे मे बात करने बाला हूँ, जिसको महिलाओ द्वारा अपनी संतान के लिए रखा जाता है।

यह व्रत संतानहीन युगल के लिए महत्वपूर्ण है, अथवा जो महिलाओं गर्भ धारण में असमर्थ रहती हैं, अथवा जिन महिलाओं का गर्भपात हो गया हो, उन्हें शिशु प्राप्ति के लिए अहोई माता व्रत करना चाहिए। इस दिन को कृष्णा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। मथुरा के राधा कुंड में इस दिन बड़ी संख्या में युगल तथा श्रद्धालु पावन स्नान करने आते हैं।

अहोई व्रत का महत्व Importance of Ahoi Ashtami Vrat

उत्तर भारत में अहोई अष्‍टमी के व्रत का विशेष महत्‍व है, अष्टमी के दिन होने के कारण इसे ‘अहोई आठे’ भी कहा जाता है। अहोई यानि ‘अनहोनी से बचाना’, किसी भी अमंगल या अनिष्‍ट से अपने बच्‍चों की रक्षा करने के लिए महिलाएं यह व्रत रखती हैं।

महिलाएं संतान प्राप्ति एवं अपने पुत्र के सुखी, निरोगी और दीर्घायु जीवन के लिए निर्जला व्रत रहती हैं। इस दिन महिलाएं कठोर व्रत रखती हैं, और पूरे दिन पानी की बूंद भी ग्रहण नहीं करती हैं। अहोई व्रत मुख्य रूप से यूपी, दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश और राजस्थान में रखा जाता है। इस दिन माता पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन माताएं सुबह से शाम तक व्रत रखती हैं।

शाम के समय तारों को देखकर ही इस व्रत को खोला जाता है। कई जगह यह व्रत चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही खोला जाता है। पुराणों के अनुसार अहोई अष्टमी के व्रत को संतान से जोड़कर देखा जाता है। मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से संतान संबंधी सभी परेशानियां दूर हो जाती है। शाम को पूजा के समय सबको साहूकार के परिवार की कथा अवश्य सुननी चाहिए।

माताएं शाम को अहोई अष्टमी की कथा सुनने के बाद तारों को जल अर्पित कर व्रत को पूर्ण करती हैं। अहोई अष्टमी पर्व से संबंधित विभिन्न पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। स्त्रियां पूजा के समय एक दूसरे को कथाएं सुनाती हैं।

अहोई अष्टमी की व्रत कथाएं Ahoi Ashtami Vrat Katha – Stories

अहोई अष्टमी से संबंधित प्रचलित दो कथाएं निम्नलिखित हैं –

व्रत कथा-1

काफी बर्ष पहले की बात है, एक साहूकार के 7 बेटे और एक बेटी थी। साहुकार के सातों बेटों और बेटी की शादी हो चुकी थी।

साहूकार की बेटी दीवाली पर अपने ससुराल से मायके आई हुई थी। दीवाली उत्सव की तैयारी के लिए, घर में लिपाई के लिए उन्हें मिट्टी की जरुरत थी, इसलिए सारी बहुएं जंगल से मिट्टी लेने गईं, ये देखकर साहूकार की बेटी भी अपनी भाभियों के साथ मिट्टी मिलने की उम्मीद से जंगल चल पड़ी।

साहूकार की बेटी ज़मीन में से जहां की मिट्टी खोद रही थी, उस स्थान पर ज़मीन में स्याह (साही) अपने साथ बच्चों के साथ रहती थी, ज़मीन से मिट्टी खोदते समय गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी से एक स्याह के बच्चे को चोट लग गई, जिससे कारण वह मर गया। अपने बच्चे की मौत से आहत स्याह माता ने साहूकार की बेटी की कोख बांधने का श्राप दे दिया।

स्याह के वचन सुनकर साहूकार की बेटी रोते हुए अपनी सातों भाभियों से एक-एक करके विनती करने लगी कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। बेटी को मुसीबत में देख कर सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो गई।

इसके प्रभाव के कारण छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते, वे सात दिन बाद ही मरने लगे। लगातार सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित से पुत्रो की मृत्यु का कारण पूछा और इसका समाधान भी जानने की कोशिश की। पंडित ने सारा कारण जानने के बाद उस बहु को सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।

पंडित की सलाह पर छोटी बहु सुरही गाय की सेवा करने लगती है, कुछ समय पश्चात सुरही गाय सेवा से प्रसन्न होकर छोटी बहु से उसकी इच्छा पूछती है और कहती है कि वह उससे क्या चाहती है? जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मुझ से मांग ले।

साहूकार की बहु ने सुरही गाय को बताया की स्याह माता के क्रोध के कारण मेरी कोख बंधी हुई है, जिसके कारण मेरे बच्चे नहीं बचते हैं, मेरी सभी बच्चे जन्म लेती ही 7 दिनों के भीतर ही मर जाते है। यदि आप मेरी कोख खुलवा दे, तो मैं आपका उपकार जिंदगी भर नही भूलूंगी। गाय माता ने उसकी इच्छा पूरी करने के लिए उसे साथ लेकर सात समुद्र पार स्याह माता के पास ले गयी।

रास्ते में अत्यधिक थकान के कारण दोनों आराम करने लगे, तभी अचानक ही साहूकार की छोटी बहू की नजर एक सांप पर पड़ी वो साँप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा था। तभी बहु उठकर उस सांप को मार देती है, लेकिन तभी गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और वहां खून बिखरा हुआ देखकर उसे ऐसा लगता है जैसे कि छोटी बहू ने ही उसके बच्चे को मारने की कोशिश की हो।

ऐसा विचार करके वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। तब छोटी बहू गरुंड पंखनी को समझती है कि मैंने सांप से तुम्हारे बच्चों की जान बचाई है। यह सुनकर गरुण पंखनी को अपनी गलती का एहसास होता है, तो वह पश्चाताप करती है। यह जानकर गरूड़ पंखनी खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याह के पास सकुशल पहुंचा देती है।

वहां पहुँचकर छोटी बहू स्याह की भी सेवा करती है। स्याह छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है। स्याह छोटी बहू को सात पुत्र और सात पुत्र वधुओं का आर्शीवाद देती है। और घर पहुँचकर अहोई माता का उद्यापन करने की कहती है। जब बहु ने घर आकर देखा तो उसके सात बेटे और सात बहुएं मिली। वह ख़ुशी के मारे भाव-भिवोर हो गई। उसने सात अहोई बनाकर सातकड़ाही देकर उद्यापन किया।

अहोई का अर्थ ‘अनहोनी को होनी बनाना’ होता है। जिस तरह अहोई माता ने उस साहूकार की बहु की कोख को खोल दिया, उसी प्रकार इस व्रत को करने वाली सभी नारियों की अभिलाषा पूर्ण करें।

व्रत कथा -2

अन्य कथा के अनुसार एक बार एक औरत अपने 7 पुत्रों के साथ एक गाँव में निवास करती थी। एक दिन कार्तिक महीने में वह औरत मिट्टी खोदने के लिए जंगल में गयी। मिट्टी खोदते समय उसने गलती से एक पशु के बच्चे की अपनी कुल्हाड़ी से हत्या कर दी। उस घटना के बाद उस औरत के सातों पुत्र एक के बाद एक मृत्यु को प्राप्त हो गए।

इस घटना से दुखी होकर उस औरत यह घटना गाँव की हर एक औरत को सुनाई। एक वृद्ध औरत ने उस औरत को माता अहोई अष्टमी की आराधना करने का सुझाव दिया। उस औरत ने पशु के बच्चे की सोते हुए का चित्र बनाकर माता अहोई की पूजा करने लगी, उस औरत के व्रत रखने के प्रभाव से अहोई माता प्रसन्न हुई और और आखिर में उसके सातों पुत्र फिर से जीवित हो गए।

अहोई अष्टमी व्रत पूजा विधि

  1. अहोई अष्‍टमी के दिन सबसे पहले स्‍नान करके स्‍वच्‍छ वस्‍त्र पहनने चाहिए।
  2. घर के मंदिर में पूजा के लिए बैठें कर व्रत का संकल्प करना चाहिए।
  3. दीवार पर गेरू और चावल की मदद से अहोई माता और स्‍याह व उसके सात पुत्रों का चित्र बनाना चाहिए, आजकल बाजार में कैलेन्डर भी उपलब्ध है।
  4. अब कैलेन्डर के सामने चावल से भरा हुआ कटोरा, मूली, सिंघाड़े और दीपक आदि रखना चाहिए।
  5. एक लोटे में पानी भर कर उसके ऊपर करवा रखें, इस करवे में भी पानी होना चाहिए। ध्‍यान रहे कि यह करवा कोई दूसरा नहीं बल्‍कि करवा चौथ में इस्‍तेमाल किया गया होना चाहिए। दीपावली के दिन इस करवे के पानी का छिड़काव पूरे घर में किया जाता है।
  6. अब हाथ में चावल लेकर अहोई अष्‍टमी व्रत कथा पढ़कर आरती करना चाहिए।
  7. कथा पढ़ने के बाद हाथ में रखे हुए चावलों को दुपट्टे या साड़ी के पल्‍लू में बांध लेंना चाहिए।  
  8. शाम के समय दीवार पर बनाए गए चित्रों की पूजा करें और अहोई माता को 14 पूरियों, आठ पुओं और खीर का भोग लगाएँ।
  9. माता अहोई को लाल रंग के फूल चढ़ाना चाहिए। 
  10. लोटे के पानी और चावलों से तारों को अर्घ्‍य देना चाहिए।
  11. शाम को ध्रुव तारे के उदय होने पर अपने बच्चों का भविष्य ध्रुव की तरह उदीयमान होने की कामना करते हुए अर्घ देना चाहिए।
  12. अब बायना लें, इस बायने में 14 पूरियां या मठरी और काजू होते हैं। इस बायने को घर की बड़ी स्‍त्री को सम्‍मानपूर्वक देंना चाहिए।
  13. पूजा के बाद सास या घर की बड़ी महिला के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेना आवश्यक होता है।
  14. अब घर के सदस्‍यों में प्रसाद बांटने के बाद अन्‍न-जल ग्रहण करें।

दोस्तों यह थी, अहोई अष्टमी की कथा एवं व्रत विधि जिसके रखने से संतान की प्राप्ति होती है, और उसकी रक्षा भी होती है। इस दिन पूरे विधि विधान से माता की पूजा कर के प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। ऐसा करने से माता आपकी इच्छा ज़रुर पूरी करेगी। 

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