अलंकार की परिभाषा, भेद, उदाहरण Alankar in Hindi VYAKARAN
अलंकार की परिभाषा, भेद, उदाहरण Alankar in Hindi VYAKARAN
अलंकार हिंदी भाषा के दो शब्दों ‘अलन्+ कार’ को जोड़कर बनाया गया है। अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है ‘गहना अथवा श्रृंगार’।
अलंकार की परिभाषा, भेद, उदाहरण Alankar in Hindi VYAKARAN
ठीक जिस प्रकार जब कोई स्त्री स्वयं पर गहने तथा श्रृंगार को धारण करती है। तब उसकी शोभा अपने शीर्ष पर आ जाती है एवं वह अत्यंत ही आकर्षक एवं मनमोहिनी जान पड़ती है।
उसी प्रकार हिंदी भाषा में ‘अलंकार’ हिंदी के पद्य में प्रयोग होकर उस पद्य की शोभा में अत्यधिक वृद्धि कर देते हैं। जिससे उसे पढ़ने में बहुत ही आनंद एवं सुख की अनुभूति होती है।
अलंकार काव्य के साथ जुड़कर उसमे मधुरता एवं रसता का भाव उत्पन्न कर देते हैं, जिसके कारण कवि द्वारा लिखे गए वे शब्द एवं पंक्तियाँ और अधिक जीवंत हो उठते हैं। अलंकार के साथ साथ कविता में छंद, बिंब एवं नव रसों के प्रयोग से विशिष्टता लाई जाती है।
संस्कृत भाषा के विद्वानों द्वारा यह भी कहा गया है कि ‘काव्यशोभा करान धर्मानअलंकारान प्रचक्षते’। इसका तात्पर्य है कि वे शब्द जिनके आगमन से काव्य की शोभा बढ़ जाये, उन्हें अलंकार कहा जाता है।
उदाहरण : ‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।’
अलंकार के प्रकार Types of Alankar
अलंकार मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं:-
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
शब्दालंकार
शब्दालंकार शब्द दो शब्दों ‘शब्द+अलंकार’ की संधि से निर्मित है। जिसका अर्थ है किसी काव्य को शब्दों के माध्यम से अलंकृत करना। इस तरह आसान शब्दों में हम कह सकते हैं कि जिस कविता में मात्र शब्दों के विशिष्टतापूर्ण प्रयोग मात्र से ही काव्य की शोभा दोगुनी-चौगुनी बढ़ जाए, वहां शब्दालंकार प्रयुक्त होता है।
उदाहरण: “सुनु सिय सत्य असीस हमारी” यहाँ पर ‘स’ वर्ण की आवृत्ति से काव्य पंक्ति की शोभा बढ़ गई है।
शब्दालंकार के भेद:-
शब्दालंकार मुख्यतः तीन प्रकार का होता है:-
- अनुप्रास अलंकार
- यमक अलंकार
- श्लेष अलंकार
1)अनुप्रास अलंकार:
जब किसी रचना में किसी वर्ण की कई बार से आवृत्ति से उस काव्य की शोभा बढ़ जाती है। तब वहां अनुप्रास अलंकार प्रयुक्त होता है। वर्णों की आवृत्ति के आधार पर ही इसे वृत्यानुप्रास, छेकानुप्रास, लाटानुप्रास, श्रत्यानुप्रास तथा अंत्यानुप्रास आदि भेदों में वर्गीकृत किया गया है।
अनुप्रास अलंकार के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:-
क) “मैया मोरी मैं नही माखन खायो”
[यहाँ पर ‘म’ वर्ण की आवृत्ति बार बार हो रही है।]
ख) “चारु चंद्र की चंचल किरणें”
[यहाँ पर ‘च’ वर्ण की आवृत्ति बार बार हो रही है।]
ग) “कन्हैया किसको कहेगा तू मैया”
[यहाँ पर ‘क’ वर्ण की आवृत्ति बार बार हो रही है।]
2) यमक अलंकार:
जब किसी काव्य पंक्ति में एक ही शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो, एवं हर बार उस शब्द का अर्थ भिन्न हो, तब वहां पर यमक अलंकार प्रयुक्त होता है।
यमक अलंकार के निम्नलिखित उदाहरण प्रस्तुत हैं:-
क) “काली घटा का घमंड घटा”
[यहाँ पर ‘घटा’ शब्द दो बार प्रयुक्त हुआ है, इसमें प्रथम घटा का अर्थ है बादल एवं द्वितीय घटा का अर्थ है घटना अर्थात कम होना। अतः हम कह सकते हैं कि यहाँ पर काव्य का अर्थ काले बादल का घमंड अर्थात प्रकोप कम होने से है।]
ख) “तीन बेर खाती थी वह तीन बेर खाती थी”
[ उपर्युक्त पंक्ति में ‘बेर’ शब्द की आवृत्ति दो बार हुई है, जिसमे प्रथम बेर का अर्थ बेर फल से है तथा द्वितीय बेर का अर्थ बारी अथवा वक़्त से है। कवि के अनुसार वह स्त्री भोजन के रूप में सिर्फ तीन बेर ग्रहण करती थी, वह भी दिन में सिर्फ तीन बार। ]
ग) ” कनक-कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय,
वा खाये, बौराय जाए, वा पाए बौराए।”
[यहाँ पर’कनक’ शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है। प्रथम कनक का अर्थ है धतूरा तथा द्वितीय कनक का अर्थ है सोना। इस पंक्ति से कवि का आशय यहाँ पर यह है कि धतूरा एक मादक फल होता है, जिसके सेवन से व्यक्ति नशे में धुत्त हो जाता है।
परंतु इस मादक धतूरे से भी सौ गुना अधिक नशा सोने में अर्थात स्वर्ण में होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि धतूरा खाने से व्यक्ति अपने होशोहवास खो देता है, परन्तु स्वर्ण को पाने भर से ही कोई भी अच्छा व्यक्ति अपना मानसिक संतुलन खो देता है, एवं वह इसे जल्दी से जल्दी अपने हित में प्रयोग करने को सोचता है।]
3)श्लेष अलंकार:
श्लेष शब्द का अर्थ होता है ‘चिपका हुआ’ अथवा ‘जुड़ा हुआ’। जब कभी किसी काव्य पंक्ति में किसी शब्द को एक बार ही लिखा जाये, परंतु बार बार पढ़ने पर उसके एक से अधिक अर्थ निकलते हैं, तब वहां पर श्लेष अलंकार प्रयुक्त होता है।
श्लेष अलंकार को दर्शाने वाले कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:-
क) “चरण धरत चिंता करत, चितवत चारिहुँ ओर,
सुवरन को खोजत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर।”
[उपर्युक्त काव्य पंक्ति में ‘सुवरन’ शब्द के तीन अर्थ निकल कर सामने आते हैं, प्रथम सुवरन का अर्थ अच्छे, सुन्दर शब्द, द्वितीय सुवरन का अर्थ सुन्दर स्त्री तथा तृतीय सुवरन का अर्थ स्वर्ण से है। रचनाकार का आशय यह है कि बार बार टहलते हुए एवं सोचते हुए, कवि, व्यभिचारी तथा चोर किसी भी तरह सुवरन को प्राप्त करने की मंशा रखते हैं। एक कवि के लिए सुवरन सुन्दर वर्ण तथा वाक्य, एक व्यभिचारी के लिए सुन्दर स्त्री सुवरन है, तथा एक चोर के लिए सुवरन सोना होता है, और ये तीनों ही अपना भरपूर प्रयास करके सुवरन को प्राप्त करने की ताक में लगे रहते हैं।]
ख) “मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरी सोय,
जा तन की झाई परे, श्याम हरित दुति होय।”
[यहाँ पर ‘हरित’ शब्द के तीन अर्थ निकल कर सामने आते हैं, प्रथम हरित का अर्थ हर लेना अथवा दूर करना, द्वितीय हरित का अर्थ हर्षित होना एवं तृतीय हरित का अर्थ हरे रंग में रंगने से है।]
ग) “मधुबन की छाती को देखो,
सूखी इसकी कितनी कलियां”।
[यहाँ पर ‘कलियां’ शब्द के दो अर्थ सामने आते हैं, प्रथम कलियां का अर्थ फूल के खिलने से पूर्व की दशा, तथा द्वितीय कलियां का अर्थ किसी स्त्री के यौवन से पूर्व की अवस्था को कहा गया है।]
अर्थालंकार
जब किसी कविता में विशेषता उसके शब्दों में न होकर, उसके अर्थ में छुपी हुई होती है, वहां अर्थालंकार प्रयुक्त होता है। अर्थालंकार के प्रमुख रूप से निम्नलिखित नौ भेद हैं:-
- उपमा अलंकार
- रूपक अलंकार
- उत्प्रेक्षा अलंकार
- भ्रांतिमान अलंकार
- संदेह अलंकार
- अन्योक्ति अलंकार
- विभावना अलंकार
- मानवीकरण अलंकार
- अतिशयोक्ति अलंकार
1) उपमा अलंकार:-
जब किसी पंक्ति में दो वस्तुओं के बीच अत्यधिक समानता के कारण उनकी तुलना की जाती है, वहां पर उपमा अलंकार प्रयुक्त होता है। यहाँ पर वाचक शब्दों का प्रयोग प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है।
उपमा अलंकार से जुड़े कुछ उदहारण निम्नलिखित हैं:-
क) “पीपर पात सरिस मन डोला”।
[यहाँ पर मनुष्य के मन की तुलना पीपल के पत्ते से की गई है। वाचक शब्द के रूप में ‘सरिस’ शब्द का प्रयोग यहाँ पर किया गया है। कवि के अनुसार मन के डोलने अथवा विचरने की गति को पीपल के पत्ते के झूमने की गति के समान बताया गया है।]
ख) “मुख बाल रवि सम लाल होकर, ज्वाल-सा हुआ बाधित।”
[यहाँ पर छोटे बच्चे के मुख की तुलना चमकते हुए सूरज के लाल रंग से की गई है। वाचक शब्द के रूप में ‘सम’ शब्द का प्रयोग किया गया है।]
ग) “हाय फूल सी कोमल बच्ची, हुई राख की ढेरी थी ।”
[यहाँ पर छोटी बच्ची की तुलना फूल से की गई है। वाचक शब्द के रूप में ‘सी’ का प्रयोग किया गया है।]
2) रूपक अलंकार:–
जब किसी काव्य में गुण में अत्यंत समानता के कारण उपमेय में उपमान का भेद आरोपित कर दिया जाए, वहां रूपक अलंकार प्रयुक्त होता है। यहाँ पर वाचक शब्द का प्रयोग नही होता है।
रूपक अलंकार के कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:-
क) “चरण कमल बन्दौं हरि राइ।”
[यहाँ पर भगवान विष्णु के चरणों को कमल माना गया है। यहाँ पर तुलना न करते हुए, हरि-चरणों को कमल का रूप मान लिया गया है। यहाँ पर वाचक शब्द अनुपस्थित है।]
ख)”बीती विभावरी जाग रही,
अम्बर पनघट में डुबो रही,
तारा घट उषा नागरी।”
[यहाँ पर अम्बर को पनघट तथा उषा को नागरी का रूप मान लिया गया है। कहने का आशय यह है कि ये आसमान एक बहुत विशाल पानी का घाट है, जिस पर उषा(सुबह) रुपी स्त्री तारों की भांति चमकता पात्र(घड़ा) डुबो रही है, जिसमे वह पानी भरकर ले जाने आई है। यहाँ पर वाचक शब्द का प्रयोग नही किया गया है।]
ग) “मैया मैं तो चंद्र खिलौना लेहों।”
[उपर्युक्त पंक्ति में भगवान श्रीकृष्ण बाल रूप में लीला दिखाते हुए चंद्र रुपी खिलौने से खेलने की हठ कर रहे हैं। यहाँ पर चाँद को खिलौने का रूप दे दिया गया है। तथा यहाँ पर वाचक शब्द भी अनुपस्थित है।]
3) उत्प्रेक्षा अलंकार:-
जब किसी काव्य में किसी विशेष गुण अथवा धर्म आदि की समानता के कारण किसी रूप की कल्पना की जाती है अथवा उसके वैसा होने की सम्भावना प्रकट की जाती है।तब वहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार प्रयुक्त होता है। इसमें वाचक शब्द के रूप में मुख्यतः जनु, जानो, मनु, मानो, ज्यों, जानहु आदि का प्रयोग किया जाता है।
उत्प्रेक्षा अलंकार से जुड़े कुछ उदाहारण निम्नलिखित प्रस्तुत हैं:-
क) “सोहत ओढ़े पीत पैट पट, स्याम सलोने गात,
मानहु नीलमणि सैल पर, आपत परयो प्रभात।”
[उपर्युक्त पंक्तियों में श्रीकृष्ण के बाल रूप जब पीले वस्त्र ओढ़े मुस्कान बिखेरते हैं, तब उसके प्यारे गाल इतने सुंदर जान पड़ते हैं, मानो प्रातःकाल के वक़्त, नीलमणि पर्वत स्वयं सामने खड़ा चमक रहा है।]
4) भ्रांतिमान अलंकार:-
यह अलंकार वहां पर प्रयुक्त होता है जब किसी गुण, अथवा रूप की समानता की वजह से उपमेय में उपमान की निश्चयात्मकता प्रतीत होती है, तथा बाद में वही, क्रियात्मक परिस्थिति में परिवर्तित हो जाती है।अर्थात जब उपमेय में उपमान होने का भ्रम हो जाये।
उदाहरण: “पायें महावर देन को, नाइन बैठी आय,
फिरि-फिरि जानि महावरी, एड़ी भीडत आय”।
5) संदेह अलंकार:-
यह अलंकार तब प्रयुक्त किया जाता है, जब किसी एक वस्तु का उसी वस्तु के समान रूप की दूसरी वस्तु होने का संदेह किया जाये और वह निश्चय कर पाने में असमर्थ हो, तब वहां संदेह की स्थिति उत्पन्न होती है। अर्थात जहाँ पर किसी व्यक्ति या वास्तु को देखकर संशय का भाव बना रहे। इसी कारण से इसे सन्देह अलंकार कहा जाता है।
उदाहरण: “यह काया है या शेष उसी की छाया,
क्षण भर उसकी कुछ नहीं समझ में आया।”
6) अन्योक्ति अलंकार:-
यह अलंकार तब प्रयुक्त किया जाता है जब किसी काव्य में प्रस्तुत किसी परिस्थिति अथवा वस्तु का वर्णन किसी और अनुपस्थित वस्तु अथवा परिस्थिति के माध्यम से किया जाये।
उदाहरण: “फूलों के आस-पास रहते हैं,
फिर भी कांटें उदास रहते हैं।”
7) विभावना अलंकार:-
विभावना अलंकार का प्रयोग तब किया जाता है, जब किसी निश्चित वजह अथवा कारण की अनुपस्थिति होने के बावजूद, उस कार्य के उत्पन्न होने का विवरण देकर विश्लेषण किया जाता है। अर्थात कारण की उपस्थिति में भी कार्य की पूर्ति हो जाये।
उदाहरण: बिनु पगु चलै, सुनै बिनु काना,
कर बिनु कर्म, करै विधि नाना,
आनन रहित, सकल रसु भोगी,
बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।”
8) मानवीकरण अलंकार:-
मानवीकरण अलंकार का प्रयोग तब किया जाता है, जब किसी निर्जीव अथवा सजीव वस्तु की तुलना किसी व्यक्ति, पशु अथवा जीव की गतिविधियों तथा क्रियाशीलता से की जाती है, अर्थात जब कोई निर्जीव वस्तु को मानव रूप देकर उससे मानव द्वारा की जाने वाली गतिविधियों का कर्ता मान लिया जाता है।
उदाहरण:”बीती विभावरी जाग रही,
अम्बर पनघट में डुबो रही,तारा घट उषा नागरी।”
9) अतिशयोक्ति अलंकार:-
अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग तब किया जाता है, जब किसी व्यक्ति अथवा वास्तु के गुणों का वर्णन खूब बढ़ा-चढ़ाकर, उसकी क्षमता से भी अधिक बताया जाये।
उदाहरण: “हनुमान की पूंछ में, लगन न पाई आग,
लंका सगरी जल गई, गए निसाचर भाग।”
Thanks bro
I like it
Thank you so much
Bharat mata ki Jai
Thanks a lot for the information