चौसा का युद्ध Battle of Chausa in Hindi
भारतीय इतिहास में चौसा का युद्ध एक प्रमुख युद्ध माना जाता है। यह युद्ध 25 जून 1539 ई० को बाबर के बेटे हुमायूं और शेरखां (शेरशाह) की सेनाओं के बीच हुआ था। यह उत्तर प्रदेश और बिहार के बॉर्डर पर बक्सर के निकट कर्मनाशा नदी के तट पर चौसा नामक स्थान पर हुआ था।
इस युद्ध में हुमायूं हार गया और शेरशाह जीत गया। हुमायूं की सेना बुरी तरह नष्ट हो गई और उसे भारी नुकसान हुआ। हुमायूं ने युद्ध से भागकर निजाम नामक भिश्ती का सहारा लिया और गंगा नदी पार कर गया। बाद में हुमायूं ने उसे 1 दिन के लिए दिल्ली का बादशाह बना दिया था।
चौसा का युद्ध Battle of Chausa in Hindi
इस युद्ध में हुमायूं इसलिए हार गया क्योंकि उसने अफगानों पर कोई भी ध्यान नहीं दिया था। शेरखां ने एक दूत हुमायूं की सेना का मुआयना करने के लिए भेजा था, जिससे उसकी कमियों के बारे में पता चल गया।
इसलिए शेरखां ने रात में ही हुमायूं की सेना पर हमला कर दिया, युद्ध से पहले शेरखां ने कहा था “अगर भाग्य ने मेरी सहायता की और सौभाग्य मेरा मित्र रहा, तो मै मुग़लों को सरलता से भारत से बाहर निकाला दूँगा।” जो बाद में सच हुआ।
चौसा का युद्ध जीतने के बाद बहुत से अफगान अमीरों ने शेरखां को सम्राट बनने का प्रस्ताव भेजा जिसे उसने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। शेरखां ने अपना राज तिलक करवाया। बाद में बंगाल के राजाओं का मुकुट उसने पहना। उसने खुद को “शेरशाह आलम सुल्तान उल आदित्य” की उपाधि दी।
बिलग्राम का युद्ध / कन्नौज का युद्ध
हुमायूं और शेरखां (शेरशाह) के बीच 1540 ई० में फिर से एक युद्ध हुआ जिसे बिलग्राम का युद्ध या कन्नौज का युद्ध कहते हैं। इस युद्ध में भी हुमायूं की सेना पूरी तरह तैयार नहीं थी और शेरशाह ने फिर से हुमायूँ को बुरी तरह से पराजित किया।
उसके बाद हुमायूं को मजबूरन भागना पड़ा। भारत से भागना पड़ा और निर्वासित जीवन जीना पड़ा। निर्वासन के दौरान ही हुमायूं ने अपने आध्यात्मिक गुरु वीर बाबा दोस्त अली अकबर जामी की बेटी हमीदा बानो बेगम से 29 अगस्त 1541 में विवाह कर लिया।
हुमायूं द्वारा लड़े गए 4 महत्वपूर्ण युद्ध
- देवरा का युद्ध 1531 ई०
- चौसा का युद्ध 1539 ई०
- बिलग्राम का युद्ध कन्नौज का युद्ध 1540 ई०
- सरहिंद का युद्ध 1555 ई०