इस लेख में हम आपको तराइन का युद्ध Battle of Tarain History in Hindi के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे
तराइन का युद्ध Battle of Tarain History in Hindi
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी Prithviraj Chauhan & Muhammad of Ghor
उसका जन्म 1149 ई० में हुआ था। पिता की मृत्यु के बाद मात्र 14 वर्ष की उम्र में पृथ्वीराज को अजमेर की गद्दी पर बैठा दिया गया। दिल्ली और अजमेर का शासन पृथ्वीराज बचपन में ही संभालने लगा। पृथ्वीराज को राय पिथौरा भी कहा जाता है। वह बचपन से ही एक कुशल योद्धा थे।
पृथ्वीराज चौहान और तुर्क शासक मोहम्मद गौरी के बीच तराइन का प्रथम और द्वितीय युद्ध लड़ा गया। पृथ्वीराज चौहान ने राजा जयचंद की पुत्री संयोगिता का हरण कर उससे विवाह कर लिया था। इससे राजा जयचंद उसका विरोधी बन गया था। सभी राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान के विरोधी बन गए थे। उसकी मृत्यु 1248 ई० में हुई थी।
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी आज भी बहुत चर्चित है। मोहम्मद गौरी ने 18 बार पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण किया जिसमें 17 बार उसे हार का सामना करना पड़ा। पृथ्वीराज चौहान के हारने के बाद मोहम्मद गौरी जीत गया और भारत में मुस्लिम शासन की नीव पड़ गई।
तराइन के युद्ध का इतिहास History of Battle of Tarain in Hindi
तराइन के युद्ध का भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। यह युद्ध तराइन या तरावड़ी स्थान पर पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) और मुस्लिम आक्रमणकारी शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी के बीच लड़े गए थे।
पहले युद्ध में पृथ्वीराज की विजय हुई थी और दूसरे युद्ध में मोहम्मद गौरी की विजय हुई थी। मोहम्मद गौरी की विजय के बाद भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों का शासन शुरू हो गया। तराइन का प्रथम युद्ध 1191 ई० में और तराइन का दूसरा युद्ध 1192 ई० में लड़ा गया था।
तराइन का प्रथम युद्ध First battle of Tarain
यह युद्ध 1191 ई० में तराइन के मैदान में लड़ा गया था। यह युद्ध सरहिंद भटिंडा (पंजाब) के निकट तराइन के मैदान में शुरू हुआ जिसमें मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) दोनों ही अपने-अपने दावे कर रहे थे। पंजाब पर मोहम्मद गौरी का राज था। वो भटिंडा से अपना शासन चलाता था। पृथ्वीराज चौहान हमेशा से पंजाब को पाना चाहता था।
वह यह बात जानता था कि पंजाब पर कब्जा करने के लिए उसे मोहम्मद गौरी से युद्ध लड़ना होगा। सबसे पहले उसने हांसी, सरस्वती और सरहिंद के किलो पर आक्रमण किया और अपने कब्जे में ले लिया। अनहीलवाडा में विद्रोहियों ने पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ विद्रोह कर दिया। पृथ्वीराज ने जल्द ही अनहीलवाडा के विद्रोह को कुचल दिया। उसके बाद मोहम्मद गोरी से युद्ध की तैयारी करने लगा।
युद्ध में लड़ते हुए मोहम्मद गौरी बुरी तरह घायल हो गया। वह अपने तुर्की घोड़े से गिरना ही वाला था कि एक खिलजी सैनिक ने उसकी मदद की। उसने जल्दी से सुल्तान के घोड़े की कमान संभाल ली। घोड़े पर बैठकर वह सैनिक मोहम्मद गौरी को युद्ध मैदान से बाहर ले गया। इस तरह मोहम्मद गौरी के प्राणों की रक्षा हुई।
पृथ्वीराज चौहान की सेना ने 80 मील तक मोहम्मद गौरी की सेना का पीछा किया। इस युद्ध में तुर्कों की सेना जान बचा कर भाग गई। इस युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान को 7 करोड़ का धन प्राप्त हुआ जो उसने अपने वीर सिपाहियों को बांट दिया।
इस युद्ध में मोहम्मद गौरी को हार का सामना करना पड़ा। पृथ्वीराज चौहान ने 13 महीने के बाद भटिंडा पर कब्जा कर लिया था। तराइन के दूसरे युद्ध शुरू होने से पहले पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच एक समझौता हुआ था जिसमें मोहम्मद गौरी पंजाब छोड़ने को तैयार था।
मोहम्मद गौरी को 17 बार हार का सामना करना पड़ा
किवदंतियों के अनुसार मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान पर कुल 18 बार आक्रमण किया था जिसमें 17 बार उसे हार का सामना करना पड़ा। दोनों ही सम्राट अपना अपना राज्य विस्तार करना चाहते थे, इसलिए तराइन का प्रथम और द्वितीय युद्ध हुआ।
तराइन का द्वितीय युद्ध Second battle of Tarain
तराइन का दूसरा युद्ध शुरू होने से पहले कई राजपूत राजाओं ने पृथ्वीराज चौहान का साथ छोड़ दिया। पृथ्वीराज चौहान ने संयोगिता का अपहरण कर लिया जिससे राजा जयचंद बुरी तरह नाराज हो गए। वे किसी भी तरह पृथ्वीराज को नष्ट करना चाहते थे। उन्हें यह बात पता चल गई कि तुर्की सुल्तान मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान पर हमला करना चाहता है।
उन्होंने मोहम्मद गौरी का साथ देकर पृथ्वीराज चौहान का अंत करने की योजना बना डाली। राजा जयचंद ने अपना दूत भेजकर मोहम्मद गौरी को युद्ध में सैन्य मदद करने का प्रस्ताव रखा। मोहम्मद गौरी का सामना करने के लिए पृथ्वीराज चौहान के मित्र राज कवि चंदबरदाई ने दूसरे राजपूत राजाओं से मदद मांगी, पर संयोगिता के अपहरण की वजह से किसी ने भी सैन्य सहायता नहीं दी। सभी राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान के विरोधी बन चुके थे।
तराइन का दूसरा युद्ध 1192 ई० को पृथ्वीराज चौहान और शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी के बीच लड़ा गया। इस युद्ध में मोहम्मद गौरी की विजय हुई और पृथ्वीराज चौहान की हार हुई। उसकी सेना में 3 लाख सैनिक, 300 हाथी और बहुत से घुड़सवार थे। इस युद्ध में मोहम्मद गौरी के पास 120000 सैनिक थे।
मोहम्मद गौरी की सेना बहुत अच्छी तरह संगठित थी। दोनों ओर के घुड़सवारों में भयंकर युद्ध हुआ था। मोहम्मद गौरी के घुड़सवार बहुत अच्छी तरह प्रशिक्षित थे। गौरी के सैनिकों ने पृथ्वीराज चौहान की हाथियों की सेना पर बाण वर्षा शुरू कर दी। हाथी घायल हो गए और अपनी सेना को कुचलने लगे।
सही मौका पाकर राजा जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान की सेना पर आक्रमण कर दिया। राजपूत हिंदू अपने ही भाइयों को मार रहे थे। यह इस युद्ध की सबसे बड़ी त्रासदी थी। पृथ्वीराज चौहान की सेना रात के समय शत्रु सेना पर आक्रमण नहीं करती थी। वह युद्ध के नियम के अनुसार चलती थी। महाभारत में भी यह युद्ध लागू था, परंतु मोहम्मद गौरी की सेना रात में भी शत्रु सेना पर आक्रमण करती थी। इस कारण इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई।
पृथ्वीराज चौहान के मित्र राज कवि चंदबरदाई को बंदी बना लिया गया। इसके बाद मोहम्मद गौरी का दिल्ली, कन्नौज, अजमेर, पंजाब और सभी भारत में अधिकार हो गया। भारत में मुस्लिम शासन स्थापित हो गया। उसने कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत का गवर्नर बना दिया। पृथ्वीराज चौहान और राज कवि चंदबरदाई को बंदी बनाकर वह अपने साथ गृह राज्य ले गया।