अतिथि देवो भवः पर निबंध Essay on Atithi Devo Bhava in Hindi

आज के इस निबंध में हमने अतिथि देवो भवः (Essay on Atithi Devo Bhava in Hindi) के विषय में बताया है। इस लेख से जान पाएंगे इस श्लोक का अर्थ, महत्व, भारत में स्तिथि का सम्मान, इसका इतिहास, तथा टूरिज्म में इसकी ज़रुरत।

अतिथि देवो भवः

अतिथि देवो भवः श्लोक का अर्थ Meaning of Atithi Devo Bhava in Hindi

सबसे पहले तो हम आपको अतिथि का अर्थ बताना चाहेंगे इसका अर्थ होता मेहमान। देव का अर्थ होता है भगवान (अतिथि देवो भवः) यह एक संस्कृत का वाक्य  है, इसको अगर हम अपनी हिंदी भाषा में बदले तो इसके पूरे अर्थ का मतलब है, कि हमारे यहाँ जो भी अतिथि आते है वो भगवान के समान होते है।

भारत में अतिथि का सम्मान Respect to the guest in India

अतिथि आपके यहाँ किसी भी रूप में आ सकता है। वह कोई भी हो सकता है, चाहे वह आपके रिश्तेदार हो या अन्य कोई भी व्यक्ति। हमें हमेशा इस बात को याद रखना चाहिए कि हमें अपने अतिथि का आदर करना चाहिए।

अतिथि को हमारे ग्रंथों में भगवान अतुल्य बताया है। कहते है भगवान और अतिथि में कोई अंतर नहीं होता है। अतिथि की सेवा करना एक पूजा है, जो इस पूजा को निस्वार्थ भाव से करता है। कहते है वही इस दुनियाँ में पूजनीय है। 

हमारे भारत की पुरानी परंपरा है, कि अगर हमारे यहाँ हमारे घर में कोई मेहमान आता है तो उसको बहुत सम्मान दिया जाता था। उसको इज़्ज़त दी जाती थी वही परंपरा तब से लेकर आज भी चली आ रही है।  

इतिहास History

पहले जब राजा महाराजाओं के यहाँ कोई भी अतिथि आता था, तो उसको एक भगवान की तरह पूजा जाता था, उसके रहने के लिये एक अलग से उसकी सुख सुविधा का इंतज़ाम किया जाता था, उसको सैनिक व दासियाँ भी दिये जाते थे जो उस अतिथि की सारी देखभाल करते थे, उनकी ज़रूरतों का वे सैनिक और दासियाँ पूर्ण ख्याल रखते थे।

उनको पहनने के लिये अच्छे कपड़े, आभूषण और अच्छे-अच्छे पकवान खाने में दिये जाते थे और जब वह जाता था, तो अतिथि की विदाई में उनको सोने के सिक्के और कई उपहार स्वरुप वस्तुयें दी जाती थी आपने ऐसी पुरानी कई कहानियां सुनी और देखी भी होंगी जों हमें पुरानी परंपरा याद दिलाती है जैसे आपने भगवान कृष्ण और उनके दोस्त सुदामा का नाम सुना होगा।

कृष्ण ने किया सुदामा का – अतिथि सत्कार Krishna and Sudama – Great example of Atithi Devo Bhava

पढ़ें : भगवान श्री कृष्ण की कहानियाँ

जब सुदामा जी अतिथि के रूप में कृष्ण जी के यहाँ आये थे, तो उन्होंने सुदामा जी का बहुत सम्मान किया था जबकि कृष्ण जी के महल के सैनिक तो सुदामा जी को कृष्ण जी का दोस्त मान ही नहीं रहे थे लेकिन जब कृष्ण जी ने सुना कि उनका दोस्त कई साल बात एक अतिथि के रूप में उनके यहाँ आया है तो वे सुदामा जी से मिलने ऐसे भागे की वे अपने पैर में कुछ पहनना ही भूल गये उन्होंने सुदामा जी अपने महल में अतिथि की तरह रखा था और उनका खूब जी भर के स्वागत किया उनकी खातिरदारी में कोई कमी नहीं रखी। जब सुदामा जी गये तो उनको कृष्ण जी ने उपहार में रहने के लिये एक महल दिया जो कि सुदामा जी के लिये एक गुप्त उपहार था। 

टूरिज्म के लिए अतिथि देवो भवः Atithi Devo Bhava with respect to tourism

अगर हमारे देश में किसी दूसरे देश से टूरिस्ट भी कोई आता है, तो वो भी हमारा अतिथि होते है इसलिये हमारे भारत में जगह-जगह रास्तों में बोर्ड पर लिखा होता है अतिथि देवो भवः और हम बाहर देश से आने वालों की इज्जत भी करते है और जब वे हमारे देश से लौत्कार्जाते है तो वे हमारे प्यार और सम्मान से इतना खुश होकर जाते है है कि वह बार-बार भारत की सुन्दरता देखने आते है।

इसीलिए कहते है हमारे अतिथि हमारे भगवान या देव के समान होते है। हमें उनका हमेशा सम्मान करना चाहिये क्यों कि,  हमारे यहाँ हमारे अतिथि केवल कुछ दिनों के लिये रहने आते है और फिर वे चले जाते है तो उनका सम्मान व आदर करना चाहिए।

आज के युग में अतिथि देवो भवः Atithi Devo Bhava in Modern

समय बदला तो उसके साथ-साथ कुछ रश्म और रिवाज भी बदल गये, अतिथि को इज्जत व सम्मान आज भी देते है पर आज लोगों के दिल में पहले के लोगों जितना प्यार नहीं रह गया न ही आज के हर इंसान के पास उतने पैसे होते है अगर हम पैसे की बात करें तो पुराने ज़माने में भी कई लोगों के पास पैसे नहीं थे, पर वे अपनी ज़रूरतों में कमी करके पहले अतिथि की ज़रूरतों को पूरा करते थे पर आज अतिथि के लिये लोगों के मन में ऐसा प्यार और सदभाव नहीं रह गया है।

वह पहले अपना और अपने परिवार के लोगों की ज़रूरतों को देखते है, बाद में अतिथि के सम्मान और ज़रूरतों को पूरा करने के बारे में सोचते है। अगर आज हमारे यहाँ कोई आता है तो हम उनको पानी तो पिलाते है पर कुछ खिलाना है या नहीं खिलाना है, वो जिसके घर में अतिथि आये है वह ही निर्धारित करता है कि अतिथि का सम्मान किस प्रकार करना है। आज के ज़माने में लोगों के पास इतना वक्त नहीं होता है, कि वे अतिथि साथ बैठकर अपना कुछ समय व्यतीत कर पाये।

आजकल समय बदलने के कारण अतिथि का रूप भी बदल गया है। आज के समय में लोग किसी के यहाँ ज्यादा दिन के लिये नहीं जाते है। अगर अतिथि कम दिन के लिये जाते है तो उनका सम्मान तो संभव है परन्तु ज्यादा दिन के लिये रुकने बाले अतिथि को कोई पसंद नहीं करता है। आज के समय में चोरी डकैती आदि भ्रष्टाचार बढ़ते जा रहे है इसीलिए कोई भी अनजान अतिथि को तो अपने घर में रात रुकने भी नहीं देता है, अगर किसी बजह से रुक भी जाये तो घर के सदस्य सतर्क होकर रहते है।

निष्कर्ष Conclusion

अंत में हम इतना ही कहना चाहेंगे कि, हमें अपने अतिथियों का सम्मान करना चाहिए और अपने कीमती समय से कुछ समय निकालकर अपने अतिथियों के साथ ख़ुशी पूर्वक व्यवहार करना चाहिये। चाहे वह आपके यहाँ कितने भी दिन रुकने आये ऐसा करने से लोगों में प्यार की भावना भी बढती है और लोगों को एक दूसरे से मेल मिलाप का मौका भी मिलता है, तो हमें इस भावना को बनाये रखना है और अपने देश के लोगों को यही सलाह देना है, कि हमें हमेशा अपने अतिथियों का आदर करना है और यही भाव हमें अपने आने बाली पीढ़ियों को भी सिखाना है कि अतिथि देवो भवः।   

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