भक्ति और सूफी आंदोलन Essay on Bhakti and Sufi Movement in Hindi
भक्ति और सूफी आंदोलन Essay on Bhakti and Sufi Movement in Hindi
भारत के इतिहास में भक्ति आंदोलन का प्रमुख स्थान है। इस आंदोलन में हिंदू मुस्लिम सभी धर्मों के लोगों ने हिस्सा लिया। यह आंदोलन सभी देशों में फैल गया। इसकी शुरुआत दक्षिण भारत के आध्यात्मिक गुरु शंकराचार्य ने की थी जो एक महान दार्शनिक और विचारक थे। धीरे-धीरे इस आंदोलन में बहुत से लोग जुड़ने लगे।
भक्ति और सूफी आंदोलन Essay on Bhakti and Sufi Movement in Hindi
भक्ति आंदोलन
चैतन्य महाप्रभु, जयदेव, नामदेव, तुकाराम, भी इस आंदोलन में आकर जुड़ गए। भक्ति आंदोलन की सबसे बड़ी विशेषता थी कि यह लंबे समय तक चला। इसमें समाज के हर धर्म के लोगों ने हिस्सा लिया। हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सभी लोगों ने इसमें हिस्सा लिया। निम्न से लेकर उच्च जातियों तक के लोग इस आंदोलन में शामिल हुये। यह आंदोलन भारत से फैला और दक्षिणी एशिया भारतीय उपमहाद्वीप में फैल गया।
रामानंद जी ने राम भक्ति का प्रसार किया। रामभक्ति की दो शाखाएं यहां से बनी – राम का निर्गुण रूपी शाखा और राम का अवतारी रूपी शाखा। रामानंद ने कहा की भगवान की शरण में आने के बाद जात पात छुआछूत उच्च निम्न सभी तरह का अंतर समाप्त हो जाता है। उन्होंने सभी जातियों को राम नाम लेने का उपदेश दिया। कबीरदास रामानंद जी के शिष्य थे।
राम भक्ति को कबीरदास, रैदास, धन्ना, सेना, पीपा जैसे शिष्यों ने प्रसिद्ध बनाया। राम नाम के मंत्र को लेकर सभी लोगों को गले लगाने का उपदेश दिया। भक्ति आंदोलन से निकले भक्ति काल ने हिंदी साहित्य को कई बड़े कवि दिए हैं जैसे तुलसीदास, सूरदास, कबीरदास।
भक्ति आंदोलन के प्रमुख उद्देश्य
- इस आंदोलन का प्रमुख लक्ष्य मूर्ति पूजा को समाप्त करना था।
- समाज में बढ़ती कुरीतियों को समाप्त करना, समाज सुधार करना इसका उद्देश्य था।
- विभिन्न जातियों के बीच भेदभाव को समाप्त करना था।
भक्ति आंदोलन के प्रमुख कवि / संत
शंकराचार्य, रामानुज, नामदेव, संत ज्ञानेश्वर, जयदेव, निंबर्काचार्य, रामानंद, कबीरदास, गुरु नानक, पीपा, तुलसीदास, चैतन्य महाप्रभु, शंकरदेव, वल्लभाचार्य सूरदास, मीराबाई, हरिदास, तुकाराम, त्यागराज, रामकृष्ण परमहंस, भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद
भक्ति आंदोलन को लेकर विद्वानों में विवाद
बालकृष्ण भट्ट ने आरोप लगाया कि भक्ति आंदोलन ने हिंदुओं को कमजोर किया है। भट्ट जी ने मीराबाई व सूरदास जैसे महान कवियों पर हिन्दू जाति के पौरुष पराक्रम को कमजोर करने का आरोप किया है। रामचंद्र शुक्ल ने भक्ति आंदोलन को पराजित असफल और निराश मनोवृति की देन कहा है।
डॉ रामकुमार वर्मा का मत है कि मुसलमानों के बढ़ते हुए आतंक के कारण हिंदू भयभीत हो गए और ईश्वर की शरण में जाकर प्रार्थना करने लगे। हिंदुओं के पास अपनी रक्षा करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं था, इसलिए यह भक्ति आंदोलन शुरू हुआ।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इस बात का खंडन किया है। उनका कहना है कि यदि भक्ति आंदोलन भय के कारण ही शुरू होना होता तो बहुत पहले ही शुरू हो गया होता। जब मुगल सम्राट (मुसलमान राजा) उत्तर भारत के मंदिरों को तोड़ रहे थे तो यह आंदोलन उत्तर भारत में शुरू होना चाहिए परंतु यह दक्षिण भारत में शुरू हुआ।
सूफी आंदोलन
सूफी शब्द का अर्थ है शुद्धता और पवित्रता। सूफीवाद का मानना है कि ईश्वर और आत्मा एक ही होते हैं। यह सिद्धांत ईश्वर की प्राप्ति पर आधारित है। सूफियों के सम्प्रदाय दो भागों में विभाजित थे: “बा-शरा” जो इस्लामी सिद्धांतों के समर्थक थे और “बे-शरा” जो इस्लामी सिद्धांतों से बंधे नहीं थे। सूफी आंदोलन हिंदू मुस्लिम एकता पर बल देता है।
सूफीवाद को ईश्वर का रहस्यवादी रूप भी माना जाता है। सूफी संप्रदाय का प्रचार 12 वीं शताब्दी में उत्तर भारत में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने शुरू किया था। दक्षिण भारत में बाबा फखरुद्दीन ने सूफी संप्रदाय का प्रचार किया था। इस तरह इस्लाम का प्रचार धीरे धीरे भारत में बढ़ने लगा।
सूफी आंदोलन के प्रमुख सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार प्रेम में डूब कर ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता हैं। यह एकेश्वरवाद को मानता है। इस सिद्धांत के अनुसार ईश्वर सिर्फ एक है। भौतिक जीवन ऐशो आराम का त्याग करके ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। आपस में शांति और प्रेम रखना चाहिए, हिंसा से दूर रहना चाहिए।
सूफी मत के अनुसार सभी धर्मों के लोगों का सम्मान करना चाहिए। उनको बराबर समझना चाहिए। सूफी आंदोलन के अनुसार सभी जीव प्रेमी हैं और ईश्वर प्रेमिका है। ईश्वर को पाने में शैतान सबसे बड़ी बाधा है। सभी लोगों को तीर्थयात्रा, दान और उपवास रखकर अपने हृदय को शुद्ध बनाना चाहिए।
सूफी आंदोलन के प्रमुख संत
- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती– इन्होने भारत में चिश्ती संप्रदाय की स्थापना की की थी। इनका जन्म ईरान में हुआ था। बचपन में उन्होंने सन्यास ग्रहण कर लिया था और ख्वाजा उस्मान हसन के शिष्य बन गए थे। इन्होंने ईश्वर की सच्ची भक्ति को सबसे बड़ी सेवा माना है। हिंदू मुस्लिम एकता पर बल दिया है। यह 1190 को भारत आए थे।
- निजामुद्दीन औलिया- ये चिश्ती घराने के चौथे संत थे। इन्होंने वैराग्य और सहनशीलता का संदेश दिया। मुगल सेना भी इनका बहुत सम्मान करती थी और इनके कहने पर आक्रमण रोक देती थी। सभी धर्मों के लोग हजरत निजामुद्दीन औलिया का बहुत सम्मान करते थे। स्वर्गवास के बाद इनका मकबरा उनके अनुयायियों ने बना दिया। हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह दक्षिण दिल्ली में स्थित है। यह एक पवित्र दरगाह है।
- अमीर खुसरो – यह एक महान सूफी संत, शायर, कवि और संगीतकार भी थे। इन्होंने तुगलकनामा ग्रंथ लिखा था। इन्होंने अपनी कविताओं और संगीत से हिंदू मुस्लिम धर्मों में एकता स्थापित की।
सूफी आंदोलन के प्रमुख संप्रदाय
चिश्ती संप्रदाय, सुरावादिया संप्रदाय, कादरी संप्रदाय, नक्शबंदी संप्रदाय, सत्तरी संप्रदाय