गणेश विसर्जन पर निबंध Essay on Ganesh Visarjan Festival in Hindi
इस लेख में हमने गणेश विसर्जन पर निबंध (Essay on Ganesh Visarjan Festival in Hindi) प्रकाशित किया है।
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
(घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीरकाय, करोड़ों सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली। मेरे प्रभु, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें)
दोस्तों गणेश जी को शुभ कार्यो में सबसे पहले याद किया जाता है, क्योंकि इनको बाधा को दूर करने वाला एवं ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि का दाता भी माना गया है। आज हम बात करेंगे भगवान गणेश के बारे में कि गणेश विसर्जन क्या है, और कैसे मनाते है, तो शुरू करते है
गणेश विसर्जन से 10 दिन पहले गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है, मान्यता है कि गुरु शिष्य परंपरा के तहत इसी दिन से विद्याध्ययन का शुभारंभ होता था। इस दिन बच्चे डण्डे बजाकर खेलते भी हैं। इसी कारण कुछ क्षेत्रों में इसे डण्डा चौथ भी कहते हैं।
पढ़ें : गणेश चतुर्थी पर निबंध
गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है क्योंकि गणेश जी को विनायक के नाम से भी जाना जाता है, यह हिन्दुओ द्वारा मनाया जाने वाला एक त्योहार है। मान्यता है कि भादो माह की शुक्ल पक्ष चतुर्थी को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता श्री गणेश जी का जन्म हुआ था, जो हर साल अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार अगस्त या सितंबर माह में आता है।
इसमें लोगो के घरों में, सार्वजनिक स्थानों में बड़े बड़े पंडालो को लगा कर जगह जगह हर्षोल्लास, उमंग और उत्साह के साथ गणेश चतुर्थी के दिन भक्त गणेश जी की मूर्ति को लाकर उनका स्वागत सत्कार करते हैं गणेश जी की मूर्ति विराजित की जाती है।
इस हिन्दू त्योहार में लोग व्रत रखते है, घरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, और प्रसाद के रूप में मोदक बाटे जाते है, क्योंकि गणेश जी को मोदक बहुत पसंद है। ऐसी मान्यता है भी जो भक्त पूरी श्रद्धा, विश्वास आस्था के साथ गणेश जी की पूजा करता है उसे सुख समृद्धि और ज्ञान प्राप्त होता है। यह त्त्योहार पूरे 11 दिनों तक मनाया जाता है, श्री गणेश के जन्म का यह उत्सव गणेश चतुर्थी से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है।
गणेश विसर्जन का उत्सव Ganesh Visarjan festival celebration
हिन्दू धर्म में गणेश जी का विशेष महत्व है, कोई भी पूजा, हवन या मांगलिक कार्य उनकी स्तुति के बिना अधूरा माना जाता है, हिन्दुओं में गणेश वंदना के साथ ही किसी नए काम की शुरुआत होती है। यही वजह है कि गणेश गणेश विसर्जन का पर्व भी पूरे विधि-विधान और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह राष्ट्रीय एकता का भी प्रतीक है।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने तो अपने शासन काल में राष्ट्रीय संस्कृति और एकता को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक रूप से गणेश पूजन शुरू किया था। लोक मान्य तिलक ने 1857 की असफल क्रांति के बाद देश को एक सूत्र में बांधने के मकसद से इस पर्व को सामाजिक और राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाए जाने की परंपरा फिर से शुरू की।
मान्यता के अनुसार गणेश जी विघ्नहर्ता एवं बुद्धि प्रदायक के रूप में माने जाते है, इसलिए यह उत्सव विद्यर्थियों के लिए बहुत जरूरी है, विद्यर्थियों को ज्ञान प्राप्ति के लिए गणेश जी की पूजा अर्चना करना चाहिये, एवं गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए मोदक के साथ साथ दुवा भी चढ़ानी चाहिए।
पढ़ें : भगवान गणेश जी अनसुनी कहानियाँ
दोस्तों जैसा कि आप सब जानते हो कि गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी का घरों, पंडालो में आगमन होता है, और अनंत चतुर्दर्शी के दिन गणेश जी की प्रतिमा को जल में विसर्जित कर दिया जाता है। इस तरह यह उत्सव 10 दिनों तक मनाया जाता है, 10 दिनों के बाद गणेश जी की प्रतिमा विसर्जित की जाती है, और जो लोग 10 दिनों तक प्रतिमा को रखने में असमर्थ है वो प्रतिमा को डेढ़ दिन, 4 दिन, 5 दिन, 7 दिन या 11 वे दिन प्रतिमा विसर्जित करते है।
अनंत चतुर्दशी के दिन प्रतिमा को एक विशाल रैली के माध्यम से, नाचते गाते, खुशी के साथ पास के नदी, तालाब, समुद्र आदि स्थानों पर विसर्जित कर दिया जाता है, विसर्जन के साथ मंगल मूर्ति भगवान गणेश को विदाई दी जाती है। साथ ही उनसे अगले बरस जल्दी आने का वादा भी लिया जाता है।
लोगो का विश्वास है की गणेश जी सुख समृद्धि शांति को अपने साथ लेकर आते है और विपत्ति, परेशानी को अपने साथ लेकर चले जाते है। अकेले मुम्बई में लगभग एक लाख पचास हज़ार गणेश जी की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है।
गणेश जी की मूर्ति मिट्टी की बनी होती है और यह पानी मे जाकर घुल जाती है, ऐसा विश्वास किया जाता है कि गणेश अपने माता पिता शिव जी और पार्वती के पास पहुंच गए।
भारत में गणेश चतुर्थी और गणेश विसर्जन मनाये जाने वाले प्रमुख स्थल Best places where Ganesh chaturhi and Ganesh visarjan celebrated in India
- मुंबई
- पुणे
- गोवा
- चेन्नई
- हैदराबाद
- हुब्बली
- दिल्ली
पौराणिक कथा (गणेश विशार्जन की कहानी) Story behind Ganesha festival
गणेश जी के जन्म को लेकर पौराणिक कथा भी है –
देवी पार्वती ने एक बार अपने शरीर के मैल और उबटन से एक बालक बनाकर उसमें प्राण डाल दिए और उसे आदेश दिया कि, “तुम मेरे पुत्र हो तुम मेरी ही आज्ञा का पालन करना। हे पुत्र! मैं स्नान के लिए जा रही हूं, किसी को अंदर प्रवेश नही करने देना।
ऐसा कह कर पार्वती जी स्नान करने चली गयी, और बालक गणेश द्वार पर पहरी बन कर खड़े हो गए। कुछ देर बाद वहां भगवान शंकर आए और पार्वती के भवन में जाने लगे, यह देखकर उस बालक गणेश ने उन्हें रोकना चाहा, और कहा माता स्नान कर रही है, मैं आपको अंदर प्रवेश नही करने दूँगा।
बालक हठ देख कर भगवान शंकर क्रोधित हो गए, इसे उन्होंने अपना अपमान समझा और अपने त्रिशूल से बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर भीतर चले गए। जब पार्वती को गणेश जी के सिर धड़ से अलग होने की बात पता चली तो वह विलाप करने लगीं, और शिव जी से की कहा कि मुझे बालक गणेश जीवित चाहिए यह मेरा पुत्र है।
यह देखकर वहां उपस्थित सभी देवता, देवियां, गंधर्व और शिव आश्चर्यचकित रह गए। कहते हैं कि भगवान शंकर के कहने पर विष्णु जी एक हाथी (गज) का सिर काट कर लाए थे और वह सिर उन्होंने उस बालक के धड़ पर रख कर उसे जीवित किया था।
भगवान शंकर व अन्य देवताओं ने उस गजमुख बालक को अनेक आशीर्वाद दिए, देवताओं ने गणेश, गणपति, विनायक, विघ्नहरता, प्रथम पूज्य आदि कई नामों से उस बालक की स्तुति की इस प्रकार भगवान गणेश का जन्म हुआ।
गणेश विसर्जन के नियम व विधि Puja vidhi for Ganesh visarjan
विसर्जन में प्रतिमा को जल में डुबोया जाता है इसके लिए लोग नदी, तालाब, कुए या समुद्र का उपयोग करते है, जहाँ नदी, तालाब, कुए या समुद्र आदि उपलब्ध नही होते वहां लोग ज़मीन में गड्डा खोदकर उसमे पानी भर कर विसर्जन कर देते है, इसमें ध्यान देना चाहिए की पानी पैरो में ना पड़े।
विसर्जन करने की नियमों में कुछ निम्न नियम है-
- विसर्जन से पहले गणेश जी की आरती करना चाहिए।
- गणेश जी को मिठाई, मोदक आदि का भोग लगाना चाहिए।
- गणेश जी को विसर्जन के समय बस्त्र पहनाना चाहिए।
- गणेश जी से क्षमा याचना करके उनसे मांफी भी मांगनी चाहिए।
- पूजा सामग्री हवन सामग्री जो भी बची हो उसे भी जल में विसर्जित कर देना चाहिए।
देवी देवताओं की प्रतिमा के विसर्जन का कारण Reasons behind visarjan of god and goddess
वेद पुराणों में कहा गया है, की सभी देवता मंत्रो से बंधे हुए है, उन्हें मंत्रो द्वारा ही इस लोक में बुलाया जाता है जिन प्रतिमाओ को स्थापित करके प्राण प्रतिष्ठा डाली जाती है, वो प्रतिमा देव समान हो जाती है, उन्ही का विसर्जन किया जाता है।
प्रतिमा विसर्जन करने का एक उद्देश्य यह भी है कि मनुष्य यह समझ ले कि जीवन एक चक्र के सामान है, पृथ्वी पर जो भी प्राणी जन्म लेकर आया है, उसे निश्चित रूप से, जाना ही है। विसर्जन का अर्थ है, मोह से मुक्ति। अपने अंदर जो मोह है उससे मुक्त हों और उसे विसर्जित कर दें।
भगवान गणेश जी का महत्व Importance of Lord Ganesha
गणेश जी का वाहन डिंक नामक मूषक है। गणों के स्वामी होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है। ज्योतिष में इनको केतु का देवता माना जाता है और जो भी संसार के साधन हैं, उनके स्वामी श्री गणेश जी हैं।
हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं। गणेश जी का नाम हिन्दू शास्त्र के अनुसार किसी भी कार्य के लिये पहले पूज्य है। इसलिए इन्हें प्रथमपूज्य भी कहते है। गणेश कि उपसना करने वाला सम्प्रदाय गाणपत्य कहलाता है।
गणेश जी से हमे काफी कुछ सीखने को मिलता है जैसे गणेश जी की बड़ी आंखे हमे प्रेरित करती है की हमे जीवन में सूक्ष्म लेकिन तीक्ष्ण दृष्टि रखनी चाहिए। गणेश जी के दो दांत हैं एक अखंड और दूसरा खंडित। अखंड दांत श्रद्धा का प्रतीक है यानि श्रद्धा हमेशा बनाए रखनी चाहिए। खंडित दांत है बुद्धि का प्रतीक इसका तात्पर्य एक बार बुद्धि भ्रमित हो, लेकिन श्रद्धा नही डगमगानी चाहिए ।
नाक यानी सूंड जो हर गंध को (विपदा) को दूर से ही पहचान सकें। हमारी भी परिस्थितियों को भाँपने की क्षमता ऐसी ही होनी चाहिए। गणेश जी का बड़ा पेट उदारता को दर्शाता है। हम सभी में सभी के प्रति उदारता होनी चाहिए।
गणेश जी का ऊपर उठा हुआ हाथ रक्षा का प्रतीक है – अर्थात, ‘घबराओ मत, “मैं तुम्हारे साथ हूँ” और उनका झुका हुआ हाथ, जिसमें हथेली बाहर की ओर है, उसका अर्थ है,”अनंत दान”, और साथ ही आगे झुकने का निमंत्रण देना – यह प्रतीक है कि हम सब एक दिन इसी मिट्टी में मिल जायेंगे। गणेश जी, एक विशाल शरीर वाले भगवान क्यों एक चूहे जैसे छोटे से वाहन की सवारी करते है?
इसका एक गहरा रहस्य है। एक चूहा उन रस्सियों को भी काट कर अलग कर देता है जो हमें बांधती हैं। चूहा उस मंत्र के समान है जो अज्ञान की अन्य परतों को पूरी तरह काट सकता है, और उस परम ज्ञान को प्रत्यक्ष कर देता है जिसके भगवान गणेश प्रतीक हैं।
ज्योतिषो के अनुसार गणेश जी को केतु के देवता के रूप में जाना जाता है, केतु एक छाया ग्रह है, जो राहु नामक छाया ग्रह से हमेशा विरोध में रहता है, बिना परेशानी के ज्ञान नहीं आता है और बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं मिलती, गणेश जी को मानने वालों का मुख्य प्रयोजन उनको सभी जगह देखना है क्योकि गणेश जी अकेले शंकर पार्वती के पुत्र और देवता ही नही ही नहीं बल्कि साधन भी है जो संसार के प्रत्येक कण में विद्यमान है।
प्राचीन ऋषि मुनि इतने गहन बुद्धिमान थे, कि उन्होंने ज्ञान को शब्दों के बजाय इन प्रतीकों के रूप में दर्शाया, क्योंकि शब्द तो समय के साथ बदल जाते हैं, लेकिन प्रतीक कभी नहीं बदलते। तो जब भी हम उस परमात्मा का ध्यान करें, हमें इन गहरे प्रतीकों को अपने मन में रखना चाहिये,और उसी समय यह भी याद रखें, कि गणेश जी हमारे भीतर ही हैं। इसी विश्वास के साथ हमें गणेश की पूजा अर्चना करना चाहिये।