भारतीय चुनाव प्रचार पर निबंध Essay on Election Promotion in Hindi

भारतीय चुनावों और प्रचार पर निबंध Essay on Election and its Promotion in Hindi

चुनावों को लोकतंत्र का त्योहार कहा जाता है। ऐसा कहने के पीछे कई कारण है। कई कारणों में से प्रमुख कारण तो यह है कि यदि चुनाव ही नहीं होंगे तो लोकतंत्र किस प्रकार कार्य कर सकता है।

यदि चुनाव नहीं हुए तो लोकतंत्र कार्य नहीं कर सकता, क्यूंकि लोकतंत्र का प्रमुख सिद्धांत है कि यह लोगों द्वारा चलाया जाता है और लोगों तक पहुंचने के लिए चुनावों का होना काफी ज्यादा जरूरी है। चुनाव में लोग वोट देकर अपनी सरकार को चुनते हैं। 

भारतीय चुनाव प्रचार पर निबंध Essay on Election Promotion in Hindi

चुनाव क्या होता है? 

चुनाव शब्द का सीधा अर्थ है किसी भी वस्तु को चुनना। लोकतंत्र में चुनाव का अर्थ होता है अपना नेता या अपनी सरकार को चुनना। यदि भारतीय लोकतंत्र की बात करें तो यहां पर हर भारतीय व्यस्क नागरिक को वोट देने का अधिकार है।

वोट देने के अधिकार से यहां पर अर्थ उस नागरिक द्वारा अपनी सरकार चुनने से है। एक व्यस्क भारतीय नागरिक कम से कम 18 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र का होता है। 

भारत में चुनाव 

भारत एक लोकतांत्रिक देश है इस कारण यहां पर चुनाव होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। यदि भारत में चुनाव न कराएं जाए तो लोकतंत्र अपने असल स्वरूप में नहीं चल सकता। 

भारतीय संविधान में चुनाव को हर पांच साल के बाद अनिवार्य करार दिया गया है। भारतीय संविधान में चुनाव कराने की जिम्मेदारी भी एक विशेष आयोग जिसे चुनाव आयोग कहा जाता है, को सौंपी है। 

गौरतलब है कि चुनाव एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसका निष्पक्ष होना काफी ज्यादा जरूरी है। चुनाव आयोग एक निष्पक्ष प्रकार का आयोग है जो किसी भी प्रकार से किसी भी राजनीतिक दल की कोई सहायता नहीं करता। 

भारत में चुनावों के कई प्रकार होते हैं जैसे विधानसभा चुनाव, लोक सभा चुनाव, पंचायती चुनाव और अन्य प्रकार के चुनाव। इन सभी चुनावों को चुनाव आयोग द्वारा ही कराया जाता है। 

भारत एक विशाल देश है। भारत में चुनाव कराने के लिए भारत को अलग अलग विधान सभाओं, लोक सभाओं और राज्य सभाओं में बांटा गया है। भारत में आसानी से चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग केन्द्रीय और राज्य कर्मचारियों की सहायता लेते हैं। 

चुनाव का विजेता कौन होता है 

भारतीय चुनावी तंत्र में विजेता उस व्यक्ति को माना जाता है जिसके पास सर्वाधिक वोट होते हैं, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि वह व्यक्ति अपने चुनाव क्षेत्र के आधे से अधिक लोगों को पसंद आया हो। 

उदाहरण के तौर पर मान लीजिए किसी विधानसभा क्षेत्र में 20 हजार लोग रहते हैं। वहां पर चुनाव होते हैं और उन चुनावों में कुल 8 प्रत्याशी खड़े होते हैं, जिन्हे प्रत्याशी 1,2,3,4,5,6,7,8 नंबर दे दिया जाता है। 

चुनाव होने के पश्चात परिणाम आते हैं और प्रत्याशी 1 को 2 हजार वोट मिलते हैं, प्रत्याशी 2 को 4 हजार वोट मिलते हैं, प्रत्याशी 3,4,5,6,7,8, को क्रमशः 3,2,3,2,1,3 हजार वोट मिलते हैं। इनमें से विजेता प्रत्याशी नंबर 2 है जिसने कुल 4 हजार वोट हासिल किए हैं। लेकिन वह उस क्षेत्र के केवल 20% लोगों को ही पसंद है। ऐसा होने के बावजूद भी वह उस क्षेत्र का प्रतिनिधि बन जाएगा। 

कई विद्वान मानते हैं कि इस प्रकार के विजेता को विजेता नहीं मानना चाहिए, वहीं कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि इस पद्धति के सिवाय और कोई रास्ता भी नहीं है। 

चुनावों के दौरान प्रचार 

चुनावों के दौरान प्रचार काफी ज्यादा आवश्यक है। प्रचार की सहायता से ही उम्मीद वार अपने विचारों को लोगो तक पहुंचा सकता है। मौजूदा समय में प्रचार को पैसे खर्च करने का पर्याय बना दिया गया है, हालांकि ऐसा नहीं है न ही ऐसा होना चाहिए।

चुनाव प्रचारों के दौरान सही तरह से प्रचार किया जाए और गलत तरह से प्रचार न हो इसके लिए चुनाव आयोग द्वारा आचार संहिता का निर्माण किया गया है। 

आचार संहिता क्या है 

आचार संहिता एक प्रकार से एक तरह का नियम है जो चुनाव के उम्मीदवारों को गलत तरह से प्रचार करने से रोकने के लिए बनाई गई है। गौरतलब है कि चुनावों के दौरान कई बार ऐसा होता है कि प्रत्याशी मनमाने ढंग से प्रचार करना शुरू कर देता है।

इस दौरान वह खूब सारा पैसा खर्च करता है और वोटर्स को पैसे का लालच देने की कोशिश भी करता है। प्रचार करने के गलत तरीकों में समय से ज्यादा प्रचार करना भी शामिल है। आचार संहिता इस पर सख्त रोक लगाती है। 

आचार संहिता द्वारा लगाई जाने वाली रोक में और भी कई नियम शामिल हैं। कुछ प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं :-

  • कोई हुई प्रत्याशी तय समय सीमा से ज्यादा प्रचार नहीं कर सकता। 
  • प्रचार के दौरान केवल चुनाव आयोग द्वारा तय की गई रकम ही खर्च की जा सकती है। यदि उससे ज्यादा रकम खर्च की गई तो चुनाव आयोग नामांकन खारिज करने के साथ साथ अन्य सख्त कानूनी कदम भी उठा सकता है। 
  • प्रत्याशी अगर नेता अभिनेता या टीवी कलाकार है टी वह टीवी के जरिए प्रचार नहीं कर सकता और प्रचार से जुड़े केवल उन्ही माध्यमों का प्रयोग कर सकता है जिसका उल्लेख चुनाव आयोग द्वारा किया गया हो। 

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