मंगल पांडे पर निबंध Essay on Mangal Pandey in Hindi
मंगल पांडे पर निबंध Essay on Mangal Pandey in Hindi
भारत के इतिहास में मंगल पांडे का नाम स्वर्णिम अक्षरों से लिखा गया है। मंगल पांडे एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। वह पहले ऐसे स्वतंत्रता क्रांतिकारी थे, जिन्होंने ब्रिटिश कानून का विरोध किया था।
मंगल पांडे पर निबंध Essay on Mangal Pandey in Hindi
मंगल पांडे को प्रथम स्वाधीनता संग्राम का जनक भी कहा जाता है। इनके द्वारा लगाई गई विरोध की चिंगारी ने देखते ही देखते एक भयंकर रूप ले लिया और ब्रिटिश सरकार के तख़्तों ताज को हिला कर रख दिया।
हालाँकि भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम पूरी तरह सफल नहीं हो पाया था लेकिन भारत की जनता में अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की भावना भड़क उठी थी। भारत के स्वाधीनता संग्राम में मंगल पांडे जी की महत्वपूर्ण भूमिका होने के कारण भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में सन् 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया।
मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई सन् 1827 को बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। हालांकि कुछ इतिहासकार इनका जन्म स्थान फैजाबाद(अयोध्या) जिले के सुरहूरपुर गांव मानते हैं। उनके पिताजी का नाम दिवाकर पांडे था।
मंगल पांडे एक गरीब परिवार के थे उनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। उन दिनों अंग्रेज केवल ब्राह्मण और मुसलमानों को ही सेना में भर्ती किया करते थे। मंगल पांडे सन् 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हो गए।
कहा जाता है कि किसी ब्रिगेडियर द्वारा उन्हें 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में एक सिपाही के रूप में शामिल किया गया था। सन् 1850 बैरकपुर ने तैनात किया गया। उसी समय भारत में अंग्रेजों ने अपनी सेना के लिए एक नई राइफल का निर्माण किया था, जिसके संदर्भ में यह अफवाह फैली थी कि इस राइफल को अधिक चिकना बनाने के लिए सूअर और गाय के चर्बी का प्रयोग किया गया है। जिससे हिंदुओं और मुस्लिमों का धर्म भ्रष्ट हो रहा था और मंगल पांडे इसका बहुत विरोध कर रहे थे।
सन् 1857 की क्रांति के दौरान यह विद्रोह जंगल में आग की तरह संपूर्ण उत्तर भारत और देश के दूसरे भागों में फैल गया। यह भले ही भारत की स्वाधीनता का प्रथम संग्राम ना रहा हो परन्तु क्रांति निरंतर आगे बढ़ती गई। अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें गद्दार और विद्रोही की संज्ञा दे दी।
मंगल पांडे प्रत्येक भारतीय के लिए एक महान नायक हैं। जब ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में राइफल में नई कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ तो मामला और बिगड़ गया क्योंकि इन कारतूसो को बंदूक में डालने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था। देश में फैली अफवाह सैनिकों के मन में घर कर गई कि अंग्रेज हिंदुस्तान का धर्म भ्रष्ट करने पर तुला है क्योंकि यह हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए नापाक था।
सैनिकों को अपने साथ होने वाले भेदभाव को लेकर पहले से ही असंतोष था और नए कारतूसों से संबंधित अफवाहों ने आग में घी डालने का काम कर किया। 9 फरवरी सन् 1857 को जब नया कारतूस पैदल सेनाओं को बाँटा गया तो मंगल पांडे ने उसे लेने से इनकार कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप उनके हथियार छीन ले गए और वर्दी उतारने का हुक्म दिया गया। मंगल पांडे ने उनके आदेश मानने से भी इनकार कर दिया।
29 मार्च सन् 1857 उनकी वर्दी छीनने के लिए आगे बढे अँग्रेज़ अफसर लेफ्टिनेंट बाग पर इन्होंने आक्रमण कर दिया और उन्हें घायल कर दिया। इस प्रकार संदिग्ध कारतूस का प्रयोग ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के लिए घातक सिद्ध हुआ। मंगल पांडे ने बैरकपुर छावनी में 29 मार्च सन् 1857 को अंग्रेज के विरुद्ध बिगुल बजा दिया।
मंगल पांडे ने अपने अन्य साथियों के खुलेआम समर्थन का आवाहन किया परंतु डर के कारण किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया। जनरल जान हेएरसेये ने जमीदार ईश्वरी प्रसाद को मंगल पांडे को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया, पर ज़मीदार ने मना कर दिया। सिवाए एक सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पांडे को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया। कुछ समय बाद अंग्रेजी सिपाहियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
उन्हें 6 अप्रैल सन् 1857 को फांसी की सजा सुना दी गई। फैसले के अनुसार 18 अप्रैल सन् 1857 को फांसी दी जानी थी परंतु ब्रिटिश सरकार ने मंगल पांडे को निर्धारित तिथि के 10 दिन पूर्व 8 अप्रैल सन् 1857 को ही फांसी पर लटका दिया। मंगल पांडे की शहादत की खबर पूरे देश में फैल गई और उनके द्वारा भड़कायी गई ज्वाला से अंग्रेज शासन पूरी तरह हिल गया, हालांकि अंग्रेजों ने इस क्रांति को दबा लिया।
एक महीने बाद 10 मई सन् 1857 को मेरठ के छावनी में बगावत हो गई जिससे अंग्रेजों को अस्पष्ट संदेश मिल गया था कि अब भारत में राज्य करना आसान नहीं है। इसके बाद ही हिंदुस्तान में 34735 नए अंग्रेजी कानून लागू किए। ताकि मंगल पांडे जैसा विद्रोह दोबारा कोई सैनिक ना कर सकें। तुरंत मंगल पांडे की शहादत ने देश में जो क्रांति के बीज बोए थे उसने अंग्रेजी हुकूमत को 100 साल के अंदर ही भारत से उखाड़ फेंक दिया।
Featured Image Credit – Flickr (Public.Resource.Org)