नाग पंचमी पर निबंध तथा महत्त्व, कथा Essay on Naga Panchami in Hindi with Nag Panchami Importance and Story
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी त्योहार मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म के अनुसार नाग भगवान का रूप है। इसीलिए इस दिन लोग नाग की पूजा पूरी विधि – विधान से करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि जो लोग नाग की पूजा करते हैं उन्हें सांप से कभी कोई हानि नहीं होती। उनकी मृत्यु कभी सांप के काटने से नहीं होती है।
नाग पंचमी के दिन सर्प के बारह नाम – अनंत, बासुकि, शंख, पद्म, पिंगल, तक्षक, कालिया, ॐ शंखपाल, अश्वतर, घृतराष्ट्र, कर्कोटक और कम्बल का स्मरण करना चाहिए। नाग पंचमी पर नाग की पूजा करने से व्यक्ति का घर हमेशा धन- सम्पदा से परिपूर्ण रहता है।
नाग पंचमी पर निबंध तथा महत्त्व, कथा Essay on Naga Panchami in Hindi with Importance and Story
नाग पंचमी कहानी
इस पूजा से जुडी एक कथा है। जिसका बहुत महत्त्व है। आईये इस कथा के बारे में हम विस्तार से जानते हैं। एक नगर में एक व्यापारी निवास करता था। उसके सात पुत्र थे। उन सातों पुत्रों का विवाह हो चुका था। उन सातों बहुओं में से सबसे छोटी बहु विदुषी, सुशील और अच्छे चरित्रवान वाली स्त्री थी।
एक दिन सबसे बड़ी बहु ने सारी बहुओं से कहा कि घर को लीपने के लिए पीली मिट्टी की जरुरत है। हम सब बाहर चलकर खेतों से पीली मिट्टी ले आते हैं। तब सारी बहुएँ एक साथ डलिया और खुरपी लेकर चल दीं। जब वे बहुएँ मिट्टी खोद रहीं थीं तभी अचानक पेड़ के पास से एक सर्प निकला।
ऐसा देख कर सब डर गयीं। तब बड़ी बहु ने सर्प को खुरपी से मारना चाहा। लेकिन छोटी बहु ने ऐसा करने से उसे मना कर दिया। उसने कहा कि सर्प को नहीं मारना चाहिए, वह निरापराध है। ऐसा सुनकर बड़ी बहु छोटी बहु से नाराज हो गयी। फिर भी छोटी बहु के कहे अनुसार किसी ने भी उस सर्प को नहीं मारा।
तब छोटी बहु ने सर्प के सम्मुख हाथ जोड़कर कहा कि हे नाग ! आप यहीं रुकिए मैं घर जाकर दूध लेकर आती हूँ। तब वहां से सारी बहुएँ चली गयीं। जब वे घर चली गयीं तब घर जाकर छोटी बहु घर के कार्यों में इतनी उलझ गयी कि उसे याद ही नहीं रहा कि उसने सर्प को वहां इंतज़ार करने के लिए कहा था।
उसे अगले दिन याद आया और वह दौड़ती हुई दूध लेकर खेत में पहुंची। वह सर्प वहीँ पर उसका इंतज़ार कर रहा था। तब उसने सर्प को कटोरी में दूध दिया और माफ़ी मांगी। तब सर्प ने कहा कि कल तुमने मेरी जान बचाई है इस कारण मैं तुम्हे अपनी बहन मानता हूँ।
इसीलिए मैंने तुम्हे डसा नहीं क्योंकि कल तुमने मुझे यहीं इंतज़ार करने को कहा था लेकिन तुम भूल गयीं। लेकिन मेरी जान बचाने के कारण अब मैं तुम्हे अपनी बहन मानने लगा हूँ। इस तरह के वचन सुनकर वह छोटी बहु भी उस सर्प को अपना भाई मानने लगी।
इसके बाद दोनों अपने – अपने घर चले गए। फिर एक दिन वह सर्प मानव शरीर धारण कर अपनी छोटी बहन के यहाँ पहुँच गया। उसने कहा कि मैं आपकी छोटी बहु का भाई हूँ और उसे लेने आया हूँ। तब वहां उपस्थित सभी लोग आश्चर्यचकित हो उठे क्योंकि छोटी बहु के मायके में तो कोई उसका भाई नहीं है।
फिर ये कौन सा नया भाई आ गया। तब सर्प ने बोला कि मैं रिश्तेदार में आता हूँ, बचपन से ही दूर कहीं रह रहा था। अब मैं अपनी बहन को लेने आया हूँ। तब ससुराल वालों को विश्वास हुआ और छोटी बहु को उसके साथ भेज दिया।
तब रास्ते में उस सर्प ने बहन को बताया कि मैं वही सर्प हूँ जिसकी तुमने जान बचायी थी। तुम मुझसे डरना नहीं। मैंने अभी इंसान शरीर धारण किया है। तुम मेरे घर चलो वहां सभी तुम्हारा स्वागत करेंगे। तुमको जब भी डर लगे तो मुझे याद कर लेना, मैं वहां प्रकट हो जाऊंगा।
तुम्हे वहां कोई भी कुछ भी नुकसान नहीं पहुंचाएगा। तब दोनों घर पहुँच गए। छोटी बहु ने देखा कि सर्प का घर बहुत सुन्दर है, धन, ऐश्वर्य की कोई कमी नहीं है। इस तरह छोटी बहु अपने नए मायके में रहने लगी। जब वह छोटी बहु वहां ज्योति जलाकर पूजा करती थी तो उस ज्योति को नाग के मस्तक पर रख देती थी।
एक दिन उस नाग को गुस्सा आया लेकिन उसने सोचा चलो कोई बात नहीं क्योंकि ये अपने घर मेहमान बनकर आयी है । लेकिन अगले दिन बहु ने भूल वश फिर से वैसा ही किया। तब नाग को गुस्सा आया और उसने नागिन से कहा कि ये रोज ऐसा ही करती है , दीपक को मेरे मस्तक पर रख देती है जिससे मेरा मस्तक जल गया है।
आज रात को मैं इसे डस लूंगा। नागिन ने कहा कि ऐसा मत करना क्योंकि ये अपने यहाँ मेहमान बनकर आयी है। जब यह अपने घर वापस जाएगी तब आप इसे डस लेना। अभी इसको डसना नहीं चाहिए क्योंकि अभी ये अपने यहाँ बेटी के रूप में आयी है और इसने अपने बेटे की जान भी बचाई है। तब नाग मान गया।
कुछ दिन बाद छोटी बहु को उसके मायके से विदा किया गया, साथ में बहुत से हीरे जवाहरात भी दिए गए। एक ऐसा हार दिया गया जो बहुत सुन्दर और हीरे जड़ित था। उस हार की चर्चा दूर – दूर तक फ़ैल गयी कि छोटी बहु को उसके मायके से अद्भुत हीरे का हार मिला है।
इस बात की खबर वहां की रानी को भी लगी और उसने राजा से कहा कि उसे वही हार चाहिए। तब राजा ने मंत्री को आदेश दिया कि जाओ वह हार उस व्यापारी के यहाँ से ले आओ क्योंकि वही हार रानी को चाहिए। तब मंत्री वह हार उस व्यापारी के यहाँ से ले आया और डर के कारण व्यापारी को वह हार उसे देना पड़ा।
तब छोटी बहु बहुत दुखी हुई और अपने भाई को याद किया। तब वहां उसका भाई नाग प्रकट हो गया। उसने सारा वृतांत कह सुनाया और कहा कि भाई कुछ ऐसा करो कि वह रानी जब भी उस हार को पहने तो वह सांप बन जाये और जब मेरे पास आये तो वह फिर से हार बन जाये।
एक दिन रानी ने वह हार पहना और वह सांप बन गया तब उसने डर के कारण वह हार फेंक दिया और हार वापस व्यापारी को भिजवा दिया। छोटी बहु अपने भाई से बहुत खुश हुई। उधर दूसरी तरफ वह नाग उस बहु को डसने के लिए आना चाह रहा था लेकिन नागिन उसे रोक रही थी।
एक दिन उस नाग ने निर्णय किया कि आज तो वह वहां जायेगा और उसे डस ही लेगा। उस दिन श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी।
जब वह नाग छोटी बहु के यहाँ पहुंचा तो देखा कि वह विधि-विधान से नाग की पूजा कर रही थी और कच्चा दूध अर्पण कर रही थी। यह देख कर नाग प्रसन्न हुआ कि यह नाग की पूजा कर रही है और इसने उस दिन मेरे बेटे की जान भी बचाई थी।
इसने मेरे मस्तक पर दीपक रखकर मुझे जलाया नहीं होगा बल्कि भूलवश ऐसा किया होगा। अब मैं इसे नहीं डसूंगा। उस नाग ने जाते-जाते उसे वरदान दिया कि तुम्हारा घर हमेशा धन-समृद्धि से भरा रहेगा, कभी भी किसी भी चीज़ की कमी नहीं रहेगी।
इस प्रकार उस तिथि को हमेशा नाग – पंचमी के रूप में मनाया जाता है और नाग देवता की पूजा की जाती है।
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