साईं बाबा पर निबंध Essay on Sai Baba in Hindi

साईं बाबा पर निबंध Essay on Sai Baba in Hindi

शिर्डी के साँईं बाबा एक भारतीय धार्मिक गुरु थे, जिन्हें हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग पूजते हैं। शिर्डी के साँईं बाबा ने अपने आप को एक सच्चे सद्गुरु के रूप में समर्पित कर दिया था, लोग उन्हें भगवान का अवतार मानते थे।

साँईं बाबा लोगों को हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्म का पाठ पढ़ाया करते थे। उन्होंने लोगो को प्यार, दया, मदद, समाज कल्याण, संतोष, आंतरिक शांति और भागवन की भक्ति और गुरु का पाठ पढ़ाया।

और पढ़ें: शिर्डी के साईं बाबा का इतिहास व कहानी

साईं बाबा पर निबंध Essay on Sai Baba in Hindi

शुरुवात

साँईं बाबा का जन्म 28 सितम्बर सन् 1835 को महाराष्ट्र के पथरी गाँव में हुआ था। साँईं बाबा के माता पिता और बचपन के इतिहास के बारे में कोई जानकारी नही है। साँईं बाबा के बारे में जो थोड़ी बहुत जानकारी है, वह श्रीगोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर द्वारा लिखित ‘श्री साँईं सच्चरित्र’ से मिलती है।

मराठी में लिखित इस मूल ग्रंथ का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। यह साँईं सच्चरित्र पुस्तक साँईं बाबा के जिंदा रहते ही सन् 1910 से लिखना शुरू कर चुके थे। सन् 1918 के समाधिस्थ होने तक इसका लेखन चला। साँईं बाबा ने एक बार अपने भक्त को बताया कि “मैं ब्राह्मण कुल में पैदा हुआ हूँ। मेरा जन्म पथरी गाँव मे हुआ था। मेरी माताजी ने मुझे एक फ़कीर को सौंप दिया था”।

शिर्डी में तपस्या

इस कथन से यह पता चलता है कि साँईं बाबा का पालन पोषण किसी फ़कीर के यहाँ हुआ था। साँईं बाबा 16 वर्ष की उम्र में अहमदनगर जिले के शिर्डी गाँव में पहुँचे। यहाँ पर उन्होंने एक नीम के पेड़ के नीचे आसन पर बैठकर तपस्वी जीवन बिताना शुरू कर दिया।

जब गाँव वालो ने उन्हें देखा तो वो अचम्भित रह गये क्योंकि इतने युवा व्यक्ति को इतनी कठोर तपस्या करते हुए उन्होंने पहले कभी नही देखा था। लोगों ने देखा कि साईं बाबा तपस्या में इतने लीन हैं कि उन्हें ठंडी, गर्मी तथा बरसात का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था।

तक़रीबन 4 से 5 साल तक साँईं बाबा उसी नीम के पेड़ के निचे रहते थे और कभी-कभी लम्बे समय के लिए शिर्डी के जंगलो में भी चले जाते थे। वे शिर्डी के लोगो से भिच्छा माँग कर अपना जीवन यापन करते थे।

कुछ समय बाद लोगो ने उन्हें एक पुरानी मस्जिद रहने के लिए दी, उस मस्जिद को साँईं बाबा ने द्वारकामाई नाम दिया था। वहाँ वे लोगो से भिक्षा माँगकर रहते थे और वहाँ उनसे मिलने रोज़ बहुत से हिन्दू और मुस्लिम भक्त आया करते थे।

धुनी

साँईं बाबा मस्जिद में पवित्र धार्मिक आग भी जलाते थे जिसे उन्होंने धुनी का नाम दिया था। लोगों के अनुसार उस धुनी में एक अद्भुत चमत्कारिक शक्तियाँ थी, उस धुनी से ही साँईं बाबा अपने भक्तों को उधि(राख़) देते थे।

उस उधि में एक अद्भुत ताकत होती थी, जो हर प्रकार की बीमारी का रामबाण इलाज होती थी। संत के साथ-साथ वे एक स्थानिक हकीम की भूमिका भी निभाने लगे थे और बीमार लोगो को अपनी धुनी से ठीक किया करते थे।

धीरे-धीरे शिर्डी के लोगों का साँईं बाबा पर विश्वास बढ़ता गया और वहां के लोग उन्हें अपना हकीम मानने लगे थे। शिर्डी में किसी को भी कोई भी समस्या होती थी तो वह साँईं बाबा के पास जाता था और साँईं बाबा अपनी धूनी में से थोड़ी सी उधि निकालकर दे देते थे।  जिससे उसकी सारी समस्याएं दूर हो जाती थी।

सन् 1910 ई. के बाद साँईं बाबा की प्रसिद्धि मुंबई तक फ़ैल गयी। अनेक लोग उनसे मिलने आने लगे क्योंकि वे साँईं बाबा के चमत्कारी तरीकों के कारण उन्हें संत मानते थे। साँईं बाबा ने “सबका मालिक एक” का नारा दिया था जिससे हिन्दू, मुस्लिम सद्भाव बना रहे। उन्होंने अपने जीवन में हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मो का अनुसरण किया। साँईं बाबा हमेशा अपनी जुबान से “अल्लाह मालिक ” बोला करते थे।

शिर्डी के साँईं बाबा के भक्तों का पूजा करने का प्राथमिक स्थान मस्जिद और चावड़ी मंदिर है, जो उनके जीवनकाल के दौरान ही बनाए गए थे। ये अब भव्य रूप से पुर्निमित किए गये हैं। शिर्डी का मुख्य मन्दिर साँई बाबा की समाधि स्थल है जहाँ साँईं बाबा ने समाधि ली थी।

साईं बाबा की संगमरमर की मूर्ति यहाँ स्थापित की गई है, जो इस मंदिर में भक्तों द्वारा पूजी जाती है। मुख्य मंदिर के बड़े से हॉल में प्रत्येक दिन प्रार्थना और दर्शन के लिए आये सैकड़ों भक्तों को बैठने की व्यवस्था की गई है।

मंदिर

मुख्य मंदिर के अलावा, मंदिर परिसर में एक खंडोबा मंदिर है तथा एक क्षेत्रीय देवता का मंदिर है जिसमें संत, फकीर की पूजा की जाती है। मंदिर परिसर में एक जगह है, जहाँ एक नीम के पेड़ की पूजा की जाती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस नीम के पेड़ के नीचे साँईं बाबा के गुरु को दफनाया गया था। वह मस्जिद जहाँ साँईं बाबा अपने जीवन का सबसे अधिक समय व्यतीत किये थे, वह पवित्र स्थान द्वारकामाई है, जो परिसर में निहित है।

मंदिर परिसर में शिव, गणेश और शनि के कई छोटे छोटे मंदिर हैं। मंदिर में एक संग्रहालय भी है, जो अपने निजी लेखों के उपयोग को प्रदर्शित करता है। वर्तमान मंदिर अहमदनगर जिले के श्री साँईं बाबा संस्थान ट्रस्ट द्वारा प्रशासित है।

भक्तों के लिए मंदिर परिसर के मध्य में रेलिंग से कई पंक्तिया बनाई गई है जिसमे भक्त, बाबा के दर्शन के इंतजार में खड़े रहते हैं। मंदिर परिसर में सभी बुनियादी सुविधाएँ हैं जैसे पीने का पानी, विश्रामगृह, बैठने और आराम करने के लिए स्थान। मंदिरों में धार्मिक वस्तुएँ, किताबें, चित्र और खाद्य पदार्थों की बिक्री करने वाली, कई दुकाने भी मंदिर के चारो तरफ मौजूद हैं।

साँईं बाबा की समाधि के सौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में शिर्डी में 17 से 19 अक्टूबर, 2018 को साँईं दरबार सजाया गया। 15 अक्टूबर 1918 को बाबा ने शिर्डी में समाधि ली थी। दरबार में 30 राज्यों और 20 देशों के 10 लाख से ज्यादा श्रद्धालु शामिल हुए। शिर्डी संस्थान के सीईओ रूबल अग्रवाल के द्वारा 1922 में साँईं बाबा मंदिर को ट्रस्ट के रूप में रजिस्टर किया गया था।

उस समय ट्रस्ट की सालाना आय लगभग 3200 रुपए थी। आज ट्रस्ट की सालाना आय 371 करोड़ रुपए हो गई है। इन तीन दिनों में प्रतिदिन करीब एक लाख श्रद्धालुओं के द्वारा यहां की रसोई में भोजन किया गया। भाेजन परोसने के लिए एक हजार सेवकों ने तीन शिफ्ट में सेवाएं दी। पूरा मंदिर परिसर 35 लाख रुपये खर्च कर फल और फूलों से सजाया गया। इसके लिए साढ़े सात टन फूल मंगवाए गए थे।

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