विश्व पोलियो दिवस पर निबंध Essay on World Polio Day in Hindi
विश्व पोलियो दिवस प्रति वर्ष 24 अक्टूबर को मनाया जाता है। वैश्विक स्तर पर कई पोलियो मुक्त कार्यक्रमों तथा अभियानों के तमाम प्रयासों के बाद समस्त विश्व में पोलियो जैसी घातक बीमारी के प्रभाव को 99% तक कम किया जा चुका है। पश्चिमी देशों में वर्तमान समय में पोलियो पूरी तरह समाप्त हो चुका है।
विश्व पोलियो दिवस पर निबंध Essay on World Polio Day in Hindi
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पोलियो एक घातक बीमारी है, जिसके आतंक से कई देश सदियों से त्रस्त हैं। इस कुख्यात जानलेवा बीमारी की चपेट में आकर संयुक्त राज्य अमेरिका में वर्ष 1916 में करीब 6,000 लोगों की जान चली गई तथा 27,000 लोग हमेशा के लिए विकलांग हो गए।
पोलियो या पोलियोमेलाइटिस, एक घातक उग्र स्वरुप की संक्रामक बीमारी है। इसमें पोलियो के विषाणु व्यक्ति की तंत्रिका तंत्र पर हमला करते हैं। इस हमले के कुछ घंटों के भीतर ही यह अपने विषैले रूप से व्यक्ति के तंत्रिका तंत्र को पूरी तरह पंगु कर देता है, जिससे वह अपंग हो जाता है। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे पोलियो रोग के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं।
पोलियो विषाणु का वर्णन तीन प्रकार से किया जा सकता है: टाइप 1, टाइप 2 तथा टाइप 3। सौभाग्यवश टाइप 2 विषाणु का प्रभाव काफी कम किया जा चुका है। परंतु टाइप 1 तथा टाइप 3 विषाणु अभी भी अफगानिस्तान, अफ्रीका तथा अन्य देशों में सक्रिय है।
प्रसार- मार्ग:
पोलियो विषाणु मनुष्य की आंत में प्रवेश मुख तथा विष्ठा के माध्यम से करते हैं, जब कभी मुख अथवा विष्ठा किसी पोलियो संक्रमित सतह अथवा परत के संपर्क में आते हैं।
यह विषाणु तब अधिक गतिशील तथा सक्रिय हो जाते हैं, जब यह किसी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते हैं। इसके अलावा आस- पास के गंदे वातावरण में अथवा अशुद्ध जल को ग्रहण करने से इसके फैलने का खतरा और अधिक बढ़ जाता है।
यह बीमारी व्यक्ति में करीब 2 सप्ताह तक बनी रहती है, परंतु इसके द्वारा होने वाले नुकसान की भरपाई नही की जा सकती है और यह जीवन भर के लिए व्यक्ति को अपंग बना देती है।
पोलियो के लक्षण:
यह जानना भी ज़रूरी है कि 90 से 95% पोलियो के रोगियो में बीमारी का किसी भी प्रकार का लक्षण दिखाई नही पड़ता है, इसलिए विज्ञान की भाषा में इसे अलक्षणीय पोलियो कहा जाता है। जिन 5 से 10% मामलों में पोलियो रोग के लक्षण दिखाई पड़ते हैं, उसे लक्षणीय पोलियो कहा जाता है, तथा यह बीमारी तीन प्रकार से हो सकती है:-
अविकसित पोलियो
पोलियो के इस प्रकार में, रोगी में फ्लू बीमारी के जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं। सूखा कंठ, फेफड़ों में संक्रमण, डायरिया तथा रोगी द्वारा स्वयं को अस्वस्थ महसूस करना इत्यादि इसके कुछ सामान्य लक्षण हैं।
अपक्षाघाती पोलियो
इसके लक्षण करीब 5 से 10% रोगियों में दिखाई पड़ते हैं। ऐसे रोगियों में स्नायविक लक्षण जैसे कि कड़ी गर्दन तथा प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता आदि लक्षण दिखाई पड़ते हैं।
पक्षाघाती पोलियो
यह पोलियो का एक गंभीर स्वरुप है, जो कि 0.1 से 2% रोगियों में हो सकता है। इस विषाणु के कारण मांसपेशियां पंगु हो जाती हैं। श्वसन समस्याओं के साथ ही साथ इस रोग में अंगों की गतिशीलता बिल्कुल ही सीमित हो जाती है। बहुत गंभीर मामलों में, इस प्रकार के पोलियो में रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।
पोलियो की पहचान:
रोगी द्वारा दिखाए गए लक्षणों की जाँच डॉक्टर द्वारा की जाती है। रोग की पुष्टि के लिए, रोगी के मल, मस्तिष्कमेरु द्रव, अथवा कंठ से आने वाले स्त्राव के नमूने प्रयोगशालाओं में पोलियो विषाणुओं की उपस्थिति की जाँच के लिए भेजे जाते हैं।
उपचार– टीकाकरण, एकमात्र उपाय:
चूँकि पोलियो के उपचार की कोई निश्चित दवा अभी तक नही बनाई जा सकी है, इसलिये इसे फैलने से रोकना ही सबसे बेहतर उपाय है। पोलियो को रोकने का एकमात्र कारगर उपाय पोलियो का टीकाकरण ही है। पल्स पोलियो अभियान के अंतर्गत निर्देशित अंतरालों पर कुछ विशेष प्रकार के सामूहिक टीके लगाये जाते हैं, जो कि विषाणु के प्रभाव को कम करते हैं।
स्वाभाविक रूप से, वातावरण की उचित स्वच्छता भी काफी हद तक इस बीमारी के प्रभाव को रोकने में मदद करती है।
पोलियो टीका:
टीकाकरण अभियान के तहत मुख्यतः दो प्रकार के टीके लगाये जाते हैं। जो निम्नलिखित हैं:
i) निष्क्रिय पोलियो टीका अथवा आई. पी. वी.
इसका प्रयोग वर्ष 1995 से किया जा रहा है। इस टीके में पोलियो के निष्क्रिय विषाणु मौजूद होते हैं, जो पैर अथवा हाथ से शरीर में प्रवेश कराए जाते हैं।
ii) ओरल पोलियो टीका अथवा ओ. पी. वी.
इसका प्रयोग वर्ष 1961 से किया जा रहा है, तथा इसमें पोलियो विषाणु सौम्य अवस्था में मौजूद रहते हैं। इस टीके को बूँद-बूँद करके रोगी को पिलाया जाता है। चिकित्सिकीय क्षेत्र में ओ. पी. वी. टीका कुछ विवादों में बना हुआ है, क्योंकि इसके प्रयोग के कुछ दुष्प्रभाव भी सामने उभरकर आये हैं। ओ. पी. वी. के प्रयोग से कुछ मामलों में रोगी के अपंग होने की खबरें भी सामने आई हैं।
इसी कारण से संयुक्त राज्य अमेरिका में ओ. पी. वी. के प्रयोग को पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया गया है तथा अब वहां पर सिर्फ आई. पी. वी. टीके का ही प्रयोग किया जाता है। वहीं भारत में आज भी, ओ. पी. वी. टीका ही सम्पूर्ण पल्स पोलियो अभियान की रीढ़ की हड्डी बना हुआ है।
प्रयोग की विधि:
पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत जारी किये गए निर्देशों के अनुसार, बच्चे के जन्म से लेकर 5 वर्ष तक की आयु के मध्य पोलियो टीके के 4 डोज़ लेना अनिवार्य है।
- पोलियो टीके का पहला डोज़ शिशु के जन्म के 2 महीनों के बाद दिया जाता है।
- पोलियो टीके का दूसरा डोज़ शिशु के जन्म के चार महीने पश्चात् दिया जाता है।
- पोलियो टीके का तीसरा डोज़ शिशु के जन्म के 6 से 18 महीनो की मध्य अवधि में दिया जाता है।
- पोलियो टीके का चौथा और अंतिम डोज़, जिसे बूस्टर डोज़ भी कहा जाता है, शिशु के जन्म के 4 से 6 वर्ष की मध्य अवधि में दिया जाता है।
भारत में पोलियो अभियान :
भारत में पोलियो के खिलाफ अभियान सर्वप्रथम वर्ष 1978 में ‘एक्सपैंडेड प्रोग्राम ऑन वैक्सीनेशन( ई. पी. ओ.)’ के तहत शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम के तहत करीब 40% से भी अधिक बच्चों को ओरल पोलियो टीके के 3 डोज़ दिए गए। इस कार्यक्रम की सामूहिक सफलता को देखते हुए, इस कार्यक्रम को देश के अन्य कई जिलों तथा शहरों में भी लागू किया गया।
पोलियो के खिलाफ मुहिम को और गति प्रदान करते हुए, वर्ष 1995 तथा 1996 में पल्स पोलियो अभियान के तहत 3 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को शामिल किया गया, जिससे कि पोलियो को भारत से जड़ से मिटाया जा सके।
पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान की जबरदस्त सफलता तथा अधिक पहुँच के बावजूद, यह पूरी तरह से बीमारी ख़त्म नही की जा सकी। 1998 तथा 1999 में पोलियो के कुछ नए मामले भी सामने आये। विश्लेषण के बाद यह पता चला कि अभी भी 5 से 6% प्रतिशत बच्चे पोलियो के टीकाकरण अभियान से दूर रह गए थे।
इस समस्या को दूर करने के लिए पल्स पोलियो अभियान में एक नया मोड़ जोड़ा गया। इस अभियान के तहत आशा तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा छोटे बच्चों को घर- घर जाकर पोलियो की दवा पिलाई गई। यह आश्चर्यजनक था, कि जो 2.3 करोड़ से भी अधिक बच्चे पोलियो की खुराक से वंचित रह गए थे, उन्हें इन कार्यकर्ताओं के द्वारा उनके घर पर जाकर पोलियो ड्राप दी गई।
विश्व पोलियो दिवस: सन्देश
यह अनिवार्य है कि हर बच्चे को पोलियो जैसी खतरनाक बीमारी से बचाने के लिए निर्देशित तथा निश्चित समयावधि पर पोलियो की दवा तथा टीका प्रदान किया जाये। विश्व पोलियो दिवस का अधिभावी संदेश यही है कि लोगों के बीच 5 वर्ष से छोटे बच्चों के पोलियो टीकाकरण के लिए अधिक से अधिक जागरूकता फैलाई जाये, जिससे कि पूरे संसार को पोलियो जैसी भयावह बीमारी से मुक्त किया जा सके।