मौलिक अधिकारों पर निबंध (फंडामेंटल राइट्स) Essay on Fundamental Rights of India in Hindi

मौलिक अधिकारों पर निबंध (फंडामेंटल राइट्स) Essay on Fundamental Rights of India in Hindi

मौलिक अधिकार मानवीय अधिकार होते है जिनके आभाव में कोई भी नागरिक अपना जीवन खुशहाल तरह से नही जी सकता है। विश्व के सभी देशो के अपने-अपने मौलिक अधिकार है।

हमारे देश में पहले 7 मौलिक अधिकार प्रदान किये गये थे, पर 44वें संविधान संशोधन 1978 में इसको समाप्त करके “विधिक अधिकार” बना दिया गया है। वर्तमान में नागरिको को मुख्य रूप से कुल 6 मौलिक अधिकार प्राप्त है। हमारे देश का संविधान डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने बनाया है।

  • प्रो.लास्की  ‘‘अधिकार सामाजिक जीवन कि वे बुनियादी परिस्थितियाँ हैं जिसके बिना साधारणतया कोर्इ मनुष्य अपना पूर्ण विकास नहीं कर सकता’’
  • श्री ए.एन.पालकीपाल ने कहा है- ‘‘मौलिक अधिकार राज्य के निरंकुश स्वरूप से साधारण नागरिकों की रक्षा करने वाला कवच है।’’ 
  • न्यायाधीश के. सुब्बाराव के अनुसार – ‘‘परम्परागत प्राकृतिक अधिकारों का दूसरा नाम मौलिक अधिकार है।’

मौलिक अधिकारों पर निबंध (फंडामेंटल राइट्स) Essay on Fundamental Rights of India in Hindi

इन अधिकारों के बारे में हम आपको विस्तार से बतायेंगे। भारत के संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 में मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है जो देश के नागरिकों को प्राप्त है। इन अधिकारों की मदद से नागरिक शांतिपूर्वक अपना जीवन यापन कर सकते है।

स्वतंत्रता का अधिकार (RIGHT TO FREEDOM)

यह अनुच्छेद 11-12 में वर्णित है। इस अधिकार के अंतर्गत देश में कही पर जाकर जीविकोपार्जन कर सकते है, कही भी निवास कर सकते है, देश के नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी है। देश में कही भी आने जाने की आजादी है।

यूनियन बनाने, संघ बनाने का अधिकार है। पर किसी ऐसे संघ को नही बना सकते जो देश को हानि पहुँचाता हो। देश के नागरिकों को अपराध करने पर दोषसिद्धि होने तक संरक्षण है।

शांतिपूर्वक बिना हथियार के एकत्रित होने और सभा करने की आजादी है। अपनी पसंद का व्यवसाय करने की आजादी है। देश के किसी भी हिस्से में सम्पत्ति खरीदने, बनाने और बेचने का अधिकार है।

किसी व्यक्ति को एक बार अपराध के लिए 2 बार दोषी नही ठहराया जा सकता है। किसी भी व्यक्ति को स्वयं के खिलाफ गवाह के रूप में खड़ा करने के लिए मजबूर करने की अनुमति नही है। देश में किसी भी स्थान पर भ्रमण करने का अधिकार है।

संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार (CULTURAL AND EDUCATIONAL RIGHTS)

यह अनुच्छेद 29-30 में वर्णित है। किसी भी जाति, धर्म, समुदाय के लोगो को अपनी संस्कृति को सुरक्षित करने की आजादी है। देश के सभी बच्चो को शिक्षा का अधिकार प्राप्त है।

अपनी भाषा, लिपि को बचाने का अधिकार प्राप्त है। अल्‍पसंख्‍यक-वर्गों को अपने संरक्षण करने का अधिकार है। ऐसे वर्गों को अपने विकास के लिए स्कूल, कॉलेज, शिक्षण संस्था खोलने का अधिकार है।

संवैधानिक उपचारों का अधिकार (RIGHT TO CONSTITUTIONAL REMEDIES)

यह अनुच्छेद 32-35 में वर्णित है। यह संविधान बहुत ही प्रशिद्ध है। इसको “संविधान की ह्रदय और आत्मा” कहा जाता है। देश के किसी भी नागरिक को अन्याय होने पर न्यायालय में जाने का अधिकार है।

इसके अंतर्गत 5 अधिकार सम्मिलित है-

परमादेश

परमादेश न्यायालय द्वारा पारित किया जाता है जब उसे लगता है की कोई सरकारी अधिकारी अपने कर्तव्य का पालन सही तरह से नही कर रहा है।

अधिकार पृच्छा

यह भी न्यायालय द्वारा पारित किया जाता है जब उसे लगता है की कोई व्यक्ति किसी सरकारी पद पर नियुक्त हो गया है जिसपर उसका कोई कानूनी अधिकार नही है। न्यायालय यह आदेश जारी करके उस व्यक्ति को काम करने से रोक देता है।

निषेधाज्ञा

जब कोई निचली अदालत अपने अधिकार क्षेत्र के दायरे से बाहर किसी मुकदमे की सुनवाई करती है तो ऐसी स्तिथि में उपरी अदालत निषेधाज्ञा जारी करके निचली अदालत को रोक देती है।

उत्प्रेषण रिट

जब कोई सरकारी अधिकारी या निचली अदालत बिना अधिकार के कोई काम करता है तो उपरी अदालत उत्प्रेषण रिट जारी करके उस काम या मुकदमे को उपरी अदालत या सक्षम अधिकारी को हस्तांतरित कर देता है।

बन्दी प्रत्यक्षीकरण

इस आदेश को पारित करके न्यायालय किसी भी सरकारी अधिकारी, नेता, व्यक्ति, देश के नागरिक को वाद होने की स्तिथि में न्यायालय के सामने प्रस्तुत होने का आदेश दे सकता है।

समानता का अधिकार (RIGHT TO EQUALITY)

यह अनुच्छेद 31 में वर्णित है। इसके अंतर्गत संविधान की नजर में सभी लोग एक समान है चाहे वो किसी भी जाति, धर्म, लिंग, समुदाय के क्यों न हो। स्त्री- पुरुष दोनों एक समान है। देश में किसी भी व्यक्ति से जाति, लिंग, समुदाय के आधार पर भेदभाव नही किया जा सकता है। अस्पृश्यता पर प्रतिबंध है।

सार्वजनिक स्थानों जैसे- पूजा स्थल, अस्पताल, रेलवे स्टेशन, बस अड्डा, हवाईअड्डा, सिनेमाघर जैसी जगह पर कोई भी जाति, धर्म, लिंग, समुदाय का व्यक्ति जा सकता है। कोई रोक टोक नही है। अपवाद के तौर पर पिछड़ी और अल्पसंख्यक जातियों, जनजातियों के लिए सरकारी नौकरी में कुछ पद आरक्षित कर दिए गये हैं।

धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (RIGHT TO FREEDOM OF RELIGION)

यह अनुच्छेद 25-27 में वर्णित है। इसके अंतर्गत देश का कोई भी व्यक्ति अपने पसंद के धर्म का पालन कर सकता है, अपने धर्म का प्रचार कर सकता है। सिखों को कटार रखने की अनुमति है। धार्मिक उत्सव मनाने की आजादी है। स्कूल, कॉलेजो में धार्मिक शिक्षा देने की अनुमति है।

केंद्र या राज्य सरकार किसी भी नागरिक को उसका धर्म रखने, अभ्यास करने और प्रसार- प्रचार करने से नही रोक सकती है और न ही कोई बाधा उत्पन्न कर सकती है। इसके अपवाद में धार्मिक कट्टरता और धार्मिक उन्माद फैलाने पर रोक है।

शोषण के विरुद्ध अधिकार (RIGHT AGAINST EXPLOITATION)

भारत का संविधान देश के किसी भी व्यक्ति को शोषण के विरुद्ध अधिकार देता है। यह अनुच्छेद 23-24 में वर्णित है। दुर्व्यपार जिसमे कम मजदूरी देकर अधिक कार्य लेना, बाल मजदूरी पर रोक है। फैक्ट्री, कारखानों में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे काम नही कर सकते है जहाँ पर उनकी जान खतरे में हो।

किसी भी शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने का अधिकार है। कोई भी व्यक्ति किसी का फायदा नही उठा सकता है। देश में भीख माँगना अपराध है। इसके साथ मानव तस्करी, मनुष्यों की खरीद- फरोक्त करना भी बड़ा अपराध माना गया है। किसी भी बच्चे, स्त्री, पुरुष का शारीरिक रूप से शोषण करना अपराध है। मजदूरी के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की गयी है।

मौलिक अधिकार की विशषताएं Characteristics of Fundamental Rights

  • यह सरकार की निरंकुशता पर रोक लगाता है
  • यह आम नागरिक को सशक्त बनाता है
  • यह राष्ट्रीय भावना को ध्यान में रखकर बनाया गया है
  • यह सीमित मात्रा में है जिससे नागरिक निरंकुश न बन सके
  • इसे न्यायालय द्वारा संरक्षण प्राप्त है
  • यह देश के नागरिको और विदेशी नागरिको में अंतर करता है
  • मौलिक अधिकार राज्य के कानून से उपर है
  • यह व्यावहारिकता के आधार पर बनाया गया है
  • यह देश की शांति, समृद्धि और खुशहाली के लिए आवश्यक है

निष्कर्ष Conclusion

किसी भी देश का संविधान उस देश की आत्मा और प्राण होता है, ठीक उसी तरह भारत का संविधान भी इसकी आत्मा है। आज मौलिक अधिकारों की बदौलत देश के नागरिक शांतिभाव से अपना जीवन यापन कर रहे है। यह हमारे लिए बहुत ही जरूरी है।

पर अधिकार के साथ कर्तव्य भावना भी होनी चाहिये। देश खुशहाल और समृद्धि तभी बन सकता है जब हम सभी अधिकारों के साथ साथ अपना कर्तव्य पालन भी करते रहेंगे। आज का लेख आपको कैसा लगा, कमेन्ट करके बतायें।

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