अमरावती स्तूप का इतिहास और वास्तुकला History of Amaravati Stupa in Hindi
इस लेख में हमने अमरावती स्तूप का इतिहास और वास्तुकला (History of Amaravati Stupa in Hindi) के विषय में पूरी जानकारी दी है। यह बौध धर्म से जुड़ा एक प्रसिद्द स्तूप है। इसको अमरावती स्तुपम भी कहा जाता है।
आईये जानते हैं – अमरावती स्तूप का इतिहास और वास्तुकला …
मुख्य जानकारी Introduction
भगवान बुद्ध ने सकारात्मक जीवन शैली को दुनिया तक पहुँचाने के लिए जब लोगों का आवाहन किया तो हज़ारो लोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया और चारों दिशाओं में फ़ैल गएँ।
जहाँ-जहाँ वे रुकें वहां उनके व्यवस्था के अनुरूप कुटीया ,पंडाल और भवन का निर्माण किया गया जहाँ से वे उस स्थान के लोगों को धर्म के प्रति जागृत करते थे कुछ समय बाद वे वहां से पुनः दुसरे जगह प्रस्थान कर जाते थे और उस पुराने स्थान पर वही पुराने कार्यक्रम चालू रहता था। स्तूप भी उन्ही स्थानों में से एक हैं।
उत्खनन के बाद बहुत से नए स्तूप, चैत्य,और विहार के अवशेष मिले जिनमे से Amaravati stupa एक विशेष स्तूप है। अमरावती को महाचैत्य भी कहा जाता है क्योंकि यह अमरावती का विशेष और आकर्षक शिल्प स्थापत्य का नमूना है।
अमरावती स्तूप की वास्तुकला Architecture of Amaravati Stupa in Hindi
अमरावती स्तूप यह आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के अमरावती गाँव में स्थित है ऐसा माना जाता है की इस स्तूप को महान सम्राट अशोक ने बनवाया था जिसे बनने में लम्बा समय लगा था जो 200 वर्ष ईसा पूर्व तक बनकर तैयार हो गया था।
अमरावती स्तूप को बनाने में बेहतरीन शिल्प कला का उपयोग हुआ है। जब अमरावती स्तूप का निर्माण पूरा हुआ तब यह पुरे भारत का अद्वितीय स्थापत्य था अमरावती के विशालता और अनोखेपन के वजह से इसे सातवाहन शाशकों की राजधानी बनायीं गयी और स्तूप को चुने के पत्थर से सजाया गया और भगवान् बुद्ध की प्रतिमा को और भी बेहतरीन तरीके से शिल्पित किया गया।
अमरावती स्तूप यह साँची के स्तूप जैसा ही दीखता है आमतौर पर स्तूप के ऊपर एक विशाल गोलाकार गुम्बद या वेदिका का निर्माण किया गया होता है जिसपर भगवान बुद्ध की प्रतिमा और उनके सद्वाक्य तराशे गए होते हैं। अमरावती स्तूप को 95 फीट के चार विशाल और मजबूत खम्भों के मदद से एक आकर्षक आकार दिया गया। अमरावती स्तूप घंटाकृति में बना है। इस स्तूप में पाषाण के स्थान पर संगमरमर का प्रयोग किया गया है।
इन अवशेषों के आधार पर कहा जा सकता है कि अमरावती में वास्तुकला और मूर्तिकला के बेहतरीन उपयोग की शैली अद्वितीय थी। यहाँ से प्राप्त मूर्तियों की कोमलता एवं भाव-भंगिमाएँ बेहद अनोखी होने के साथ बेहद बारीक भी हैं जिन्हें समझना थोड़ा कठिन हैं।
प्रत्येक मूर्ति का अपना महत्व, विशेषता और आकर्षण है। कमल के फूल का चित्रण बड़े ही आकर्षक ढंग से किया गया है। अमरावती के स्तूप पर अनेक दृश्यों का चित्रण एक साथ किया जाना इस काल के शिल्प की प्रमुख विशेषता मानी जाती है। बुद्ध की मूर्तियों को किन्ही इंसानों के जगह चिन्हों का प्रयोग किया गया है, जिससे पता चलता है कि अमरावती शैली, मथुरा शैली और गान्धार शैली से पुरानी है।
अमरावती स्तूप का इतिहास History of Amaravati Stupa in Hindi
एक समय पर ज्ञान और उत्थान का केंद्र माने जाने वाले इन स्तूपों का अस्तित्व ही ख़तम हो गया था जिसका एक कारण था अंग्रेजों का हमारे संस्कृतियों पर सीधा प्रहार जिसमें नालंदा विश्वविद्यालय जैसे महान ग्रंथागार भी शामिल है। अमरावती जैसे अनेक स्थापत्य या तो खंडहर हो गए या तो उन्हें ध्वंश कर दिया गया।
कुछ स्थापत्यों को इस्लामिक आक्रान्ताओं ने नष्ट कर दिया या उन्हें मस्जिद का रूप दे दिया और कुछ को अंग्रेजों ने अपने अधीन लेकर उनमें से महत्वपूर्ण स्थापत्यों को अपने साथ ले जाते रहें और इसी प्रकार भारत के अनेकानेक स्थापत्य का नामों निशान समाप्त होता गया।
ईस 1796 में कर्नल मकैंज़ी ने इस स्थान के दौरे के बाद यहाँ पर खुदाई कराई गई और इस स्तूप के साथ और बहुत से अनोखी मूर्तियाँ और लिपियाँ भी निकाली गयी ।
वास्तुकला और मूर्तिकला के इस भव्य स्तूप के जो भी अवशेष मिले थे उनमें से कुछ ब्रिटिश, लंदन, कोलकाता, चेन्नई और राष्ट्रीय म्यूजियम में सुरक्षित रखा गया है। अमरावती स्तूप पुरे दक्षिण भारत का एकमात्र स्तूप है जो किसी समय पर आंध्र प्रदेश का सबसे विशाल स्तूप माना जाता था।
अमरावती स्तूप यह एक समय पर शिल्प-स्थापत्य का एक बेहतरीन नमूना था लेकिन बौद्ध धर्म प्रचार में कमी के कारण इन स्तूपों का उपयोग बिलकुल ही बंद हो गया और ये जर्जर होने लगे और एक समय पे इनका आधा भाग जमीन में दब कर विलुप्त हो चुका था।
अमरावती के इस स्तूप के भव्य नक्काशियों से न केवल आनंद मिलता है बल्कि बुद्ध के द्वारा दिए गए संदेशों को जीवन में उतारने का एक मौका मिलता है। इस स्तूप को देखने देश-विदेश से लोग आते हैं। 2015 में भारत के प्रधानमंत्री ने इन भव्य सांस्कृतिक विरासतों के देख-रेख और विस्तार के लिए आर्थिक सहाय और मार्गदर्शन भी दिए हैं ताकि इन विरासतों के मूल्यों को जीवित रखा जा सकें। भारतीय उत्खनन विभाग और भी सक्रीय हो गया है ताकि ऐसे विरासतों की रक्षा की जा सके जिनमें हमारी विशाल संस्कृति के दर्शन होते हों।
बहुत अच्छी जानकारी, अमरावती के स्तूप की मिली । इसके प्रति आभार व्यक्त करता हूं।
अमरावती एक जिला बनने जा रहा है, इसके बारे में जानकारी दें।
Extremely nice post … A lot of thanks for Best knowledge..