तानसेन की कहानी और इतिहास History and Story of Tansen in Hindi

तानसेन की कहानी और इतिहास History and Story of Tansen in Hindi

तानसेन एक महान संगीतकार थे। सम्राट अकबर ने उन्हें “नवरत्न” की उपाधि दी थी। संगीत में उनके मुकाबले कोई नहीं था। वह संगीत से चमत्कार कर देते थे। जब तानसेन दीपक राग आते थे तो चारों तरफ आग लग जाती थी। जब मेघ मल्हार राग गाते थे तो बादल बारिश करने लगते थे।

तानसेन को एक चमत्कारिक संगीतकार और गायक माना जाता है। उनका रंग सांवला था पर वे सफेद कपड़े पहनते थे। कमर पर पट्टा बांधना पसंद करते थे और सिर पर सफेद पगड़ी होती थी। उनकी मूंछ हमेशा पतली रहती थी। तानसेन के पुराने चित्रों से उनके रूप रंग, कद काठी के बारे में पता चलता है।

5 साल की उम्र तक तानसेन को स्वर का कोई ज्ञान नहीं था। संगीतकार गुरु हरिदास ने उनको अपना शिष्य बनाया और संगीत की शिक्षा देनी शुरू की। उन्हें तानसेन में प्रतिभा दिखती थी। धीरे धीरे तानसेन की प्रसिद्धि चारों ओर होने लगी।

तानसेन की कहानी और इतिहास History and Story of Tansen in Hindi

संछिप्त परिचय About Tansen

  • असली नाम-  रामतनु पांडे
  • जन्म- 1506
  • जन्म स्थान-  ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
  • पिता- मुकुंद पाण्डेय
  • मृत्यु- 1589
  • मृत्यु स्थान-  दिल्ली
  • कब्र-  ग्वालियर
  • कलाक्षेत्र- संगीत
  • शैली-  हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत

जन्म Birth

तानसेन का जन्म 1506 को ग्वालियर (मध्य प्रदेश) से लगभग 45 कि॰मी॰ दूर बेहट ग्राम में हुआ था। तानसेन के पिता का नाम मुकुंद पांडे था। वह एक महान गायक और संगीतकार थे।

बचपन से ही बालक तानसेन पशु पक्षियों की आवाजों  की नकल किया करते थे। वे खतरनाक जानवरों की आवाजें निकाल कर लोगों को डराया करते थे। एक दिन स्वामी हरिदास ने उनकी प्रतिभा को देखा।

विभिन्न पशु पक्षियों की बोलियों की नकल करते हुए देखकर वे काफी प्रभावित हुए। उसके बाद ही उन्होंने तानसेन को अपना शिष्य बना लिया। स्वामी हरिदास से शिक्षा लेने के बाद तानसेन हजरत मोहम्मद गौस के पास संगीत सीखने चले गए।

विवाह Marriage

तानसेन का विवाह हुसैनी से हुआ था जो रानी मृगनयनी की दासी थी। तानसेन के चार पुत्र थे- सुरतसेन, शरतसेन, तरंगसेन और विलास खान। सरस्वती नाम की उनकी एक पुत्री थी।

संगीत की शिक्षा Music life

तानसेन अपने पिता के कहे अनुसार हजरत मोहम्मद गौस के पास चले गए और संगीत की शिक्षा लेने लगे। मोहम्मद गौस ने 3 सालों तक तानसेन को संगीत की शिक्षा दी। धीरे धीरे तानसेन ग्वालियर के महाराजा के दरबार में नियुक्त हो गए।

वहीं पर उनकी मुलाकात हुसैनी से हुई। दोनों ने शादी कर ली। तानसेन की प्रसिद्धि चारों ओर होने लगी। रेवा नरेश राजा रामचंद्र ने तानसेन को अपने दरबार में नियुक्त कर लिया।

वहां पर उनकी गायकी के चर्चे चारों तरफ होने लगे। महान सम्राट अकबर ने तानसेन को पहली बार राजा रामचंद्र के दरबार में गाते देखा। उनके गायन को उन्होंने बहुत ही पसंद किया। जल्द ही अकबर ने राजा रामचंद्र को पत्र लिखकर तानसेन को अपने दरबार में नियुक्त करने की बात लिखी।

राजा रामचंद्र कभी भी तानसेन जैसे प्रतिभाशाली गायक को अपने दरबार से नहीं भेजना चाहते थे, परंतु एक छोटे राजा होने के कारण वो महान सम्राट अकबर की बात नहीं मना कर सकते थे। इसलिए उन्होंने शाही उपहार के रूप में तानसेन को अकबर के दरबार में नियुक्त होने की छूट दे दी।

अकबर के दरबार में नियुक्त हुए Appointed in the court of Akbar

महान सम्राट अकबर तानसेन के संगीत को बहुत पसंद करते थे। जल्द ही उन्हें नवरत्न की उपाधि दे दी गई। एक बार अकबर तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास का संगीत सुनने उनके आश्रम गए। स्वामी हरिदास का गायन सुना तो आश्चर्यचकित हो गए।

वे तानसेन से बोले कि आपके गुरु तो बहुत उम्दा गाते हैं। आप तो उनके आसपास भी नहीं हैं। इस पर तानसेन बोले कि मैं इस जमीन के बादशाह के लिए गाता हूं, पर हमारे गुरु ब्रह्मांड के बादशाह यानी ईश्वर के लिए गाते हैं। फर्क तो होगा ही।

अकबर के लिए दीपक राग गया Deepak Raga for Akbar

विरोधियों के उकसाने पर एक बार अकबर ने तानसेन से दीपक राग गाने को कहा। तानसेन ने उन्हें चेतावनी दी कि इससे मौसम प्रतिकूल हो सकता है। पशु पक्षी मर सकते है, आग लग सकती है और भयावह परिणाम हो सकते हैं।

पर इसके बावजूद भी अकबर ने तानसेन से दीपक राग गाने को कहा। जैसे ही तानसेन दीपक राग गाने लगे, चारों ओर गर्मी बढ़ने लगी। दीपक जलने लगे और इतनी गर्मी पैदा हो गयी जैसे अग्नि की लपटें निकल रही हों।

प्रचंड गर्मी के कारण सभी श्रोता वहां से भाग गए। अंत में तानसेन का शरीर भी प्रचंड गर्मी से जलने लगा। फिर तानसेन की पुत्री सरस्वती ने मेघ राग गाकर अपने पिता की रक्षा की। बाद में अकबर बहुत शर्मिंदा हुए। अकबर ने तानसेन को मियां का खिताब भी दिया था।

रचनाएं Compositions

गायन की प्रसिद्ध ध्रुपद शैली को तानसेन और उनके गुरु स्वामी हरिदास ने शुरू की थी। उन्होंने राग रागिनियों की रचना की। मियाँ की मल्हार’ ‘दरबारी कान्हड़ा’ ‘गूजरी टोड़ी’ या ‘मियाँ की टोड़ी’ उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ है। ‘रागमाला’, ‘संगीतसार’ और ‘गणेश स्रोत्र’ उनकी प्रसिद्ध कावितायें है।

मृत्यु The death

तानसेन की मृत्यु 26 अप्रैल 1589 को दिल्ली में हुई थी। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनको उनके गुरु स्वामी हरिदास की कब्र के पास दफनाया जाए। इसलिए सम्राट अकबर ने उनकी अंतिम इच्छा पूरी की और तानसेन को ग्वालियर के पास दफनाया गया। उनकी याद में हर साल दिसंबर में वहां “तानसेन संगीत सम्मेलन” का आयोजन किया जाता है।

Featured Image – Wikimedia Commons

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