कोचेरिल रामन नारायणन, जिन्हें के. आर. नारायणन के नाम से जाना जाता है, आधुनिक भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व रहे हैं। उनका जन्म 27 अक्टूबर 1920 को हुआ था, हालांकि कुछ अभिलेखों में 4 फरवरी 1921 का उल्लेख मिलता है।
उनके जीवन की यात्रा उन्हें भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक ले गई, और 1997 से 2002 तक वे भारत के दसवें राष्ट्रपति के रूप में कार्यरत रहे। विशेष रूप से, वे इस पद पर पहुंचने वाले पहले दलित व्यक्ति थे, जो उनके सामाजिक और राजनीतिक करियर के गहरे महत्व को दर्शाता है। उनकी यात्रा भारतीय लोकतंत्र की समावेशी प्रकृति और सामाजिक गतिशीलता की संभावनाओं का प्रतीक है।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
के. आर. नारायणन का जन्म केरल के कोट्टायम जिले के पेरुमथानम नामक गाँव में हुआ था, जो तब त्रावणकोर की रियासत का हिस्सा था।
उनका परिवार पारावर जाति से था, जो पारंपरिक रूप से मछली पालन, नाव निर्माण और समुद्री व्यापार से जुड़ी हुई थी और सामाजिक रूप से पिछड़ी मानी जाती थी। उनके पिता, कोचेरिल रामन वैद्यर, आयुर्वेद के एक प्रतिष्ठित चिकित्सक थे, और उनकी माता का नाम पाप्पीयम्मा था।
उनका बचपन गरीबी और जातिगत भेदभाव से प्रभावित था। उन्हें स्कूल की फीस भरने में कठिनाई होती थी और कभी-कभी कक्षा के बाहर खड़े होकर पढ़ाई करनी पड़ती थी।
बावजूद इसके, उन्होंने अपनी शिक्षा को गंभीरता से लिया और उज्झावूर तथा कुराविलंगड में स्कूली शिक्षा प्राप्त की। उनकी उत्कृष्ट शैक्षणिक उपलब्धियों ने उन्हें त्रावणकोर के शाही परिवार से छात्रवृत्ति दिलवाई, जिससे उन्होंने कोट्टायम के सी.एम.एस. कॉलेज में इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की।
शिक्षा
के. आर. नारायणन ने त्रावणकोर विश्वविद्यालय (अब केरल विश्वविद्यालय) से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक (ऑनर्स) और स्नातकोत्तर (एम.ए.) की डिग्री प्राप्त की। वे विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान पर रहे और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने वाले पहले दलित बने।
उनकी उत्कृष्ट शैक्षणिक उपलब्धियों के कारण उन्हें टाटा छात्रवृत्ति मिली, जिससे उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (LSE) में राजनीति, अर्थशास्त्र और पत्रकारिता की पढ़ाई की।
वहां उन्होंने प्रसिद्ध राजनीतिक सिद्धांतकार हैरोल्ड लास्की के मार्गदर्शन में अध्ययन किया और कार्ल पॉपर, लायनेल रॉबिंस, तथा फ्रेडरिक हायेक जैसे विचारकों के व्याख्यान सुने। उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से अर्थशास्त्र में ऑनर्स डिग्री प्राप्त की, जिसमें उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में विशेषज्ञता हासिल की।
करियर
शिक्षण और पत्रकारिता
उन्होंने 1943 में त्रावणकोर विश्वविद्यालय में व्याख्याता के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। बाद में वे पत्रकारिता में आए और 1944 से 1945 के बीच ‘द हिंदू’ (मद्रास) और ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ (बॉम्बे) के लिए काम किया। 1945 में उन्होंने बॉम्बे में महात्मा गांधी का साक्षात्कार लिया, जो उनके पत्रकारिता करियर की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी।
राजनयिक करियर
1949 में, भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निमंत्रण पर, वे भारतीय विदेश सेवा (IFS) में शामिल हुए। अपने राजनयिक करियर के दौरान उन्होंने विभिन्न देशों में सेवा दी:
देश | पद | कार्यकाल |
---|---|---|
रंगून (म्यांमार) | विभिन्न पद | प्रारंभिक करियर |
टोक्यो (जापान) | द्वितीय सचिव | 1951 – ? |
लंदन (यू.के.) | प्रथम सचिव | ? – 1957 |
कैनबरा (ऑस्ट्रेलिया) | प्रथम सचिव/कार्यवाहक उच्चायुक्त | ? – 1961 |
हनोई (वियतनाम) | वाणिज्य दूत | 1960 के दशक की शुरुआत |
बैंकॉक (थाईलैंड) | राजदूत | 1967 – 1969 |
अंकारा (तुर्की) | राजदूत | 1973 – 1975 |
बीजिंग (चीन) | राजदूत | 1976 – 1978 |
वाशिंगटन डी.सी. (यूएसए) | राजदूत | 1980 – 1984 |
वे 1976 में विदेश मंत्रालय में सचिव भी बने। नेहरू ने उन्हें “देश के सर्वश्रेष्ठ राजनयिक” कहा था।
राजनीतिक करियर
1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अनुरोध पर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने तीन बार (1984, 1989, 1991) केरल के ओट्टापलम लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीता और केंद्र सरकार में योजना, विदेश मामलों और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रहे।
राष्ट्रपति के रूप में कार्य
1992 में, वे भारत के नौवें उपराष्ट्रपति बने और 1997 तक इस पद पर रहे। उन्होंने 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस की कड़ी निंदा की और इसे “महात्मा गांधी की हत्या के बाद भारत की सबसे बड़ी त्रासदी” कहा।
1997 में, वे भारत के दसवें राष्ट्रपति बने और 2002 तक इस पद पर रहे। वे “कार्यशील राष्ट्रपति” के रूप में जाने गए, जिन्होंने संविधान के दायरे में रहकर स्वतंत्र निर्णय लिए। उनके कार्यकाल की मुख्य विशेषताएं थीं:
- 1997 में भारत की स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती समारोह की अध्यक्षता।
- 1998 के आम चुनाव में मतदान करने वाले पहले भारतीय राष्ट्रपति बने।
- भ्रष्टाचार और हिंसा के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया।
- प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवारों से सदन में बहुमत साबित करने की शर्त रखी।
अन्य उपलब्धियां और विरासत
के. आर. नारायणन का योगदान बहुआयामी था। वे सामाजिक न्याय के प्रबल समर्थक थे और दलितों, आदिवासियों और महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाते रहे। उनकी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए के. आर. नारायणन फाउंडेशन की स्थापना हुई, जो ग्रामीण विकास और आर्थिक सशक्तिकरण पर काम करता है।
उनकी स्मृति में कई संस्थान स्थापित किए गए, जैसे:
- डॉ. के. आर. नारायणन सेंटर फॉर दलित एंड माइनॉरिटी स्टडीज (जामिया मिलिया इस्लामिया)
- के. आर. नारायणन इंस्टीट्यूट ऑफ विजुअल साइंस एंड आर्ट्स (केरल)
निजी जीवन
1951 में उन्होंने म्यांमार की यू. टिंट टिंट से विवाह किया, जिन्होंने भारतीय नागरिकता लेकर उषा नारायणन नाम अपनाया। उनकी दो बेटियां थीं, जिनमें एक चित्रा नारायणन हैं। उषा नारायणन समाज कल्याण कार्यों में सक्रिय थीं और उन्होंने सामाजिक कार्य में मास्टर डिग्री प्राप्त की थी।
मृत्यु
के. आर. नारायणन का निधन 9 नवंबर 2005 को नई दिल्ली में निमोनिया और गुर्दे की विफलता के कारण हुआ।
निष्कर्ष
के. आर. नारायणन की जीवन गाथा सामाजिक और आर्थिक बाधाओं को पार कर, अपनी बुद्धिमत्ता और समर्पण से सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंचने की प्रेरणादायक कहानी है। उनकी विरासत भारतीय लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और विदेश नीति में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के रूप में हमेशा जीवंत बनी रहेगी।