काबुलीवाला कहानी – रबीन्द्रनाथ टैगोर Kabuliwala Story by Rabindranath Tagore in Hindi

काबुलीवाला कहानी – रबीन्द्रनाथ टैगोर Kabuliwala Story by Rabindranath Tagore in Hindi

रविंद्रनाथ टैगोर जी अपनी इस कहानी के माध्यम से मानव हृदय में उत्पन्न होने रिश्तो के संवेदनशील भावनाओं को चित्रित करते है।

काबुलीवाला कहानी – रबीन्द्रनाथ टैगोर Kabuliwala Story by Rabindranath Tagore in Hindi

वे  बताते हैं कि उनकी 5 वर्ष की छोटी लड़की जिसका नाम मिनी है, जो इनसे बात किए बिना एक पल भी नहीं रह सकती हैं। रविंद्र नाथ टैगोर जी आगे बताते हैं कि मिनी ने अपने जन्म के बाद भाषा को सीखने में केवल एक ही वर्ष का समय लगाया होगा, उसके बाद से वह उतनी देर ही शांत रहती है, जितनी देर वह सोती है।

मेरा घर सड़क के किनारे ही स्थित है। एक दिन मिनी मेरे कमरे में खेल रही थी कि अचानक से कमरे के खिड़की की ओर भागी और एक लंबे-चौड़े से व्यक्ति को, जिसने बहुत ही गंदा, मैला-कुचैला और ढीला कपड़ा पहने हुए अपने सर पर कुल्ला रखकर उस पर साफा बांधकर, अपने कंधे पर एक गंदी सी थैली लटकाए हुए, जिसमें उसने सूखे फल एवं मेंवों को रखकर सड़क से जा रहा था, को देख कर चिल्लाने लगी,” काबुलीवाला, ओ काबुलीवाला”। मिनी के चिल्लाने पर जैसे ही काबुलीवाले ने हंसते हुए मिनी की तरफ देखा और घर की ओर आने लगा, तैसे ही मिनी डर के मारे घर के अंदर भाग गई और घर के अंदर जाकर कहीं छुप गई।

शायद उसके कोमल मन में यह डर था कि, कहीं वह काबुलीवाला अपनी मैली-कुचैली थैली के अंदर उसको छुपा कर उसको उसके परिवार से कहीं अलग ना ले कर चला जाये। वहीं दूसरी तरफ काबुलीवाला मुस्कुराते हुए, मेरे पास आकर मुझसे हाथ जोड़कर अभिवादन किया, और वहीं मेरे पास खड़ा हो गया। अब मेरे मन में यह संकट पैदा हो गया कि काबुलीवाले को घर पर बुलाकर और इससे कोई भी सामान खरीदना ठीक नहीं होगा।  

इसके बाद मैं काबुलीवाले से इधर- उधर की बात जैसे कि रहमत, सीमांत रक्षा, अंग्रेज आदि के बारे में गपशप करने लगा। अंत में जब काबुलीवाला यहाँ से जाने लगा तो उसने मिनी के बारे में पूछते हुए मुझसे कहा कि- “बाबूजी, आपकी बच्ची कहां गई?” उसके यह पूछने के बाद मैंने मिनी के मन से बेकार के डर को दूर करने के उद्देश्य से उसको घर के अंदर से बाहर बुलवा लिया।

जब मिनी घर से बाहर आई तो वह काबुलीवाले की थैली की तरफ ही देखे जा रही थी। यह देख कर काबुलीवाले ने जब मिनी को अपनी थैली से किसमिस और खुबानी निकाल कर देना चाहा तो मिनी ने उसे लेने से मना कर दिया और अब वह अधिक डरकर मेरे घुटनों से लिपट गई।

इन सभी घटनाओं के कुछ ही दिन बाद जब मैं एक दिन एक जरूरी काम से सवेरे-सवेरे घर से बाहर जा रहा था तो मैंने देखा कि मेरी लड़की, मिनी घर के दरवाजे के पास रखी एक बेंच पर बैठ कर काबुलीवाले से हंस- हंस कर बातें कर रही थी। काबुलीवाला भी मिनी के पैरों के पास बैठकर मुस्कुराते हुए, मिनी की बातों को बहुत ध्यान से सुन रहा था।

बीच-बीच में अपनी बातों को भी, मिनी की मिली-जुली भाषा में मिनी को समझा रहा था। मिनी की बातों को इतनी ध्यान से सुनने वाला व्यक्ति, उसकी पांच वर्ष की आयु में, बाबू जी के अलावा, शायद ही कोई मिला हो। इसके बाद मैंने देखा कि, मिनी ने जो कपड़े पहन रखे थे, उसके आगे का भाग बादाम और किशमिश से भरा हुआ था।

यह देखकर मैंने काबुलीवाले से कहा की यह मेंवे मिनी को क्यो दे दिए, अब कभी भी मत देना। यह सब कह कर मैंने अपने कुर्ते की जेब से कुछ पैसों को निकाल कर काबुलीवाले को दे दिए। उसने भी बिना किसी हिचक के उन पैसों को लेकर अपनी थैली में रख लिया।

कुछ समय बाद जब मैं घर लौटा तो देखा कि मिनी की मां, मिनी को डांटकर पूछ रही थी कि यह बताओ कि तुमको यह पैसे कहां से मिले? मां की डांट को सुन कर मिनी ने बताया की यह पैसे उसे काबुलीवाले ने दिए हैं। यह सुनकर मिनी की मां और भी ज्यादा गुस्सा हो गई और बोली तुम काबुलीवाले से यह पैसे कैसे ले ली? अब मिनी रोने लगी और रोते हुए बोली कि यह पैसे उसने मांगे नही है बल्कि उसने खुद ही उसको दिए है।

यह सब देखकर मैं वहाँ मिनी के पास गया और मिनी को उसकी माँ के पास से, बाहर ले आया। तब मुझे पता चला कि काबुलीवाले के द्वारा मिनी को दिया गया यह दूसरा ही उपहार था। जबकि इससे पहले काबुलीवाला मिनी से मिलने के लिए रोज आता था और मिनी को बादाम, पिस्ता और खूब ढेर सारे मेंवे देकर मिनी के दिल मे अपनी अच्छी जगह बना ली थी।

अब इन दोनों को दोस्ती में की हुई बातें और हँसी बहुत प्रचलित हैं। जैसे कि मिनी काबुलीवाले को देखते ही हँसते हुए पूछने लगती कि- काबुलीवाले ओ काबुलीवाले तुमने अपनी इस थैली के अंदर क्या रखा है? फिर काबुलीवाला जिसका नाम रहमत था, वो भी अपनी मुस्कुराहट के साथ जवाब देता- “हाँ बिटिया”।

उसके इस परिहास के रहस्य के बारे में तो कुछ नही कहा जा सकता; फिर भी इन दोनों दोस्तों के इस परिहास से कुछ विशेष खेल जैसा दिखाई देता। और जब ठण्डी के मौसम की सुबह-सुबह एक सयाने से व्यक्ति, काबुलीवाले और एक छोटी सी मासूम बच्ची की बातों और हंसी को सुनकर मुझे भी बहुत अच्छा लगता । इन दोनों दोस्तों की एक दो और भी बातें प्रचलित थी। जैसे कि- रहमत, मिनी से हमेशा कहता रहता था कि – “तुम कभी भी ससुराल नही जाना, अच्छा?”

हमारे देश और समाज की लड़कियों को बचपन से ही ‘ससुराल’ शब्द से परिचित कराया जाता है। परंतु हम लोग थोड़ी नई सोच एवं नई विचारधारा के होने के कारण, अपनी छोटी सी कोमल बच्ची को ससुराल के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया था इसलिए वह इस बारे में ज्यादा कुछ नही जानती थी।

जिसके कारण वह रहमत की बातों को सही से समझ नहीं पाती थी कि आखिर काबुलीवाला क्या कह रहा है। रहमत की इस बात पर, मिनी अपने स्वभाव के बिल्कुल ही विपरीत बिना कुछ बोले एकदम शांत हो जाती थी।

अपितु इसके बाद मिनी, रहमत से उल्टे ही पूछने लगती थी की-  ‘तुम ससुराल जाओगे?’ मिनी की इन बातों को सुन कर रहमत अपने मन मे एक काल्पनिक व्यक्ति को ससुर मानकर, उसको मारने के लिए घूंसा तानता और कहता- “हम ससुर को मारेगा”। रहमत की इस बात को सुन कर मिनी ‘ससुर’ की दुर्दशा की कल्पना करके खूब हंसती।

समय बीतने के साथ ही ठंडी का सुहाना मौसम आ गया। क्योंकि मैं कभी भी अपने शहर ‘कलकत्ता’ को छोड़कर कहीं भी बाहर नही गया था। परंतु जब कभी भी मेरे सामने विदेश का नाम आता या फिर जब कभी मैं किसी विदेशी व्यक्ति को अपने आसपास देखता तो मेरा मन भी विदेश के प्राकृतिक दृश्यो की कल्पनाये करने लगता।

वही दूसरी तरफ मेरे विचार ऐसे है कि मेरा मन अपना घर छोड़कर कहीं बाहर जाने से भी डरता है। यही कारण है कि मैं अपने दिन की शुरुआत में ही अपने कमरे में आकर बैठ जाता हूँ। यहीं बैठ कर उस काबुलीवाले अर्थात रहमत से इधर-उधर की बातें और गपशप करके अपने इस घुमक्कड़ मन को शांत कर लेता हूं।

क्योंकि जब भी मैं काबुलीवाले से बातें करता हूं तो मेरे मन में काबुल के उबड़ खाबड़ पहाड़ एवं लाल रंग की ऊंचे दुर्गम पर्वत और रेगिस्तानी रास्तों के चित्र रेखांकित हो जाते हैं। इन दुर्गम रेगिस्तानी रास्तों पर ऊंचे-ऊंचे साफे को बांधे हुए काबुल के सौदागर, जिन्होंने अपने हाथों में पुराने हथियार जैसे की बरछा तथा बंदूको को लिए हुए तथा अपने साथ ऊंटों की लंबी कतार, जिन पर उन्होंने अपने सभी सामानों को लाद रखा है, और आपस में एक दूसरे से बात करते हुए कहीं जा रहे है। यह सभी चित्र मेरे मन में ऐसे जीवंत उठते हैं, मानो जैसे कि मैं स्वयं वहां उपस्थित होकर यह सब देख रहा हूं।

मिनी की मां बहुत ही ज्यादा वहमी मिजाज की महिला हैं। मतलब कि अगर रास्ते में किसी प्रकार का शोर- शराबा हुआ नहीं की मिनी की मां को लगने लगता है कि पूरी दुनिया मदमस्त शराबी और दुष्ट लोगों से भरी हुई है, और ये सभी लोग हमारे घर की तरफ ही भागे चले आ रहे हैं। मिनी की मां को इस दुनिया में अपना जीवन व्यतीत करते हुए इतने दिन हो गए परंतु उनके मन से यह वहम अभी तक दूर नहीं हो पाया। अपने इसी वहम के कारण ही रहमत काबुलीवाले को भी शक की नजर से देखती और मुझसे हमेशा उस पर नजर रखने के लिए बोला करती।

यदि कभी मैं मिनी की मां की बातों को मजाक में टालने की कोशिश करता तो मुझसे पूछने लगती कि क्या कभी किसी का बच्चा चोरी नहीं हुआ है? क्या एक लंबा चौड़ा काबुलीवाला एक छोटे से बच्चे को उठाकर नही ले जा सकता है? शायद यह सभी प्रश्न मिनी की मां के मन में इसलिए आते थे क्योंकि वह मिनी से बहुत ज्यादा प्यार करती थी और उसको खोना नहीं चाहती थी। मिनी की मां के भय के कारण मैं रहमत को बिना उसके किसी दोष के अपने घर में आने से नहीं रोक पाया।

लगभग हर वर्ष के माघ महीने में रहमत अपने देश, ‘काबुल’ लौट जाता था। इस समय वह अपने व्यापारियों से अपने उधारी के पैसे वसूल करता था। उसे अपने पैसे वसूल करने के लिए लोगों के घरों तथा दुकान- दुकान घूमना पड़ता था। परंतु इतना व्यस्त होने के बाद भी वह मिनी से मिलने सुबह के समय एक बार अवश्य आता था।

जिस दिन वह मिनी से सुबह के समय नहीं मिल पाता तो शाम को आकर मिनी से जरूर ही मिलता था। रहमत का मिनी के प्रति यह व्यवहार ऐसा लगता था जैसे कि वह कोई षड्यंत्र कर रहा हो। इस तरह रहमत को देखकर मेरे मन में भी कभी कभी डर उत्पन्न हो जाता। परंतु जब मैं मिनी को हंसते हुए रहमत से बात करके देखता तो मेरे मन का यह डर समाप्त हो जाता है और मेरा हृदय खुशी से फूले नहीं समाता।

ठंडी का मौसम अपने अंतिम चरण पर ज्यादा प्रकोप दिखा रहा था, अर्थात बहुत अधिक ठंडी पड रही थी। जहां देखो वहीं पर लोग एक दूसरे से ठंडी के बारे में ही चर्चा कर रहे थे। इसी ठंडी के मौसम में एक दिन मैं अपने कमरे में बैठा हुआ था कि कमरे की खिड़की से सूर्य की किरणें मेरे पैरों पर आ कर पड़ी।

जिससे मेरे पैरों में थोड़ा गर्माहट सा महसूस होने लगा, जो कि इस ठंडी के मौसम में बहुत आनंददायक था। मैं अपने कमरे में बैठा था कि उसी समय कमरे से बाहर लोगों के शोरगुल की आवाजें मुझे सुनाई देने लगी। लोगों की आवाज सुनकर जब मैंने बाहर जाकर देखा तो पुलिस के दो सिपाही, जिनके हाथ खून से सना हुआ एक छूरा था, रहमत को पकड़ कर कहीं ले जा रहे थे।

यह सब देख कर मैंने पुलिस वाले से इस सब के बारे में पूछा तो पता चला कि- हमारे एक पड़ोसी ने रहमत से रामपुरी चादर उधार खरीदी थी। और बाद में जब रहमत अपने पैसे लेने उसके पास गया तो उसने पैसे देने से साफ इनकार कर दिया।

जिसके कारण उन दोनों में झगड़ा हो गया और बात यहां तक बढ़ गई की रहमत ने छुरा लेकर पड़ोसी को मार दिया। रहमत उस व्यक्ति को अपशब्द बोलते हुए पुलिसवालों के साथ जा रहा था कि उसी समय रहमत को पुकारती हुई मिनी घर से बाहर आ गई। मिनी को देखते ही रहमत के चेहरे पर पल भर के लिए एक अजीब सी चमक और खुशी छा गई।

मिनी ने रहमत के पास आते ही उससे अपना वही प्रश्न किया कि- “तुम ससुराल नहीं जाओगे”। मिनी के इस प्रश्न को सुनकर रहमत ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि, “हां”, वही तो जा रहा हूं। अपने इस जवाब से रहमत समझ गया कि वह मिनी को हंसा नहीं सकेगा तो उसने अपना हाथों को दिखाते हुए कहा की मेरे हाथ बंधे हुए हैं नहीं तो मैं ‘ससुर को मारता’।

रहमत को उस व्यक्ति पर छुरा चलाने के जुर्म में कई वर्षों के लिए जेल में डाल दिया गया। रहमत के जेल जाने के बाद हम सब उसको बिल्कुल ही भूल गए। अपने दैनिक क्रियाकलापों में व्यस्त रहने लगे। किसी ने ये भी नही सोचा कि हवा की तरह इस शहर में स्वतंत्र घूमने वाला व्यक्ति जेल की चहारदीवारी के भीतर अपना समय कैसे व्यतीत करता होगा।

मिनी भी बड़ी आसानी से अपने पुराने मित्र, रहमत को भूल गई। अब मिनी की बहुत सी नई सहेलियां बन गयी थी। तथा जैसे जैसे मिनी की उम्र बढ़ती गई वैसे वैसे वह अपने सहेलियों के साथ व्यस्त रहने लगी। जिसके कारण उसकी अपने बाबूजी के साथ भी दूरी बढ़ती चली गई। अब मिनी अपने बाबूजी के कमरे में भी बहुत कम आती थी।

समय बीतने के साथ ही आज एक बार फिर ठंडी का मौसम वापस आ गया। अब मिनी की सगाई की बात भी तय हो गई। अब मिनी को अपने मां बाप के घर को छोड़कर अपने ससुराल जाना पड़ेगा। मिनी के विवाह वाले दिन पूरा घर अस्त-व्यस्त था। घर में लोग हर समय इधर से उधर आ जा रहे थे। तथा घर के आंगन में शादी का मंडप सजाया जा रहा है। 

मैं अपने कमरे में बैठकर कुछ हिसाब लिख रहा था कि तभी वहाँ रहमत आया और मुझसे अभिवादन करके मेरे पास ही खड़ा हो गया। पहले तो मैं उसे पहचान ही नहीं पाया क्योंकि इस समय उसके पास ना तो उसका पुराना थैला था जिसे वह हमेशा अपने कंधे पर टांगे रखता था, और ना ही उसके चेहरे पर पहले जैसी चमक ही थी। लेकिन उसके चेहरे की मुस्कान को देख कर मैं उसे पहचान गया की यह रहमत ही है।

उसको देखने के बाद मेरे मन में एक ऐसे व्यक्ति का चेहरा प्रतिबिंबित होने लगा जिसने किसी का खून किया हो। इसीलिए मैंने सोचा की यह व्यक्ति इस शुभ अवसर पर मेरे घर से जितनी जल्दी चला जाए उतना ही अच्छा होगा। जब मैंने उसे अपने घर से जाने के लिए कहा तो वह तुरंत ही मान गया किंतु जाते समय वह दरवाजे पर खड़े होकर इधर-उधर देख कर बोला कि क्या, मिनी को नहीं देख सकता हूं?

तो मैंने उत्तर दिया कि आज घर में बहुत काम इसलिए आज किसी से भी मुलाकात नहीं हो सकती है मेरा उत्तर सुन कर वह दुखी हो गया और मुझसे अभिवादन करके घर से बाहर चला गया। अब मेरे हृदय में रहमत के लिए बहुत ही करुणा का भाव उत्पन्न हो रहा था जिसके कारण मैं सोच रहा था कि रहमत को वापस कैसे बुलाया जाए।

इतने में मैंने देखा कि वह खुद ही वापस मेरे घर की ओर आ रहा है। मेरे पास आकर उसने मुझे कुछ किशमिश और अंगूर देकर बोला कि यह मिनी के लिए लाया था, उसको दे दीजिएगा। इसके लिए जब मैंने उसे पैसे देने चाहे तो उसने लेने से इंकार कर दिया। फिर थोड़ी देर रुकते हुए बोला कि, बाबूजी, आपकी बच्ची जैसी मेरी भी एक बच्ची है।

उसी को याद करके मैं आपकी बच्ची के लिए थोड़ा सा मेवा लाता हूं। मैं यहां कोई सामान बेचने नहीं आता। इतना कहने के बाद उसने अपने कुर्ते की जेब से मुड़ा हुआ कागज का टुकड़ा निकाला जिसमें छोटी सी बच्ची के हाथ के पंजे के निशान थे जिसे किसी कालिख से उस कागज पे छापा गया था।

यह देख कर मेरी आंखों में आंसू आ गए और मैं रहमत और अपने बीच के अंतर को बिल्कुल ही भूल गया। इसके बाद मैंने घरवालों की आपत्ति के बावजूद मिनी को घर से बाहर बुलाया। अपने शादी के जोड़े में, दुल्हन की तरह सजी हुई मिनी शरमाते हुए मेरे पास आकर खड़ी हो गई। मिनी को इस रुप में देखकर रहमत पहले तो आश्चर्यचकित हो गया।

परंतु बाद में मिनी से बोला कि, लल्ली! सास के घर जा रही है क्या? यह सुनकर मिनी शर्म के मारे अपना मुंह दूसरी तरफ घुमा लिया क्योंकि अब वह इस प्रश्न के अर्थ को बहुत अच्छे से आने लगी थी कि आखिर सास ससुर किसे कहते है।

जब मिनी वहां से चली गई तो रहमत एक गहरी सांस लेते हुए जमीन पर बैठ गया। शायद अब वह अपनी बच्ची के बारे में सोचने लगा की- उसकी अपनी बेटी भी इतनी ही बड़ी हो गई होगी और शायद अब वह मिनी की ही तरह उसे पहचान नहीं पाएगी। शरद ऋतु के सुबह के समय सूर्य की किरणों के बीच शहनाई बजने के साथ ही रहमत अपने घर के बारे में सोचने लगा।

परन्तु उसके पास वापस जाने के लिए पैसे नही थे। उसे इस स्थिति में देखकर मैंने उसे अपने देश जाने के लिए कुछ पैसे दिए। इन पैसों को देने का प्रभाव मिनी की शादी के समारोह में भी पड़ा जिसके कारण मैं उसकी शादी उतनी धूमधाम से नहीं कर पाया जितनी धूमधाम से करने के बारे में मैंने सोचा था। इसके लिए मुझे घर की महिलाओं ने बहुत ही बुरा भला कहा। परंतु रहमत की मदद करके, एक पिता को उसकी पुत्री से मिला कर हमारा यह समारोह उज्जवलित हो उठा।

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