कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा, महत्व, पूजा विधि Kartik purnima vrat katha in Hindi

कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा, महत्व, पूजा विधि Kartik purnima vrat katha in Hindi

दोस्तों जैसा की हम सभी जानते है, कि हिंदू धर्म में पूर्णिमा के व्रत का विशेष महत्व एवं स्थान है। साल में 12 पूर्णिमाएं आती हैं। लेकिन जब अधिमास या मलमास आता है, तब साल में 13 पूर्णिमा होती है। आज हम बात करेंगे, कार्तिक पूर्णिमा की। इस पूर्णिमा का शैव और वैष्णव दोनों ही सम्प्रदायों में विशेष महत्व है। 

कार्तिक महीने की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है। यह पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को आता है। 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन नदियों में स्नान, दीप दान, भगवान की पूजा और दान का बहुत बड़ा महत्व माना गया है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन कुछ खास नियमों का पालन करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

मान्यताएं Beliefs

सिख संप्रदाय में कार्तिक पूर्णिमा का दिन प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि इस दिन सिख संप्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन सिख संप्रदाय के अनुयायी सुबह स्नान कर गुरूद्वारों में जाकर गुरू वाणी सुनते हैं, और नानक जी के बताये रास्ते पर चलने की सौगंध लेते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा को ही देवी तुलसी ने पृथ्वी पर जन्म लिया था। कार्तिक पूर्णिमा को तुलसी का दर्शन और पूजन करके मनुष्य जन्म के बंधन से मुक्त हो जाता है। इस दिन बैकुण्ठ के स्वामी श्री हरि को तुलसी पत्र ज़रुर चढ़ाना चाहिए। कार्तिक मास में श्री राधा और श्री कृष्ण जी की पूजा का भी महत्व है।

जो कार्तिक में तुलसी वृक्ष के नीचे श्री राधा और श्री कृष्ण की मूर्ति का पूजन (निष्काम भाव से) करते हैं, उन्हें जीवन मुक्त समझना चाहिए। तुलसी ना होने पर आंवलें के नीचे पूजन किया जा सकता है। यदि इस पूर्णिमा के दिन भरणी नक्षत्र हो तो इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।

अगर रोहिणी नक्षत्र हो तो इस पूर्णिमा का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस दिन कृतिका नक्षत्र पर चंद्रमा और बृहस्पति होने पर यह महापूर्णिमा कही जाती है। कृतिका नक्षत्र पर चंद्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो “पद्मक योग” बनता है जिसमें गंगा स्नान करने से पुष्कर से भी अधिक उत्तम फल की प्राप्ति होती है।

मान्यता के अनुसार महाभारत के समय 18 दिनों के भयानक युद्ध में योद्धा और सगे सम्बन्धी एकत्र हुए। अपने सगे संबंधियों को युद्घ स्थल पर देख कर युधिष्ठिर कुछ विचलित हो उठे।

तब भगवान श्री कृष्ण पांडवों के साथ गढ़ खादर के विशाल रेतीले मैदान पर उपस्थित हुए और कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पांडवों ने स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ करके रात में दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए दीप दान करके श्रद्धांजलि दी। इसी दिन से गंगा स्नान का विशेष महत्व है। कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए

महत्व Importance (Kyon manate hain)

कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप और ताप का दमन होता है। इस दिन किये जाने वाले अन्न, धन एवं वस्त्र दान का भी बहुत महत्व बताया गया है।

मान्यताओं के अनुसार इस पावन दिन को जो भी दान करता है, उसको कई गुना बढ़कर लाभ प्राप्त होता है। कहा जाता है इस दिन किया हुआ दान उसके लिए स्वर्ग में सुरक्षित रहता है जो मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में उसे पुनः प्राप्त होता है।

आज के ही दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक भयानक असुर का अंत किया था इसलिए इस पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था।

व्रत कथा Vrat Story (Katha)

एक बार त्रिपुर नामक राक्षस ने कई वर्षो तक घोर तपस्या की। इस तप से प्रभावित होकर समस्त जड़ चेतन, जीव तथा देवी  देवता भयभीत हो उठे। देवताओं ने तपस्या भंग करने के उद्देश्य से अप्सराएं भेजी, पर वह इसमें सफल नही हो सके। आखिरकार उसकी तपस्या से खुश होकर ब्रह्मा जी स्वयं उसके सामने उपस्थित हुए और वर मांगने का आदेश दिया। त्रिपुर ने ब्रह्मा जी से वर मांगा, ”न मुझे देवता मार पाए और न ही मनुष्य”

ब्रह्मा जी ने यह वरदान उसको दे दिया, इसके बल पर त्रिपुर निडर होकर त्रिपुर सभी पर अत्याचार करने लगा। उसके अत्याचारों से सभी लोग परेशान हो चुके थे। इतना ही नहीं, उसने कैलाश पर्वत पर भी चढ़ाई कर दी। फलस्वरूप भगवान शंकर और त्रिपुर में घमासान युद्ध भी छिड़ गया। अंत में भगवान शंकर जी ने ब्रह्मा तथा विष्णु की सहायता से उसका अंत कर दिया। तभी से इस दिन का महत्व बहुत बढ़ गया।

इस दिन क्षीर सागर दान का अंनत महत्व होता है। क्षीर सागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें सोने या चाँदी की मछली छोड़कर किया जाता है। यह उत्सव दीपावली की ही तरह दिए जला कर शाम को मनाया जाता है।

व्रत विधि Puja kaise karen

सुबह प्रातः काल उठकर स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देकर साफ वस्त्र या सफेद वस्त्र धारण करें और फिर मंत्रो का जाप करें। इसके बाद अपनी श्रद्धानुसार दान करना चाहिए, इस दिन जल और फल ग्रहण करके उपवास रख सकते हैं।

इस दिन निम्न काम हमे ज़रूर करना चाहिए-

1.       कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने का विशेष महत्व होता है, यदि आप गंगा स्नान करने में असमर्थ है, तो अपने घर पर ही थोड़ा सा गंगा जल नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करके भी इस पुण्य की प्राप्ति कर सकते है।

2.       कार्तिक पूर्णिमा देवी-देवताओं के लिए खास उत्सव का दिन है, इसीलिए इस दिन हमसे हुई भूलों के लिए हमे माफी मांगनी चाहिए, साथ ही पूजन अर्चन करके देवी-देवताओं को इस दिन आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है।

3.       इस दिन दीप दान का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन किसी पवित्र नदी, तालाब में एक दीप अवश्य जलाना चाहिए, ऐसा करने से व्यक्ति को पुण्य मिलता है। इस दिन दान करने से ग्रहों की समस्या को दूर किया जा सकता है।

4.       मान्यताओं के अनुसार गाय, हाथी, घोड़ा, रथ, घी आदि का दान करने से संपत्ति बढ़ती है। इस दिन स्वर्ण के मेष दान करने से ग्रहयोग के कष्टों का निवारण होता है। इस दिन कन्या दान करने से संतान व्रत पूर्ण होता है। कार्तिक पूर्णिमा से आरम्भ करके प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सारे मनोरथ सिद्ध होते हैं।

5.       कार्तिक पूर्णिमा के दिन शाम के समय जल में कच्चा दूध मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है।

6.       ऐसा कहा जाता है की कार्तिक पूर्णिमा के दिन पीपल के पेड़ पर मां लक्ष्मी का वास रहता है। इस दिन जल में दूध, शहद मिलाकर पीपल के वृक्ष पर चढ़ाकर एक दीपक भी जलाना चाहिए।

7.       कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी पूजन करते हुए तुलसी के पौधे के नीचे दीपक अवश्य जलाना चाहिए।

8.       कहा जाता है इस दिन घर आए भिखारी को खाली हाथ नही भेजना चाहिए, यदि संभव हो तो उसे भोजन अवश्य करवाए।

9.       माता लक्ष्मी की विशेष कृपा पाने के लिए कार्तिक पूर्णिमा को प्रवेश द्वार पर अच्छी रौशनी करना चाहिए, साफ-सफाई करना चाहिए, अशोक के पत्ते और गेंदे के फूलों से द्वार को सज़ाएँ, प्रवेश द्वार के बाहर रंगोली बनाना चाहिए और द्वार की चौखट पर दीपक जलाना चाहिए। शाम को भगवान को खीर, हलवा, मखाने और सिंघाड़े का भोग भी लगाएँ। इस दिन दान का विशेष महत्व माना गया है।

10.   मान्यता यह भी है कि इस दिन पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि में वृषदान यानी बछड़ा दान करने से शिवपद की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति इस दिन उपवास करके भगवान भोलेनाथ का भजन और गुणगान करता है उसे अग्निष्टोम नामक यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

तो दोस्तों हमे इस पावन अवसर पर भगवान की पूजा पाठ करना चाहिए और जितना हो सके दान दक्षिणा करना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है की हमारे द्वारा किया गया किसी भी रूप में दान, भविष्य में होने वाली अन्होनियो का प्रभाव कम करता है। और हमे सभी बिप्पतियो से बचाता है। इसलिए कार्तिक पूर्णिमा पर दिल खोल कर दान दें।  

Featured Image – Wikimedia

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.