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Home » Stories » Hindi Inspirational Stories » केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा Kedarnath Jyotirling History Story in Hindi

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा Kedarnath Jyotirling History Story in Hindi

Last Modified: March 26, 2019 by बिजय कुमार 2 Comments

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा Kedarnath Jyotirling History Story in Hindi

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा Kedarnath Jyotirling History Story in Hindi

जैसा कि आप सभी को विदित है कि शिवपुराण के अनुसार 12 ज्योतिर्लिंग हैं। जिसमें से पांचवां ज्योतिर्लिग केदारनाथ है। जिसे केदारेश्वर भी कहा जाता है।  यह तीर्थ स्थल चार धामों में से एक है। यह उत्तराखंड राज्य में स्थित है। इसके पश्चिम की ओर मन्दाकिनी नदी बहती है।

उत्तराखंड के चार धाम गंगोत्री, यमनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ हैं। जिसमें केदारनाथ का बड़ा महत्त्व है। यह पावन तीर्थ स्थल मनमोहक पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इस ज्योतिर्लिंग से जुडी दो कथाएं प्रचलित हैं। एक महाभारत और दूसरी कथा शिवपुराण के कोटिरुद्रसंहिता में वर्णित है। पहले हम कोटिरुद्रसंहिता में वर्णित कथा को जानते हैं।

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    • अमृतकुंड Amritkund

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा Kedarnath Jyotirling History Story in Hindi

Story 1

भगवान ब्रह्मा के पुत्र धर्म और उसकी पत्नी मूर्ती के दो पुत्र हुए थे। जिनका नाम नर और नारायण था। इन्ही नर और नारायण ने द्वापर युग में श्री कृष्ण और अर्जुन का अवतार लिया था और धर्म की स्थापना की थी। श्री भगवद्गीता के चौथे अध्याय के पांचवे श्लोक में आप इस बात की पुष्टि कर सकते हैं। ये दोनों ही पुत्र नर और नारायण बद्रीवन में स्वयं के द्वारा बनाये गए पार्थिव शिवलिंग के सम्मुख घोर तप किया करते थे।

शिव जी उन दोनों बालक से प्रसन्न होकर उनके द्वारा बनाये गए शिवलिंग में प्रतिदिन समाहित हुआ करते थे। नर और नारायण की इस घोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी वहां प्रकट हुए। ऐसा देखकर दोनों बहुत प्रसन्न हुए। शिव जी ने उन बालकों से कहा कि मैं तुम दोनों की तपस्या से अति प्रसन्न हूँ। जो भी वर माँगना चाहते हो मांग सकते हो।

तब दोनों बालकों ने भगवान शिव जी से विनती की कि हे प्रभु ! आप तीनों लोकों का कल्याण करने वाले हैं अर्थात हम सभी के कल्याण हेतु आप यहाँ सदा के लिए लिंग रूप में विराजमान हो जाईए। आज उसी बद्रीनाथ स्थान पर शिव जी साक्षात विद्यमान हैं। वहां दो पहाड़ भी हैं जिनका नाम नर और नारायण है। ऐसा माना जाता है कि केदारनाथ की तीर्थयात्रा करते समय यदि किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Story 2

कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान पांडवों ने अपने ही गोत्र के लोगों को मारा था। जिससे शिव भगवान अत्यंत क्रोधित थे। पांडवों को जब इस बात का पता चला तो वे पाप मुक्त होने के लिए केदारनाथ शिव जी के दर्शन के लिए गए। शिव जी अपने दर्शन उन्हें नहीं देना चाहते थे क्योंकि वे अत्यंत क्रोधित थे। इसीलिए शिव जी ने अपना भेष बदल लिया।  वे बैल का रूप धारण करके पशुओं के झुण्ड में साथ चल दिए।

लेकिन भीम ने भगवान शिव को पहचान लिया और उनका पीछा करने लगे। शिव जी को पीछे से पकड़ने के लिए वे भागे। लेकिन भीम केवल शिव जी का पीछे का हिस्सा (कूबड़) ही पकड़ पाए। क्योंकि शिव जी जमीन में धंसने लगे थे। वह कूबड़ यानि कि पृष्ठभाग जमीन के ऊपर ही रह गया था ।

पांडव बहुत दुखी हुए। तब पांडवों ने वहां  तपस्या की। तपस्या से शिव जी प्रसन्न हुए और आकाशवाणी की कि उसी पृष्ठभाग की पूजा अर्चना की जाये और पांडवों को श्रापमुक्त कर दिया। तब से ही उसी पृष्ठभाग को केदारनाथ के रूप में जाना जाता है।

अमृतकुंड Amritkund

मंदिर के पीछे एक कुंड है जिसे अमृतकुंड कहते हैं। जिसका जल पीने से लोग रोग मुक्त हो जाते हैं। मुख्य मंदिर की बायीं तरफ किनारे पर एक शिव भगवान की मूर्ति है और मुख्य मंदिर से आधा किलोमीटर की दूरी पर भैरव जी का मंदिर है। ऐसा कहा जाता है कि जब मंदिर के कपाट बंद रहते हैं तब भैरव जी मंदिर की रक्षा करते हैं।

मंदिर के ठीक पीछे एक छोटा मंदिर है। वहां शंकराचार्य की समाधी है। ऐसा कहा जाता है कि चार धामों की स्थापना करने के पश्चात 32 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया था। इसी क्षेत्र में एक गौरी कुंड भी है। जहाँ शिव-पार्वती जी का मंदिर है।

मौसम के बदलाव की बजह से यह मंदिर अक्षय तृतीया (अप्रैल महीने का अंत) से लेकर कार्तिक पूर्णिमा (नवंबर) तक खुला रहता है। ऐसा कहा जाता है कि यह मंदिर पांडवों द्वारा निर्मित है। हिंदी के महान साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह मंदिर 12 – 13 वीं शताब्दी का है। इस मंदिर का पुनः निर्माण आदी शंकराचार्य ने करवाया था।

यह मंदिर वास्तुकला पर आधारित है। ऐसी मान्यता है कि यदि आप केवल बद्रीनाथ की यात्रा पर जाते हैं और केदारनाथ के दर्शन किये बिना वापस आ जाते हैं तो आपकी यात्रा अधूरी रहती है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के साथ – साथ नर और नारायण के दर्शन करना भी जरुरी है। सत युग में उपमन्यु ने यहाँ भगवान शिव की आराधना की थी।  

मंदिर के अंदर पहले हॉल में पांच पांडव, कृष्ण भगवान, शिव भगवान का वाहन नंदी, वीरभद्र शिव जी का संरक्षक, द्रौपदी और कई देवी – देवताओं की मूर्तियां हैं। इस तीर्थ स्थल की यात्रा करना थोड़ा कठिन है क्योंकि ये पहाड़ों से घिरा हुआ है और मौसम भी कभी – कभी प्रतिकूल हो जाता है। 2013 में इस क्षेत्र में बाढ़ आने की बजह से यह क्षेत्र प्रभावित हुआ था। लेकिन मंदिर के अंदर का हिस्सा व मूर्ति सुरक्षित थीं।

यह तीर्थ स्थल अपने आप में ही एक अद्भुत स्थान है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से ही भक्तगणों के संकट दूर  हो जाते हैं।

Featured Image Source – By Shaq774 at en.wikipedia (Transferred from en.wikipedia Source at wikipedia) [Public domain], via Wikimedia Commons

Filed Under: Hindi Inspirational Stories Tagged With: केदारनाथ ज्योतिर्लिंग कथा, केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास

About बिजय कुमार

नमस्कार रीडर्स, मैं बिजय कुमार, 1Hindi का फाउंडर हूँ। मैं एक प्रोफेशनल Blogger हूँ। मैं अपने इस Hindi Website पर Motivational, Self Development और Online Technology, Health से जुड़े अपने Knowledge को Share करता हूँ।

Reader Interactions

Comments

  1. manisha karki says

    January 31, 2020 at 2:58 pm

    har har mahadev

    Reply
  2. Om says

    June 28, 2023 at 1:04 am

    Nice information

    Reply

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