महाभारत की कुंती (पूरी कहानी व जानकारी)

इस लेख में हमने महाभारत की कुंती के विषय मे विभिन्न जानकारी दिया है। यहाँ आप कुंती की कहानी, तथ्य और अन्य मुख्य जानकारी पढ़ सकते हैं।

महाभारत की कुंती (पूरी कहानी व जानकारी)

दोस्तों हम सभी ने महाभारत के बारे में सुना होगा और हो सकता है कई बार टीवी पर देखी भी होगी। परन्तु कई बार हमें महाभारत के सभी पात्रों के बारें में सम्पूर्ण जानकारी नही होती।

आज हम बात करने वाले है महाभारत के एक ऐसे चरित्र के बारें में, जिसके बारें में आपने अवश्य सुना होगा। परन्तु हो सकता है उसकी सम्पूर्ण जानकारी आपके पास न हो तो चलिए शुरू करते है एक ऐसे चरित्र के बारें में जिसका महाभारत में एक विशेष रोल था।

जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ महाभारत की कुंती के बारें में। आज हम जानेंगे कुछ ऐसे प्रश्नों के बारें जैसे कुंती कौन थी? महाभारत में उसका क्या रोल था आदि। तो चलिए शुरू करते है –  

कुंती कौन थी? Who was Kunti?

महाभारत में कुंती पांडवो की माता का नाम था। यदुवंश के राजा शूरसेन के यहाँ एक पुत्र जिसका नाम वसुदेव और एक पुत्री जिसका नाम कुंती, का जन्म हुआ था।

कुंती का बचपन का नाम पृथा था जिसे बचपन में ही राजा शूरसेन ने अपनी बुआ के संतानहीन लड़के कुंतीभोज को गोद दे दिया। जहाँ कुंतीभोज ने इस कन्या का नाम कुंती रखा था।

कृष्ण और कुंती का क्या रिश्ता था? Relationship Between Krishna and Kunti

कई बार यह सवाल हमारे दिमाग में घूमता रहता है तो मैं आपको बता दूँ कि कुंती वसुदेव की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थी। ये हस्तिनापुर के नरेश महाराज पांडु की पहली पत्नी थीं।

महर्षि दुर्वासा के एक वरदान के कारण कुंती किसी भी देवता का आवाहन कर सकती थी और उन देवताओं से संतान प्राप्त कर सकती थी। पाण्डु एवं कुंती ने इस वरदान का प्रयोग धर्मराज, वायु एवं इंद्र देवता पर किया और अर्जुन को तीसरे पुत्र के रूप में राजा इंद्र से प्राप्त किया।

इस प्रकार अलग अलग देवताओ से कुंती ने पुत्र को जन्म दिया। जिसमे यमराज और कुंती के पुत्र, युधिष्ठर, वायु और कुंती के पुत्र भीम, इन्द्र और कुंती के पुत्र अर्जुन थे। विवाह से पहले कुंती ने सूर्य देव का आवाहन किया था और उसके गर्भ से कवच-कुंडल धारण किए हुए एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम कर्ण था।

जिसे कुंती ने लोक लाज के भय के कारण एक मंजूषा में रखकर रात्रि को गंगा में बहा दिया। कुन्ती एक तपस्वी स्त्री के साथ-साथ हस्तिनापुर राज्य की महारानी और इन्द्रप्रस्थ सम्राज्य की राजमाता भी थीं।

पति की मृत्यु के बाद कैसे उन्होंने अपने पुत्रों को हस्तिनापुर में दालिख करवाकर गुरु द्रोणाचार्य से शिक्षा दिलवाई साथ ही उन्हें राज्य का अधिकार दिलवाने के लिए प्रेरित भी किया।

कुंती का वैवाहिक जीवन Marriage Life of Kunti

विवाह योग्य होने पर कुंती का स्वयंवर रचा गया। जिसमे कई राजा और राजकुमारों ने भाग लिया जिसमें हस्तिनापुर के राजा पाण्डु को कुंती ने जयमाला पहनाकर पति रूप से स्वीकार कर लिया। कुंती का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहा। पांडु को दो पत्नियां कुंती और माद्री थीं।

कहा जाता आखेट के दौरान राजा पाण्डु ने हिरण समझकर मैथुनरत ने एक किदंम ऋषि को मार दिया था और मरते वक्त ऋषि ने शाप दिया था कि तुम भी मेरी तरह मरोगे, जब तुम मैथुनरत रहोगे। इस शाप के चलते पांडु अपनी पत्नियों के साथ जंगल चले जाते हैं।

वे संन्यासियों का जीवन जीने लगते हैं, लेकिन राजा पांडु को हमेशा इस बात की चिंता सताती रहती थी कि उनकी कोई संतान नही है। कई बार वे कुंती को समझाने का प्रयत्न करते हैं कि उसे किसी ऋषि के साथ समागम करके संतान उत्पन्न कर लेनी चाहिए।

परन्तु कुंती इस बात के लिए राज़ी नहीं होती। फिर एक बार वह अपने वरदान के बारे में बताती है। तब पांडु की अनुमति से युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम आदि संताने उत्पन्न करती है। कुंती माद्री को दुर्वासा ऋषि द्वारा दिया गया मंत्र सिखा देती है। जिससे माद्री दो अश्वनी कुमारों का आह्‍वान करती है जिससे उन्हें नकुल और सहदेव नाम के पुत्रो की प्राप्ति होती है।

राजा पांडू की मृत्यु Death of King Pandu

वन में नदी के किनारे राजा पांडु अपनी पत्नी माद्री के साथ भ्रमण कर रहे थे। वातावरण अत्यंत रमणीक था और ठंडी शीतल हवा चल रही थी। अचानक ही वायु के झोंके से माद्री का वस्त्र उड़ गया।

इससे पांडु का मन चंचल हो उठा और वे मैथुन में प्रवृत हुए ही थे कि शाप वश उनकी मृत्यु हो गई। कहते हैं कि माद्री उनके साथ सती हो जाती है।

कुंती के बारें में तथ्य Information about Kunti

1. बचपन में अपने पिता यदुवंशी राजा शूरसेन द्वारा कुंतीभोज को गोद दे दिये जाने के कारण। कुंती अपने असली माता पिता से दूर रही। जिस कारण कुंती को अपने असली माता पिता का प्यार नही मिला।

2. अपने महल में आए महात्माओं की सेवा करना कुंती अपना फर्ज मानती थी। जिस कारण महात्मागण उससे प्रसन्न रहते थे। इसी तरह एक बार ऋषि दुर्वासा ने कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर उसे एक ऐसा मंत्र दिया जिससे कुंती जिस देवता का स्मरण कती वह तत्काल देवता ही उसके समक्ष प्रकट होकर उसकी मनोकामना पूर्ण कर देता था। इस तरह कुंती को एक अद्भुत मंत्र मिल गया।

कुंती का संघर्ष Struggles of Kunti

राजा पांडु की मृत्यु के बाद कुंती के सामने अपने पुत्रो के लालन पोषण करना था। कुंती के संघर्ष की शुरआत यहीं से हुई थी। अपने पांडव पुत्रों के भविष्य के लिए उसने हस्तिनापुर राज्य की और प्रस्थान किया और अपने पति पांडु के सभी हितेशियों से मिलकर एवं सभी के सहयोग से कुंती ने राजमहल में अपनी जगह बनाने में सफलता हासिल की।

राजमहल में कुंती का सामना गांधारी, शकुनी और दुर्योधन से हुआ। जिन्होंने उसके समक्ष कई समस्याएँ पैदा कर रखी थीं। अब कुंती और गांधारी में अपने-अपने पुत्रों को राज्य का पूर्ण अधिकार दिलाने की अप्रत्यक्ष जंग शुरू हो गई। शकुनि और दुर्योधन ने मिलकर पांडवों को मारने के कई षड़यंत्र रचे।

एक बार दुर्योधन द्वारा भीम को जहर देकर गंगा में फेंक दिया था। मूर्छित अवस्था में भीम बहते हुए नागों के लोक पहुंच गए। वहां विषैले नागों ने उन्हें खूब डंसा अत्यधिक डसने के कारण भीम के शरीर में जहर का असर कम होने लगा।

भीम की मूर्छा टूटने पर उन्होंने नागों को मारना शुरू कर दिया इस बात की यह खबर नागराज वासुकि को हुई तो वह स्वयं भीम के पास पहुंचे आर्यक नाग ने भीम को पहचान लिया क्योंकि स्वयं आर्यक नाग भीम के नाना के नाना थे।

भीम ने उन्हें अपनी आप बीती सुनाई की कैसे उन्हें गंगा में धोखे से बहा दिया गया । यह सुनकर आर्यक नाग ने भीम को हजारों हाथियों का बल प्रदान करने के किये कुंडों का रस पिलाया जिससे भीम और भी शक्तिशाली हो गए। 

कुंती और पांडवों को मारने के उद्देश्य से शकुनि और दुर्योधन ने छल से इनको लाक्षागृह (लाख से बना घर) में रुकवा दिया। क्योंकि रात में इस घर में आग लगाने की योजना बनाई गयी थी। परन्तु योजना पता लगने पर कुंती और पांडव एक सुरंग बनाकर वहां से बच निकले थे।

परन्तु उस आग में कुछ ग्रामीण जलकर मर गए थे और उनकी लाशों को कुंती और पांडवों की लाश मान लिया गया था। वहां से बच कर कुंती और पांडव जंगल की ओर चले गये उस जंगल में नरभक्षी राक्षस हिडिम्ब का राज्य था और उसकी पुत्री का नाम हिडिम्बा था।

जंगल में पहरा दे रहे भीम को देखकर हिडिम्बा उस पर मोहित हो गई और बाद में कुंती के आदेश से भीम को उससे विवाह करना पड़ा। जिससे उसको एक पुत्र मिला जिसका नाम घटोत्कच रखा गया।

कुंती की मृत्यु Death of Kunti

महाभारत युद्ध के करीब 15 वर्षी के बार गांधारी, कुंती, धृतराष्ट्र और संजय वन की ओर प्रस्थान करते हैं। यह करीब 3 साल तक गंगा किनारे एक घने वन में छोटी सी कुटिया बनाकर रहते हैं।

एक दिन जंगल में आग लग जाती है, जिस कारण गांधारी, कुंती और संजय को कुटिया छोड़नी पड़ती है। पुरे जंगल में आग लगने के कारण संजय उन सभी को जंगल छोड़ने के लिए कहता हैं।

परन्तु धृतराष्ट्र उन्हें कहता है कि यही वो घड़ी है जब उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। उनके कहने पर तीनों लोग वहीं रुक जाते हैं और उनका शरीर उस आग में झुलस जाता है।

संजय उन्हें छोड़कर हिमालय की ओर प्रस्थान करते हैं जहां वे एक संन्यासी की तरह रहते हैं। इस प्रकार कुंती मृत्यु को प्राप्त होती है।

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