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Home » Quotes » मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का इतिहास कहानी Mallikarjuna Jyotirlinga History Story in Hindi

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का इतिहास कहानी Mallikarjuna Jyotirlinga History Story in Hindi

Last Modified: March 26, 2019 by बिजय कुमार 1 Comment

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग श्रीशैलम का इतिहास व कहानी Sri Sailam Mallikarjuna Jyotirlinga History Story in Hindi

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग श्रीशैलम का इतिहास व कहानी Sri Sailam Mallikarjuna Jyotirlinga History Story in Hindi

शिवपुराण के अनुसार 12 ज्योतिर्लिंगों में से द्वितीय ज्योतिर्लिंग “मल्लिकार्जुन” है। यह कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर स्थित है। इसे श्रीशैल या श्रीशैलम भी कहा जाता है। जो आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में स्थित है। इसे दक्षिण का कैलाश भी कहते हैं।

यह हैदराबाद से 250  किलोमीटर की दूरी पर कुर्नूल के पास है। शक्तिपीठों में से 18 महाशक्तिपीठों का विशेष महत्व है। उनमें से भी 4 शक्तिपीठों को अति पवित्र माना जाता है और श्रीशैलम उनमें से एक है। ग्रंथों के अनुसार इस पर्वत पर अगर शिव जी की पूजा अर्चना करते हैं तो अश्व मेघ यज्ञ करने का फल मिलता है। अगर कोई व्यक्ति इस पर्वत के दर्शन करता है, शिव भगवान की पूजा करता है तो उसके दुःख नष्ट हो जाते हैं और मनोकामना पूर्ण होती है।

इन 12 ज्योतिर्लिंग के नाम हैं –

  1. सोमनाथ
  2. मल्लिकार्जुन
  3. महाकालेश्वर
  4. ओम्कारेश्वर
  5. केदारनाथ
  6. भीमाशंकर
  7. काशी विश्वानाथ
  8. त्रयंबकेश्वर
  9. वैद्यनाथ
  10. नागेश्वर
  11. रामेश्वर
  12. घृष्णेश्वर

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    • मल्लिका देवी मंदिर

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का इतिहास कहानी Sri Sailam Mallikarjuna Jyotirlinga History Story in Hindi

शिवपुराण के कोटिरुद्रसंहिता”में मल्लिकार्जुन के बारे में बताया गया है। मल्लिका का अर्थ माँ पार्वती है और अर्जुन शिव जी को कहा जाता है। अगर हम इन दोनों शब्दों की संधि करते हैं तो यह “मल्लिकार्जुन” शब्द बनता है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग पौराणिक कथा Mallikarjuna Jyotirlinga Stories in Hindi

Story 1

इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा है। जिसके बारे में हम विस्तार से जानते हैं। शिव – पार्वती के पुत्र गणेश और कार्तिकेय आपस में विवाह के लिए झगड़ रहे थे । इसके समाधान के लिए दोनों अपने माता-पिता के पास पहुंचे। झगड़े को निपटाने के लिए माता पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों को बोला कि तुम दोनों में से जो कोई भी इस पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले यहाँ आएगा उसी का विवाह पहले होगा।

ऐसा सुनते ही कार्तिकेय जी ने पहले पृथ्वी की परिक्रमा करना शुरू कर दिया लेकिन गणेश जी मोटे होने के कारण और उनका वाहन चूहा होने के कारण वे इतनी जल्दी पृथ्वी की परिक्रमा कैसे करते। गणेश जी मोटे जरूर थे लेकिन उनमें बुद्धि थी।

उन्होंने कुछ विचार किया और अपने माता-पिता से एक स्थान पर बैठने का आग्रह किया।फिर उन्होंने माता  -पिता की सात बार परिक्रमा की। इस तरह माता-पिता की परिक्रमा करके पृथ्वी की परिक्रमा से मिलने वाले फल की प्राप्ति के अधिकारी बन गए। और उन्होंने शर्त जीत ली।

उनकी इस युक्ति को देखकर माँ पार्वती और शिव जी बहुत प्रसन्न हुए। इस प्रकार गणेश जी का विवाह करा दिया गया। बाद में जब कार्तिकेय जी पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटे तो बहुत दुखी हुए क्योंकि गणेश जी का विवाह करा दिया गया था।

कार्तिकेय जी ने माता-पिता के चरण छुए और वहां से चले गए। वे दुखी होकर क्रौन्च पर्वत पर चले गए। जब इस बात का पता माँ पार्वती और शिव जी को लगा तो उन्होंने नारद जी को कार्तिकेय को मनाने और घर वापस लाने के लिए भेजा।

नारद जी क्रौन्च पर्वत पर पहुंचे और कार्तिकेय को मनाने का बहुत प्रयत्न किया। लेकिन कार्तिकेय जी नहीं माने और नारद जी निराश होकर माँ पार्वती और शिव जी के पास पहुंचे और सारा वृतांत कह सुनाया।

ऐसा सुनकर माता दुखी हुईं और पुत्र स्नेह के कारण स्वयं शिव जी के साथ क्रौंच पर्वत पर पहुंची। माता- पिता के आगमन का पता चलते ही कार्तिकेय जी पहले से ही 12 कोस दूर यानी कि 36 किलो मीटर दूर चले गए थे।

तभी शिव जी वहां ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए। तब से ही वह स्थान मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग नाम से प्रसिद्ध हुआ। ऐसा कहा जाता है कि पुत्र स्नेह में माता पार्वती प्रत्येक पूर्णिमा और भगवान शिव प्रत्येक अमावस्या को यहाँ आते हैं और ऐसा भी कहा जाता है कि यही एक मात्र ऐसा स्थान है जहाँ माता सती की ग्रीवा गिरी थी । इसीलिए इसे भ्रामराम्बा शक्तिपीठ भी कहा जाता है। यह शैल शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में महालक्षी के रूप में अष्टभुजा मूर्ती स्थापित है।

Story 2

एक और कथा भी प्रचलित है। ऐसा भी कहा जाता है कि क्रौंच पर्वत के निकट ही किसी चन्द्रगुप्त नामक राजा की राजधानी थी। राजा की बेटी किसी संकट में फस गयी थी। समस्या के निवारण हेतु वह कन्या राजमहल छोड़कर पर्वत पर चली गयी थी।

वह पर्वत पर रहकर अपना जीवन – यापन करने लगी। उसके पास एक अत्यंत सुन्दर काले रंग की गाय थी। वह कन्या अपनी गाय को अत्यधिक प्रेम करती थी और सेवा भी करती थी। लेकिन प्रतिदिन कोई न कोई व्यक्ति उस गाय का दूध निकाल लेता था। उस कन्या को समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा कौन कर रहा है।

एक दिन कन्या ने स्वयं अपनी आँखों से उस श्यामा गाय का दूध दुहते हुए किसी चोर को देखा। उस कन्या को अत्यधिक क्रोध आया और गुस्से से वे चोर के समीप पहुंची। लेकिन वहां कोई चोर नहीं था।

वे आश्चर्यचकित हो उठी क्योंकि वहां उनको एक शिवलिंग के दर्शन हुए। शिवलिंग के दर्शन करने से वे बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने उसी स्थान पर एक मंदिर बनवाया। वही शिवलिंग मंदिर आगे चलकर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग नाम से प्रसिद्ध हुआ।

मल्लिका देवी मंदिर

मल्लिकार्जुन मंदिर के पीछे माँ पार्वती जी का मंदिर है। जिसे मल्लिका देवी कहते हैं। वहीँ स्थित कृष्णा नदी में भक्तगण स्नान करते है और उसी जल को भगवन को चढ़ाते हैं। कहते हैं कि नदी में दो नाले मिलते हैं। जिसे त्रिवेणी कहा जाता है। वहीँ समीप में ही गुफा है जहाँ भैरवादि और शिवलिंग हैं।

मल्लिकार्जुन मंदिर से लगभग 6 मील की दूरी पर शिखरेश्वर और हाटकेश्वर मंदिर भी है। वहीँ से 6 मील की दूरी पर एकम्मा देवी का मंदिर भी है। ये सारे  मंदिर घोर वन के बीच में स्थित हैं। इस स्थान के दर्शन करने से लोगों की मनोकामना पूर्ण होती है और माँ पार्वती और शिव जी की कृपा बनी रहती है।

Image Source –

Wikimedia

Filed Under: Quotes Tagged With: मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का इतिहास

About बिजय कुमार

नमस्कार रीडर्स, मैं बिजय कुमार, 1Hindi का फाउंडर हूँ। मैं एक प्रोफेशनल Blogger हूँ। मैं अपने इस Hindi Website पर Motivational, Self Development और Online Technology, Health से जुड़े अपने Knowledge को Share करता हूँ।

Reader Interactions

Comments

  1. Atul yadav says

    August 26, 2018 at 2:32 pm

    Om nm shivay
    Vgwan hme v skte de ke hm yha aaye

    Reply

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