भारत में मैंग्रोव जंगल Mangrove Forests in India Hindi

इस लेख में हम आपको भारत में मैंग्रोव जंगल Mangrove Forests in India के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।

भारत में मैंग्रोव जंगल Mangrove Forests in India in Hindi

मैंग्रोव एक प्रकार की वनस्पति है जो खारे पानी को सहकर भी फलती फूलती है। मैंग्रोव शब्द पुर्तगाल के “मैन्गयू” और अंग्रेजी के “ग्रोव” सब से मिलकर बना है। इसका अर्थ है “‘सामान्य से कम विकसित ठिगने पेड़-पौधों का जंगल”। इस प्रकार के पेड़ो को “कच्छीय वनस्पति” भी कहते है।  

मैंग्रोव की उत्पत्ति

मैंग्रोव के वृक्ष समुद्रतटो के मुहानों और ज्वार से प्रभावित क्षेत्रो (Inlands) में पाये जाते है। ये समुद्र तटों के लिए कवच का काम करते हैं। विश्व के 60 से 70% उष्णकटिबंधीय ट्रॉपिकल समुद्र तटीय क्षेत्र मैंग्रोव वनस्पति से आच्छादित हैं। मैंग्रोव वनों की उत्पत्ति मुख्य रूप से नदियों के मुहाने पर नदियों द्वारा बहा कर लाए गए मलबे के जमा होने से होती है।

वर्षा ऋतु के मौसम में नदियां अपने साथ ढेर सारी मिट्टी और मलवा बहाकर लाती हैं जो नदी मुख और समुद्र तट के संगम स्थान में फैल कर जमा हो जाता है। यह डेल्टा का रूप ले लेता है जहां पर मैंग्रोव की वनस्पति पैदा होती है।

मैंग्रोव जंगल का महत्व Importance of Mangrove Forests

प्राकृतिक शरण स्थल

मैंग्रोव के वन बहुत घने होते हैं। यह कई प्रकार के पक्षियों, बंदरों, शैवालों, केकड़े, घोंधे और मछलियों का घर होते हैं। मैंग्रोव के वनों में जड़ों के पास मछलियां झींगे रहते हैं।

ये पेड़ पशु पक्षियों को तेज धूप से बचाने का काम करते हैं। मैंग्रोव के पेड़ों पर कई प्रकार के पक्षी अपना घोंसला बनाते हैं और अंडे देते हैं। इस तरह मैंग्रोव के वन पक्षियों के लिए एक उपयुक्त आवास का काम करता है।

तमिलनाडु में वेदानथंगल पक्षी सेंचुरी (Vedanthangal bird sanctuary) इसी प्रकार का प्राकृतिक स्थल है। इसके साथ ही इन वनों में छोटे-छोटे सूक्ष्म जीव भी पाए जाते हैं। मैंग्रोव के पेड़ दलदल में पैदा होते हैं। इस दलदल में कई प्रकार के सूक्ष्मजीव रहते हैं।

इसके साथ ही मैंग्रोव के जंगलों में बंगाल टाइगर, सुअर मगरमच्छ हिरण फिशिंग कैट (मछली मारने वाली बिल्ली) ऊदबिलाव, जंगली गधे लंगूर, मकाक बंदर, मॉनिटर छिपकली सांप की कुछ प्रजातियां पाई जाती हैं।

भोजन का स्रोत

मैंग्रोव के वनों से कई जीव जंतुओं को भोजन भी प्राप्त होता है। बंदर मैनग्रोव के पेड़ों की पत्तियां और मुलायम कोपलों को खाते हैं। इसके साथ ही मेकाक बंदर केकड़ो को अपना आहार बनाते हैं।

प्राकृतिक जल शोधक

मैंग्रोव वृक्ष प्राकृतिक जल शोधक का कार्य करते हैं। मैंग्रोव के पेड़ों की जड़ों से सेलफिश चिपके रहते हैं जो पानी को छानकर उसमें से तलछट और पोषक तत्वों को अलग करते हैं। इस तरह समुद्र का पानी साफ हो जाता है और कोरल रीव्स (मूंगे की चट्टानों) को पनपने का मौका मिलता है।

पारिस्थितिकी तंत्र के लिए मूंगे की चट्टानें बहुत आवश्यक है। मैंग्रोव के वनों की दूसरी विशेषता है कि यह पानी से भारी तत्वों को सोख लेते हैं इस तरह समुद्र के पानी का प्रदूषण कम हो जाता है।

मैंग्रोव के वृक्ष पानी से कार्बनिक अपशिष्ट पदार्थ और मिट्टी के कणों को अलग कर देते हैं। इससे पानी साफ होता है। पानी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है जिससे समुद्र के जल के भीतर विभिन्न प्रकार के जीव जंतुओं का विकास होता है। मैंग्रोव वनों वाले क्षेत्रों में कोरल प्रवाल भित्ति या समुद्री शैवाल और समुद्री घास अच्छी तरह पनपती है।

ग्रीन हाउस प्रभाव को कम करते हैं

मैंग्रोव के वृक्ष प्रकाश संश्लेषण द्वारा वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को कम करते हैं। दूसरे पेड़ पौधों की तुलना में मैनग्रोव के वृक्ष अधिक कार्बन डाइऑक्साइड सोखते हैं। ये मिट्टी में बड़ी मात्रा में कार्बन जमा करते हैं। राइजोफोरा नामक मैंग्रोव प्रजाति में वायुमंडल से बड़ी मात्रा में कार्बन मिटटी में जमा करती है।

मिट्टी के रक्षक

मैंग्रोव के वृक्ष की जड़े मिटटी के भीतर गहराई तक फैली होती हैं जो मिट्टी में ऑक्सीजन पहुंचा कर उसे उपजाऊ बनाती हैं। इसके साथ ही वह मिट्टी को मजबूती से बांधे रखती हैं। चक्रवात तूफान और लहरों से मिट्टी को बचाती हैं।

29 अक्टूबर 1999 को उड़ीसा के तट पर चक्रवात आया था जिसकी गति 310 किलोमीटर थी। जिन क्षेत्रों में मैंग्रोव वनों को समाप्त कर दिया गया था वहां पर भीषण तबाही हुई थी। इसके विपरीत जहां पर मैंग्रोव के वन थे वहां पर कम नुकसान हुआ था। इस तरह मैंग्रोव के वन तूफान और चक्रवात से रक्षा करते हैं।

तटों के रक्षक

मैंग्रोव के वन समुद्र तटो की रक्षा करते हैं। यह लहरों की तीव्रता को कम करते हैं और तट क्षरण की प्रक्रिया को कम करते हैं। यह एक दीवार का काम करते हैं।

तलछट को अलग करते हैं

मैंग्रोव के वृक्ष समुद्र में तैरते हुए एक छन्नी का काम करते हैं। अपनी जड़ों की मदद से ये तलछट को बांध लेते हैं। इस तरह के समुद्र के जल को साफ करने का काम करते हैं।

दवा के रूप में इस्तेमाल

मैंग्रोव के पेड़ों का इस्तेमाल दवा के रूप में होता है। पेचिश सर्पदंश मूत्र संबंधी रोग चर्म रोग रक्तशोधक गुर्दे की पथरी गर्भनिरोध जैसे रोगों में मैंग्रोव के पौधों का इस्तेमाल किया जाता है।

सुनामी के प्रभाव को कम करते हैं

मैंग्रोव के वन सुनामी की ऊंची लहरों को समुद्र तटों में प्रवेश करने से रोकते हैं। इस तरह से मनुष्य की मदद करते हैं। सुनामी के वक्त समुद्र की लहरें कई फीट ऊंची विकराल रूप धारण कर लेती हैं और समुद्र तटों को नुकसान पहुंचाती हैं। पर जिन क्षेत्रों में मैंग्रोव के वन पाए जाते हैं वहां पर नुकसान कम होता है।

मछली, झींगे, केकड़े का उत्पादन

मैंग्रोव के वनों की जड़ों में कई प्रकार की मछलियां झींगे केकड़े रहते हैं। मछुआरे इन क्षेत्रों में जाकर मछली झींगे केकड़े जैसे समुद्री जीवो को पकड़कर अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इस तरह मैंग्रोव के वनों से भोजन भी मिलता है।

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