टपक सिंचाई या ड्रिप सिचाई Micro irrigation system in Hindi
टपक सिंचाई या ड्रिप सिचाई Micro irrigation system in Hindi
आज हम आपको इस आर्टिकल में ड्रिप सिचाई के विषय में पूरी जानकारी देंगे। जिसमे हम आपको इसके लाभ, विशेषता, उपयोग होने वाले उपकरण, के विषय में पूरी जानकारी देंगे।
टपक सिंचाई या ड्रिप सिचाई Micro irrigation system in Hindi
ड्रिप सिंचाई क्या है ?
माइक्रो इरीगेशन सिस्टम( Micro irrigation system) या ड्रिप सिंचाई, सिंचाई की एक विशेष विधि है जिसके अंतर्गत पानी को पौधों की जड़ों तक सीधे पहुँचाया जाता है। टपक सिंचाई या बूंद बूंद सिंचाई से पानी की बचत की जा सकती है। जैसा कि हमें पता है दुनिया भर में बहुत से जगहों पर पानी की कमी हो रही है और पानी को अपने भविष्य के लिए बचा कर रखना हमारी जिमेदारी है।
माइक्रो इरिगेशन सिस्टम (Micro irrigation system), सिचाई की ऐसी विधि है जिसमें पानी की थोड़ी-थोड़ी मात्रा , कम अंतराल पर नालियों के द्वारा पौधों की जड़ों तक सीधे पहुंचाया जाता है। जिससे पौधों को लगातार पानी मिलता रहता है और ज्यादा पानी का खर्च भी नहीं होता। इसमें जल की बहुत कम मात्रा में सभी पौधों को पानी दिया जा सकता है। इस कार्य में पाइप, वाल्व, नालियां तथा एमीटर का प्रयोग किया जाता है।
साधारण सिंचाई में अधिकतर पानी जो कि पौधों को मिलना चाहिए वो वाष्प बनकर उड़ जाता है या तो जल रिसाव के द्वारा जमीन के अंदर चला जाता है जिससे पानी की अधिक खर्च होता है। इस नई सिंचाई पद्धति से हम जल का जल की बचत कर सकते हैं और पौधों को कम पानी में ही सिंचाई कर सकते हैं
जब पौधों को कम दाब और नियंत्रण से सीधे पौधों के जड़ो तक पानी पहुँचाना टपक सिचाई कहलाता है लेकिन जब पानी के साथ साथ उर्वरक की भी आपूर्ति की जाये तो इस विधि को फर्टिगेशन प्रक्रिया कहते है। जोकि पोषक तत्वों की लीचिंग व वाष्पीकरण नुकसान से बचाती है और लगाकर सही समय पर उपयुक्त फसल पोषण प्रदान करती है।
टपक सिचाई की विशेषता
1. इसके द्वारा पौधों को रोजाना पानी दिया जा सकता है।
2. इस विधि से पानी जड़ के आस-पास सदैव पर्याप्त मात्रा में बना रहता है।
3. फसल की विधि के लिए एक समान रूप से जमीन में जल और वायु की उचित मात्रा बनी रहनी चाहिए। इस विधि से जमीन में जल और वायु उचित मात्रा में बनी रहती है जिससे पौधों की वृद्धि सही तरीके से और जल्दी होती है।
4. ऐसे उबड़ खाबड़ जमीने जहाँ पानी को आसानी से नहीं पहुचाया जा सकता ऐसे जगहों पर भी इस विधि से सिचाई करके खेती किया जा सकता है।
5. यह पर्यावरण के लिए बहुत ही अच्छा है क्योंकि इससे पानी की बचत होती है यानि जल संरक्षण को बढ़ावा मिलता है।
प्रयोग होंने वाले उपकरण
माइक्रो इरिगेशन सिस्टम ( Micro irrigation system) में कई तरह के उपकरण का उपयोग होता है जोकि इस तरह है –
1. हेडर असेंबली – माइक्रो इरिगेशन सिस्टम( Micro irrigation system) में ये एक महत्वपूर्ण रोल अदा करता है क्योकि इसके द्वारा ही सिचाई का दबाव और उसकी गति को नियंत्रित किया जाता है। हेडर असेंबली को बाईपास या नॉन रिटर्न वॉल्व भी कहते है।
2. फ़िल्टर – इसमे फ़िल्टर का प्रयोग पानी में उपस्थित मिटटी के कणों छोटे कचरे और शैवाल को निकलने के लिए ककिया जाता है। क्योकि ये ड्रिप के छिद्र को बंद कर सकते है। इसमें स्क्रीन फिल्टर, सैंड फिल्टर, सैंडसेपरेटर, सेटलिंग टैंक आदि का समावेश होता है। हाइड्रोसाइक्लॉन फिल्टर का उपयोग पानी में उपस्थित रेत अथवा मिट्टी के लिए किया जाता है। सैंड फिल्टर का उपयोग पानी में शैवाल (काई), पौधों के पत्ते, लकड़ी आदि सूक्ष्म जैविक कचरे के लिये किया जाता है। पानी के पूर्णतः साफ नजर आने पर भी सिंचाई संचन्त्र में कम से कम स्क्रीन फिल्टर का उपयोग तो करना ही चाहिए।
3. खाद देने की प्रक्रिया – ड्रिप सिचाई में रासायनिक खादों को वेचूरी, फर्टिलाइज़र टैंक व फर्टिलाइज़र पम्प के माध्यम से दिया जाता है।
ड्रिप सिचाई में रासायनिक खादों को वेचूरी, फर्टिलाइज़र टैंक व फर्टिलाइज़र पम्प के माध्यम से दिया जाता है।
- वेंचुरी – रासायनिक खाद को वेंचुरी के द्वारा ही दिया जाता है। ये एक यंत्र है जो दाब के अंतर पर चलता है। इसके द्वारा रासायनिक खड़ा पौधों तक सही ढंग से पहुँच जाता है। इस विधि में तरल खाद पानी के साथ पौधों तक पहुँचता है।
- फर्टिलाइज़र टैंक – इस टैंक में तरल खाद को भर कर दाब नियंत्रण से रासायनिक द्रव्य और खाद तुरंत इस यंत्र के अन्दर डाल सकते है।
4. मेंनलाइन – ड्रिप सिचाई में एक पम्प का उपयोग किया जाता है जिससे पानी सबमेन लाइन (submain line) तक पहुँचाया जाता है। मेन लाइन में पीवीसी या एचडीपीई पाइप का उपयोग किया जाता है।
5. सबमेन लाइन – सबमेन पाइप के आगे वाल्व लगाये जाता है ताकि इसमें पानी के प्रवाह और दाब को नियंत्रित किया जा सके। सबमेन पाइप के शुरू में वैक्यूम रिलीज वाल्व या एयर रिलीज़ (air relese) लगाना आवश्यक है वरना पाइप में मिट्टी के कण अन्दर आ सकते है और ड्रीपर के छिद्र को बंद भी कर सकते है।
6. पॉली ट्यूब – सबमेन के पानी को पूरे खेत में पॉली ट्यूब से ही पहुँचाया जाता है क्योकि ड्रिपर पॉली ट्यूब के ऊपर ही लगाये जाते है।
7. ड्रिपर – ये ड्रिप सिचाई का बहुत ही महत्वपूर्ण भाग है। इसके द्वारा ही पानी खेतो में बूंद के रूप में गिरते है। ड्रिपर्स का प्रति घंटा प्रवाह और फसल में अधिओकतम पानी की सख्या के अनुसार निश्चित किया जाता है। ऐसी जमीं जो बराबर नही है उबड़ खाबड़ है वह ड्रिप सिचाई की सलाह दी जाती है।
ड्रिप सिचाई के लाभ
ड्रिप सिचाई के द्वार कई तरह के लाभ होते है जैसे –
- ड्रिप सिचाई के द्वारा फसल को प्रतिदिन उचित मात्रा में पानी मिला करता है जिससे फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता बढती है।
- इसके द्वारा सिचाई से हम लगभग 40 से 60% जल का बचत कर लेते है।
- फर्टिगेशन विधि से पानी के साथ साथ उचित मात्रा में खाद भी पौधे को दिया जा सकता है।
- टपक सिचाई या ड्रिप सिचाई में पानी पौधों के जड़ो तक पंहुचाये जाते है जिससे अनावश्यक खरपतवार विकसित नही हो पाते है।
- इस विधि से सिचाई मे निराई, गुड़ाई कटाई आसानी से की जा सकती है क्योकि इस सिचाई में पानी केवल पौधों के जड़ो के पास ही होता है बाकि खेत सूखा ही रहता है।
Help Source –
https://agritech.tnau.ac.in/agriculture/agri_irrigationmgt_microirrigation.html