नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा Nageshvara Jyotirlinga History Story in Hindi
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा Nageshvara Jyotirlinga History Story in Hindi
12 ज्योतिर्लिंगों में से 10 वां ज्योतिर्लिंग नागेश्वर है। इस ज्योतिर्लिंग का स्थान विवादास्पद है। शिवपुराण के अनुसार यह दारुक वन में स्थित है। दारुक वन का उल्लेख हमें कई महाकाव्य जैसे दंदकावना, दैत्यवाना और कम्यकावना में मिलता है।
लेकिन नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से तीन मंदिर प्रसिद्ध हैं। पहला गुजरात के द्वारका में, दूसरा उत्तराखंड के अल्मोड़ा में और तीसरा महारष्ट्र के हिंगोली में स्थित है।
नागेश्वर का मतलब नागों के ईश्वर से है , इसीलिए विष आदि के बचाव के लिए लोग यहाँ आते हैं। शास्त्रों में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा की चर्चा की गयी है। काफी दूर-दूर से लोग यहाँ ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए आते हैं।
कहीं-कहीं पर इस ज्योतिर्लिंग को जागेश्वर भी कहा जाता है। यह स्थान गुजरात के द्वारका से लगभग 25 किलोमीटर दूर है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार स्व. श्री गुलशन कुमार ने करवाया था।
इसी मंदिर परिसर में भगवान शिव जी की अति विशाल पद्मासन मुद्रा में प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा 125 फ़ीट ऊँची है और 25 फ़ीट चौड़ी है। मंदिर के अंदर तलघर में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है। यह एक अदभुत तीर्थस्थल है और इसकी कथा भी अद्वितीय है। आईये इस कथा को विस्तार से जानते हैं।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा Nageshvara Jyotirlinga History Story in Hindi
कहानी व इतिहास Story and History
एक बार की बात है, दारुका नाम की राक्षसनी अपने राक्षस पति दारुक के साथ जंगल में रहती थी। माँ पार्वती ने दारुका को वरदान दिया था कि तुम इस वन को अपने साथ कहीं भी ले जा सकती हो। उसने व उसके पति ने पूरे वन में उथल-पुथल मचा राखी थी । आस-पास के सभी लोग परेशान हो गए थे। इसलिए वे सभी महर्षि और्व के पास गए और दारुका और दारुक के बारे में बताया और समाधान पूछा।
तब महर्षि ने लोगों की रक्षा के लिए श्राप दिया कि ये राक्षस पृथ्वी लोक पर हिंसा करेंगे या फिर यज्ञ में बाधा डालेंगे तो उसी क्षण नष्ट हो जायेंगे। इस बात की खबर देवताओं को भी लग गयी तब उन्होंने राक्षसों पर आक्रमण कर दिया। अब सभी राक्षस सोचने लगे कि अगर वे देवताओं से लड़ेंगे तो उसी क्षण नष्ट हो जायेंगे और अगर युद्ध नहीं लड़ेंगे तो युद्ध में परास्त माने जायेंगे।
तब दारुका के मन में विचार आया और वह तुरंत उस जंगल को उड़ा कर समुद्र के बीच में ले गयी। तब राक्षस समुद्र के बीच आराम से रहने लगे। फिर एक दिन बहुत सी नावें उस जंगल की तरफ आ रही थी, जिनमे मनुष्य सवार थे।
उन राक्षसों ने देखा और उन मनुष्यों को बंधक बना लिया। उन बंधकों में एक सुप्रिय नाम का महान शिव भक्त था। वो वैश्य था। वह बंधक होते हुए भी कारावास में ही शिव भगवान की नियम से पूजा – अर्चना करता रहा।
भगवान शिव की पूजा अर्चना किये बिना वह भोजन ग्रहण नहीं करता था। सुप्रिय ने बाकी के बंधनक मनुष्यों को भी शिव भगवान की उपासना करना सिखा दिया। तब वे सभी बंधक प्रतिदिन शिव पूजा करने लगे। वे सभी शिव जी का जाप ‘ॐ नमः शिवाय’ करने लगे। इस बात की खबर जब दारुक राक्षस को लगी तब उसने सुप्रिय को कहा कि यदि तुम निरंतर शिव की पूजा करते रहोगे तो मैं तुम्हे मार डालूंगा।
तब उसी क्षण सुप्रिय ने भगवान शिव जी को याद किया, अपने भक्त को कष्ट में देखते हुए भोलेनाथ वहां तुरंत उपस्थित हो गए। शिव जी ने एक ही क्षण में सभी राक्षसों को नष्ट कर दिया। दारुक देखकर दंग रह गया और अपनी पत्नी दारुका के पास भागा।
तब भगवान शिव जी ने यह वरदान दिया कि आज से चारों वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य और शूद्र अपने धर्म का पालन कर सकते हैं। राक्षसों का यहाँ कोई स्थान नहीं है।
भगवान का यह वचन सुनकर दारुका भयभीत हो गयी और माँ पार्वती की स्तुति करने लगी। दारुका ने माँ पार्वती से कहा कि मेरे वंश की रक्षा कीजिये। तब पार्वती जी ने उसे आश्वासन दिया और भोलेनाथ से कहा कि इन राक्षसों के बच्चे होंगे तो क्या वे इस वन में रह सकते हैं। मैं चाहती हूँ कि वे भी इस वन में रहे। इन राक्षसों को भी आश्रय दे दीजिये , क्योंकि मैंने ही इस दारुका राक्षसी को वरदान दिया था।
तब भगवान शिव जी ने कहा ठीक है, ऐसा ही होगा। तब शिव जी ने कहा कि मैं अपने भक्तों की रक्षा के लिए यहाँ सदा के लिए विराजमान हो जाता हूँ। शिव जी ने कहा कि जो भी व्यक्ति यहाँ अपने वर्ण और धर्म के अनुसार पूरी भक्ति- भावना से मेरी पूजा अर्चना करेगा वह चक्रवर्ती राजा कहलायेगा।
सतयुग में वीरसेन नाम का राजा होगा जो मेरा परम भक्त होगा। यही भक्त जब इस वन में मेरे दर्शन के लिए आया करेगा तो चक्रवर्ती सम्राट बन जायेगा। इस प्रकार अपने भक्तों का सदा भला चाहने वाले शिव भगवान वहां सदा के लिए नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए।
इस मंदिर के दर्शन करने से साक्षात् शिव भगवान के दर्शन हो जाते हैं, भक्तगण संकटों से मुक्त होते हैं व मोक्ष की प्राप्ति करते हैं।
By Bkjit [CC BY-SA 4.0 (https://creativecommons.org/licenses/by-sa/4.0)], from Wikimedia Commons
By AmitUdeshi [CC BY-SA 3.0 (https://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0)], from Wikimedia Commons
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