नरक चतुर्दशी पर निबंध Naraka Chaturdashi Essay in Hindi

नरक चतुर्दशी पर निबंध Naraka Chaturdashi Essay in Hindi

नरक चतुर्दशी को हम कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाते है। इसके अतिरिक्त इस चतुर्दशी को हम ‘रूप चौदस’, ‘नरक चौदस’, ‘नर्क चतुर्दशी’ या ‘नरका पूजा’ के नाम से भी जानते है। नरक चतुर्दशी को हम छोटी दीपावली के नाम से भी जानते हैं।

इसके अतिरिक्त इस चतुर्दशी को हम ‘रूप चौदस’, ‘नरक चौदस’, ‘नर्क चतुर्दशी’ या ‘नरका पूजा’ के नाम से भी जानते है। इस रात दिये जलाकर पूरे घर को रोशन किया जाता है। इस दिन के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं कही गई है। एक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण जी ने आज के दिन ही अत्याचारी राक्षस नरकासुर को मृत्यु के घाट उतार दिया था।

नरक चतुर्दशी पर निबंध Naraka Chaturdashi Essay in Hindi

त्यौहार का महत्व Importance of Festival Narak chaturdashi

हिन्दू धर्म के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन हम मृत्यु के देवता जिन्हें हम ‘यम’ के नाम से जानते है, की पूजा की जाती है। यह दिन दीपावली के एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन शाम होने के बाद दिये प्रज्जुलित किये जाते है और इस दिन हम यमराज से आकाल मृत्यु से मुक्ति और स्वस्थ्य जीवन की कामना करते है।

नरक चतुर्दशी की कहानी व कथा Story of Naraka Chaturdashi

नरक चतुर्दशी की पूजा की एक कथा यह है कि एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा रन्ति देव थे। उन्होंने अपने पूरे जीवन में कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब उनकी मृत्यु का समय पास आया तो उनके सामने यम के दूत आकर खड़े हो गये। यमदूत को अपने सामने खड़े देखकर राजा चौक गये और यम से बोले मैंने अपने जीवन में तो कभी भी कोई ऐसा पाप नहीं किया फिर आप मुझे नर्क में क्यों ले जाना चाहते हो? मुझे नर्क में नहीं जाना है।

कृपा करके पहले आप मुझे यह बताये मैंने अपने जीवन में ऐसा कौनसा अपराध कर दिया है, जिस कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। राजा की ऐसी बात सुनकर यमदूत बोले हे राजन् एक बार आपके दरवाजे से एक ब्राह्मण भिकारी भूखा चला गया यह उसी पाप का फल है।

दूतों के इस प्रकार के वाक्य सुनकर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आपसे आगृह करता हूं कि मुझे इस वर्ष का और वक्त दे दीजिए। इस प्रकार यमदूतों द्वारा राजा को एक वर्ष का समय दान में मिल गया।

राजा ने अपनी यह परेशानी ऋषियों के समग्र रखी और उनसे पूछा कि कृपया इस आप यह बताये कि मुझे इस पाप से मुक्ति कैसे मिलेगी। ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करना प्रारंभ कर दे और ब्रह्मणों को भोजन करवाये और उनसे अपने पापों के लिए क्षमा मांगे। इससे आपके पाप मुक्त हो जायेंगे।

राजा ने ऋषि के बताये अनुसार किया और इस प्रकार राजा पाप से मुक्त हो गये और इस तरह उन्हें स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति के लिये इस धरती पर कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित हो गया।

इस दिन हम सभी को सुबह प्रातः काल नहाकर विष्णु मंदिर या कृष्ण मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन करना चहिये। कहते है ऐसा करने से हम सभी के पाप कट जाते है और सौन्दर्य रूप की प्राप्ति भी होती है। और नरक चौदस के ठीक दूसरे दिन दीपावली, गोधन पूजा और भाई दूज मनाया जाता है।

पूजा विधि Naraka Chaturdashi Puja Vidhi

नरक चतुर्दशी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठना चहिये फिर शरीर पर तेल या उबटन लगाकर मालिश करके नहाना चहिये कहते है इस दिन तेल में लक्ष्मी और जल में गंगा का रूप होता है।

ऐसा कहा जाता हैं कि जो व्यक्ति नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय होने से बाद नहाता हैं उसे वर्ष भर में किये गये अच्छे कार्यों का फल नहीं मिलता है। इस दिन शाम को देवताओं का पूजन करके घर, बाहर, सड़क आदि सभी जगह पर दिये जलाकर रखना चाहिए। घर के प्रत्येक स्थान की साफ़ सफाई करके वहां दीपक जलाना चाहिए, जिससे घर में लक्ष्मी का वास होता है और घर की दरिद्रता का नाश हो सके।

सूर्योदय से पहले स्नान करके दक्षिण दिशा की ओर मुख करके अपने दोनों हांथो को जोड़कर यमराज से हमें प्रार्थना करनी चहिये। ऐसा करने से मनुष्य के द्वारा किये गये सारे पापों का नाश हो जाता हैं।

सूर्योदय से पहले स्नान के बाद लौकी के टुकड़े को अपने सिर के ऊपर से सात बार घुमाकर दक्षिण दिशा की ओर फेंक देंते है । मान्यता यह है कि इस प्रकार करने से हमें नरक से मुक्ति प्राप्त होती है।

सबसे पहले एक थाली में एक चौमुँख दिया जलाते है। इस दिन सौलह छोटे दिये जलाये जाते है। इसके बाद थाली में फूल, हल्दी, चावल, गुड़, गुलाल आदि से यम को पूजा जाता है फिर दियों को घर के अलग-अलग जगह पर रखते है और उसके बाद गणेश जी और लक्ष्मी जी के सामने भी एक दिया जलाते है। पूजा विधिपूर्वक करने से मनुष्य पापों से मुक्त होता है।

इस दिन दीपदान के बाद खुले आसमान के नीचे एक मशाल या तेल का दीपक लेकर अपने पूर्वजों को याद करके दीपदान  करके  प्रार्थना करना चहिये कि हमारे पूर्वज हमारे द्वारा किए गए इस दीपदान से प्रसन्न होकर इस दीप के प्रकाश से अपने-अपने लोकों में प्रस्थान करें।

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