भारत में राष्ट्रभाषा और प्रादेशिक भाषा Essay on National Language and Territorial Language in India
आईये जानते हैं भारत में राष्ट्रभाषा और प्रादेशिक भाषा क्या होती है? Essay on National Language and Territorial Language in India
भारत में राष्ट्रभाषा और प्रादेशिक भाषा Essay on National Languages and Territorial Languages in India
हमारे भारत देश में विभिन्न तरह की भाषाएं बोली जाती हैं। भाषा मानव समाज की एक बड़ी उपलब्धि है। भाषा का मुख्य उद्देश्य सम्प्रेषण है अर्थात अपनी बात को दूसरों तक पहुँचाना । भाषा मुख से निकलने वाली विभिन्न तरह की ध्वनियाँ हैं।
भाषा न केवल बोलने का भाव है बल्कि संस्कृति को भी बताती है। यह विभिन्न तरह की बोलियों का समूह है। प्रत्येक भाषा अपने – अपने क्षेत्र को प्रदर्शित करती है। जो भाषा सबसे अधिक बोली जाती है वह उस क्षेत्र की भाषा बन जाती है। जैसे हमारे भारत देश में खड़ी बोली ही हिंदी भाषा बन गयी है।
अब हिंदी भाषा के भी अनेक रूप हैं। जैसे राजभाषा, राष्ट्रभाषा, राज्यभाषा, प्रादेशिक भाषा, संपर्क भाषा और अंतर्राष्ट्रीय भाषा। राजभाषा से तात्पर्य सरकारी राजकाल के लिए उपयोग में आने वाली भाषा से है।
राष्ट्रभाषा National Language
जैसा की नाम से ही समझ आता है कि यह राष्ट्र की भाषा होती है। कोई ऐसी भाषा जो पूरे देश में सभी को एकता का संकेत देती हो और बाँध कर रखती हो, राष्ट्रभाषा कहलाती है। राष्ट्रभाषा को लोकभाषा या लिंग्वा फ्रांका भी कहते हैं।
इस सन्दर्भ में डॉ. अम्बादास देशमुख जी ने कहा है कि
“किसी भी देश में एक से अधिक भाषाएं होती हैं किन्तु पूरे देश को एक सूत्र में बाँधने के लिए एक भाषा ऐसी होती है जो पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है। उसे राष्ट्रभाषा कहा जाता है।”
राष्ट्रभाषा से मतलब है है कि जिस के द्वारा हम विचार – विमर्श कर सके। जिसमें सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक विचारों को अभिव्यक्त करने की क्षमता हो। एक ऐसी भाषा जिसका प्रयोग पूरा राष्ट्र करे।
डॉ. भोलानाथ तिवारी ने भी कहा है कि
“राष्ट्रभाषा वह भाषा है, जिसका प्रयोग पूरा राष्ट्र करे।”
सामान्य भाषा में अगर कहा जाए कि जिस भाषा को राष्ट्र के लोग ज्यादा से ज्यादा उपयोग में ले अर्थात ज्यादा से ज्यादा बोले, ज्यादा से ज्यादा लिखे उसे ही राष्ट्रभाषा कहते हैं। राष्ट्रभाषा का उपयोग सार्वजनिक तौर पर होता है।
राष्ट्रभाषा में लोकप्रियता, सरलता, सर्वग्राह्यता, सुगमता, सुलभता, स्पष्टता आदि के गुण देखने को मिलते हैं। राष्ट्रभाषा अपने ही देश की कोई भाषा हो सकती है। विदेशी भाषा की इसमें कोई भूमिका नहीं है।
किसी भी देश की राज्यभाषा, राजभाषा और संपर्क भाषा उस देश की राष्ट्रभाषा हो सकती है। जैसे हमारे देश की राष्ट्रभाषा – हिंदी। महात्मा गांधी जी ने राष्टभाषा की प्रमुखता बताते हुए कहा है कि
“राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।”
अष्टम अनुसूची और अनुच्छेद 344 (1 ) और 351 के अनुसार 22 भारतीय भाषाएं हैं, जो निम्न प्रकार हैं –
- असमिया
- उड़िया/ओडिया
- उर्दू
- कन्नड़
- कश्मीरी
- गुजराती
- तमिल
- तेलुगु
- पंजाबी
- बांग्ला
- मराठी
- मलयालम
- संस्कृत
- सिंधी
- हिंदी
- मणिपुरी
- नेपाली
- कोंकणी
- मैथिलि
- संथाली
- बोडो
- डोगरी
- डोगरी
किसी भी देश में जब बहुत सारी भाषाएं होती हैं तो कोई एक भाषा को चुना जाता है जो राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करे।
प्रादेशिक भाषा
प्रादेशिक भाषा से मतलब किसी प्रदेश की भाषा से है। प्रादेशिक भाषा के लिए एक राज्य होना जरुरी है। जबकि राष्ट्रभाषा के लिए किसी राज्य या प्रदेश का होना जरूरी नहीं है। प्रादेशिक भाषा और राज्यभाषा में ज्यादा कुछ अंतर नहीं है।
राज्य भाषा को हम प्रादेशिक भाषा के रूप में मान सकते हैं। क्योंकि प्रदेश या प्रान्त शब्द की अपेक्षा राज्य शब्द ज्यादा प्रसिद्ध है। प्रादेशिक भाषा शब्द भारत के संविधान में भाग 17 के अध्याय 2 के 345, 346 और 347 अनुच्छेद में प्रयुक्त हुआ है।
सिंधी और संस्कृत प्रादेशिक भाषा में नहीं आती हैं क्योंकि इनका अपना प्रदेश नहीं है। हिमाचल प्रदेश, हरयाणा, दिल्ली, उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड इन दस राज्यों की भाषा प्रादेशिक है, यहाँ हिंदी समझी जाती है।
इन राज्यों को हिंदी राज्य कहा जाता है। ये क्षेत्र ‘क’ सूची में आते हैं। इससे यह पता चलता है कि हिंदी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली प्रादेशिक भाषा है। अंग्रेजी शब्द ‘Regional Language’ का पर्यायवाची शब्द प्रादेशिक भाषा है।
‘ख’ सूची में आने वाले क्षेत्र गुजरात – गुजराती भाषा, महारष्ट्र – मराठी भाषा, पंजाब- पंजाबी भाषा, चंडीगढ़- पंजाबी और हिंदी भाषा हैं। ये क्षेत्र अहिन्दी भाषी क्षेत्र हैं।
कुछ क्षेत्र ‘ग’ सूची में आते हैं, जिन्होंने हिंदी को नहीं अपनाया है –
- आंध्र प्रदेश – तेलुगु
- तमिलनाडु- तमिल
- कर्णाटक – कन्नड़
- केरल – मलयालम
- जम्मू-कश्मीर – कश्मीरी
- नागालैंड – अंग्रेजी
- मेघालय – अंग्रेजी
- मणिपुर – मणिपुरी
- त्रिपुरा – बांग्ला, अंग्रेजी
- असम – असमिया
- अरुणाचल प्रदेश- अंग्रेजी
- उड़ीसा – उड़िया
- पश्चिमी बंगाल – बांग्ला
- सिक्किम-नेपाली, अंग्रेजी
- पॉन्डिचेरी – तमिल, अंग्रेजी
- मिजोरम – अंग्रेजी
- गोवा – कोंकणी
- दमन – दीव – गुजराती
- लक्षदीप दीव-समूह- मलयालम
- दादरा एवं नगर हवेली – हिंदी, गुजराती
- अंडमान निकोबार दीप समूह – हिंदी
उपर्युक्त भाषा के प्रकारों के आधार पर हम यह जान सकते हैं कि लोग अपने विचारों और भावों को भाषा के द्वारा ही प्रदर्शित कर पाते हैं। जैसा कि सभी जानते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और अपने आपसी विचारों को एक दूसरे तक पहुंचाने के लिए भाषा ही एक मात्र साधन है।