क्रिकेट में नए प्रौधोगिकी का उपयोग New Technologies used in cricket (Hindi)

क्रिकेट में नए प्रौधोगिकी का उपयोग New Technologies used in cricket (Hindi)

भारत में खेले जाने वाले सभी खेलों में से क्रिकेट का सबसे ज़्यादा बोलबाला है। यहां हर उम्र के क्रिकेट प्रेमी हैं, चाहे वह 10 वर्ष का बालक हो या 80 वर्ष का बुजु़र्ग। कोई क्रिकेट देखना पसंद करता है तो किसी को खेलना भी पसंद है। यहां तक की यह क्रिकेट देखने का चाव केवल पुरूषों में ही नहीं, बहुत सी महिलाएं भी क्रिकेट बहुत पसंद करती हैं।

हैरान कर देने वाली बात ये है कि क्रिकेट तो भारत का राष्ट्रीय खेल भी नहीं है। फिर भी पूरे देश का लगाव सबसे ज़्यादा इसी से है।  सामान्यत तौर पर इस खेल में दो टीमें होतीं हैं। दोनों में 11 खिलाडी़ होते हैं लेकिन चोटिल हो जाने पर 12वें खिलाडी़ को भी मैदान पर बुलाया जा सकता है। यह खिलाडी़ केवल फील्डिंग ही कर सकता है।

इसे गेंदबाजी़ और बल्लेबाजी़ की अनुमति नहीं होती। बल्लेबाज़ी करने के लिए दो खिलाडी़ व गेंदबाजी़ से शुरुआत करने वाली अन्य टीम के सभी 11 खिलाडी़ मैदान में होते है। एक बल्लेबाज स्ट्राईक पर रहकर गेंद का सामना करता है, दूसरा खिलाडी़ पिच की दूसरी ओर खडा़ भाग कर रन लेने के लिए तैयार रहता है।

पिच की लंबाई 22 गज(20 मीटर) और चौढा़ई 10 फीट(3 मीटर) निर्धारित है लेकिन मैदान का कोई मापन निर्धारित नहीं है। शुरुआती दौर में इसे क्रेक्केट कहा जाता था लेकिन समय के साथ नाम व उच्चारण में अंतर आ गया।

जब इसकी खोज हुई थी तब यह भेड़ की ऊन के गोले और लकडी़ की छडी़ से खेला जाता था, बाद में ऊन के गोले की जगह भी लकडी़ की गेंद ने ले ली। जैसे-जैसे समय बदलता गया, क्रिकेट में नए बदलाव आते गए। अत्याधिक लोकप्रिय होने के कारण ही इसके ऊपर कुछ फिल्में भी बनाई गईं है । इस सब से लोगों के दिल में क्रिकेट की अहमियत का अंदाजा़ बखूबी लगाया जा सकता है।

अब तक के इतिहास में क्रिकेट पर बनाई गई बाॅलिवुड की सुप्रसिद्ध फिल्म “लगान” थी। इसमें आमिर खान द्वारा भारत में अंग्रेजो़ं के दौर में क्रिकेट के शुरुआती दिनों को फिल्माया गया था। उसके बाद अन्य कुछ फिल्में बनीं जो प्रसिद्ध खिलाडि़यों के जीवन पर आधारित  है।

नई प्रौधोगिकी (New Technologies used in Cricket)

खेल जगत में दाखिल होने के बाद क्रिकेट में कई अविष्कार हुए। कुछ को अपनाया गया और कुछ को नकार दिया गया। जैसे कि लकड़ी के बैट की जगह एलमुनियम के बैट का इस्तमाल करने का भी विचार सामने आया था लेकिन यह सही साबित नहीं हुआ तो नकार दिया गया। शुरुआती दौर की तुलना में आज के क्रिकेट का प्रारूप पूरी तरह से बदल चुका है।

रेडियो पर सब से पहली बार क्रिकेट कंमैंट्री 1922 में आॅस्ट्रेलिया में की गई थी और टैलीवीजन पर पहला प्रसारण 1932 में बीबीसी द्वारा किया गया कथा।इसके बाद यह पहले से भी ज़्यादा रोमांचित व सुविधाजन हो गया है।

क्रिकेट में हुए कुछ मुख्य बदलाव निम्नलिखित हैं :-

1. गेंद गति मापक Ball Speed Measurement

एक कैमरा का उपयोग यह मापने के लिए किया जा सकता है कि गेंद कितनी तेजी से यात्रा कर रही है। जैसे स्पीड कैमरे वाहनों की गति को रिकॉर्ड करते हैं, यह भी ठीक उसी प्रकार से काम करता है। एक रडार बंदूक होती है जिसमें रिसीवर और एक ट्रांसमीटर दोनों होते हैं। 

एक रेडियो तरंग गेंद पर प्रतिबिंबित होती है। इस तरंग का पता बंदूक से लगाया जाता है जो डॉपलर शिफ्ट के सिद्धांत का उपयोग करता है ताकि गेंदबाजी करने के दौरान गेंद के यात्रा करने की गति को मापा जा सके।

2. हाॅक आई Hawkeye

हाॅक आई का उपयोग पहली बार 2001 में पेश किया गया था और तब से यह एक अमूल्य उपकरण बन गया है।  इस तकनीक का उपयोग गेंद को हिट करने के बाद उसकी सटीक दिशा का पता लगाने के लिए किया जाता है।

इसका उपयोग अंपायरों द्वारा यह जांचने के लिए किया जाता है कि क्या कोई गेंद बल्ले से लगने पर बाहर गई है या फिर खिलाडी़ के शरीर को छू कर बाहर गई है। एलबीडब्ल्यू निर्णय लेते समय यह बहुत उपयोगी साबित होता है।

इसके लिए 6 कैमरों के फुटेज को एक साथ त्रिभुजित किया जाता है और एक 3D छवि बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। जब कोई खिलाडी़ डी।आर।एस(डिसीज़न रिव्यू सिस्टम) के लिए दर्खवास्त करता है तब हाॅक आई का ही इस्तमाल कर के आखरी निर्णय तय किया जाता है।

3. सुपर साॅपर Super Sopper

हर खेल की तरह क्रिकेट को सही तरीके से खेलने के लिए एक अनुकूल वातावरण की आवश्यकता होती है। इस अनुकूल वातावरण में मैदान का सूखा होना बहुत आवश्यक है। क्रिकेट के खेल की तरह मौसम भी असंभावनाओं से भरा होता है।

लेकिन यह सुपर साॅपर प्रतिकूल माहौल को अनिकूल करने, मतलब गीले मैदान को जल्दी सुखा देने में उपयोग होता है। यदी मैच के दौरान भी बारिश हो कर रुक जाए तो सुपर साॅपर की मदद से कुछ ही देर में मैदान को फिर से पहले जैसा सूखा बनाया जा सकता है।

4. स्पाईडर कैम Spider Cam

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Spidercam – Wikimedia

यह कैमरे का ऐसा सिस्टम है जिसमें कैमरे को उपर-नीचे ,दाएं- बाएं और अन्य किसी भी दिशा में घुमा सकते है। क्रिकेट के अलावा भी अन्य बहुत से खेलों में इसका इस्तमाल खेल के हर पहलू को दर्शाने के लिए करते हैं।

काफी बार अंपायरों को भी इसकी आवश्यकता पड़ जाती है जब कभी उन्हे अपने निर्णय पर संदेह हो तब। अधिक तौर पर इसका उपयोग टैलीवीज़न पर ब्राॅडकास्ट दिखाने वालों द्वारा किया जाता है।

5. एल. ई. डी. लाईट LED Lights

इन लाईट का उपयोग विकेट की स्टंप्स में किया जाता है। जब कभी भी गेंद स्टंप्स को हिट कर के उसे अव्यवस्थित कर देती है तब यह लाईटें अपने आप जल उठती हैं और यह पता लग जाता है कि वह खिलाडी़ खेल से बाहर यानी कि आऊट हो गया है।

6. हाॅट-स्पाॅट Hot-spot

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Hotspot

इस तकनीक के लिए इन्फ्रा रेड कैंमरों की आवश्यकता होती है। यह कैमरे मैदान के छोर पर लगा होता है। गेंद जब भी सतह को छूती है, तब उस सतह पर गर्मी उतपन्न होती है जिसे इस कैमरे से देखा जा सकता है।

इस तकनीक की मदद से अंपायर यह आसानी से पता लगा सकता है कि गेंद बल्ले पर लगी है या कहीं और। इस से यह भी पता लगाया जा सकता है कि बाॅल बल्ले से लगने से पहले कौन से सतह पर कितनी बार छू कर निकली।

7. हैल्मेट कैम Helmet cam

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Helmet cam – Cricket.com.au

बाॅल की दिशा जांचने व अन्य सुविधाओं के लिए अब बल्लेबाजी़ कर रहे दोनों खिलाड़ियों के हैल्मेट में कैमेरा लगे होते हैं। संदेह की स्थिति में इन कैमरे की रिकाॅर्डिंग की सहायता ली जा सकती है।

8. स्निकोमीटर Snickometer

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Snickometer

इस तकनीक में दोनों स्टंप पर एक माईक्रोफोन लगा होता है। इसका इस्तमाल अंपायरों द्वारा बाॅल के बैट पर छूने या ऐज पर लगने की ध्वनी को बारीकी से सुनने के लिए किया जाता है।

मैदान में जनता का बहुत शोर होता है जिसकी वजह से बाॅल का बल्ले को छू कर निकल जाने की आवाज़ नहीं सुनी जा सकती। इसे औसिलस्कोप से जोड़ कर ध्वनि की तरंगों को देखा जा सकता है। हालांकि यह तकनीक अब भी सटीक विवरण नहीं दे पाती।

9. स्टंप कैमरा Stump camera

यह तकनीक अपने नाम की तरह ही काम करती है। इसमें स्टंप में कैमरा लगाया जाता जो खिलाडी़ के आऊट होने या न होने का निर्णय लेने में काम आता है।

10. पिच विज़न Pitch vision

यह तकनीक प्रत्येक खिलाडी़ का प्रदर्शन देखने में उपयोग होती है। इसकी मदद से यह पता लगाया जा सकता है कि कौनसे खिलाडी़ में किस दिशा में ज़्यादा गेंद मारी है और किस गेंदबाज़ ने किस दिशा में ज़्यादा गेंद फेंकी है। जब कभी यह पता लगाना हो कि सभी खिलाडि़यों द्वारा सबसे ज़्यादा चौके व छक्के किस दिशा में लगे हैं तब इसी तकनीक का उपयोग किया जाता है।

11. स्पिन आरपीएम Spin RPM

यह तकनीक केवल स्पिनर गेंदबाजो़ं के लिए ही उपयोग की जाती है। इसके ज़रिए यह पता लगाया जाता है कि गेंदबाज़ के हाथ से छूटने के बाद कितनी बार स्पिन हुई।

12. स्लो मोशन Slow motion

इस तकनीक के लिए उपयोग होने वाले कैमरे सामान्य कैमरों से अलग होते हैं। यह कैमरा केवल स्लो मोशन में ही खेल को रिकाॅर्ड करते हैं। जब कभी किसी दृश्य को बारीकी या दृण्ता से देखना हो तब इन कैमरों की सहायता ली जाती है। आम तौर पर रीप्ले के समय इनका ज़्यादा उपयोग होता है।

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