नो काॅस्ट ईएमआई क्या होती है? What is No Cost EMI Full Details in Hindi?
नो काॅस्ट ईएमआई क्या होती है? What is No Cost EMI Full Details in Hindi?
नो काॅस्ट ईएमआई अकसर खरीददारों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है। बीते कुछ वर्षों में यह बहुत प्रख्यात भी हुई है, लेकिन बहुत ही कम लोगों को इसके बारे में सही और पूरी जानकारी होती है। नो काॅस्ट ईएमआई का शाब्दिक अर्थ होता है “बिना ब्याज की किस्त”।
जब भी हम कोई सामान नकद में ना ख़रीद कर निश्चित समय के लिए उसकी किस्त बनवाना चाहते हैं तो ऐसे में बहुत सी कंपनियां बिना किसी ब्याज दर के ये सुविधा उपलब्ध करवाने का दावा करतीं हैं। नो काॅस्ट ईएमआई की सुविधा का लाभ उठाने के लिए ग्राहक के पास क्रेडिट कार्ड होना अनिवार्य है।
यदी क्रेडिट कार्ड नहीं भी होता तो इसका उपाय भी नाॅन बैंकिग कंपनियों के पास है। नाॅन बैंकिग कंपनियां ग्राहक से कुछ प्रोसेसिंग फीस लेकर उन्हे क्रेडिट कार्ड उपलब्ध करवातीं हैं। नो काॅस्ट ईएमआई की सुविधा देने वाली कंपनियों का संबंध क्रेडिट कार्ड देने वाली बैंकों से होता है।
एक निर्धारित ईएमआई होने के बावजूद भी काफी बार आपके पूरे क्रेडिट कार्ड की लिमिट ही अवरुद्ध हो जाती है जिसकी वजह से आप वह कार्ड किसी और जगह इस्तमाल नहीं कर सकते जब तक ईएमआई पूरी तरह खत्म न हो जाए।
अमेजा़ॅन, फ्लिपकार्ट इत्यादी जैसी ई-काॅमर्स कंपनियों ने नो काॅस्ट ईएमआई स्कीम बाजा़र में लागू की थी और इसी प्रकार अन्य ई-काॅमर्स कंपनियां भी इसे अपनाती चली गईं। अगर हम नो काॅस्ट ईमएमआई पर इन ई-काॅमर्स कंपनियों से सामान खरीदते हैं तो हर महीने की किस्त क्रेडिट कार्ड के मासिक बिल में जुड़ जाती है।
इस आधार पर नो काॅस्ट ईएमआई के तीन हिस्सेदार होते हैं-
- रिटेलर
- ग्राहक
- बैंकिंग कंपनी
नो काॅस्ट ईएमआई की सुविधा केवल कार्ड द्वारा बिल चुकता करने तक ही सीमित है, अगर किस्तें आप नकद में देना चाहते हैं तो इस सुविधा का लाभ नहीं उठा सकते। लेकिन ये एक सोच का विषय है कि कोई बिना ब्याज के उधार दे कैसे सकता है?
इस से तो अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचेगा। इसी मुद्दे को ध्यान में रखते हुए भारतीय रिसर्व बैंक ने 2013 में सभी फाईनेंशियल कंपनी, बैंकिंग व नाॅन बैंकिंग कंपनियो पर जीरो फीसदी लोन व ईएमआई जैसी स्कीम पर रोक लगा दी थी।
17 सितंबर, 2013 को जारी भारतीय रिज़र्व बैंक के एक अधिसूचना के अनुसार, “क्रेडिट कार्ड की बकाया राशि पर दी जाने वाली शून्य प्रतिशत ईएमआई योजनाओं में, ब्याज तत्व अक्सर प्रोसैसिंग फीस यानी प्रसंस्करण शुल्क के रूप में ग्राहक से ले लिए जाते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक का कहना था कि प्रोसेसिंग फीस और हर महीने लाए जाने वाले ब्याज में समानांतरण होना चाहिए।
दोनो की निर्धारित राशि संतुलित होनी चाहिए। एक रकम बहुत ज़्यादा तो दूसरी बिल्कुल जी़रो नहीं होनी चाहिए। इस तरह के व्यापार को ग्राहकों का शोषण माना गया। इस पर रोक लग जाने के बाद ई-काॅमर्स कंपनियों ने नो काॅस्ट ईएमआई स्कीम बाजा़र में लागू की। जीरो फीसदी ब्याज पर लोन और नो काॅस्ट ईएमआई का शाब्दिक अर्थ भले ही एक जैसा हो लेकिन दोनों में बहुत बडा़ अंतर है, जानिए कैसे:-
उदाहरण (Example)
मान लीजिए एक कंपनी है जो फोन बेचती है। एक फोन है जिसकी असल कीमत मात्र 12,000रू/- है। वह कंपनी उस फोन की कीमत आपको 16,000/- बताएगी और नकद में लेने पर 4,000रू/- की छूट देने का दावा करेगी।
वहीं अगर आप फोन किस्तों पर लेना चाहते हैं तो आपको आकर्षित करने के लिए कंपनी आपको नो काॅस्ट ईएमआई का विकल्प देगी। जैसा की फोन की कीमत कंपनी द्वारा 16,000रू बताई गई थी। ईएमआई बनाते दौरान इन्ही 16,000रू को और न कि असल कीमत 12,000रू को सीमित समय सीमा की किस्तों में बाँटा जाएगा।
ये 4,000रू जो नकद लेने पर छूट मिलने होते हैं दरअसल ये ब्याज की रकम है जो आप ईएमआई बनवाने पर देते हैं। इस प्रकार नो काॅस्ट ईएमआई और कुछ नहीं बस एक छलावा है जो ग्राहकों को लुभाने के लिए रिटेलर द्वारा इस्तमाल किया जाता है। त्योहारों के मौसम में सभी दुकानदार इसका बखूबी फायदा उठाते हैं।
नियम व शर्तें (Conditions for no cost EMI)
इस दृष्टिकोण देखा जाए तो नो काॅस्ट ईएमआई का फायदा केवल रिटेलर और बैंक को ही होता है। ग्राहक स्कीम की जड़ मालूम न होने के कारण रिटेलर्स के इस जाल में आसानी से फस जाता है। ये प्रोसेस केवल यहीं खत्म नहीं हो जाता।
यदी आपने नो काॅस्ट ईएमआई पर कोई सामान खरीदा है और हर महीने आप क्रेडिट कार्ड के बिल में उसकी भरपाई कर रहे हो तो ठीक है। लेकिन ऐसे में अगर आप एक महीने बिल भरने से चूक गए तो बैंक द्वारा उस बिल पर भी ब्याज जोड़ दिया जाएगा। वो ब्याज दर कितना होगा ये आपकी बैंक पर निर्भर करता है।
पर ये तो निश्चित है कि ब्याज तो देना ही होगा। अब इस से अंदाजा़ लगाया जा सकता है कि क्रेडिट कार्ड पर बनवाई गई नो काॅस्ट ईएमआई किसी बीमारी से कम नहीं जिसका समय-समय पर इलाज न करो तो बड़ती जाती है। या फिर ऐसा भी कहा जा सकता है कि नो काॅस्ट ईएमआई की भी एक काॅस्ट होती है जिसे जान लेना बेहद ज़रूरी होता है।
मजे़ की बात तो ये है कि ऑनलाइन रिटेलर्स की नकल करने में आॅफलाईन रिटेलरों ने भी देरी नहीं की। अब ये स्कीम सभी बाजा़रों में अलग-अलग प्रोडक्ट्स पर अलग-अलग आॅफरों के साथ देखने को मिल जाती है। पर किस बाजा़र में इसका कितना फायदा या नुकसान है यह तो बाजा़र और उत्पाद के प्रकार के साथ रिटेलर पर निर्भर करता है।
नो कॉस्ट ईएमआई के फायदे और नुकसान (Pro and Cons of no Cost EMI)
ऐसा भी नहीं कहा जा सकता की नो काॅस्ट ईएमआई का कोई फायदा नहीं है सिर्फ नुकसान ही नुकसान है। निर्धारित आय वाला व्यक्ति जो एक साथ बडी़ रकम देनें में असक्षम हो लेकिन हर माह अपनी आय के हिस्से से ईएमआई चुकता कर सकता हो के लिए ये एक लाभकारी स्कीम है।
केवल कुछ चुने हुए उत्पादों और क्रेडिट कार्ड पर ही नो कॉस्ट ईएमआई की सुविधा उपलब्ध है। नो कॉस्ट ईएमआई पर कुछ भी खरीदने से पहले उस से जुडी़ सभी शर्तों को जरूर पढ़ लेना चाहिए। सभी विक्रेता सभी उत्पादों पर यह सुविधा नहीं देते हैं।
इसके अलावा, दुकानदार केवल कुछ ही बैंक के क्रेडिट कार्ड पर इस योजना की पेशकश करते हैं, यदि आपके पास संबंधित बैंक का क्रेडिट कार्ड नहीं है, तो आपको नो-कॉस्ट ईएमआई पर वह सामान नहीं मिले सकेगा। कुछ दुकानदार तो आज भी नो काॅस्ट का ब्याज प्रोसैसिंग फीस के रूप में ही ले लेते हैं।