पुरंदर किला का इतिहास Purandar Fort History in Hindi
पुरंदर किला महान मराठा राजा छत्रपति शिवाजी महाराज का किला था। इतिहास में इसका अपना महत्व है। यह महाराष्ट्र में पुणे से 50 किलोमीटर की दूरी पर सासवाद गांव में स्थित है। इस किले में छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र संभाजी भोसले का जन्म हुआ था। शिवाजी ने अपनी पहली जीत के रूप में इस किले को जीता था।
पुरंदर किला का इतिहास Purandar Fort History in Hindi
यह किला मराठा महान राज्य की वीरता को दिखाता है। इस किले के भीतर एक गुप्त सुरंग है जो बाहर तक जाती है। युद्ध में सैनिक सिपाही और अन्य लोग इसका इस्तेमाल करते थे। यह प्रसिद्ध किला पश्चिमी घाट की पहाड़ियों में समुद्र से 4472 फिट की ऊंचाई पर स्थित है।
इस किले को यादव वंश के शासन काल में बनवाया गया था। पुरंदर नाम भगवान परशुराम के नाम पर रखा गया है। यादव वंश के हारने के बाद यह किला पर्शियन राजाओं के कब्जे में चला गया था। सन 1350 में इससे फिर से बनवाया गया। बीजापुर और अहमदनगर के बादशाह के शासनकाल में इस किले से ही सरकार चलाई जाती थी।
सन 1646 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस किले पर आक्रमण किया था और इसे कब्जे में ले लिया था। मिर्जा राजे जयसिंह औरंगजेब की सेना में शामिल हो गया और उसने 1665 में पुरंदर किले पर आक्रमण कर दिया। दिलेर खान ने भी उसकी मदद की और यह किला औरंगजेब के हाथों में चला गया।
उस समय पुरंदर किले के किलेदार मुरारबाजी देशपांडे थे। औरंगजेब के सिपाहियों से लड़ते हुए वे शहीद हो गए। उन्होंने अपनी आखरी सांस तक इस किले की रक्षा की। सन 1665 में छत्रपति शिवाजी ने औरंगजेब के साथ पहली पुरंदर संधि की थी। इस संधि के अनुसार शिवाजी को 4 लाख होन्स (सोने की मुहरे) औरंगजेब को देने पड़े।
सन 1670 में यह संधि खत्म हो गई और शिवाजी ने पुरंदर किले पर आक्रमण करके इसे पुनः वापस ले लिया। सन 1776 में मराठा सेना और अंग्रेजो के बीच में पुरंदर की दूसरी संधि हुई। सन 1818 में पुरंदर किले पर अंग्रेज सेना के जनरल प्रिज्लर का कब्जा था। अंग्रेज इस किले को जेल की तरह इस्तेमाल करते थे।
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इस किले में दुश्मनों के परिवार वालों को ठहराया जाता था। जर्मनी के ज्यू और आर्यन लोगों को इस किले में रखा जाता था। पुरंदर किले को अस्पताल की तरह भी इस्तेमाल किया जाता था।
पुरंदर किले की संरचना
यह किला दो भागों में बंटा हुआ है। नीचे के हिस्से को माची कहते हैं। माची के उत्तर दिशा में छावनी और अस्पताल बने हुए हैं। किले के भीतर भगवान पुरंदेश्वर के मंदिर बने हुए हैं। माधवराव पेशवा का मंदिर भी किले के भीतर बना हुआ है। इस किले के सेनापति किलेदार मुरारबाजी देशपांडे का पुतला भी बनाया गया है।
माची के उत्तर में अनेक बड़े दरवाजे हैं जहां से द्वारपाल किले की निगरानी करते थे। पुरंदर किले के ऊपरी भाग को बालेकिल्ला कहते थे। बालेकिल्ला में प्रवेश करने के लिए “दिल्ली दरवाजा” नामक बड़े दरवाजे से गुजरना होता था। यह किला सुबह 9:00 से शाम 5:00 बजे तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है। यहां पर प्रवेश निशुल्क है।
किला घूमने का आदर्श समय
सितंबर से फरवरी माह तक का समय पुरंदर किले को देखने के लिए सबसे अच्छा है।
किले तक कैसे पहुंचें
पुरंदर किला जाने के लिए पुणे से टैक्सी, प्राइवेट गाड़ियां और कारें आधार गांव (नारायणपुर) तक जाती हैं। इस गांव के ऊपर से ही पुरंदर किले के लिए एक ट्रैक बना हुआ है। इसी रास्ते से अधिकतर पर्यटक किले तक पहुंचते हैं। पुणे रेलवे स्टेशन भारत के सभी प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।
यह सड़क मार्ग द्वारा “राष्ट्रीय राजमार्ग 4” पर पुणे के दक्षिण में 40 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। वायुमार्ग द्वारा पुणे शहर भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। यहां आने के लिए अनेक फ्लाइट्स उपलब्ध हैं।