कुतुबमीनार का इतिहास व वास्तुकला Qutab Minar History in Hindi
आज के इस लेख में हमने दिल्ली के कुतुबमीनार का इतिहास, वास्तुकला के बारे में Qutab Minar history and architecture in hindi बताया है.
वास्तुकला
कुतुब मीनार दक्षिण दिल्ली के महरौली में स्थित एक प्रसिद्ध मीनार है जो 72.5 मीटर (239.5 फीट) ऊंची है। इसमें कुल 379 सीढ़ियां हैं। इसका आधार 14.32 मीटर ऊंचा और सबसे ऊपर का हिस्सा 2.75 मीटर ऊंचा है।
कुतुब मीनार के ऊपरी भाग पर खड़े होकर दिल्ली शहर को देखने से बहुत ही शानदार दृश्य दिखाई देता है। कुतुब मीनार के बगल में एक दूसरी मीनार भी बनाई गई है जिस “अलाई मीनार” कहते हैं। कुतुबमीनार को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में स्वीकृत किया गया है। पर्यटकों के बीच में यह काफी प्रसिद्ध है।
कुतुब मीनार का निर्माण व इतिहास
कुतुब मीनार का निर्माण दिल्ली के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1192 ई० में शुरू किया था। सुल्तान के नाम पर ही इस इमारत का नाम कुतुब मीनार रखा गया। यह मीनार अफगानिस्तान की जाम की मीनार से प्रेरित है। कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस्लाम धर्म के प्रचार के लिए यहां स्थित वेधशाला को तोड़कर कुतुब मीनार का निर्माण किया था।
कुतुबमीनार में किस शासक ने कितनी मंजिलें बनवाई
- कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1192 ई० में कुतुबमीनार का आधार (पहली मंजिल) ही बनवाया था।
- इल्तुतमिश ने 1220 ई० में कुतुबमीनार में तीन मंजिलों को बढ़ाया।
- कुतुबमीनार पर बिजली गिरने से इसकी ऊपरी मंजिल नष्ट हो गई थी।
- फिरोजशाह तुगलक ने नष्ट हुई मंजिल को फिर से बनवाया और उसके साथ ही कुतुबमीनार में एक नई मंजिल को भी बढ़ाया था। शेरशाह सूरी ने अपने शासनकाल में कुतुब मीनार में एक प्रवेश द्वार बनवाया था।
कुतुब मीनार की वास्तुकला
कुतुबमीनार को लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है, जिस पर कुरान की आयतें लिखी हुई है। पत्थरों पर फूल बेलों की महीन नक्काशी की गई है। कुतुब मीनार दक्षिणी दिल्ली की महरोली बस्ती में स्थित है। महरौली शब्द संस्कृत शब्द मिहिर-अवेली से बना है। मिहिर, राजा विक्रमादित्य के दरबार में एक महान खगोल वैज्ञानिक थे। उनके नाम पर ही इस बस्ती का नाम महरौली रखा गया था।
कुतुब मीनार की पहली तीन मंजिले लाल बलुआ पत्थर से बनाई गई है। चौथी और पांचवी मंजिल संगमरमर और बलुआ पत्थर से बनाई गई है। कुतुब मीनार की नीचे वाली मंजिल में कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बनी है। यह भारत की पहली मस्जिद मानी जाती है। इस मस्जिद के पूर्वी दरवाजे पर लिखा है कि यह मस्जिद 27 हिंदू मंदिरों को तोड़कर पाई गई सामग्री से बनाई गई है।
कुतुब मीनार के इतिहास को लेकर कई विवाद भी हैं। कुछ लोगों का मानना है कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने हिंदू राजाओं पर विजय के बाद इस मीनार को बनवाया था। पर कुछ का मानना है कि उसने नमाज़ पढ़ने के लिए इस मीनार और मस्जिद को बनवाया था।
लौह स्तंभ
इस मस्जिद के अहाते में 7.2 मीटर ऊंचा लौह स्तंभ स्थित है। इसे चौथी शताब्दी में गुप्त वंश में चंद्रगुप्त द्वितीय ने बनवाया था। इस स्तंभ के सबसे ऊपरी भाग में हिंदू देवता गरुड़ का चित्र बना हुआ है। इस स्तंभ का लगभग 98% भाग लोहे का है, इसके बावजूद यह पिछले 1600 सालों से बिना जंग लगे मजबूती से खड़ा हुआ है।
यह स्तंभ पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। ऐसी मान्यता है कि जो कोई हाथों को पीछे करके इस स्तंभ को दोनों हाथों से घेरकर छु पाता है उसकी इच्छा पूरी हो जाती है।
कुतुब मीनार से जुड़ी प्रचलित कथा
ऐसा माना जाता है कि क़ुतुब मीनार का वास्तविक नाम विष्णु स्तंभ था जिसे राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक वराहमिहिर ने बनवाया था। उस समय विष्णु स्तंभ का इस्तेमाल खगोलीय गणना और अध्ययन के लिए किया जाता था। वराहमिहिर एक प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक थे।
वे मिहिर के नाम से भी जाने जाते थे। जब मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन काल आया तो उसने विष्णु स्तंभ को तोड़कर वहां पर मुस्लिम धर्म के प्रचार के लिए कुतुबमीनार की स्थापना थी।
पर्यटन
कुतुब मीनार के चारों ओर हरे-भरे बगीचे हैं। इससे पर्यटक इसकी ओर आकर्षित होते हैं। हर साल 39 लाख लोग देश-विदेश से इसे देखने आते हैं। कुतुब मीनार मुग़लों की वास्तुकला का शानदार उदाहरण है।
कुतुब मीनार में प्रवेश शुल्क
भारतीयों के लिए 30 रूपये और विदेशियों के लिए 500 रुपये प्रति व्यक्ति है.
दुर्घटना
1974 के पहले क़ुतुब मीनार में पर्यटक ऊपरी भाग तक जा सकते थे। 4 दिसंबर 1981 को सीढ़ियों पर लगी बत्तियाँ खराब हो गई। उस समय वहां पर 300 से 430 पर्यटक मौजूद थे। पर्यटकों के बीच भगदड़ मच गई। सभी कुतुब मीनार से बाहर निकलना चाहते थे। ऐसे में 47 पर्यटकों की मौत हो गई। उनमें से कई स्कूल के बच्चे थे। उसके बाद से कुतुब मीनार के भीतर जाना मना है।
कुतुब मीनार की वेबसाइट
https://www.qutubminar.org/
https://www.delhitourism.gov.in/delhitourism/tourist_place/qutab_minar.jsp
Thodda aur vivran dena chahiye
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