रस की परिभाषा, प्रकार, उदहारण Ras in Hindi VYAKARAN
आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे रस की परिभाषा, प्रकार, उदहारण Ras in Hindi VYAKARAN
हिंदी व्याकरण में रस की परिभाषा, प्रकार, उदहारण Ras in Hindi VYAKARAN
रस – हिंदी व्याकरण
रस की परिभाषा
काव्य को पढ़कर मिलने वाली अंदरूनी खुशी को रस कहा जाता है। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि यदि कोई कविता पढ़कर आप प्रेरित एवं उत्तेजित हो जाते हैं तब उस कविता में वीर रस का प्रयोग किया गया है।
इसी प्रकार अन्य कई प्रकार के रस हैं जिन्हे मिलाकर काव्य का निर्माण किया जाता है। यह सभी रस काव्य को गढ़ने के लिहाज से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विश्व में मौजूद हर तरह के काव्य में किसी न किसी प्रकार का रस सम्मिलित है।
रस को दो भागों में बांटा गया है :-
- अंग :- रस के अंगों में वे माध्यम आते हैं, जिन्होने रस का निर्माण किया हो, जिनके कारण रस का निर्माण हुआ हो, या जिनमें रस का संग्रहण किया जा रहा हो।
- प्रकार :- रस के प्रकार में वे सभी भाव आते हैं जो रस को सुनने के बाद उत्पन्न होते हैं।
रस के अंग
रस को प्रायः चार प्रकार के अंगों में बांटा गया है। ये चारों प्रकार के अंग रस के स्थानांतरण के आधार पर बांटे गए हैं। जैसे रस का आदान प्रदान अलग अलग माध्यमों से होता है।
रस के अंग :-
- विभाव
- अनुभाव
- संचारी भाव
- स्थायीभाव
विभाव
विभाव को रस का महत्वपूर्ण, या सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग कहा जा सकता है। यह अंग रस के आस्तित्व को जन्म देने का कार्य करते हैं अर्थात वे सभी तत्व (वस्तु, मनुष्य, स्थान इत्यादि) जो किसी भी मनुष्य के मन में रस को उत्पन्न करते हैं, वे विभाव कहलाते हैं। विभाव के दो महत्वपूर्ण भाग होते हैं :-
- आश्रयालम्बन :- वह व्यक्ति जिसके मन में भाव जागते हैं, वह आश्रयालम्बन कहलाता है।
- विषयालम्बन :- वे तत्व जिनके कारण भाव जागते हैं उन्हे विषयालम्बन कहा जाता है।
अनुभाव
जब मनुष्य का शरीर किसी भी भाव को महसूस करता है तब वह एक विशेष प्रकार की अवस्था में होता है। शरीर की इस अवस्था को अनुभाव कहते हैं। यह रस को प्रकट करने को भी कहा जाता है।
संचारी भाव
जो भाव रसों के माध्यम से संचरण करते हैं वे भाव संचारी भाव कहलाते हैं। जैसे गुस्सा, खुशी, श्रम इत्यादि। संचारी भावों की यह विशेषता होती है कि वे कभी भी एक साथ नहीं होते। यद्यपि यह देखा जा सकता है कि मनुष्य को जब गुस्सा आता है तब वह खुश नहीं हो सकता, और जब उसे शंका हो तो वह उत्सुक नहीं हो सकता। अब तक केवल 37 संचारी भाव ही माने गए हैं। वे भाव हैं :-
- चिंता
- जड़ता
- स्मृति
- विषाद
- उत्सुकता
- श्रम
- मरण
- असुया
- निर्वेद
- उन्माद
- अमर्श
- धृति
- अवहित्था
- मोह
- मति
- अपस्मार
- संत्रास
- चित्रा
- हर्ष
- गर्व
- बिबोध
- व्याधि
- शंका
- आवेग
- मद
- त्रास
- उग्रता
- आलस्य
- लज्जा
- चपलता
- निद्रा
- ग्लानि
- दीनता
- स्वप्न
- दैन्य
- औत्सूक्य
- वितर्क
स्थायीभाव
स्थायीभाव, वे भाव होते हैं जो रस स्थायी रहते हैं। ऐसे प्रकार के रस संचारित नहीं होते न ही वे क्षणिक होते हैं।
रस के प्रकार
किसी भी काव्य को पढ़कर उत्पन्न होने वाले अलग अलग भावों को रस का प्रकार कहा जाता है। रस प्रायः 11 प्रकार के होते हैं।
- शृंगार रस
- हास्य रस
- करूण रस
- रौद्र रस
- वीर रस
- भयानक रस
- बीभत्स रस
- अद्भुत रस
- शान्त रस
- वत्सल रस
- भक्ति रस
शृंगार रस
शृंगार रस का स्थायी भाव प्रेम है। यह रस प्रेम भावनाओं द्वारा उत्पन्न होता है। यह रस दो प्रकार का होता है।
- संयोग रस
- वियोग रस
संयोग एवं वियोग रस प्रेम के दो भागों, मिलने एवं बिछड़ने को प्रदर्शित करते हैं।
शृंगार रस को रसों का राजा अथवा रसराज कहा जाता है। इसका कारण यह है कि शृंगार रस पर अधिकतम काव्य का निर्माण किया गया है।
उदाहरण :-
“जाओ, पर संध्या के संग लौट आना तुम
चाँद की किरन निहारते न बीत जाय रात
कैसे बतलाऊँ इस अंधियारी कुटिया में
कितना सूनापन है
कैसे समझाऊँ, इन हल्की सी साँसों का
कितना भारी मन है
कौन सहारा देगा दर्द -दाह में बोलो
जाओ पर आँसू के संग लौट आना तुम
याद के चरन पखरते न बीत जाय रात ” (सोम ठाकुर)
हास्य रस
हास्य रस का स्थायी भाव हास होता है। ऐसा काव्य पढ़कर हास्य की अनुभूति होती है एवं मन प्रफुल्लित हो उठता है।
उदाहरण :-
“एक दिन मामला यों बिगड़ा
कि हमारी ही घरवाली से
हो गया हमारा झगड़ा
स्वभाव से मैं नर्म हूं
इसका अर्थ ये नहीं
के बेशर्म हूं
पत्ते की तरह कांप जाता हूं
बोलते-बोलते हांफ जाता हूं
इसलिये कम बोलता हूं
मजबूर हो जाऊं तभी बोलता हूं”(शैल चतुर्वेदी)
करूण रस
इस रस का स्थायी भाव शोक है। जिन काव्यों को पढ़कर शोक की अनुभूति होती है, वे करुण रस से मिलकर बने होते हैं।
उदाहरण :-
“क्या कहा! क्या कहा!
कि दिनकर डूब गया?
दक्षिण के दूर दिशांचल में!” (बाल कवि बैरागी)
वीर रस
इस रस को सुनकर उत्तेजना एवं प्रेरणा जैसे भाव उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार के रस सदैव प्रेरित करने के लिए लिखे जाते हैं।
उदाहरण :-
“वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने, हों बड़े,
एक पत्र छांह भी,
मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ” (हरिवंश राय बच्चन)
रौद्र रस
रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है। यह क्रोध की भावना को व्यक्त करने के लिए लिखा जाता है।
उदाहरण :-
“हरि ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान् कुपित होकर बोले-
‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।”(रामधारी सिंह दिनकर)”
भयानक रस
इस प्रकार के रस का स्थायी भाव भय है। यह किसी एक विशेष वस्तु के भय से प्रेरित होकर लिखा जाता है।
उदाहरण :-
“पवन चक्र परचंड चलत, चहुँ ओर चपल गति ।
भवन भामिनी तजत, भ्रमत मानहुँ तिनकी मति ॥
संन्यासी इहि मास होत, एक आसन बासी ।
पुरुषन की को कहै, भए पच्छियौ निवासी ॥” (केशव)
बीभत्स रस
इस प्रकार के रस का स्थायी भाव घृणा होता है और यह रस घृणा को व्यक्त करता है। यह घृणा दो तत्वों के बीच की घृणा होती है।
उदाहरण :-
“खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक
नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक
उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक
जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक ” (नागार्जुन)
अद्भुत रस
इस प्रकार का रस आश्चर्य उत्पन्न करने के लिए होता है। इसका स्थायी भाव विस्मय है।
उदाहरण :-
“आज पवन शांत नहीं है श्यामा
देखो शांत खड़े उन आमों को
हिलाए दे रहा है
उस नीम को
झकझोर रहा है” (त्रिलोचन)
शान्त रस
इस रस का स्थायी भाव वैराग्य है। इसका अर्थ है कि इस रस से बने काव्य मानसिक शांति को प्रदर्शित करते हैं। शान्त रस को नाटक प्रयोजन में मान्य नहीं माना जाता।
उदाहरण :-
“भर देते हो
बार-बार, प्रिय, करुणा की किरणों से
क्षुब्ध हृदय को पुलकित कर देते हो ।
मेरे अन्तर में आते हो, देव, निरन्तर,
कर जाते हो व्यथा-भार लघु
बार-बार कर-कंज बढ़ाकर”(सूर्यकांत त्रिपाठी निराला)
वत्सल रस
यह रस वात्सल्य यानी कि ममता व्यक्त करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका स्थायी भाव वात्सल्य रति है।
“किलकत कान्ह, घुटरूवन आवत।
मनीमय कनक नन्द के आंगन बिम्ब पकरिवे घावत” (सूरदास)
भक्ति रस
यह रस भक्ति को व्यक्त करता है एवं इसका स्थायी भाव अनुराग है।
“राम जपू, राम जपू, राम जपू बावरे,
घोर भव नीर – निधि, नाम निज भाव रे” (तुलसीदास)
Ras ka bhav achha hai
Verry nice
Very Nice and clear