1857 के विद्रोह का इतिहास Revolt of 1857 History in Hindi
क्या आप 1857 के विद्रोह का इतिहास जानना चाहते हैं? (Revolt of 1857 History in Hindi). अगर हां, इस लेख में आपके लिए 1857 के विद्रोह का इतिहास (History of the Revolt of 1857 in Hindi) पर सभी मुद्दों को बेहद सरल शब्दों में शामिल किया गया है।
सन 1857 विद्रोह प्रारंभ होने से लेकर, प्रभाव, असफलता के कारण, विद्रोह केंद्र आदि आवश्यक जानकारियों को शामिल किया गया है।
1857 के विद्रोह की शुरुवात Starting of Revolt of 1857 in Hindi
संपन्न कहे जाने वाले भारत देश को विदेशी आताताईयों ने कई बार लूटा है। भारतीय इतिहास में सैकड़ों ऐसी घटनाएं घटी हैं, जिन्होंने भारत पर अपना गहरा छाप छोड़ा है।
आजादी के कई साल बीत जाने के बाद भी भारतीय 1857 के विद्रोह का इतिहास आज तक नहीं भूल पाए हैं। यह विद्रोह भारतीय इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना रही है।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के सैनिकों में कारतूस को लेकर यह विद्रोह शुरू हुआ था, जिसने आगे चलकर एक भयानक और हिंसात्मक विद्रोह का रूप ले लिया।
अमर शहीद मंगल पांडे को जब फांसी की सजा सुनाई गई थी तभी अंग्रेजों के अत्याचारों से छुटकारा पाने के लिए पहली बार स्वतंत्रता के नींव पड़ी थी।
1857 का विद्रोह इतिहास History of Revolt of 1857 in Hindi
1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है। ऐसा माना जाता है कि भारत की आजादी की पहली नींव इसी विद्रोह में रखी गई थी।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ 1857 में एक व्यापक स्तर पर भारतीयों द्वारा विरोध किया गया था। गुलामी के समय में ऐसा पहली बार हुआ था, जब आम लोग भी सड़कों पर प्रदर्शन के लिए उतरे हो।
यह व्यापक विद्रोह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी कि सेना के सिपाहियों द्वारा शुरू किया गया था। आगे चलकर आम जनता ने भी इस विद्रोह में बड़े स्तर पर हिस्सा लिया।
क्योंकि यह विद्रोह भारतीय सैनिकों द्वारा प्रारंभ किया गया था, इसीलिए सर्वप्रथम इसे सिपाही विद्रोह कहा जाता था। आगे चलकर इस विद्रोह को कई नाम से जाना गया, जैसे- भारतीय विद्रोह, महान विद्रोह, स्वतंत्रता का पहला युद्ध इत्यादि।
1857 का विद्रोह पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया था। लेकिन इसके कारण कई भारतीय दलों के राजनेताओं की विचारधारा आपस में मिलने लगी थी और लोगों में बड़े स्तर पर एकता देखी गई थी।
विद्रोह के कारण Reasons of the Rebellion in 1857 in Hindi
एक शोध के द्वारा यह सिद्ध हुआ है, कि चर्बी युक्त कारतूस का प्रयोग विद्रोह का एकमात्र या मुख्य कारण नहीं माना जा सकता।
ऐसा माना जाता है, कि विद्रोह शुरू होने के कई महीने पहले से ही हिंसा का वातावरण बन रहा था। अंग्रेजी शासन में भारतीयों को लेकर अशांति जनक माहौल पैदा हो रहे थे।
असल में भारतीयों के प्रति ब्रिटिश सरकार की खराब सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक जैसे अनेकों नीतियों के कारण भारतीयों में असंतोष ने बड़ा रूप ले लिया। जिसके परिणाम स्वरूप विद्रोह हुआ।
तात्कालिक कारण
1857 के विद्रोह की शुरुआत सैनिक विद्रोह से हुई, इसीलिए सैनिक तत्कालीन कारण के केंद्र थे। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के सैनिकों में भारतीयों की संख्या गोरों के मुकाबले अधिक थी।
एक अफवाह फैली थी, कि नई एनफील्ड राइफल के कारतूसों को बनाने में गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है। राइफल को लोड करने के लिए सिपाहियों को सबसे पहले कारतूस को मुंह से खोलना पड़ता था।
सैनिकों में हिंदू और मुस्लिम दोनों सिपाहियों की संख्या अधिक थी। जब यह अफवाह चारों तरफ फैल गई, तो सिपाहियों ने इसका इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया। हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोगों के अपमान के कारण लोगों का गुस्सा चरम पर पहुंच गया।
लॉर्ड कैनिंग ने अपनी गलती को सुधारने के लिए संशोधन करने का प्रयास किया और कारतूस को वापस ले लिया गया लेकिन तब तक पूरे देश में अशांति बहुत बढ़ चुकी थी।
कारतूस के बदले नई राइफल ने जगह ले लिया। लेकिन मार्च 1857 को एक सैनिक मंगल पांडे ने नए राइफल के प्रयोग के विरुद्ध आवाज उठाई और अपने ही सीनियर अधिकारियों पर हमला कर दिया।
मंगल पांडे को 8 अप्रैल 1857 को फांसी की सजा सुना दी गई। मंगल पांडे की फांसी के बाद मेरठ में कई भारतीय सैनिकों ने भी नए राइफल के प्रयोग से इनकार कर दिया। परिणाम स्वरूप उन्हें भी 10- 10 वर्ष की सजा सुना दी गई।
धार्मिक और सामाजिक कारण
कंपनी ने शासन के विस्तार के साथ ही अंग्रेजों ने सभी भारतीयों के साथ पाशविक व्यवहार करना प्रारंभ कर दिया था। शासन के दौरान भारत में तेजी से फैल रहे पश्चिमी सभ्यता भारतीयों में एक चिंता का विषय बना।
- किसी भी बड़े अधिकारिक पदों पर भारतीयों की नियुक्ति नहीं की जाती थी।
- ईसाई धर्म अपनाने वाले लोगों को शासन में उच्च पद प्रदान किया जाता था।
- वंशानुक्रम चलते आ रहे हिंदू कानून को 1850 के अधिनियम द्वारा बदल दिया गया।
- शिक्षा ग्रहण के नए पश्चिमी तरीके मुसलमानों और हिंदुओं की रूढ़िवादी विचारधाराओं को चुनौती दे रहे थे।
- भारतीय होने के कारण हर जगह लोगों को अपमानित किया जाता था।
- रेलवे और टेलीग्राफी जैसे कई नहीं सुविधाओं की शुरुआत विस्तार वाद की दृष्टि से शुरू किए गए।
- भारतीयों को यह लगने लगा था, की अंग्रेज उन्हें ईसाई धर्म में बदलने की योजना बना रहे हैं।
आर्थिक कारण
ब्रिटिश सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों और जमींदारों की भूमि पर बहुत ज्यादा लगान और कर वसूली के सख्त नियम कानून लागू कर दिया था।
जमीन पर भारी-भरकम लगान को न चुका पाने के कारण लोगों की पुस्तैनी ज़मीन भी पीढ़ी दर पीढ़ी हाथ से निकलती जा रही थी।
ब्रिटेन के सस्ते मशीनों द्वारा निर्मित वस्तुएं भारतीय उद्योगों से प्रतिस्पर्धा कर रही थी। विदेशों में बनने वाली सभी चीजें भारतीय हस्तकला द्वारा निर्मित वस्तुओं के मुकाबले सस्ते और उच्च गुणवत्ता वाले होते थे।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रवेश के बाद सबसे ज्यादा प्रभाव कपड़ा उद्योग पर पड़ा परिणाम स्वरुप कुछ ही समय में वह बर्बाद हो गया।
अंग्रेजों ने ग्रामीण आत्मनिर्भरता को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया था। रोजगार के छोटे-मोटे साधन भी नष्ट होने लगे थे, जिससे लोगों में गरीबी और बेरोजगारी की बड़ी समस्या उत्पन्न हो रही थी।
राजनीतिक कारण
ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों की भागीदारी नौकरशाही के पदों से धीरे-धीरे करके नष्ट कर दिया था।
अंग्रेजों ने यह कानून बना दिया था कि शासन करने वाले किसी भी राजा-महाराजा के पुत्र न होने पर वह किसी को भी गोद नहीं ले सकता है। इस नीति के अंतर्गत अवध को पूरी तरह अपने कब्जे में ले लिया गया था।
झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के दत्तक पुत्र को सिंहासन पर बैठने की अनुमति प्रदान नहीं की गई। डलहौजी ने सतारा, नागपुर और झांसी जैसे कई बड़े रियासतों को अपने अधिकार में ले लिया था।
विद्रोह के केंद्र Center of Rebellion in Hindi
कारतूस के खिलाफ सैनिकों में विद्रोह के बाद जब मंगल पांडे को फांसी दे दी गई, तो इस विद्रोह ने एक बड़ा रूप ले लिया। बड़े-बड़े भारतीय नेताओं के साथ भारत की आम जनता भी विद्रोह की इस आग में कूद पड़ी थी।
ग्वालियर: झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने नानासाहेब के सेनापति तात्या टोपे की सहायता से इस विद्रोह का मोर्चा संभाला और ग्वालियर में बड़े स्तर पर मार्च किया।
लखनऊ: उस समय अवध लखनऊ की राजधानी थी। बेगम हजरत महल ने लखनऊ में विद्रोह का नेतृत्व संभाला।
झांसी: जब अंग्रेजों ने झांसी की रानी के दत्तक पुत्र को सिंहासन पर बैठने से इनकार कर दिया, तो उन्होंने झांसी में विद्रोहियों का नेतृत्व किया।
बिहार: कुंवर सिंह ने अंग्रेजो के खिलाफ बिहार में प्रभावी विद्रोह किया, जो एक शाही परिवार से ताल्लुक रखते थे।
कानपुर: पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नानासाहेब ने कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व किया।
दमन और विद्रोह का यह सिलसिला एक वर्ष तक ऐसे ही चलता रहा, जिसके कुछ समय बाद लॉर्ड कैनिंग ने मेरठ में 8 जुलाई, 1858 को शांति की घोषणा कर दी।
1857 के विद्रोह का परिणाम Result of the Revolt of 1857 in Hindi
सैन्य पुनर्गठन: सैनिकों में यूरोपियन सिपाहियों की संख्या बढ़ाकर भारतीय सिपाहियों की संख्या कम कर दी गई और सैनिकों का एक नया अनुपात बनाया गया।
धार्मिक सहिष्णुता: ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को यह आश्वासन दिया, कि वे उन लोगों के धर्म और समाज की रीती- रिवाजों और परंपराओं का पूरी तरह सम्मान करेंगे।
कंपनी शासन का अंत: 1857 के महान विद्रोह के बाद भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के अंत की वजह बनी।
प्रशासन में परिवर्तन:
- प्रशासन में भारतीयों को भागीदार बनने का आश्वासन दिया गया।
- कब्ज़ा किए गए रियासतों को दत्तक पुत्र को सौंप दिया गया।
- बड़े आधिकारिक पदों पर भारतीयों को स्थान दिया गया।
- गवर्नर जनरल के पद को वायसराय के पद से बदल दिया गया।
विद्रोह की असफलता के कारण Reasons for the failure of the rebellion in Hindi
वैचारिक असमानता: 1857 के विद्रोह में भारत के अलग-अलग हिस्सों के बड़े-बड़े नेताओं में वैचारिक मतभेद था।
सीमित संसाधन: विद्रोह के समय पर्याप्त मात्रा में उन्नत हथियार और वित्त की कमी थी। लंबे समय तक लड़ने और आंदोलन करने के लिए अनाज की कमी भी होने लगी थी।
प्रभावी नेतृत्व का अभाव: हालांकि इस महान विद्रोह में झांसी की रानी, नानासाहेब, तात्या टोपे और अन्य प्रभावी नेता थे, किंतु वे इस आंदोलन को सही रूप नहीं प्रदान कर सकें।
सीमित क्षेत्र में प्रभाव: 1857 का विद्रोह बहुत बड़े स्तर पर किया गया था। लेकिन प्रभावी नेतृत्व और आवश्यक संसाधनों के अभाव के कारण इस विद्रोह को बड़ा रूप नहीं मिल पाया।
कुछ सीमित क्षेत्र में जैसे- ग्वालियर, लखनऊ, झांसी, बिहार और कानपुर जैसे अन्य क्षेत्रों में यह विद्रोह सिमट कर रह गया। 1857 के विद्रोह की असफलता का मुख्य कारण विद्रोह के व्यापक स्तर पर फल पाने को माना जा सकता है।
1857 के विद्रोह पर प्रख्यात पुस्तकें Famous Books on the Revolt of 1857 in Hindi
1909 में विनायक दामोदर सावरकर जी ने 1857 को भारतीय क्रांति का नाम दिया। उन्होंने इस पर आधारित एक पुस्तक लिखी थी- “1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम” जो उस समय बेहद चर्चित था। ब्रिटिश सरकार ने वीर सावरकर के इस पुस्तक के छपने पर पूरी तरह से रोक लगा दिया।
इसके अलावा कई लेखकों ने 1857 के विद्रोह पर अलग-अलग पुस्तकें लिखी हैं-
- रिलीजन एंड आइडियोलॉजी ऑफ द रिबेल ऑफ 1857- इकबाल हुसैन
- एक्सकवेशन ऑफ ट्रुथ: अनसुंग हीरोज ऑफ 1857 वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस- खान मोहम्मद सादिक खान
- ग्रेट न म्यूटिनी- क्रिस्टोफर हीबर्ट
1857 के विद्रोह पर 10 वाक्य Few Lines on Revolt of 1857 in Hindi
- क्रांति की शुरुआत 10 मई, 1857 ई. को मेरठ से हुई, जो धीरे-धीरे कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली, अवध आदि स्थानों पर फैल गई।
- 1857 के विद्रोह का प्रमुख राजनीतिक कारण ब्रिटिश सरकार की ‘गोद निषेध प्रथा’ या ‘हड़प नीति’ थी।
- कंपनी शासन के विस्तार के साथ-साथ अंग्रेज़ों ने भारतीयों के साथ अमानवीय व्यवहार करना प्रारंभ कर दिया।
- यह अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति थी जो ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के दिमाग की उपज थी।
- यह विद्रोह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के सिपाहियों के विद्रोह के रूप में शुरू हुआ, लेकिन जनता की भागीदारी भी इसने हासिल कर ली।
- हड़प नीति के तहत ब्रिटिश शासन ने सतारा, नागपुर और झांसी को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया।
- 1857 के विद्रोह को कई नामों से जाना जाता है। जैसे सिपाही विद्रोह, भारतीय विद्रोह, महान विद्रोह इत्यादि।
- विद्रोह में मंगल पांडे ने आगेवानी की उनके बाद बहुत से सैनिक इस विद्रोह में शामिल हुए।
- मेरठ से पहली स्वतंत्रता संग्राह यानी 1857 का विद्रोह शुरू हुआ।
- इस विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने 8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी दे दी थी।
निष्कर्ष Conclusion
इस लेख में हमने 1857 के विद्रोह का इतिहास हिंदी (1857 History of the Revolt in Hindi) में पढ़ा। उम्मीद है कि यह लेख आपको पसंद आया होगा। अगर यह लेख आपको जानकारी से भरपूर लगा हो तो शेयर जरूर करें।
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yes this is best for short notes
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वीर सेनानियों को शत शत नमन
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Revolt against British .i very thankful for this