समास की परिभाषा भेद, उदाहरण Samas in Hindi VYAKARAN

समास की परिभाषा भेद, उदाहरण Samas in Hindi VYAKARAN

समास का अर्थ होता है ‘छोटा रूप’। जब किन्ही दो या अधिक शब्दों को आपस में जोड़ कर या संधि करके एक नवीन एवं बेहतर शब्द में परिवर्तित किया जाता है, तो इस प्रक्रिया को समास कहा जाता है।

समास की परिभाषा भेद, उदाहरण Samas in Hindi VYAKARAN

समास के प्रयोग से पूर्व में प्रयोग किये जाने वाले शब्दों के संक्षिप्तिकरण के द्वारा एक सार्थक एवं तार्किक शब्द को उत्पन्न किया जाता है। समास के द्वारा पूर्व के शब्द से विभक्तियाँ हटा दी जाती हैं। शब्द के इस नए तथा छोटे रूप को समस्त पद, सामासिक शब्द अथवा समास के नाम से जाना जाता है।

समास के प्रयोग से पूर्व में प्रयोग किये जाने वाले शब्दों के संक्षिप्तिकरण के द्वारा एक सार्थक एवं तार्किक शब्द को उत्पन्न किया जाता है। समास के द्वारा पूर्व के शब्द से विभक्तियाँ हटा दी जाती हैं। शब्द के इस नए तथा छोटे रूप को समस्त पद, सामासिक शब्द अथवा समास के नाम से जाना जाता है।

वहीं दूसरी ओर, समास के ठीक उलट संक्षिप्त शब्द को पुनः विभक्ति के साथ उसके वास्तविक रूप में विस्तार से लिखने को समास-विग्रह की प्रक्रिया कहा जाता है। समास-विग्रह करने पर विभक्ति चिन्ह पुनः शब्द के साथ जुड़ जाते हैं।

पूर्वपद तथा उत्तरपद:
किसी एक सामासिक शब्द को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
1) पूर्वपद
2) उत्तरपद
इसे एक उदाहरण के ज़रिये समझा जा सकता है:
राजकुमार= राज+कुमारराजा का कुमार अथवा पुत्र।
#यहाँ पर ‘राज’ पूर्वपद तथा ‘कुमार’ उत्तरपद है।

समास के भेद

प्रमुख रूप से, समास के निम्नलिखित छः भेद होते हैं:-
1)अव्ययीभाव समास
2) तत्पुरुष समास
3) द्विगु समास
4) द्वंद्व समास
5) बहुब्रीहि समास
6) कर्मधारय समास

1) अव्ययीभाव समास: 

जब भी किसी सामासिक शब्द में पूर्व पद सदैव प्रधान होता है, तथा वह शब्द अव्यय हो, अर्थात उस शब्द पर किसी भी तरह के कारक, लिंग, वचन, काल के परिवर्तन का असर ना पड़े, तब उस सामासिक शब्द पर अव्ययीभाव समास प्रयुक्त किया गया होता है। इस समास के उपयोग से समस्त पद अव्यय में बदल जाता है, तथा फिर उसका रूप कभी नही बदलता। इसके अलावा ऐसे समस्त पद के साथ विभक्ति चिन्ह भी नही लगाते हैं।

अव्ययीभाव समास वहां पर भी प्रयुक्त होता है जब किसी एक ही शब्द की पुनरावृत्ति हो तथा इसके कारण नया समस्त पद एक अव्यय के रूप में कार्य करे। इसी समास में कभी कभी संस्कृत भाषा के उपसर्ग भी पूर्वपद के रूप में समस्त पद में अव्ययीभाव समास के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
अव्ययीभाव समास को दर्शाते कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:-

  • प्रतिदिन- हर रोज़
  • बद्तमीज़- बुरी तमीज़ वाला
  • आमरण- मृत्यु तक का
  • प्रतिवर्ष- हर साल
  • भरमार- अत्यधिक मात्रा में
  • यथामति- बुद्धि के अनुसार
  • खूबसूरत- अच्छी सूरत वाला
  • निस्वार्थ- बिना किसी स्वार्थ के
  • निर्विरोध- बिना किसी विरोध के
  • बेताज- बिना किसी ताज(मुकुट) का
  • यथामन- इच्छा के अनुसार
  • बेलगाम- बिना किसी अंकुश के
  • निःसंदेह- बिना किसी शक के
  • लाइलाज- जिसका इलाज न हो
  • यथासामर्थ्य- सामर्थ्य के अनुसार
  • आजन्म- जन्म पर्यंत

2) तत्पुरुष समास:

जब किसी सामासिक शब्द में उत्तर पद प्रधान होता है, तथा पूर्व पद तुलनात्मक रूप से कम महत्ता का होता है, वहां पर तत्पुरुष समास प्रयुक्त होता है। तत्पुरुष समास के सामासिक शब्दों को संधि-विग्रह करने पर इसमें विभक्ति चिन्ह जुड़ जाते हैं। तथा इन्ही विभक्तियों के आधार पर ही तत्पुरुष समास को निम्नलिखित छः उपभेदों में वर्गीकृत किया गया है:-
क) कर्म तत्पुरुष:-
विभक्ति चिन्ह- ‘को’
कर्म तत्पुरुष समास के अंतर्गत समास-विग्रह करने पर कर्म से पहले विभक्ति चिन्ह ‘को’ का प्रयोग किया जाता है। 
कर्म तत्पुरुष समास से जुड़े कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  • कोषाध्यक्ष= कोष (से जुड़ी व्यवस्था) ‘की’ अध्यक्षता करने वाला।
  • विद्यार्पण= विद्या ‘को’ अर्पण।
  • मनभावन= मन ‘को’ लुभाने वाला।
  • अंतोतगत्वा= अंत ‘को’ गया हुआ।
  • अर्थोपार्जन= अर्थ ‘को’ अर्जित करना।
  • वन-गमन= वन ‘को’ गमन।
  • जेब-कतरा= जेब ‘को’ कतरने वाला।
  • मनमोहिनी= मन ‘को’ मोहने वाली।

ख) करण तत्पुरुष:-
विभक्ति चिन्ह- ‘से/के द्वारा’
करण तत्पुरुष समास के अंतर्गत समास-विग्रह करने पर कर्त्ता के पश्चात् विभक्ति चिन्ह ‘से/के द्वारा’ का प्रयोग किया जाता है। 
करण तत्पुरुष समास से जुड़े कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  • मनचाहा= मन ‘से’ चाहा।
  • गुरु-प्रदत्त= गुरु ‘से’ प्रदत्त।
  • कबीरवाणी= कबीर ‘द्वारा’ वाणी।
  • मीराकृत= मीरा ‘द्वारा’ रचित।
  • हस्त-लिखित= हाथ ‘से’ लिखित।

ग) सम्प्रदान तत्पुरुष:- 
विभक्ति चिन्ह- ‘के लिए’
सम्प्रदान तत्पुरुष समास के अंतर्गत समास-विग्रह करने पर विभक्ति चिन्ह ‘के लिए’ का प्रयोग किया जाता है। 
सम्प्रदान तत्पुरुष समास से जुड़े कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  • पूजाघर= पूजा ‘के लिए’ घर।
  • गुरु-दीक्षा= गुरु ‘के लिए’ दीक्षा।
  • विद्यालय= विद्या ‘के लिए’ आलय।
  • पाठ्य-पुस्तक= पढ़ने ‘के लिए’ पुस्तक।
  • अनाथालय= अनाथों ‘के लिए’ आलय।
  • पठन-सामग्री= पढ़ने ‘के लिए’ सामग्री।

घ) अपादान तत्पुरुष:-
विभक्ति चिन्ह- ‘से(अलग होने पर)’
अपादान तत्पुरुष समास के अंतर्गत समास-विग्रह करने पर विभक्ति चिन्ह ‘से’ का प्रयोग किया जाता है। 
अपादान तत्पुरुष समास से जुड़े कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  • देशद्रोह= देश ‘से’ द्रोह।
  • भयभीत= भय ‘से’ भीत(भरा हुआ)।
  • मार्ग-विमुख= मार्ग ‘से’ विमुख।
  • मति- भ्रष्ट= मति ‘से’ भ्रष्ट।
  • बुद्धिहीन = बुद्धि ‘से’ हीन।

ङ) सम्बन्ध तत्पुरुष:-
विभक्ति चिन्ह- ‘का/की/के’
सम्बन्ध तत्पुरुष समास के अंतर्गत समास-विग्रह करने पर विभक्ति चिन्ह ‘का/की/के’ का प्रयोग किया जाता है। 
सम्बन्ध तत्पुरुष समास से जुड़े कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  • राजदरबार= राजा ‘का’ दरबार।
  • मंत्री-मंडल= मंत्रियों ‘का’ मंडल।
  • अमरस= आम ‘का’ रस।
  • हर्षचरित= हर्ष ‘का’ चरित।
  • राजमहल= राजा ‘का’ महल।
  • त्रिलोकीनाथ= त्रिलोक ‘के’ नाथ।
  • मुण्डमाला= मुण्डों ‘की’माला।
  • दीनबंधु= दीनों ‘के’ बंधु।
  • रामकथा= राम ‘की’ कथा।

च) अधिकरण तत्पुरुष:-
विभक्ति चिन्ह- ‘में/पे/पर’
अधिकरण तत्पुरुष समास के अंतर्गत समास-विग्रह करने पर विभक्ति चिन्ह ‘में/पे/पर’ का प्रयोग किया जाता है। 
अधिकरण तत्पुरुष समास से जुड़े कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  • वृक्षवास= वृक्ष ‘में’ वास।
  • आत्मग्लानि= आत्मा ‘में’ ग्लानि।
  • भ्राताश्रेष्ठ= भ्राताओं ‘में’ श्रेष्ठ।

3) द्विगु समास:

जिस सामासिक शब्द में सामान्यतः पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण का बोध कराये, तथा उत्तर पद के साथ जुड़कर किसी समूह को दर्शाया गया हो, वहां पर द्विगु समास प्रयुक्त होता है।
सामासिक शब्द का समास- विग्रह करने पर प्रायः विभक्ति के साथ ‘समूह’ अथवा ‘समाहार’ शब्द का प्रयोग किया जाता है।
द्विगु समास से जुड़े कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  • चौराहा= चार रास्तों का समाहार।
  • शताब्दी= सौ वर्षों का समूह।
  • पंचामृत= पञ्च अमृत का समाहार।
  • तिराहा= तीन रास्तों का समाहार।
  • सप्ताह= सात दिनों का समाहार।
  • त्रिभुज= तीन भुजाओं का समाहार।
  • नवरंग= नौ रंगों का समाहार।
  • सप्तऋषि= सात ऋषियों का समाहार।
  • नवग्रह= नौ ग्रहों का समाहार।
  • पंचनद= पांच नदियों का समाहार।

4) द्वंद्व समास:

जिस सामासिक शब्द में दोनों पद, अर्थात पूर्व पद एवं उत्तर पद, प्रधान होते हैं, वहाँ पर द्वंद्व समास प्रयुक्त होता है। 
ऐसे शब्दों का समास-विग्रह करने पर ‘और/एवं/तथा/या/अथवा’ इत्यादि योजक चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। प्रायः ऐसा देखा जाता है कि जिन सामासिक शब्दों में द्वंद्व समास का प्रयोग होता है, उसमे पूर्व पद एवं उत्तर पद एक दूसरे के विपरीतार्थक शब्द होते हैं, परंतु ऐसा सदैव हो, यह भी ज़रूरी नही है।
द्वंद्व समास से जुड़े कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  • राजा-रंक= राजा और रंक।
  • पिता-पुत्री= पिता और पुत्री।
  • शीतोष्ण= शीत अथवा उष्ण।
  • आज-कल= आज और कल।
  • अच्छा-बुरा= अच्छा और बुरा।
  • पाप-पुण्य= पाप या पुण्य।
  • मंदिर-मस्जिद= मंदिर और मस्जिद।
  • मल्लिकार्जुन= मल्लिका और अर्जुन।
  • सम-विषम= सम और विषम।
  • नर-नारी= नर और नारी।
  • हार-जीत= हार तथा जीत।
  • सुरासुर= सुर या असुर।

5) बहुब्रीहि समास:

जिस सामासिक शब्द में कोई भी पद, अर्थात न तो पूर्वपद न ही उत्तरपद, प्रधान नही हो, तो वहाँ पर बहुब्रीहि समास प्रयुक्त होता है। इसमें सामासिक शब्द का वास्तविक अर्थ दर्शाए गये दोनों ही पदों से इतर, किसी अन्य विशेष व्यक्ति, वस्तु अथवा स्थान का बोध कराता है। तथा यह शब्द एक तरह से संज्ञा के विशेषण के रूप में प्रयोग किये जाते हैं।
बहुब्रीहि समास से जुड़े कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  • राजीवनयन= राजीव(कमल) के समान हैं नयन जिसके अर्थात श्री राम।
  • गिरधारी= गिरि को धारण करने वाला अर्थात श्री कृष्ण।
  • पीताम्बर= पीला है अम्बर जिसका अर्थात श्री कृष्ण।
  • गजानन= गज के समान मुख है जिसका अर्थात श्री गणेश।
  • षडानन= षट(छः) हैं आनन जिसके अर्थात भगवान कार्तिकेय।
  • नीलकंठ= नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव जी।
  • रतिपति= रति के पति हैं जो अर्थात कामदेव।
  • श्वेताम्बरी= श्वेत हैं अम्बर जिसके अर्थात देवी सरस्वती।

6) कर्मधारय समास:

जिस सामासिक शब्द में एक पद विशेषण, तो दूसरा पद विशेष्य, अर्थात जो विशेषण की विशेषता दर्शाए, हो, वहां पर कर्मधारय समास प्रयुक्त होता है। कर्मधारय समास में, प्रायः सामासिक शब्द प्रधान न होकर, शब्दार्थ की प्रधानता होती है । समास-विग्रह करने पर प्रायः ‘रुपी’ शब्द का प्रयोग भी किया जाता है।
कर्मधारय समास से सम्बंधित कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  • मंद-बुद्धि= मंद है जिसकी बुद्धि।
  • मृगनयनी= मृग के जैसे नयन वाली।
  • मुखारविंद= मुख रुपी अरविन्द।
  • शुक्ल-पक्ष= शुक्ल है जो पक्ष।
  • लौहपुरुष= लोहे के समान(दृढ़) है जो पुरुष।
  • राजीवलोचन= राजीव के समान लोचन।
  • बाघम्बर= बाघ(खाल) का है जो अम्बर।
  • पीताम्बर= पीला है जो अम्बर।

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