संकष्टी व्रत कथा, महत्व, पूजा विधि Sankashti story and Its importance in Hindi

संकष्टी व्रत कथा, महत्व, पूजा विधि Sankashti story and Its importance in Hindi

दोस्तों वैसे तो भक्त भिन्न प्रकार के व्रत, पूजन अर्चन करके अपने आराध्य को मनाने एवं उनका आशीष पाने की कोशिश करते रहते है, और ऐसा कर के उन्हें लाभ भी मिलता है, और सफलता भी। ऐसे ही एक व्रत के बारे में, मैं आज आपको बताने वाला हूँ, जिसको हम भगवान गणेश जी की कृपा पाने के उद्देश्य से करते है, वो व्रत है संकष्टी चतुर्थी का, आज हम बात करेंगे कैसे संकष्टी व्रत और पूजन करके हम गणेश जी की कृपा प्राप्त कर सकते है? इस व्रत में भगवान श्री गणेश का पूजन और व्रत किया जाता है।

संकष्टी चतुर्थी हर महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है, पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं, और अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।

संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की आराधना करके विशेष वरदान प्राप्त किया जा सकता है, संकष्टी चतुर्थी को भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करना हर तरीके से लाभप्रद होता है, और भगवान गणेश की कृपा भी प्राप्त होती है।

महत्व

यदि संकष्टी चतुर्थी मंगलवार के दिन पड़ती है, तो इसे अंगार की चतुर्थी के नाम से जाना जाता है, अंगार की संकष्टी के व्रत का महत्व पुराणों एवं धार्मिक ग्रंथो में दिया गया है। पौराणिक कथा के अनुसार गणेश जी की पूजा करने से लोगो को कार्य में बाधा का सामना नही करना पड़ता, अंगार की चतुर्थी 6 महीने में 1 बार आती है, और इसे करने से पूरे साल की संकष्टी का लाभ मिलता है, इस दिन गणेश जी की पूजा विशेष मंत्रो द्वारा की जाती है, अंगार का मतलब लाल एवं जलती हुई अंगीठी से है, इसलिए इसे मंगलवार से जुड़ा हुआ माना जाता है।

भगवान गणेश बाधाओं से मुक्त करते है, इसीलिए इनकी पूजा लाल कपड़े पहन कर किये जाने का विशेष महत्व है।       

मान्यता है की ऋषि भारद्वाज और एक महान ऋषि अंगारक भगवान गणेश के भक्त थे। उन्होंने भगवान गणेश से पूजा करके आशीर्वाद माँगा, कि उनका नाम हमेशा हमेशा के लिए गणेश जी से जुड़ जाये। माघ कृष्ण चतुर्थी के दिन गणेश जी ने उन्हें यह आशीर्वाद दे दिया, तभी से हर मंगलवार को होने वाली चतुर्थी को अंगार की चतुर्थी के नाम से जाना जानने लगा, जो भी इस दिन गणेश जी की पूजा अर्चना करता है, व्रत करता है उसके सभी कष्ट समाप्त होते है।  

इस दिन भगवान गणेश का पूरे विधि-विधान से पूजन करने पर सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। संकष्टी को सभी संकट को हरने वाली चतुर्थी भी कहा जाता है।

यदि आप भगवान से भौतिक सुखों की प्राप्ति हेतु गणेश जी पर बेल फल चढाते है तो गणेश जी प्रसन्न अवश्य होंगे। भगवान गणेश जी को विघ्नहर्ता, मंगल-कर्ता और प्रथम पूज्य देवता के रूप में जाना जाता है।

पूजन विधि

  • इस दिन सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक भगवान गणेश का व्रत रखा जाता हैं, मान्यता है कि चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा और उनका व्रत करना बहुत फलदायी सिद्ध होता है।
  • भगवान गणेश जी की प्रतिमा को ईशान कोण में चौकी पर लाल या पीले रंग के कपड़े पर विराजमान करना चाहिए।
  • भगवान गणेश को जल, अक्षत, दूर्वा घास, लड्डू, पान, धूप, सुपारी आदि अर्पित करने से धन-सम्मान में वृद्धि होती है।
  • साथ ही गणेश जी को प्रसन्न करने वाले मंत्र का भी जाप करना चाहिए।
  • पूजन उपरांत चंद्रमा को शहद, चंदन, रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य दें।
  • भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और चंद्र दर्शन के बाद व्रत तोड़ने हैं। 
  • दिनभर निराहार उपवास किया जाता है।
  • इस दिन तिल का भोग लगाकर गणेश जी की पूजा की जाती है।
  • संकष्टी चतुर्थी को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लेना चाहिए।
  • शाम के समय विधिवत् गणेश जी की पूजा करें।
  • गणेश जी को तुलसी कदापि न चढ़ाएं, कहा जाता है कि ऐसा करने से वह नाराज़ हो जाते हैं। मान्यता है, कि तुलसी ने गणेश जी को श्राप दिया था।
  • तिल के लड्डुओं का भोग लगाकर भगवान गणेश की आरती उतारें, एवं तिल के लड्डू या तिल खाकर अपना व्रत खोलें।
  • कहीं-कहीं पर तिल कूट का बकरा भी बनाते हैं। तत्पश्चात् गणेश पूजा करके तिलकूट के बकरे की गर्दन घर का कोई बच्चा काट देता है।
  • संकष्टी चतुर्थी का व्रत बहुत ही कठिन होता है। इस व्रत में केवल फलाहार ही किया जाता है। इसके अलावा मूंगफली, साबूदाना आदि भी खाया जा सकता है। इस दिन ज़मीन के अंदर होने वाले कंद-मूल का सेवन नहीं करना चाहिए, यानि कि मूली, प्याज, गाजर और चुकंदर न खाएं।
  • इस दिन यदि आप उपवास रखें, तो भगवान गणेश की कथा ज़रूर सुनें। ऐसा करने से ही आपकी पूजा सफल होगी।

कथा- ‘श्री गणेशाय नम:’

पढ़ें : गणेश जी की कहानियां

एक समय की बात है कि विष्णु भगवान का विवाह माता लक्ष्मी जी के साथ होना सुनिश्चित हो गया। विवाह की तैयारी होने लगी। सभी देवी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु भगवान गणेश-जी को किसी कारण-वश निमंत्रण नहीं दिया।

भगवान विष्णु की बारात जाने के समय सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए। उन्होंने देखा कि गणेश जी कहीं नज़र नहीं आ रहे हैं। तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि गणेश जी निमंत्रण में आये नही या गणेश-जी को न्यौता नहीं है? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा। तभी सबने विष्णु भगवान से ही इसका कारण जानने के उद्देश्य से सभी उनके पास पहुँचे। और कारण जानने की कोशिश की।

सभी के पूछने पर विष्णु भगवान कहा कि हमने गणेश-जी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्यौता भेजा है। यदि गणेश जी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्यौता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं, और दूसरा कारण यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिन भर में चाहिए। यदि गणेश जी नहीं आएँगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।

आपस मे बात चल ही रही थी कि किसी एक ने सुझाव दिया- यदि गणेश जी आ भी जाएं तो उनको द्वार पाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर की याद रखना। आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात में  बहुत पीछे रह जाओगे। यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी।

इतने में गणेश-जी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा-बुझाकर घर की रख वाली करने के लिए बैठा दिया। बारात चल दी, तब नारदजी ने देखा कि गणेश जी तो दरवाज़े पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेश जी के पास गए और रुकने का कारण पूछा। गणेश जी कहा कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारदजी ने कहा कि यदि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे, तब उन्हें आपको सम्मान पूर्वक बुलाना ही पड़ेगा।

गणेश जी को यह विचार पसंद आया तथा उन्होंने अपनी मूषक सेना जल्दी से आगे भेज दी और सेना ने ज़मीन पोली कर दी। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंसने लग गए। लाख कोशिश के बावजूद पहिए नहीं निकले। सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए तो नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए।

तभी नारद जी वहां पहुचे ओर बोले आप लोगों ने गणेश-जी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मना-कर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है। शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेश-जी को लेकर आए। गणेश-जी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया, तब कहीं रथ के पहिए निकले। लेकिन ज़मीन में धँसने के कारण पहिये टूट चुके थे। अब प्रश्न उठा सुधारे कौन?

पास के खेत में एक व्यक्ति काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। वह अपना कार्य करने के पहले ‘श्री गणेशाय नम:’ कहकर गणेश जी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते उसने सभी पहियों को ठीक कर दिया।

तब उसने कहा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेश जी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजा रचना की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है। हम तो अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेश जी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं। आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेश जी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेश जी की जय बोल-कर जाएं, एवं गणेश जी का पूजन अर्चन करें तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा।

अब बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मीजी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए।

जय गणेश भगवान की।

कथा पढ़कर प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।

ऐसी मान्यता है जो कोई भी संकष्टी व्रत को भाव पूर्ण करता है, उसके सभी संकट भगवान गणेश हर लेते है, इसीलिए इस दिन सभी दुखों का नाश करने वाले गणेश जी का पूजन और व्रत किया जाता है। ऐसा विश्वास किया जाता है की स्वयं भगवान गणेश अपने भक्तो के पास आते है।

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