मलजल उपचार संयंत्र – सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट Sewage Treatment Plant in Hindi

मलजल उपचार संयंत्र – सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट Sewage Treatment Plant in Hindi

आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कैसे अस्वच्छ जल को सीवेज ट्रीटमेंट के द्वारा स्वच्छ किया जाता है और कई प्रकार के घरेलु और औद्योगिक कामों में लगाया जाता है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के माध्यम से पानी का पुनः उपयोग किया जाता है और जल संरक्षण को बढ़ावा मिलता है।

मलजल उपचार संयंत्र – सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट Sewage Treatment Plant in Hindi

मलजल शोधन प्रक्रिया से तात्पर्य घरेलू एवं औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले दूषित तथा अपशिष्ट जल का शोधन करना है। इसके अंतर्गत भौतिक, जैविक एवं यदा-कदा रासायनिक प्रक्रियाओं के द्वारा जल में उपस्थित अपशिष्ट पदार्थों को अलग कर जल का संरक्षण किया जाता है।

इस प्रक्रिया द्वारा सीवेज जल को संशोधित करके प्रयोज्यित एवं पुनः उपयोग हेतु उपलब्ध कराया जाता है। कई बार शोधित जल का प्रयोग कृषि में किया जाता है, परन्तु हाल के वर्षों में इसमें मौजूद कीचड़ का उपयोग ईंधन के रूप में किया जाने लगा है। इस संशोधित जल का उपयोग मुख्यतः उद्योगों में, कृषि में, घरों में, चिकित्सकीय संस्थानों में एवं विनिर्माण इकाइयों में किया जाता है।

संशोधित जल के पुनः उपयोग के लिए, इस जल को पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति की आवश्यकता होती है। इस जल में मौजूद अपशिष्ट पदार्थों एवं रसायनों को सुरक्षित स्तर तक जल संशोधन प्रक्रिया द्वारा लाया जाता है। मलजल अर्थात सीवेज का उपचार, अधिकांशतः उसी स्थान पर किया जाता है जहाँ इसका निर्माण हुआ होता है।

परंतु जब ऐसा संभव नही हो पाता, तब इसे एकत्र करके पाइपों की मदद से एक स्थान से दूसरे स्थान अर्थात नगरपालिका के मलजल शोधन संयंत्र तक लाया जाता है। आधुनिक ईको-शहरों में सीवेज उपचार संयंत्र को मुख्य एवं महत्ता वाले स्थान पर लगाया जाता है। जिसके कारण सीवेज को संयत्र तक ले जाने में निहित 60% परिवहन-लागत में कमी आई है। चर्चित रूप में इसे सीवेज उपचार संयंत्रों का विकेंद्रीकरणकहा जाता है।

सीवेज उपचार संयंत्र की रूपरेखा एवं ढांचा-निर्माण की प्रकिया पर्यावरणीय अभियंत्रिकों के द्वारा पूरी की जाती है। वे, निर्धारित शोधन मानकों के अनुसार, विभिन्न प्राकृतिक एवं कृत्रिम उपकरणों की मदद से सभी भौतिक, रासायनिक, जैविक प्रक्रियाओं से दूषित जल का शोधन करते हैं। जिसके परिणामस्वरूप स्वच्छ एवं सुरक्षित सीवेज जल प्राप्त किया जाता है, जो बाद में प्रयोजन तथा पुनःउपयोग के लिए भेज दिया जाता है।

परंतु कभी-कभी ऐसा भी होता है कि शोधन प्रक्रिया के पश्चात भी जल में कुछ जैविक तथा अजैविक एवं हानिकारक तत्व बच जाते हैं, जिस कारण वह जल पुनःउपयोग के लिए उचित नही होता। उदहारण के तौर पर, ‘प्रायनरोग जिससे चौपाया जानवरों में मानसिक असंतुलन होता, यह रोग जल से सीवेज उपचार प्रक्रिया के बाद भी ख़त्म नही होता।

सीवेज शोधन प्रणाली निर्धारण के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:-

  1. नगरपालिका एवं औद्योगिक कचरे की प्रकृति जिसे सीवर के ज़रिये संयंत्र तक लाया जाता है।
  2. शोधन क्रिया प्रणाली की मात्रा जिससे कि यह प्रक्रिया सीवेज का पूर्ण रूप से शोधन कर सके।

प्रक्रिया के बाद बचे हुए घुलनशील अपशिष्ट पदार्थों का निस्सारण किसी नदी अथवा तालाब में कर दिया जाता है। कभी कभी वन्धयीकरण प्रक्रिया के पश्चात्, इसे कृषि के कुछ विशेष कार्यों में प्रयोग में लाया जाता है। हालांकि, इस प्रवाहित कचरे को पर्यावरण मंत्रालय द्वारा निर्धारित कुछ मानकों को पूरा करना होता है ,जिससे कि इसके द्वारा नदियां प्रदूषित ना हों।

सीवेज उपचार संयंत्र में निम्नलिखित 2 प्रकार की प्रक्रियाएं शामिल होती हैं:-

1) एनेरोबिक (अवायवीय) सीवेज संयंत्र:

सीवेज टैंक के कुछ हिस्से में ऑक्सीजन युक्त एनेरोबिक बैक्टीरिया को रखा जाता है, सीवेज टैंक में ऑक्सीजन की अनुपस्थिति के कारण सीवेज आंशिक रूप से विघटित होने लगता है। जिसके कारण वहां उपस्थित कार्बनिक पदार्थ मीथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड , कार्बन डाइऑक्साइड इत्यादि गैसों में परिवर्तित होने लगता है।

इस प्रकिया का प्रयोग मुख्यतः ठोस एवं कार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों के शोधन के लिए किया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि एनेरोबिक प्रक्रिया द्वारा यह अपशिष्ट पदार्थ का भार एवं आयतन काफी हद तक कम कर देता है। इस प्रक्रिया द्वारा प्राप्त मीथेन गैस का बड़े स्तर पर घरों एवं उद्योगों में उपयोग कर पाने के लिए अनेक शोध एवं अनुसन्धान किये जा रहे हैं।

2) एरोबिक (वायवीय) सीवेज संयंत्र:

इस प्रक्रिया में एरोबिक बैक्टीरिया द्वारा प्रदूषक तत्वों को भोज्य पदार्थ के रूप में खा लिया जाता है। एरोबिक बैक्टीरिया को श्वसन के लिए वायु तथा ऑक्सीजन मिलती रहनी चाहिए।

इन बैक्टीरिया के द्वारा पूर्ण रूप से ऑक्सीकरण एवं कार्बनिक पदार्थों को भोज्य के रूप में ग्रहण कर, शेष कार्बन डाइऑक्साइड, जल एवं नाइट्रोजन गैस प्राप्त की जाती है। इस तरह से यह प्रक्रिया जल से प्रदूषण एवं दुर्गन्ध को दूर कर शोधित जल प्रदान करती है, जिसे आगे ले जाकर किसी नदी के साथ प्रवाहित करवाया जाता है। नवीन एवं छोटे स्तर के एरोबिक संयंत्रों में प्राकृतिक वायु प्रवाह का प्रयोग किया जाता है, जिसमे विद्युत धारा की आवश्यकता नही होती।

पारंपरिक सीवेज जल उपचार में प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक चरणों में वर्गीकृत किया जा सकता है:-

1) प्राथमिक चरण

यह आमतौर पर एनेरोबिक प्रक्रिया से संचालित होता है। सर्वप्रथम, सीवेज से ठोस अपशिष्ट पदार्थ अलग किये जाते हैं। भारी होने के कारण यह प्राथमिक सेटलमेंट टैंक के तल पर स्थिर हो जाते हैं। एनेरोबिक प्रक्रिया के कारण यह अपशिष्ट निरंतर गति से आयतन एवं भार में कमी करके जल शोधित करता है। 

2) द्वितीयक चरण

यह एरोबिक प्रक्रिया द्वारा चालित होता है। प्राथमिक चरण के बाद बचे जल में घुलनशील एवं कणों के आकार के पदार्थ मिश्रित होते हैं। विभिन्न जलीय वायवीय जीवाणुओं एवं बैक्टीरिया की सहायता से प्रदूषित कणों को भोजन के रूप में ग्रहण कर जल को स्वच्छ करता है। अधिकांशतः बचा हुआ जल इतना सुरक्षित होता है जिससे उसे सीधे नदी या तालाब में निस्सारित किया जा सके।

4) तृतीयक अथवा अन्तिम चरण:

परन्तु कभी कभी ऐसा भी होता है जब द्वितीयक उपचार चरण की पूर्ति के बाद भी, जल निस्सारण करने जितना स्वच्छ नही हो पाता। इसके लिए मुख्य कारण उस नदी या तालाब का अत्यंत ग्रहणशील होना अथवा उस नदी या तालाब का किसी अन्य सेप्टिक टैंक द्वारा पहले ही अत्यंत प्रदूषित हो जाना।

पर्यावरण मंत्रालय द्वारा उस जल के उपचार के लिए उच्च मानक निर्धारित किये जाते हैं , जिससे कि शोधन प्रक्रिया के पश्चात् प्राप्त जल की स्वच्छता, उस नदी या तालाब में बहने वाली जल धारा से अधिक स्वच्छ हो।

जिस कारण उस नदी में प्रवाहित जल की स्वच्छता को कुछ हद तक बढ़ाया जा सके एवं पुनः उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जा सके। पर्यावरण मंत्रालय का उद्देश्य फॉस्फोरस एवं अम्मोनिकल नाइट्रोजन को जल से कम करना है।

यह कार्य शोधन प्रक्रिया के तृतीयक चरण के अंतर्गत होता है। अम्मोनिकल नाइट्रोजन को नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित करने के लिए सीवेज उपचार संयंत्र प्रक्रिया में पहले नाईट्रीकरण , उसके पश्चात् विनाइट्रीकरण विधि का प्रयोग किया जाता है।जिसके पश्चात् बिना किसी पर्यावरणीय हानि के नाइट्रोजन गैस वातावरण में मिल जाती है।

अंततः, सभी प्रकार का ठोस अथवा कणरूपी पदार्थ टैंकर से बाहर निकल जाता है एवं जिसके पश्चात प्रयोज्य तथा पुनःउपयोग हेतु, नदी अथवा प्रवाहित जलधारा से मिला दिया जाता है। इस जल का प्रयोग कृषि में विशेष कार्यों हेतु सिंचाई के लिये भी किया जाता है। एवं अगर यह जल उचित मात्रा में स्वच्छ एवं सुरक्षित हो जाता है, तब इसे भूजल तथा खेती के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

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