सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास व कहानी Somnath Jyotirlinga Temple History Story in Hindi
शिवपुराण में 12 ज्योतिर्लिंग का उल्लेख किया गया है और ऋग्वेद में ही इसका उल्लेख मिलता है। वास्तव में ये ज्योतिर्लिंग क्या है ? ज्योतिर्लिंग शब्द 2 शब्दों से मिलकर बना है – ज्योति और लिंग। ज्योति का अर्थ है “प्रकाश” और लिंग का अर्थ है “चिन्ह या छवि” अर्थात शिव भगवान का कोई प्रकाश युक्त चिन्ह।
इसका मतलब शिव भगवान जी जहाँ – जहाँ प्रगट हुए वहां शिवलिंग की पूजा करते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति इन 12 ज्योतिर्लिंग का दर्शन कर लेते हैं तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। शिवरात्रि के दिन देवी-देवता भी धरती पर प्रगट होते हैं इन ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए। ये 12 ज्योतिर्लिंग शिव भगवान के अवतार के रूप में पूजे जाते हैं।
इन 12 ज्योतिर्लिंग के नाम हैं –
- सोमनाथ
- मल्लिकार्जुन
- महाकालेश्वर
- ओम्कारेश्वर
- केदारनाथ
- भीमाशंकर
- काशी विश्वानाथ
- त्रयंबकेश्वर
- वैद्यनाथ
- नागेश्वर
- रामेश्वर
- घृष्णेश्वर
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास व कहानी Somnath Jyotirlinga Temple History Story in Hindi
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास History of Somnath Jyotirlinga
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को गुजरात के प्रभास पाटन, सौराष्ट्र में स्तिथ पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। शिवपुराण के कोटिरुद्रसंहिता में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में बताया गया है। शिवपुराण के अनुसार एक बार प्रजापति दक्ष ने क्रोध के कारण चंद्र देव को का श्राप दे दिया था।
तब चंद्र देव ने इसी स्थान पर तपस्या करके शिव भगवान् को प्रसन्न किया था। फिर शिव भगवान प्रसन्न हुए और चंद्र देव को श्राप मुक्त कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना चंद्र देव के द्वारा की गयी है। इसीलिए इसे सोमनाथ कहा जाता है।
यह मंदिर वैभवशाली और भव्यशाली होने के कारण कई बार लोगों के द्वारा लूटा गया। सन 1024 में मोहम्मद गजनवी इस मंदिर की संपत्ति लूट कर भाग गया था। मुग़लों और विदेशियों के द्वारा हरसंभव लूटने का प्रयास किया गया। कई बार यह मंदिर तोड़ा गया और पुनर्निर्माण हुआ।
स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। 1 दिसंबर 1995 को भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री शंकर दयाल शर्मा जी ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। यहाँ एक विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। इस ज्योतिर्लिंग को अद्भुत, रहस्यमयी और आश्चर्यजनक माना जाता है।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी Story of Somnath Jyotirlinga
इस ज्योतिर्लिंग के पीछे क्या कहानी है, हम विस्तार में जानते हैं –
प्रजापति दक्ष की 27 बेटियां थी। अपनी 27 बेटियों का विवाह उन्होंने चंद्र देव (सोम) से कर दिया। क्योंकि उन्हें पूर्ण विश्वास था कि उनकी बेटियां खुश रहेंगी। चंद्र देव को अपने दामाद के रूप में पाकर दक्ष बहुत खुश थे। लेकिन चंद्र देव को अपनी 27 पत्नियों में से सबसे प्रिय रोहिणी थी।
बाकि की 26 दक्ष बेटियों को चंद्र देव की पत्नी होने का सुख प्राप्त नहीं हो रहा था। इस बात से सभी बेटियां दुखी थी। तब 26 बेटियों ने दुखी मन से यह बात अपने पिता प्रजापति दक्ष से कही और आगे क्या करना चाहिए इस बात पर चर्चा की।
तब इस बात पर विचार करते हुए प्रजापति दक्ष ने चंद्र देव से मिलना उचित समझा और उन्हें समझाया कि वे सभी पुत्रियों के साथ एक सामान बर्ताव करें और ऐसा कह कर वे चले गए। उन्हें लगा कि चंद्र देव उनकी बात को समझेंगे। लेकिन चंद्र देव पर दक्ष की बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वे पहले के जैसे ही बाकि पत्नियों के साथ व्यवहार करने लगे।
इस बात से बाकि पत्नियां बहुत ही दुखी हो गयी। बेटियों ने पुनः यह बात अपने पिता को बताई। फिर से प्रजापति अपने दामाद के घर गए और समझाया कि बाकि की बेटियों के साथ एक सामान व्यवहार करें। ऐसा कह कर प्रजापति दक्ष वहां से चले गए। लेकिन इस बात का चंद्र देव पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वे पहले जैसा दुर्व्यवहार बाकि की पत्नियों के साथ करते रहे।
पुनः इस बात की खबर दक्ष को लगी और उन्होंने चंद्र देव को श्राप देने का निर्णय लिया और चंद्र देव से कहा कि तुमने बार – बार मेरे द्वारा समझाए जाने पर भी मेरी बात नहीं मानी और मेरी बेटियों के साथ दुर्व्यवहार किया , मैं तुम्हे क्षय रोग से पीड़ित होने का श्राप देता हूँ। इसके बाद चंद्र देव क्षय रोग से पीड़ित हो गए और धीरे-धीरे क्षीण होने लगे, तीनों लोकों में हाहाकार मच गया।
देवी-देवता सब परेशान हो गए। फिर सभी देवी-देवतागण ब्रह्मा जी की शरण में पहुंचे और समाधान पूछा। तब उन्होंने बताया कि शिवलिंग की पूजा करो, तपस्या करो, मंत्र का जाप करो, शिव जी के प्रसन्न होने पर ही तुम श्राप मुक्त हो पाओगे।
तब चंद्र देव ने शिवलिंग की पूजा की और घोर तपस्या की, दस करोड़ मृत्युंजय मंत्र का जाप किया और शिव भगवान को प्रसन्न किया। शिव भगवान प्रसन्न हुए और उन्होंने रोग मुक्त किया और ये भी कहा की चंद्र देव ! तुम्हारी कला एक पक्ष में क्षीण हुआ करेगी और दुसरे पक्ष में निरंतर बढ़ती रहेगी। तब वहीँ पर चंद्र देव और देवी-देवता ने सोमनाथ कुंड की स्थापना की। जिसमें भगवान शिव जी और ब्रह्मा जी का निवास माना जाता है।
एक दूसरी मान्यता यह भी है कि श्री कृष्णा जी भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे। तब एक शिकारी ने उनके तलवे में बने पदचिन्ह को हिरन की आँख समझ कर तीर मारा था। यहीं पर श्री कृष्णा जी ने देह त्याग किया और वैकुण्ठ के लिए प्रस्थान कर गए।
इस स्थान पर बहुत ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है। इसीलिए ऐसा कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन करता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। यह मंदिर आदी – अनंत है।
Featured Image – (Aditya Mahar) Wikimedia