सोमवती अमावस्या, महत्व, कथा Somvati Amavasya Importance, Story (हिन्दी)
इस लेख में हम आपको सोमवती अमावस्या, महत्व, कथा Somvati Amavasya Importance, Story के बारे में बताया है।
दोस्तों जैसा की हम सभी जानते है, कि हिन्दू धर्म में सभी देवी देवताओं का अपना एक विशेष स्थान है, हम सभी अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए विभिन्न देवी देवताओं की आराधना करते है। जिससे उस देवी देवता की कृपा दृष्टि हमे प्राप्त हो सके।
ऐसे ही अधिकतर महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र के लिए कई प्रकार के पूजा पाठ एवं व्रत करती आयी है, आज हम आपसे बात करेंगे ऐसे ही व्रत के बारे में जिसको महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती है, और सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद लेती है। वैसे तो कई ऐसे व्रत है, लेकिन आज हम बात करेंगे, सोमवती अमावस्या के बारे में, तो दोस्तों शुरू करते है-
सोमवती अमावस्या क्या है?
सोमवार को होने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इसका हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है, यह अमावस्या साल में लगभग एक या दो बार ही आती है। इस दिन भगवान शंकर की पूजा अर्चना का भी विशेष महत्व होता है, इसके प्रभाव से कुंडली में कमजोर चंद्रमा को बलवान किया जा सकता है। प्रत्येक अमावस्या को सूर्य तथा चंद्र एक ही राशि में स्थित रहते हैं। इसलिए यह पर्व विशेष पुण्य देने वाला होता है।
महत्व
विवाहित महिलाएं इस दिन अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती है। हिन्दू धर्म में मान्यता के अनुसार इस दिन पीपल की पूजा अर्चना करके पितरों को भी प्रसन्न किया जाता है और माना जाता है कि ऐसा करने से घर में अन्न धन की कोई कमी नहीं रहती है। इस दिन स्नान, दान करने का विशेष महत्व होता है, इस पर्व पर किए गए तीर्थस्नान और दान से बहुत पुण्य मिलता है और पापों का नाश होता है।
इस अवसर पर ब्राह्मणों को भोजन करवाने से हजारों गायों के दान का पुण्य फल भी प्राप्त होता है। इस दिन मौन व्रत रहने का भी विशेष महत्व बताया गया है, ऐसा करने से सहस्र गोदान का फल मिलता है। शास्त्रों में इसे अश्वत्थ (पीपल वृक्ष) प्रदक्षिणा व्रत भी कहा गया है।
सोमवती अमावस्या कथा Story of Somvati Amavasya
सोमवती अमावस्या के दिन कथा को विधि पूर्वक सुना जाता है। कथा इस प्रकार है-
एक गरीब ब्राह्मण के परिवार में उसकी एक पत्नी और एक पुत्री थी। ब्राह्मण का परिवार बहुत खुशी के साथ अपना जीवन यापन कर रहा था, समय के साथ धीरे धीरे उसकी पुत्री बड़ी होने लगी। कन्या सुन्दर, संस्कारवान एवं सर्वगुसंपन्न भी थी, जब वह कन्या विवाह योग्य हुई, तो ब्राह्मण को उसके विवाह की चिंता सताने लगी, और उसने उसके लिए योग्य वर की खोज शुरू कर दी। लेकिन गरीब होने के कारण उसके विवाह की बात नहीं बन पा रही थी। हर जगह से उसे निराशा ही मिलती थी।
एक दिन ब्राह्मण के घर एक साधू पधारे, जो कि कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न हुए। उन्होंने कन्या को लंबी आयु का आशीर्वाद दिया, और ब्राह्मण के पूछने पर विवाह न होने के बारे में बताया कि कन्या के हाथ में विवाह की रेखा नहीं है।
ब्राह्मण दंपति ने साधू से पूछा कि ऐसा क्या उपाय है। जिससे कन्या के हाथ में विवाह की रेखा बन सके? साधू ने अपने दिव्य ज्ञान से बताया कि कुछ दूरी पर एक गाँव में सोना नाम की धोविन जाति की एक महिला अपने बेटे-बहू के साथ रहती है, जो की बहुत ही पवित्र आचार- विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है।
यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इस कन्या की मांग में अपनी मांग का सिन्दूर लगा दे, और उसके बाद इस कन्या का विवाह हो, तो इस कन्या का भावी जीवन बहुत ही सुखप्रद रहेगा। साधू ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती जाती नहीं है। साधु की बात सुनकर ब्रह्मणि ने अपनी बेटी से धोबिन कि सेवा करने कि बात कही।
ब्राह्मण कन्या ने की सेवा
यह जानकर वह कन्या धोविन की सेवा करने के लिए तैयार हो गई। कन्या रोज़ सुबह जल्दी उठकर सोना धोबिन के घर जाकर, सफाई और अन्य काम करने लगी, सारे काम करके वह अपने घर वापस आ जाती। रोज़ाना ऐसा ही चलता रहा। सोना धोबिन अपनी बहू से बहुत खुश रहने लगी, क्योंकि उसे लगता था, कि उसके सुबह उठने से पहले उसकी बहू घर का सारा काम कर लेती है।
एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है, कि तुम तो सुबह जल्दी ही उठकर सारे काम कर लेती हो, और पता भी नहीं चलता। बहू ने कहा कि माँ जी मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम ख़ुद ही ख़तम कर लेती हैं। मैं तो देर से उठती हूँ। ऐसा जानकर दोनों सास बहू सोचने लगी फिर ऐसा कौन है, जो यह काम रोज़ करता है।
यह जानने के लिए दोनों ने निगरानी करने शुरू कर दिया, कि कौन है, जो सुबह जल्दी ही घर का सारा काम करके चला जाता है। कई दिनों के बाद एक दिन धोबिन ने देखा कि एक कन्या सुबह जल्दी ही अंधेरे में आती है, और घर का सारा काम करने के बाद चली जाती है।
एक दिन जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन ने उससे पूछा कि आप कौन है, और इस तरह छुप कर मेरे घर का सारा काम क्यों करती हो। तब कन्या ने साधू द्वारा कही गई सारी बात बताई। सोना धोबिन पति परायण स्त्री थी, उसमें तेज था। वह अपनी मांग का सिंदूर देने को तैयार हो गई, अगले दिन सोमवती अमावस्या का दिन था।
धोबिन ने दिया अपना सुहाग
सोना को पता था कि मांग का सिंदूर देने पर उसके पति का देहांत हो जाएगा और सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे। उसमे अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा और वह व्रत करके कन्या के घर की ओर चल दी।
वहां पहुँचकर उसने अपना सिंदूर कन्या की मांग में लगा दिया। उधर सोना के पति की मृत्यु हो गई। वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी। लौटते वक्त पीपल के पेड़ की पूजा करके सोना ने परिक्रमा की।
ब्राह्मण के घर मिले पूए- पकवान की जगह उसने ईंट के टुकड़ों से 108 बार भँवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया। जब वह अपने घर लौटी तो देखा कि उसका पति जीवित है। उसने ईश्वर को धन्यवाद दिया। तब से मान्यता है कि यह व्रत करने से पति को लंबी उम्र मिलती है।
पूजन विधि
दोस्तों सभी व्रतों को करने की एक विधि होती है, यदि हम उस विधि से उस व्रत को संपन्न करते है तो हमे मनचाही वस्तु प्राप्त होती है, उसी प्रकार सोमवती अमावस्या की पूजन विधि है, जो इस प्रकार है –
1. इस दिन सुबह जल्दी उठ कर पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। यदि किसी कारण वश आप यह ना कर पाए तो अपने स्नान के जल में एक चम्मच गंगा जल मिलाकर स्नान करें और हल्के रंग के स्वच्छ वस्त्र धारण करें|
2. इस दिन स्नान करने वाले पानी में थोड़ी सी दूर्वा और काला तिल डालकर स्नान करने से नव ग्रहों की शांति होती है
3. एक लोटे में कच्चा दूध, जल, फुल, चावल और गंगा जल मिलाकर पीपल के वृक्ष की जड़ में सीधे हाथ से दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके अर्पण करें।
4. सुहागन स्त्री को अपने पति की लंबी आयु के लिए पीपल के वृक्ष की सात परिक्रमा करना चाहिए।
5. परिक्रमा करते समय व्यक्ति को अपने मन की इच्छा बोलते हुए सफेद मिष्ठान पीपल के वृक्ष की जड़ में अर्पण करना चाहिए।
6. सोमवती अमावस्या पर विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से मन की सारी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं।
7. कुंडली में कमजोर चंद्रमा को शक्तिशाली करने के लिए कच्चे दूध से भगवान शिवलिंग का अभिषेक करें।
8. इस दिन खासकर पूर्वजों को तर्पण किया जाता है। इस अवसर पर पितरों की शांति के लिए पिंडदान अवश्य करें।
9. धान, पान और खड़ी हल्दी को मिला कर उसे विधान पूर्वक तुलसी के पेड़ को चढाया जाता है। तुलसी जी की 108 बार परिक्रमा करने से घर की दरिद्रता भाग जाती है।
10. इस दिन उपवास करते हुए पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर शनि मंत्र का जाप करना चाहिए और पीपल के पेड़ के चारों ओर 108 बार परिक्रमा करते हुए भगवान विष्णु तथा पीपल वृक्ष की पूजा करनी चाहिए, जिसके प्रभाव से व्यक्ति की दरिद्रता दूर होती है|
11. धन लाभ के लिए भगवान गणेश को भी सुपारी चढ़ा कर रात को गणेश प्रतिमा के आगे दीपक जलाये।
12. कालसर्प दोष निवारण की पूजा करने के लिए भी अमावस्या का दिन उपयुक्त होता है।