ईसा मसीह की कहानी Story of Jesus Christ in Hindi (यीशु मसीह जन्म कथा)
इस लेख मे आप ईसा मसीह की कहानी (Story of Jesus Christ in Hindi) पढ़ेंगे। यीशु मसीह के जन्म की कहानी, कुछ मुख्य कहानियाँ, और महान कार्यों के विषय मे बताया है।
परिचय Introduction (ईसा मसीह की कहानी)
दोस्तों जैसा की हम सभी जानते है दिसम्बर का महीना चल रहा है और 25 तारीख आने वाली है, जो ईसाई धर्म मानने वालो के लिए एक पर्व के सामान होती है, इस दिन ईसाई धर्म के ईश्वर, प्रभु ईसा मसीह का जन्म हुआ था, और इसे क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है क्राइस्ट्स मास। ईसा के जन्म के सम्मान में सामूहिक प्रार्थना की जाती है, वास्तव में यह मात्र प्रार्थना न होकर एक बड़ा त्योहार है।
प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाता है। ईसा के पूर्व रोम-राज्य में 25 दिसंबर को प्रतिवर्ष सूर्य देव डायनोसियस की उपासना के लिए एक महान् त्योहार मनाया जाता था। ईसा की प्रथम शताब्दी में ईसाई लोग महाप्रभु ईसा का जन्म दिवस इसी दिन मनाने लगे। इसे बड़ा दिन का त्योहार भी कहते हैं। आज हम इन्ही के बारे में बात करेंगे और इन्ही के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे, तो दोस्तों शुरू करते है-
जैसा की हम सभी जानते है, यीशु या यीशु मसीह (ईसा मसीह, जीसस क्राइस्ट), ईसाई धर्म के संस्थापक एवं परमेश्वर कहे जाते हैं। ईसाई लोग उन्हें परम पिता परमेश्वर का पुत्र और ईसाई त्रिएक परमेश्वर का तृतीय सदस्य के रूप में मानते हैं एवं ईसाई धर्म का धार्मिक ग्रन्थ बाइबिल है।
इसमें ईसा मसीह के जन्म से लेकर मृत्यु एवं उनकी शिक्षा एवं दीक्षा के बारे में बताया गया है। इन्होंने इंसान को मानवता का संदेश दिया। उनके द्वारा स्थापित ईसाई धर्म अनुयायियों की संख्या आज विश्व में सबसे अधिक है।
यीशु मसीह जन्म और बचपन कथा Birth and Childhood
बाइबिल के अनुसार ईसा मसीह का जन्म मरियम के गर्भ से, उनके विवाह से पूर्व ही ईश्वरीय प्रभाव से हुआ था। मरियम गलीलिया शहर के नाज़रेथ गाँव में रहती थीं एवम उनकी सगाई एक बढई से हुई थी, जिसका नाम यूसुफ़ था जो दाऊद राजवंशी थे।
ईश्वरीय प्रभाव से शादी से पूर्व ही गर्भवती होने के कारण। यूसुफ़ को उनके चरित्र को लेकर चिंता होने लगी, वह असमंजस में थे, कि उन्हें यह शादी करना चाहिए, या नही परन्तु जल्द उन्हें इस चिंता का समाधान मिल गया।
उसी रात एक फ़रिश्ते ने सपने में उनकी चिंता का समाधान करते हुए यीशु के जन्म की बात बता दी, और उसे शादी करने के लिए आज्ञा दी। यूसुफ़ ने ईश्वर की आज्ञा पाकर मरियम से विवाह कर लिया। विवाह संपन्न होने के कुछ समय पश्च्यात यूसुफ़ अपना शहर गलीलिया छोड़कर, बेथलहेम नामक नगरी में रहने लगे, उस समय बेथलहेम में यहूदियों का निवास था।
बेथलहेम में 4 ई.पू. में ईसा मसीह का जन्म हुआ। ईसा मसीह को राजा हेरोद के अत्याचार से बचाने के लिए यूसुफ़ मिस्र की और भाग गए। लेकिन हेरोद के 4 ई.पू. में ही मृत्यु को प्राप्त होने के कारण यूसुफ़ दोवारा लौटकर नाज़रेथ गाँव में बस गए। ईसा जब बारह वर्ष के हुए, तो यरुशलम में तीन दिन मन्दिर में रुके वहां वह उपदेशकों के बीच में उठने बैठने लगे और साथ ही उनसे प्रश्न उत्तर भी करने लगे।
ईसा मसीह समझ और उनके उत्तरों से चकित हो गये, सभी लोग आश्चर्यचकित हो गये। कुछ समय बाद ईसा अपने माता पिता के साथ अपने गांव वापिस लौट आये। यहाँ ईसा ने यूसुफ़ का पेशा सीख लिया था, और लगभग 30 साल की उम्र तक उसी गाँव में रहकर वे बढ़ई का काम करते रहे।
बाइबिल में उनके 13 से 29 वर्षों के बीच की कोई जानकारी उपलब्ध नही है। बाइबिल के अनुसार 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने यूहन्ना (जॉन) से पानी में डुबकी (दीक्षा) ली। कहा जाता है, डुबकी के बाद ईसा पर पवित्र आत्मा का पहरा हो गया, 40 दिन के उपवास के बाद ईसा लोगों को शिक्षा देने लगे।
यीशु के जन्म को लेकर कहानियां Stories of Jesus Christ in Hindi
1. यीशु के जन्म की कथा
ऐसा कहा जाता है, रोमन सम्राट आगस्टस के आदेश पर उस देश की जनगणना की आज्ञा दी गयी। उस समय मरियम गर्भवती थी। प्रत्येक व्यक्ति को बेथलहेम में जाकर अपना नाम दर्ज कराना था। वहाँ बड़ी संख्या में लोग आये थे। सभी धर्मशालाये और आवास पूरी तरह से भरे थे। अंत में उनको एक अस्तबल में जगह मिली।
उस समय लोग खुद को गर्म रखने के लिए अक्सर घर के अन्दर जानवरों को रखा करते थे, खासतौर पर रात के समय, और यहीं वो पवित्र जगह थी, जहाँ मरियम ने प्रभु यीशु को जन्म दिया और यही पर 25 दिसंबर को आधी रात के समय महाप्रभु ईसा का जन्म हुआ।
बेथलहेम के बाहर मौजूद गड़ेरिये जब रात भर अपनी भेड़ों की देखभाल कर रहे थे। जब सुबह हुई तब उनके साथ भी एक आश्चर्यजनक घटना हुई, अगली सुबह एक फ़रिश्ता उनके सामने आया, गड़ेरिये पहले तो उसे देखकर काफी डर गए पर फ़रिश्ते ने उनसे कहा, डरो मत, मेरे पास तुम्हारे लिए एक अच्छी खबर है।
आज बेथलहेम में तुम्हारे लिए एक रखवाले ने जन्म लिया है और वो तुम्हें जानवरों की चारा खिलाने वाली एक नाँद में मिलेगा। इसके बाद कई और फ़रिश्ते प्रकट हुए और आकाश में प्रकाश फैल गया, और वे ईश्वर की प्रशंसा में गाने लगे। फरिश्तों के जाने के बाद गड़ेरियों ने आपस में कहा, “चलो, बेथलहेम चलते हैं और वहां जाकर देखते हैं कि क्या हुआ है।”
सभी गड़ेरिये बेथलहेम पहुंचे और वहां उन्होंने यीशु को एक नाँद में लेटे हुए देखा, जैसा कि फ़रिश्ते ने बताया था। गड़ेरियो ने जाकर ईसा को देखा और उनकी स्तुति की। ईसाईयों के लिए इस घटना का बहुत महत्व है। वे जीसस को ईश्वर का पुत्र मानते है। अतः ईसाइयो के लिए यह ख़ुशी और उल्लास का दिन था। क्योंकि ईश्वर का पुत्र यीशु सभी के कल्याण करने के लिए पृथ्वी पर आये थे।
2. बेथलहेम में ईसा मसीह का जन्म कथा
कहा जाता है हेरोद राजा के शासन काम ले जब यहूदिया के बेथलहेम में ईसा मसीह का जन्म हुआ, तो उसी समय ज्योतिषी यरूशलम में आकर उनके बारे में पूछने लगे। क्योंकि उन्होंने उसका तारा देखा था और वो उनको प्रणाम करने आए हैं।
जब हेरोद राजा ने यह सब सुना तो वो और उसके साथ सारा येरूशलम घबरा गया। तब हेरोद ने ज्योतिषियों को चुपके से बुलाकर उन से पूछा, कि तारा ठीक किस समय दिखाई दिया था और उस ने यह कहकर उन्हें बेथलहेम भेजा दिया, कि जाकर उस बालक के विषय में ठीक ठीक मालूम करो और जब वह मिल जाए तो मुझे समाचार दो ताकि मैं भी आकर उस को प्रणाम करूं।
वे राजा की बात सुनकर चले गए। कहा जाता है जो तारा उन्होंने पूर्व में देखा था, वह उन के आगे आगे चला और जंहा बालक था, उस जगह के ऊपर पंहुचकर ठहर गया। उस तारे को देखकर वे अति आनन्दित हुए और उस घर में पहुँचकर उस बालक और उसकी माता मरियम के साथ देखा और दंडवत उसे प्रणाम किया।
उसके बाद अपना अपना थैला खोलकर उसे सोना और लोहबान और गन्धरस की भेंट चढ़ाई और दूसरे मार्ग से होकर अपने देश को चले गए। ऐसा विश्वास किया जाता है की उन ज्योतिषों को स्वप्न में यह चेतावनी मिली थी की हेरोद के पास दोबारा न जाना।
ईसा मसीह का सन्देश एवं धर्म-प्रचार Jesus Christ Message to World
ज्ञान प्राप्त करने के बाद तीस साल की उम्र में ईसा ने इसराइल की जनता को यहूदी धर्म के बारे में प्रचार करना शुरु कर दिया। उनके अनुसार ईश्वर (जो केवल एक ही है) साक्षात प्रेम रूप है, और वह यहूदी धर्म की पशु बलि और कर्मकाण्ड नहीं चाहता। ईश्वर सभी लोगो को प्यार करता है।
सभी लोग उसी की ही संतान है, इंसान को क्रोध में बदला नहीं लेना चाहिए और साथ ही उसे क्षमा कर देना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि वे ही ईश्वर के पुत्र हैं, वे ही मसीहा हैं और स्वर्ग और मुक्ति का मार्ग हैं। यहूदी धर्म में क़यामत के दिन का कोई ख़ास ज़िक्र या महत्व नहीं था, पर ईसा ने क़यामत के दिन पर ख़ास ज़ोर दिया – क्योंकि उसी वक़्त स्वर्ग या नर्क इंसानी आत्मा को मिलेगा।
ईसा ने कई चमत्कार भी किए। ईसा के 12 शिष्यों ने उनके नये धर्म को सभी जगह फैलाया। यही धर्म ईसाई धर्म कहलाया। ईसा मसीह द्वारा बहुत से चमत्कार हुए। उन्होंने बीमारों को प्रार्थनाओं के जरिये स्वस्थ किया । बाइबल में ऐसा उल्लेख मिलता है कि एक व्यक्ति को फिर से जिंदा कर दिया। इसके अतिरिक्त कुछ दुष्ट आत्माओ में फंसे व्यक्तियों को उनसे मुक्ति दिलायी।
उनके अनुसार –दूसरों से हमें वैसा ही व्यवहार करना चाहिए, जैसा हम अपने लिए चाहते है।, ‘मनुष्य द्वारा एक दूसरे की सेवा करना ही सच्ची ईश्वर सेवा है।’,‘कृपा और सच्चाई तुझसे अलग नही है। अतः इसको अपने से अलग मत करो।’ ईसा मसीह ने उस समय के कर्मकांड और पाखंड का विरोध किया। इंसान को मानवता का पाठ पढ़ाया। आपस में नफरत की जगह प्यार का संदेश दिया।
यही कारण है कि आज विश्व में ईसाई धर्म को मानने वाले सबसे अधिक है। लोग ईसा के विचार अपने जीवन में उतारने लगे। इससे समाज में धार्मिक अंधविश्वास व झूठ फैलाने वाले धर्मगुरुओं को उनसे काफी जलन होने लगी। वहां के धर्मगुरुओं ने ईसा को मानवता का शत्रु बताना शुरू कर दिया। लेकिन प्रभु ईसा की लोकप्रियता दिन व दिन बढ़ती ही चली गयी।
विरोध, मृत्यु और पुनरुत्थान Protest and Death
यहूदियों के कट्टरपंथी धर्म गुरुओं ने ईसा मसीह का भारी विरोध किया, क्योंकि उन्हें अपने कर्मकाण्डों से प्रेम था। ख़ुद को ईश्वर पुत्र बताना उनके लिये भारी पाप था। इसलिये उन्होंने उस वक़्त के रोमन गवर्नर पिलातुस उनके विरुद्ध इसकी शिकायत कर दी। रोमनों को हमेशा यहूदी क्रांति का भी डर रहता था।
इसलिये कट्टरपंथियों को प्रसन्न करने के लिए पिलातुस ने ईसा को क्रूस (सलीब) पर मौत की दर्दनाक सज़ा सुनाई। यहूदी कट्टपंथियो धर्मगुरु ने ईसा मसीह का भारी विरोध किया। कट्टरपंथियों को प्रसन्न के उद्देश्य से ईसा को क्रूस पर मृत्यु की सजा सुनाई गयी। उन पर अनेक ज़ुल्म ढाये गए। उन्हें कोड़ो से मारा गया। उनके सिर पर काँटों का ताज पहनाया गया।
उनके हाथ पैरों में कील ठोक कर उन्हें क्रूस पर लटका दिया गया। उन्हें बड़ी ही शारीरिक यातनाये दी गयी। शुक्रवार के दिन उनकी मृत्यु हुयी थी। बाइबिल के अनुसार मृत्यु के तीन दिन बाद ईसा पुनः जीवित हो गए थी। और इस घटना को ‘ईस्टर ‘के रूप में मनाया जाता है और इसके 40 दिन बाद वे सीधे स्वर्ग चले गए थे।
अप्रैल के महीने में दिन शुक्रवार को दुनिया भर में गुड फ्राइडे का पर्व मनाया जाता है, जिसे शोक दिवस के रूप में मनाते हैं। ईसा सूली पर छह घंटों के लिए लटके रहे और आखिरी के तीन घंटों के दौरान पूरे राज्य में अंधेरा हो गया था, फिर एक चीख आई और उसी के साथ प्रभु ने अपने प्राण त्याग दिये, कहते हैं जब प्रभु ने अपने प्राण त्याग दिये थे तो एक तेज जलजला आया था।
कब्रों की कपाटें टूट कर खुल गयीं और पवित्र मंदिर का परदा नीचे तक फटता चला गया। इसी कारण लोग आज के दिन दोपहर बाद चर्च में एकत्रित होकर लगभग 3 बजे प्रार्थना करते हैं। हालांकि इस पूरे सप्ताह को ईसाई धर्म में पवित्र माना जाता है। मगर चर्च में प्रार्थना के अलावा किसी भी तरह का सेलिब्रेशन नहीं मनाया जाता है।
ईसाईयों का मानना है कि क्रूस पर मरते समय ईसा मसीह ने सभी इंसानो के पाप स्वयं पर ले लिये थे। उनके ऊपर इतना अत्याचार करने वालो के लिए भी ईसा कहते है कि’ प्रभु इन्हें क्षमा करना क्योंकि यह नही जानते की ये क्या कर रहे है।’
निष्कर्ष Conclusion
तो दोस्तों आज अपने जाना की कैसे ईसा मसीह ने लोगो के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। बाइबिल में लिखे गये उनके सन्देश आज भी लोगो द्वारा पढ़े जाते है और उनका जीवन में अनुसरण किया जाता है, हम स्वयं ईसा मसीह से सीखना चाहिए की हमे केवल अपने लिए न जीकर बल्कि पुरे समाज, परिवार एवम संसार के लाभ के लिए जीना चाहिए और उसका भला करना चाहिए। आशा करते हैं आपको ईसा मसीह की कहानी Story of Jesus Christ in Hindi लेख से यीशु मसीह के बारे मे अच्छी जानकारी मिली होगी।
Bahut aacha lga , in sari baton se bahut jankariyan mili
I have read a book by Holzer Kersten which proves that Jesus died in Indian state of Kashmir where his body is still buried at a place Rozabal. What is your take on this story?
Mai Hindu hu cristhon nhi fir bhi padhkar bahut aacha lga aur isko padhne ke bad bahut kuch sikhne ko mila
Kabhi bhagwat Geeta padhna or bhi acha lgega
यह यीशु की तुलना में अधिक अच्छा व्यक्ति था। वह भगवान का पुत्र था, मानव रूप में भगवान का पुत्र। उसने एक आदर्श जीवन जिया और मनुष्य को ईश्वर से मिलाने के लिए अपना खून बहाया। यदि आप अपने मुंह से घोषणा करते हैं, “यीशु भगवान हैं,” और अपने दिल में विश्वास करें कि भगवान ने उन्हें मृतकों से उठाया है, तो आप बच जाएंगे। वास्तव में समझने के लिए नए नियम को पढ़ना आवश्यक है। और बाइबिल का पुराना नियम यीशु को इंगित करता है।
SO GOOD STORY
Bahut achi kahani h
This is a good story amazing
Very loving story hame isse bhut Kuch sikhne ko Mila thanks..
Mujhe bahoot hi achcha laga story ko padh kar kuch batoon se anjaan tha
jo mujhe is story ke madhyam se pata chala.